19 मार्च 2019

‘‘ओ ! फ़सली चौकीदार ! ’’

‘‘ओ ! फ़सली चौकीदार ! ’’

-मनोहर चमोली ‘मनु’


मैंने पलटकर देखा। लगभग बीस कदम की दूरी पर एक अनजान आदमी खड़ा था। वह व्यंग्यात्मक भाव लिए मुस्करा रहा था। मैंने कदम बढ़ा दिए।
‘‘ओ ! फ़सली चौकीदार ! ठहरो !’’

पता नहीं, मुझे क्यों लगा कि वह मुझे ही पुकार रहा है। मैंने फिर पलटकर देखा। उसने 'हाँ ' में ठुड्डी हिलाकर तसदीक कर दी। यही कि वह मुझसे ही मुख़ातिब हो रहा है। उसने रुकने का इशारा करते हुए जल्दी-जल्दी डग भरे और मेरे निकट आ पहुँचा।

पहली बार ! पहली बार, मैंने देखा कि कैसे कोई दो कदमों की चाल एक कदम में पूरा कर सकता है। मैं उसे पहचान नहीं पा रहा था। वह बोला,‘‘हम पहली बार मिल रहे हैं। पर फेसबुक में रोज़ मिलते हैं। आप फ़सली है और मैं असली।’’

‘‘मतलब ?’’ मैंने पूछा।


वह बोला,‘‘मतलब ये कि मैं चौकीदार हूँ। डबल चौकीदार।’’

मैं समझ गया। डबल इंजन की सरकार की तरह यह भी वही है। मैं सोच ही रहा था कि वह फिर बोला,‘‘मैं न भक्त हूँ , न अंधभक्त। मैं बुद्धिजीवी भी नहीं हूँ। डबल मतलब, रात को एटीएम मशीन के दरवज्जे पर बैठता हूँ। चौकीदारी करता हूँ। रात के दस बजे से सुबह छःह बजे तक। फिर दिन में दो बजे से रात के दस बजे तक एक फैक्ट्री के गेट पर चौकीदारी करता हूँ।’’

मैं मन ही मन घंटे गिन रहा था कि वह बोल पड़ा,‘‘सोलह घंटे की चौकीदारी करता हूँ। और आप?’’ मैं बिफ़र पड़ा,‘‘तुम कौन हो? मैं क्यों बताऊँ?’’

वह बोला,‘‘तो फेसबुक में क्यों बताया?’’
‘‘क्या?’’
‘‘यही कि मैं भी ‘चौकीदार‘ हूँ।’’
‘‘मेरी मर्जी।’’
‘‘तो क्या मैं यह लिख सकता हूँ मैं भी प्रधानमंत्री?’’

मैं उलझना नहीं चाहता था। मुझे लगा कि वह मुझे अपमानित कर रहा है। लोग हम दोनों को देख रहे थे। मैं जाने लगा।

‘‘अरे-अरे! आप तो बुरा मान गए। फेसबुक में आपकी चौधराहट पढ़कर मज़ा आता है। सोचा,असल ज़िंदगी में भी आपकी रसूखदारी देख लूँ। ’’

