30 दिस॰ 2020

राधा की क्यारी: वर्तमान समय की बाल कहानियाँ

राधा की क्यारी: वर्तमान समय की बाल कहानियाँ

-मनोहर चमोली ‘मनु’


*युवा साहित्यकार सिराज अहमद की बाल कहानियों का पहला संग्रह ‘राधा की क्यारी’ अकादमिक बुक्स इंडिया से प्रकाशित हुआ है। यह किताब साल 2021 के संस्करण हेतु मुद्रित है। प्रत्येक कहानी में एक श्याम-श्वेत रंग का चित्र है। डिमाई आकार की इस पुस्तक में प्रत्येक चित्र पूरे पेज पर आच्छादित है। दिलीप कार्टूनिस्ट से कहानी के आधार पर चित्र बनाने का सफल प्रयास किया है। उन्होंने भरपूर कोशिश की है कि चित्र कहानी के केन्द्रीय भाव को तो प्रदर्शित करे ही साथ में कहानी को विस्तार दे। यह बड़ी बात है। सिराज की इन कहानियों के शीर्षक अनूठी खुशी, अम्मी नाराज़ नहीं हैं, असलम का पठानी सूट, आलसी सक्कू, इत्ते सारे नोट....., क़ासिम का खिलौना, किसने बजाई घंटी?, कौए का बदला, ख़ास दोस्त की चिट्ठी, गमले कहाँ गए?, चिट्ठी गुम, चितकबरा कुत्ता, चिन्नी और नंदू, जै़नब का खत, बन गई बात, बहुत अच्छी कोशिश, महकता हुआ गुलाब, मुझे आपका साथ चाहिए, राधा की क्यारी, रूपल रूठी है, लौट आई खुशी, वह नीला फूल, वह मुस्कुरा उठा, सना बन गई जादूगर, स्केको हैं। कह सकते हैं कि मात्र शीर्षक से कहानियों का अंतस नहीं पता चलता लेकिन हम कहानियों में झांक ज़रूर सकते हैं। ‘अम्मी नाराज़ नहीं है’ कहानी में बालमन का स्वभाव और खोजी प्रवृत्ति सहजता से शामिल हुई है। कहानी से- ‘दादा के प्यार से पूछने पर सबा ने रोते हुए उन्हें बताया कि उसके एक दोस्त ने उसे बताया था कि टेप रिकॉर्डर के अंदर बड़ा-सा चुबंक होता है.....। ‘‘लेकिन बेटा, आपको पूछना तो चाहिए था न?’’ दादा उसके आँसू पोछते हुए फिर बोले। सबा कुछ न बोला बस उनसे लिपट गया।’ कहानी बच्चों के अनुभवों से आगे बढ़ती है और स्वयं गलती का अहसास मानते हुए खुद से संकल्प के साथ खत्म होती है। जबकि सबा को लगता है कि अम्मी को उनके अब्बा द्वारा दिया गया तोहफा उसने उसके भीतर के चुम्बक के लिए तोड़ दिया। कहानी का अंत ऐसा नहीं होता। ये ओर बात है कि अम्मी रोए जा रही थीं कि उनके अब्बा की आखि़री निशानी आज उनके सामने बिखरी पड़ी थी। हम बड़े भी न बच्चों की सादगी और साफ़गोई को बचपना मान लेते हैं। ऐसा हम कई बार करते हैं। बच्चे सही और सच भी बोल रहे हैं तो भी हम बड़ों को लगता है कि वे गलत हैं और झूठ बोल रहे हैं। संग्रह में एक कहानी ऐसी ही है। ‘इत्ते सारे नोट......’ में असग़र ईद की नमाज के लिए अपने अब्बा के साथ जा रहा होता है। सड़क पर बिखरे सौ-सौ के दस-बारह नोट उठाता है तो अब्बू मना करते हैं। असगर बताता है कि वे नोट उसके पतलून से ही गिरे हैं। बाद में सही बात का पता चलता है तो असगर की अम्मी पूछती है,‘‘आपको अपनी और असग़र की पतलून में फकऱ् नहीं लगा। ‘‘अरे अगर पता चल जाता तो रखता ही क्यों?’’ कहकर अब्बा हँसे तो उनके साथ-साथ असग़र भी मुस्कुरा दिया। ‘स्केको’ बालसुलभ कहानी है। बहुत ही छोटे बच्चों की दुनिया की कहानी। यह कहानी बताती है कि हर बच्चे की अपनी समझ होती है। वह अपने अनुभवों से इस संसार को देखता-समझता है। बड़ों से देख-समझ कर वे आगे बढ़ते हैं और अपनी समझदारी विकसित करते रहते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में कई बार हास्यास्पद,चुटीली और गुदगुदाने वाले प्रसंग भी सायास जुड़ जाते हैं। लकी रट लगाए रहता है कि उसे स्केको चाहिए। अब स्केको दिया तब जाए न, जब बड़ों को ये पता चले कि आखिर लकी माँग क्या रहा है! घर के सारे छोटे-बड़े बहलाने-फुसलाने की सारी कोशिश कर चुके होते हैं। कई और मनपसंद चीज़ें आ गईं। लेकिन, लकी की जि़द छूटी नहीं। आखिर में दादा लकी को गोद में लेकर बाहर घुमाने ले जाते हैं। एक गुब्बारे वाले के किसी गुब्बारे को देखकर लकी कहता है,‘‘वो रहा स्केको!मुझे स्केको चाहिए।’’ अंत में शन्नो पूरे मामले को खोलती है। स्केयर क्रो यानि बिजूका से वह लकी का


