‘बाल-साहित्य’ के माध्यम से समाज की ओर यात्रा…
भाग-एक :-
‘मनोहर चमोली’ होने का अर्थ…
सफ़दर हाशमी ने कभी बच्चों को सपनों और कल्पनाओं की दुनिया में ले
जाने की कोशिश में उन्हें संबोधित करते हुए लिखा था—
“किताबें कुछ कहना चाहती हैं।
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं॥
किताबों में चिड़िया चहचहाती हैं
किताबों में खेतियाँ लहलहाती हैं
किताबों में झरने गुनगुनाते हैं
परियों के किस्से सुनाते हैं
किताबों में राकेट का राज़ है
किताबों में साइंस की आवाज़ है
किताबों में कितना बड़ा संसार है
किताबों में ज्ञान की भरमार है
क्या तुम इस संसार में
नहीं जाना चाहोगे?” (सफ़दर हाशमी)
ऐसा लगता है, जैसे मनोहर चमोली भी बच्चों से कुछ ऐसा ही कहने की कोशिश पिछले कई सालों से कर रहे हैं, अपनी बाल-रचनाओं के द्वारा | जैसे वे बच्चों का हाथ पकड़कर उन्हें किताबों की दुनिया में ले जाना चाहते हों, अपनी कहानियों एवं कविताओं द्वारा…जैसे वे उन्हें सपनों, उम्मीदों, आशाओं के मोहक संसार में ले जाने की कोशिश कर रहे हैं, अपनी कहानियों-कविताओं के पात्रों के माध्यम से… जैसे वे बच्चों के मन में साहस, उत्साह, प्रयत्नशीलता, रचनात्मकता भर देना चाहते हैं, अपनी कहानियों-कविताओं के पात्रों के चरित्र एवं व्यक्तित्व के माध्यम से…
मनोहर चमोली…! एक ऐसा अध्यापक, जो अपने तयशुदा कार्य —विद्यालय में पढ़ाना और शिक्षा-विभाग का हुक्म बजाना— के अलावा साहित्य की दुनिया में आकर एक अतिरिक्त कार्य, एक अतिरिक्त ज़िम्मेदारी उठाए चल रहा है | वह ज़िम्मेदारी, जिसके लिए यह अध्यापक किसी भी रूप में बाध्य नहीं है, वह ज़िम्मेदारी, जिसके लिए बाध्य न होते हुए भी प्रतिबद्ध है, क्योंकि वह शिक्षक बच्चों के बेहतर भविष्य से स्वयं को सम्बद्ध पाता है, आबद्ध रखना चाहता है…! इसी कारण बच्चों के लिए साहित्य की रचना करना अपना कर्तव्य समझता है, ताकि वह अपनी ज़िम्मेदारी को जवाबदेही के साथ अंजाम दे सके… इसके लिए उस व्यक्ति ने बच्चों के साथ काम करने का जो अतिरिक्त तरीका चुना है, वह है ‘बाल-साहित्य’ का सृजन ! ( पूरा आलेख पढ़ने के लिए आप इस लिंक का प्रयोग कीजिएगा -https://batkahi.net/kathetar/%e0%a4%ae%e0%a4%a8%e0%a5%8b%e0%a4%b9%e0%a4%b0-%e0%a4%9a%e0%a4%ae%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ae%e0%a4%a8%e0%a5%81/
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