अलविदा 2020! तय कीजिएगा कि आप किस ओर खड़े थे !
-मनोहर चमोली ‘मनु’
आज साल 2020 का अंतिम दिन है। याद करने का दस्तूर है। मौका भी है। वैसे, 2020 को मात्र दोष देना...! सिवाय कोसना! यह मक़सद क़तई नहीं है।
दिन, महीने, साल तो हम इंसानों ने तथ्यों, आँकड़ों और उपलब्धियों को रेखांकित करने के लिए गढ़े हैं। देखा जाए तो सूरज अपनी जगह है। कायनात के तमाम हिस्से अपने रूप, गुण, धर्म के हिसाब से बदस्तूर काम करते चले आ रहे हैं। करोड़ों साल से इस धरती के बाशिंदे अपनी आदतों के अनुसार व्यवहार कर रहे हैं। सिवाय, हम मनुष्यों के। हम मनुष्य ही यह भूल गए हैं कि यह धरती हमारी नहीं है। हम इस धरती में मात्र मेहमान हैं। लेकिन हमने इस धरती में मेहमान का धर्म छोड़कर भूस्वामी का रूप अखि़्तयार कर लिया है।
बहरहाल, प्राकृतिक घटनाएं पहले भी घटती थीं और आगे भी घटती रहेंगी। उन घटनाओं का असर हम पर ज़्यादा हो रहा है। कारण? हमने अनाधिकार फैलाव किया है। बेहिसाब सुख-सुविधाओं को बटोरा है। मौज़-मस्ती और आनंद के लिए प्राकृतिक नियमों को तोड़ते हुए नायाब तरीके ईज़ाद किए हैं। यही कारण है कि प्रकृति का नियमित व्यवहार हमारी दिनचर्या को उलटता हुआ प्रतीत होता है।
कौन नहीं जानता! समय तो अपनी चाल से चलता है। पिछले साल भी और आने वाले सालों-साल भी। समय यूँ ही चलेगा। हाँ, तो स्थितियां-परिस्थितियां हमें किसी साल को अच्छा और खराब बताने के लिए बाध्य कर देती हैं।
इतिहास के आइने में हर साल कई अच्छी-बुरी घटनाएं जुड़ती हैं। 2020 की शुरुआत से ही पूरी दुनिया चीन में कोरोना वायरस के कहर को देख-सुन-पढ़ रही थी। किसी ने यह जनवरी 2020 में नहीं सोचा था कि पूरा साल हम भी इस कोरोना से खौफ खाते रहेंगे। इस साल अचानक और अकारण हम इंसानों ने अपने परिवार के कई प्रिय सदस्य कोरोना की वजह से हमेशा-हमेशा के लिए खो दिए हैं। इस कारण भी साल 2020 याद रहेगा।
हालांकि, 2020 के आने से डेढ़ माह पूर्व ही पिताजी का जाना सालता रहा। 2020 के 365 दिन के हर पल पिताजी बहुत याद आए। वे होते तो इस महामारी के बरक्स अपने जीवन में आए अकाल,भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के किस्से बताते। जनता कर्फ्यू के साथ से जो सिलसिला शुरू हुआ, वह कोविड 2019 की याद से अभी तक मन-मस्तिष्क में बर्फ़ की तरह जम-सा गया है। इस लिहाज़ से भी 2020 खूब याद रहेगा।
फिर भी, 2020 को मात्र बुरा कैसे कहा जा सकता है? बल्कि इस साल ने तो हमें नए सिरे से जि़ंदगी को जीने का सलीका समझाया। मानव व्यवहार और मूल्य तक बदल गए! इस साल ने सामाजिक और मानवीय मूल्यों को नए ढंग से परिभाषित किया। याद करें तो, लाखों लोगों ने लगभग सात से आठ महीना घर पर रहकर जीवन जिया। अपनी आजीविका को बचाए और बनाए रखा। लाखों लोग फर्श पर आ गए। लेकिन, उन लाखों लोगों ने जीना नहीं छोड़ा। जीने की आस का पारा लुढ़कने नहीं दिया। अपने बूते पर ही सही, लेकिन दो जून की रोटी जुटाने के लिए खूब संघर्ष किया। लाखों परिवारों ने कम खर्च में गुजारा किया। हजारों कमाऊओं ने अपनों को गुजारा-भत्ता लायक मदद भी की। हजारों मकान मालिक ऐसे हैं, जिन्होंने किरायेदारों से किराया नहीं लिया। कई सम्पन्न लोगों ने अपने अधीनस्थों को गुजारा लायक वेतन देना नहीं त्यागा। हजारों-हजार लोगों ने चंदा इकट्ठा किया और आस-पास रह रहे दूर-दराज़ के मज़दूर परिवारों को एक नहीं, दो नहीं, तीन-चार माह तक का राशन उपलब्ध कराया। कई परिवारों ने पड़ोस में रहने वाले अजनबी-से परिवारों को पका-पकाया भोजन उपलब्ध कराया। इस लिहाज से भी कैसे 2020 को मात्र बुरा कहा जा सकता है?