मैं किंकर्तव्यविमूढ़ था। वह सामान्य हो गया। बोला,‘‘चौकीदार हूँ। चौकीदारी मेरा पेशा है। पूरी निष्ठा के साथ अपना काम करता हूँ। किसी तरह से डबल ड्यूटी कर बारह हजार पाता हूँ। पत्नी स्वेटर बुनती है। स्वेटर बेच-बेचकर वह भी पाँच-छःह हजार कमा लेती है। पर आप लोगों ने हम मेहनतकशों का मजाक बना दिया है। जिसे देखो कहता फिर रहा है - 'मैं भी चौकीदार-मैं भी चौकीदार।' फ़र्ज़ी साले। आए दिन भ्रष्टाचार करते हैं। रिश्वत देते हैं और लेते भी हैं। भिखारी ही नहीं , कुत्तों तक को आए दिन दुत्कारते फिरते हैं। ठेली-रेहड़ी वालों की चने-मुंगफली आते-जाते मुट्ठी भर लेते हैं। एक ढेला खर्च नहीं करते। और कहते फिर रहे हैं कि मैं भी चौकीदार ! थू है!’’
अब मुझे गुस्सा आ गया। वह समझ गया। बोला-‘‘भाई जी, नाराज़ मत हों। आप सही आदमी हो। पर ज़रा भटके हुए हो। अब देखो न , गुमराह लोग ही तो चोरी-चकारी करते हैं। और हम चौकीदार उन पर ही तो नज़र रखते हैं। है कि नहीं? आप तो पहरेदारी और चौकीदारी में फ़र्क़ महसूसते हैं। आस्था, पोंगापंथी, भक्ति,राष्ट्रभक्ति और अंधभक्ति समझते होंगे। तो आपसे कह रहा हूँ। वरना जैसा माहौल है तो दिन को दिन कहना भी गुनाह है। आप समझ रहे हैं न मैं क्या कह रहा हूँ?"
मैं सोच रहा था कि ये पढ़ा-लिखा भी होगा? वह बोला,‘‘भाई जी। वक़्त-वक़्त की बात है। एम.एस.सी. हूँ। आधा बी.एड. हूँ। आधा मतलब कि परीक्षा के पहले दिन ही झगड़ा हो गया। पूरे कमरे में नकल करा रहे थे। सौ-सौ रुपए इकट्ठा कर रहे थे। बस छोड़ आया। एक स्कूल में पढ़ाया कई साल। लेकिन वहाँ भेड़-बकरियों की तरह बच्चों को पीटते मुझसे देखा नहीं गया। झड़प हो गई। छोड़ आया।’’
‘‘यह तो लढ़ाकू है।’’ मैं सोच रहा था कि वह बोला,‘‘लोगों में धैर्य नहीं है। सच्ची बात कड़वी लगती है। लोग सुनना ही नहीं चाहते। लड़ पड़ते हैं। हाथ छोड़ने लगते हैं। भले ही मैं चौकीदार हूँ। लेकिन एक चींटी पे भी मैंने कभी हाथ नहीं उठाया। हाहाहा।’’
रणी लाला की दुकान पास में ही थी। मैंने कहा,‘‘आओ। चाय पीते हैं।’’

वह साथ हो लिया। हम चाय का इन्तज़ार करने लगे। मैं उसकी ओर देख रहा था। वह बोला,‘‘क्या हम चौकीदारों की स्थिति कभी ऐसी आएगी कि हम भी आयकर रिटर्न भर सकें? हम चौकीदार भी मनी बैक पाॅलिसियाँ खरीद सकें? हमारा भी मन होता है कि हम भी माॅल में जाकर खरीददारी कर सकें। हमारा भी मन होता है कि एक चौपहिया गाड़ी हमारी हो। बताइए। सोलह घंटे चाकरी करने के बाद भी हमारी जेब बीस तारीख को ढीली हो जाती है। कितनी अजीब बात है ! सुरक्षा करने की जिम्मेदारी हमारी और हमारी साख देखिए। बैंक तो क्या ? दोस्त भी हमें कर्ज़ देने से साफ मना कर देते हैं।’’