स्केको जो हो गया था। अधिकतर कहानियाँ आधुनिक समय-परिवेश की हैं। भाषा बेहद सरल और सहज है। कहीं

भी साहित्य की अतिरंजनाओं के दर्शन नहीं होती। लेखक भाषा की विद्वता के मोह से मुक्त हैं। कहानियों के पात्र गंगा-जमुनी संस्कृति का परिचय देते हैं। कॉलोनी, सामान्य परिवार, मुहल्ला संस्कृति, बुजुर्ग, गाँव, पशु जगत कहानियों में शामिल हुआ है। सीख,नसीहतें,संदेश और उपदेशादि से दूर कहानियाँ सोचने-विचारने के लिए पाठक को विचलित करती हैं। यह बड़ी बात है। कई कहानियाँ बड़ों को अपने बालपन में झांकने का अवसर देती हैं। तो अप्रत्यक्ष तौर पर हमें इस बात के लिए भी बाध्य करती हैं कि हम बड़े बड़े तो हो गए हैं लेकिन बच्चों को समझने-जानने के लिए अभी और बाल मनोविज्ञान की आवश्यकता है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि कहानी संग्रह पाठकों को बाँधने में सफल है। बाल खिलंदड़पन और मन को गुदगुदाने वाले बेहद आम प्रसंग भी मजेदार कहानी का भाग होते है। यह बात इस संग्रह को पढ़ते समय पुष्ट होती है। किताब की भूमिका मशहूर साहित्यकार डॉ॰ मोहम्मद अरशद खान ने लिखी है। वे लिखते हैं कि सिराज अहमद बालमन की मासूमियत के रचनाकार हैं। यकीनन। इस बात से पूरी सहमति है। किसी भी पाठक का यह ख़्याल सायास ही इन पच्चीस कहानियों को पढ़ते समय हो जाएगा। ऐसा विश्वास है। अरशद खान लिखते हैं,‘‘सिराज की कहानियों के विषय बिल्कुल आस-पास से उठाए गए होते हैं, किंतु पूरे नएपन और ताजगी के साथ। छोटी-छोटी घटनाएँ, जो एक बच्चे के दैनिक जीवन में घट सकती हैं, उन्हें सिराज बेहद मनोरंजक अंदाज में शब्दबद्ध करते हैं। उनकी अधिकतर कहानियाँ 1500 शब्दों के भीतर हैं, जो बच्चों के लिए बेहद अनुकूल हैं।‘‘ अलबत्ता कवर पेज और बेहतरीन हो सकता था। भीतर का काग़ज़ उम्दा है पर कवर पेज भारी होता तो किताब को कहीं भी रखने पर वह गोलाकार नहीं बनता। रुपए दो सौ पन्द्रह में पच्चीस कहानियाँ पढ़कर पाठक को आनन्द की अनुभूति होगी और वह सहज बाल पाठकों को भी पढ़ने के लिए प्रेरित करेगा। यह संभावना इस संग्रह में दिखाई देती है। पुस्तक : राधा की क्यारी (बाल कहानियाँ) लेखक : सिराज अहमद पेज संख्या : 128 मूल्य : 215 रुपए आकार : डिमाई प्रकाशक : अकादमिक बुक्स इंडिया,दिल्ली उपलब्ध : अमेज़ान और फ्ल्पिकॉर्ट वेबसाइट :
www.academicbooksindia.com ॰॰॰ मनोहर चमोली ‘मनु’ सम्पर्क: 7579111144 गुरु भवन,निकट डिप्टी धारा, पौड़ी 246001 उत्तराखण्ड

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