हम भारत के लोगों के लिए स्थापित सार्वजनिक उपक्रम खूब मददगार साबित हुए। सरकारी कार्मिकों का उत्साह प्रणम्य रहा। पुलिस विभाग, शिक्षा विभाग, राजस्व, स्वास्थ्य, नगरपालिका विभाग आदि के कार्मिकों ने जान पर खेलकर अपने दायित्वों को निभाया। निजी चालकों और वाहन स्वामियों ने बढि़या रुपया कमाया। लेकिन, जब हम और आप घरों में बन्द थे, तब उनकी गाडि़यांे का चक्का थमा नहीं। उन्होंने पूरे देश के लिए चक्का थाम कर रखा। आवश्यक वस्तुओं के निर्माताओं ने दिन-रात काम किया। औद्योगिक संस्थानों में ज़रूरी उत्पादन जारी रखा। फसलें निबार्ध रूप से खेतों में पकी और किसानों ने दिन-रात एक कर ज़रूरी खाद्य पदार्थ बाज़ार को उपलब्ध कराए। क्या इस सकारात्मकता के लिए 2020 को याद नहीं किया जाना चाहिए?
लाखों शिक्षक-शिक्षिकाओं ने अपने बूते पर घर से ही शिक्षण कार्य किया। अभी तक कर रहे हैं। भले ही निजी कंपनियों को अरबों रुपए का मुनाफा शिक्षकों की वजह से हुआ है। लेकिन, शिक्षकों ने किसी के आगे हाथ नहीं फैलाए। हर महीने हजारों रुपए का इंटरनेट प्लान अपने मोबाइल में नियमित संचालित किया। अपने छात्रों के मोबाइल में डेटा तक स्थानांतरित किया। क्या इस रूप में साल 2020 खास न रहा?
2020 में घर-घर में एक अलग दुनिया कायम हो गई। एक-एक घर के ज़रूरी रिश्तों की महक को महसूस किया गया। अपने जिए जा चुके अब तक के जीवन में पहली बार हर रिश्ते को, हर सदस्य ने नजदीक से देखा-भाला और उसकी परवाह की। हर सदस्य ने अपनी भूमिका को नए तरीके से पहचाना। परिवार में अपनी भूमिका को, धर्म को, दायित्व को, महत्व को जिया। क्या यह कम है?
हाँ ! यह भी सही है कि 2020 में हमारे कई अपनों ने अपनों को कोरोना के साथ जीते और मरते हुए देखा। तब उनके अपनों ने कैसे दूर रहकर तमाशा देखा! यह भी कैसे भूला जा सकता है? उम्मीदों में नाउम्मीदें भी मिलीं हैं। लेकिन यह भी सच है कि नाउम्मीदों में उम्मीद के बीज भी खिले हैं! है न? करोड़ों लोगों ने कोरोना की साथ साक्षात् युद्ध किया। उससे खुद को उबारा और स्वस्थ भी हुए। हजारों चिकित्सकों ने अपने मरीजों के स्वस्थ होने पर उत्सव मनाया। पुलिसकर्मियों ने कई मनुष्यों की सांता क्लॉज बनकर परवाह की। क्या इस तौर पर 2020 खास न रहा?
2020 में ऐसे होटेल मालिक भी थे, जो अपनी बेहिसाब पूंजी के लिए जाने जाते हैं। उनकी लगातार पूंजी को बढ़ाने वाले सारथियों को ये होटेल मालिक चाहते तो अपनी भव्यता की छाँव उपलब्ध करा सकते थे। उन्हें मनुष्यार्थ अपनी समृद्धता की कुछ बूंदे उपलब्ध करा सकते थे। तीन वक्त का पचास फीसदी भोजन तो आसानी से उपलब्ध करा सकते थे। लेकिन, उन्होंने अपने ही सारथियों को घर भेज दिया।
हालांकि हमारे ही चुने गए कई नुमाइन्दे भी थे, जो चुनाव लड़ते समय अपनी बेलौस सम्पत्ति का ब्यौरा देते हैं। वे चाहते तो अपनी विधानसभा या संसदीय सीट के हर मतदाताओं को कम से कम प्रतिमाह 2000 रुपया की धनराशि बतौर सहयोगार्थ दे सकते थे। लेकिन, वे कोरोना के खौफ से स्वयं घर में घुस गए। उनकी जेब ढीली होना तो दूर मानवता के पक्ष में मुख से दो बोल भी न फूटे।
हालांकि, ऐसे पूंजीपति, कॉरपोरेट के अरबपति भी थे जिनकी आय 2020 में बीस से तीय गुना बढ़ गई, बताई जा रही है। वे दुनिया के अरबपतियों में शामिल हो गए। वे चाहते तो हर संक्रमित व्यक्ति के इलाज का पूरा खर्च आसानी से उठा सकते थे। लेकिन, उन्होंने ऐसा नहीं किया। ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनकी वजह से भी 2020 याद किया जाएगा। और हाँ ! व्यवस्था के पैरोकारों को भी तो याद किया जाना चाहिए। डंगरों की भांति लगभग चालीस लाख मजदूर कोरोना काल में इधर से उधर कराए गए। उन्होंने सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा की। असंख्य मजदूर चलते-चलते काल के गाल में समा गए। उनके लिए अस्थाई सराय और लंगर लगाया जा सकता था। लेकिन व्यवस्था के पैरोकारों ने लाठियां भंजवाई। शांति से जा रहे मजदूरों को अधिकाधिक परेशान किया।