मैं कुछ पूछता पर वह था कि लगातार बोले जा रहा था। जैसे कोई पहली बार उसे सुन रहा हो। वह बोला,‘‘ मैं हूँ चौकीदार कहने मात्र से आप लोग हमारे नहीं हो सकते। हमारे जैसे भी नहीं हो सकते। क्या आपको पता है कि हम कैसी-कैसी चौकीदार करते हैं? बाजारों की चौकीदारी करते हैं। मुहल्लों की चौकीदारी का जिम्मा हमारा होता है। स्टूल पर बैठे रहना चौकीदारी नहीं है। सो जाना चौकीदारी नहीं है। जागना भर चौकीदारी नहीं है। कुछ गलत दिखता है या होता है या होने की संभावना होती है उसकी ख़बर करनी होती है। सबसे पहली ग़ाज़ हम पर ही गिरती है। पता भी है आपको? महीने के सारे दिन हमारी तैनाती रहती है। 8 घण्टे तो कहीं 10 घण्टे तो कहीं 12 घण्टे की तैनाती होती है। एक ड्यूटी के 200 से 300 रुपए मिलते हैं। हम जानते भी नहीं कि छुट्टी क्या होती है। याद भी नहीं कि आखिरी छुट्टी कब ली थी। जब भी ली तो दोगुने रुपए कटते हैं। आप लोग खुद को चौकीदार कहते हो तो सोचते हो कि हम गर्व महसूस कर रहे हैं? गलतफ़हमी है आपको। हम तब गर्व महसूस करेंगे जब हमारी पीड़ाए समझेंगे आप लोग। हम चौकीदार बेरोजगार हैं तभी चौकीदारी कर रहे हैं। आप समझ लें जिस दिन रोजगार मिल जाएगा ये काम छोड़ देंगे। चौकीदारी में मेहनत का मोल नहीं है।’’
‘‘पैसा तो मिल रहा है। फिर ऐसा क्यों कहते हो?’’
‘‘इसलिए कि यह ज़िम्मेदारी का काम है। नौकरी नहीं। यदि कुछ घटता है तो हम पर बन आती है। रिस्क तो हमारा है। जान भी हमारी है। पगार भी हमारी कटेगी। मजबूरी का नाम चौकीदारी है भाई जी। अभी तो ख़ून गरम है। कल पचास का हो जाऊँगा। दुःख है। बीमारी है। कोई फण्ड नहीं। छुट्टी ली तो, हमेशा की छुट्टी हो जाती है। रात की ड्यूटी करते हैं। चोरों का डर। बिच्छूओं का डर, मच्छरों का डर। साँप का डर। कुत्तों का डर। अरे इंसानों से बेहतर दोस्त तो हमारे अवारा कुत्ते हो जाते हैं। हम तो होली-दीवाली-ईद और क्रिसमस इन सड़कछाप कुत्तों के साथ मनाते हैं। कैसी दुनिया बना रहे हैं भाईजी हम? आप भी चाय दुकान पे पिला रहे हो। घर पर नहीं बुलाओगे। क्यों? हर तीन में दो परिवार के लोग सोचते हैं कि हम घरों के भेद चोरों को बताते हैं। सो ,वे हमसे दूरी बना कर रखते हैं। चौकीदार को चोर समझने वाली भावना से हमें ठेस लगती है।’’
चाय आ गई। मैंने दस रुपए की सेळ मँगाई। हम चाय पीने लगे।

वह बोला,‘‘कोई अपने को कुछ भी कहे। हमें क्या फ़र्क पड़ता है। पर चोर खुद को चौकीदार कहे तो हैरानी होती है। लेकिन मैं यह नहीं कह रहा कि चोर चोरी का काम छोड़कर ईमानदार नहीं हो सकता। हो सकता है। वह चौकीदार बन सकता है। पर चैकीदारी का ढोंग करना हमारे पेशे का मजाक बनाना है। बस ! यह कहना चाहता हूँ।’’


मैं चुपचाप उसे सुन रहा था। मैं उसकी थाह ले रहा था और वह मेरी थाह ले रहा था।

वह बोला,‘‘ यह मुल्क़ केवल नेताओं का नहीं है। पूंजीपतियों का नहीं है। मेरा और आपका भी है। राष्ट्र की सेवा एक मोची भी कर रहा है। जो आपके और मेरे बूट पर पूरी निष्ठा के साथ बीस रुपए की पाॅलिश करता है। आपके और मेरे पैर के जूतों को हथेली में ओढ़ लेता है। अपनी आँखों के नज़दीक ले जाकर करीने से ब्रुश फेरता है। जूते के तले में सड़क में गिरा गू-मूत सूँघता है। वे स्वच्छक जो हर सुबह की शुरूआत गली-मुहल्लों में हमारे द्वारा फैलाई गंदगी साफ करते हैं। बिना नागा। क्या वे देश की प्रगति के लिए मेहनत नहीं कर रहे? ये लोग भारतीय जनता की गाढ़ी कमाई से हवा में नहीं उड़ रहे हैं। जमीन पे हैं, ज़मीनी बात कर रहे हैं। आप तो जानते ही होंगे कि हम हर साल भ्रष्ट देशों की सूची में लगातार ऊपर चढ़ रहे हैं। हर साल अपराध का ग्राफ ऊपर और ऊपर चढ़ रहा है। ऐसे में आम आदमी होने का ढोंग रचना गलत है। आम आदमी की पीड़ा समझने के लिए आम आदमी के बीच रहना होगा। उन्हें भी इंसान समझना होगा।’’

