पूजनीय बापू को मेरा प्रणाम स्वीकार हो। मैं कुशल ही हूँ और आपकी कुशलता चाहता हूँ। पत्र लिखने का खास कारण यह है कि मैं भीतर ही भीतर जर्जर होता जा रहा हूँ। लगातार आबादी बढ़ने से मुझमें मैले का अंबार समाता जा रहा है। मैं इस बात से इतना परेशान नहीं हूँ। मैले के निपटारे और उससे जुड़ी समस्याओं की लुंज-पुंज व्यवस्था देखकर मन आहत है।
आदरणीय बापू। सात दशक पहले जंगल-पानी कोई समस्या ही नहीं थी। तब जंगल भी थे और पानी भी था। मैले का निस्तारण उस समय इतनी बड़ी समस्या नहीं थी। इसे लेकर तौर-तरीके भी सहज थे। हम जैसे-जैसे आधुनिक होते गए, वैसे-वैसे ये जंगल-पानी से निपटारा एक बड़ी समस्या बन गई है।
बापू अब तो सीवर लाइनें हैं। मेरे लोग घर में शौच कर लेते हैं। शौच के नाम पर जंगल की सैर बीते कल की बात हो गई है। अब योग का ही सहारा है। मेरे भीतर मल-मूत्र के लाखों गड्ढे हैं। हजारों सीवर की नालियाँ हैं। इन सीवर लाईनों की सफाई करते वक़्त मेरे ही दो से तीन मजदूर सीवर की सफाई करते वक़्त काल के गाल में समा जाते हैं। हर साल मेरे लगभग बाईस हजार मजदूर सीवर में सफाई के दौरान मर जाते हैं।
बढ़ती मौतों को ध्यान में रखते हुए मेरी सबसे बड़ी अदालत ने इन मजदूरों के काम की पड़ताल समझीं। पाँच साल पहले आदेश दिया था,‘‘सीवर में सफाई के दौरान हुई मजूदर की मौत पर परिवार को एक लाख रुपए दिए जाएँ।’’ इस आदेश के बाद तो हालात और बदतर हो गए हैं। मेरे राज्यों ने स्थाई मजदूरों की व्यवस्था ही बंद कर दी। न रहेगा बांस,न बजेगी बांसुरी।
कहने को तो बापू मेरे पास राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग है। लेकिन मेरे इस आयोग के पास आम आँकड़े तक नहीं है। यदि आप मुझसे पूछें कि मेरे कितने मजदूर सीवर की सफाई का काम करते हैं? मेरे कितने मजदूर कहाँ-कहाँ,कब-कब और कितने-कितने मौत के शिकार हुए हैं? बापू मैं नहीं बता सकूँगा।
आप तो स्वच्छता अभियान के अगुवा रहे हैं। अपने मल की स्वयं सफाई के पक्षधर रहे हैं। और अब आपके इस भारत में क्या हो रहा है? जानना नहीं चाहेंगे? मनुष्य ही मनुष्य के मल-मूत्र में डूबता-उतरता है। गहरे सीवर में जाता है। सुरक्षा के इंतजाम के अभाव में दम घुटता है और कई बार ये मनुष्य नहीं मानवता को काल निगल लेता है। ये है सबको जीने का हक़? एक ओर एक सासंद प्रत्याशी चुनाव मैदान में लड़ने के लिए पिचहत्तर लाख रुपए खर्च कर सकता है वहीं दूसरी ओर मल-मूत्र की सफाई को जुटे मजदूरों की मौत पर एक लाख रुपए मुआवजा भी नहीं मिलता?
इसका हल क्या है बापू? क्या सफाई कर्मचारियों की जान बचाना आतंकवाद के नाम पर अरबों रुपए के लड़ाकू विमान खरीदने से महँगा है?
उम्मीद है कि आप कोई समाधान निकालेंगे।
आपका अपना,
भारत
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पत्र लेखक: मनोहर चमोली ‘मनु’
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ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 16/04/2019 की बुलेटिन, " सभी ठग हैं - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंshukriyaa !
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