थाली, ताली और दिया जले। आमदनी हुई। करोड़ों दिए एक रात के लिए जले। तेल और बाती पर लाखों खर्च हुए। लेकिन कई गरीबों के चूल्हे रात को नहीं जले। अरबों रुपए के पटाखे भी खूब छोड़े गए। लेकिन पड़ोस में छाए मातम में शरीक न होने के मामले भी सामने आए। शंख, मोमबत्ती खूब बिकी। लेकिन कुम्हार के घड़े नहीं बिके। जुमलों की खूब बारिश हुई। लेकिन रोगियों को बिस्तर का अकाल रह जगह रहा। यह साल 2020 इन बातों के लिए भी तो याद किया जाएगा। उस पर यह तुर्रा कि हर चीज में खोट देखने का नजरिया कुछ लोगों पर हावी रहा है। 2020 इस रूप में भी याद किया जाएगा कि कैसे हम कई बार जुमलों के मकड़जाल में फंसे। कैसे हमारे खुले दिमाग को साल 2020 में बंद कर दिया गया। कैसे इंसान को धर्म, जाति, मज़हब और क्षेत्र के नाम पर लामबद्ध किया गया। कैसे बुनियादी समस्याओं, मुद्दों और समस्याओं से ध्यान हटाया जाता है। कैसे छद्म राष्ट्रवाद, भक्ति और असुरक्षा के नाम पर उपयोग और उपभोग किया जा सकता है! कैसे वैज्ञानिक नज़रिए को हाशिए पर धकेला जाता है और संस्कृति के नाम पर कुरीतियों को बनाए रखा जाता है।
2020 में प्रकृति ने भी हमें बिना कहे कई संदेश देने की कोशिश की है। इंसान जब घर में रहा तो उसके कई मूल जीव-जन्तु सड़कों में विचरने लगे। प्राकृतिक स्रोत स्वच्छ हो गए। आसमान धुल गया। हिमालय युवा हो गया। इस साल ने हमें यह भी सिखाया कि इस दुनिया में जीवन देने वाले माता-पिता से बढ़कर खुद का जीवन बड़ा है। कोरोना संक्रमित शव का अंतिम दर्शन बीस गज दूरी से ही किया जाना है। अपनी जान सुरक्षित रखने के लिए सालों के रिश्तों और सामाजिक मान्यताओं को ताक पर रखा जा सकता है। 2020 ने हमें यह भी सिखाया।
2020 ने पोंगा-पंडितों-मुल्लाओं-ग्रन्थियों-पादरियों की धार्मिक मान्यताओं को स्थगित भी करवाया। ये वही हैं, जो यह कहते नहीं अघाते थे कि सांस लो न लो, पर पहले ईश्वर, अल्लाह, जीसस और वाहे गुरु बोलो। उनके नाम पर फलां-फलां अनुष्ठान, उपक्रम और प्रयोजन बेहद-बेहद ज़रूरी हैं। तो भला इन कूड़मगजो की कथनी-करनी का अंतर स्पष्ट हो जाने के लिए यह साल क्यों न याद किया जाएगा?
प्रकृति महान है और वही शक्तिशाली है। किसानों को हम कितना कम समझते हैं? हम यह तो याद रख पाए कि अहा! धरती कितना देती है! पर यह भूल गए कि हमारे मुख का निवाला बनाते तक की यात्रा में किसान कमर और पेट एक कर देता है। हम उसके साथ खड़े रहे, यह क्या कम है?
एक बार हम हाथ धोने और साबुन के अधिकाधिक इस्तेमाल की आदत को दैनन्दिनी का हिस्सा बना पाए। भाईचारा, सेवा, दया, करुणा को नजदीक से देखा गया। नई पीढ़ी में यह मानवीय मूल्य जमा रहेंगे। यह उम्मीद तो 2020 से बनती ही है।
सारी दुनिया जैसे थम-सी गई थी। लेकिन मनुष्य की जिजीविषा को सलाम है कि जैसे-तैसे आधी-अधूरी तैयारी ही सही, लेकिन इंसान ने आशा और उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा और पूरा साल बिता दिया। कमोबेश हर परिवार ने कोशिश की कि जीवन के पथ पर इंसान की यात्रा चल पड़े। बनावटी घुलना-मिलना रोक पाए। जब ज़्यादा ज़रूरी हो तभी भीड़ का हिस्सा बना जाए। कैसी भी हो, कितनी भी बड़ी बाधाएं हों, डटे रहो। यह साल 2020 ने ही तो सिखाया। अलविदा 2020 ! प्रणाम 2020 !
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-मनोहर चमोली ‘मनु’,गुरु भवन, निकट डिप्टी धारा,पौड़ी 246001 उत्तराखण्ड
सम्पर्क: 7579111144
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