मैं रुपए देने लगा। वह बोला,‘‘अरे ध्यान से, तीस रुपए रणी लाला को दिए और तीन सौ नीचे गिरा दिए।’’ दो सौ रुपए और पचास-पचास के दो नए नोट मोबाइल के साथ चिपके हुए थे। जेब से बाहर निकालते हुए वह जमीन पर लोटने लगे।

‘‘चौकीदार का मतलब चौकसी है। चौक पर खड़ा आदमी चौकीदार है। उसे बिठाने का इंतजाम नहीं कर सकते तो उसके खड़े होने का अपमान तो मत कीजिए। हम कह रहे हैं कि दुनिया हमारी शक्ति का लोहा मान रही है। पर मुझे कोई यह बताए कि 1,20,000 बच्चे ग़ायब हैं। उन्हें कौन ले गया? उन्हें कौन खोजेगा? हर साल भारत में ही 20,000 से अधिक बच्चे मिसिंग हो जाते हैं। कैसी चौकसी है भाई जी?"

अब वो सवाल करने लगा। बोला,‘‘ क्या एक माँ चौकीदार नहीं। पर फेसबुक में किसी महिला ने क्यों नहीं लिखा कि मैं भी चौकीदार ! क्यों? क्योंकि असल जीवन में चौकीदार वह है जो स्टूल पर बैठा हुआ मिलता है। मरियल हाथ में मरियल डण्डा लिए होता है। हाई टैक के जमाने में वह सिक्योरिटी वाला हो गया है। चौकीदार शब्द में जेण्डर की बू आती है। नहीं? किसान कहते ही आदमी किसान का चित्र क्यों बनता है? हल जोतता किसान ही क्यों चित्रों में दिखाया जाता है? कोई किसानी क्यों नहीं दिखाई जाती? पंडित की पंडिताईन तो खूब बोलते हो। चौकीदार की चौकीदारिन क्यों नहीं कहते? ये जो twitter में नाम के आगे चौकीदार जोड़ रहे हैं उनमें महिलाएं भी हैं क्या? कोई चौकीदार भी twitter पर है क्या? होंगे , क्यों न होंगे। पर उन्हें फोलो भी करते हो क्या?"

मैं कहने वाला था कि ज़रा ज़ल्दी में हूँ। पर वो ही बोल पड़ा,‘‘धन्यवाद चाय के लिए। फिर मिलते हैं कभी। ड्यूटी का टाइम हो रहा है। मैं जब स्टूल पर बैठूंगा तभी 8 घण्टे ड्यूटी पर खड़ा चौकीदार घर जाएगा। मैं दस सेकण्ड भी लेट पहूँचा तो भाई का दिल बैठ जाएगा। सो, ड्यूटी के साथ नो लफ़्फ़ाजी। सीधी बात, नो बक़वास ! होली की मुबारकें।’’ उसने जय हिंद वाला सैल्यूट दिया और लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ आगे बढ़ गया।

जिन-जिन दोस्तों ने फेसबुक पर ही सही, लिखा है- मैं भी चौकीदार। #MainBhiChowkidar #mainbhichowkidar उनके व्यक्तित्व को असल ज़िंदगी में खगाला जाए तो पता चल जाएगा कि वह असली हैं या नकली? या मेरी तरह फ़सली? आज सुबह कुछ दोस्तों की वाॅल खगाली। फिर उनके निजी जीवन को याद किया। उन पर लिखने का ख़ाका बनाने लगा तो मन संबंधों में खटास हो जाने की आशंका से भर गया।
फिर याद आए मुंशी प्रेमचन्द। पंच परमेश्वर की खाला याद आ गई। जो कहती है-‘‘बेटा ! क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे?

पुनश्च: मैं उसकी बातों में तल्लीन तो था पर क्या मुझे इतना तल्लीन होना चाहिए था कि उसका नाम भी न पूछ सकूँ?
॰॰॰
-मनोहर चमोली ‘मनु’

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