सँभल जा यार अब भी वक़्त है !
-मनोहर चमोली ‘मनु’
मेरे बेवड़े दोस्त ! कैसे हो? यह पूछने का मन भी कहाँ है? भारी मन से तुम्हें यह पत्र लिख रहा हूँ। कैसे लिखूँ कि कैसे हो? कल तो ऐजेन्सी में तुमने मुझे भरी-दुपहरी छप्पन गालियाँ दे दीं। तुम इतने टल्ली थे कि दुपहिया पे बैठ भी न पाए। वो तो भला हो रक्का का,जो अपने दोस्त की सहायता से तुम्हें अपनी बाइक पर बिठा ले गया और घर छोड़ आया।
मैं समझ सकता हूँ कि रक्का और उसके दोस्तों ने भी ज़िंदगी में ऐसी गालियाँ नहीं सुनी होगी, जो तुमने रास्ते भर उन्हें दी होगी। आशा ही नहीं, पूरा भरोसा है कि वे दोनों किसी बेवड़े की अब कभी मदद नहीं करेंगे।
ख़ैर जो हुआ-सो हुआ। तुम्हें इससे क्या? तुम्हें तो पता ही है कि कोई न कोई ढोकर ले ही जाएगा। अच्छा हुआ ! ये मैं कैसे कह सकता हूँ?
तुम नाम के नहीं स्वभाव के भी धीरज हो। शांत स्वभाव। हमेशा मुस्कराते रहते हो। बहुत ज़रूरत पर ही मुख खोलते हो। पर हलक़ में एक ढक्कन उतरता नहीं कि तुम शोले के बीरू हो जाते हो ! कमाल है ! मैं आज तक समझ नहीं पाया कि तुम असल में बीरू तो नहीं, जो गऊ बने रहने का स्वाँग करता है. लालपरी के उतरते ही असली रूप में आ जाता है? होश में रहते हुए तो कभी बताओगे नहीं, जब सरूर में होंगे, तभी पूछूँगा। पर तुम्हें भी कैसे दोष दूँ? जब घर का मुखिया ही होश-ओ-हवास में बहकने लगे तो तुम किस खेत की मूली हो?
तुम्हारे हवाले से काॅलेज का साथी दयाराम शर्मा याद आ गया। वो नंबर एक का नशेड़ी था। हाँ, मुझे देखकर भाग खड़ा होता। उसे पता था कि मैं उसके हाथ से सिगरेट छीन जो लूँगा।
एक दिन का वाक़या है। मैंने उसे रंगे हाथ पकड़ लिया। वो झल्ला उठा। बोला,‘‘मैं सिगरेट किसी के बाप की नहीं पीता। न चोरी करता हूँ।’’
मैं सन्न ! उलटे पाँव लौट आया था। फिर, उसका रास्ता अलग हो गया था। सामने मुझे देखता, तो रास्ता बदल देता। फिर एक दिन, पता चला कि दयाराम शर्मा दून अस्पताल में भर्ती है। मिलने गया, तो हरे बिस्तर पर लेटा था। मुझे देखते ही उसकी आँखों से आँसू टपक पड़े। उसकी माँजी स्टील की उलटी थाली से टँकित अस्पताली स्टूल पर बैठी थी। पहचानती ही थी। बोलीं,‘‘तेरा दोस्त कहता है कि यदि दोस्ती न टूटती तो टी॰बी॰ न जकड़ती।’’
बहरहाल, दयाराम शर्मा ठीक तो हो गया, पर नशा उसे ले डूबा। नशा तो हर चीज़ का बुरा होता है। तुम अच्छे इंसान हो। पर संगत बुरों की है। इन दिनों देखो,आम चुनाव 2019 की ही चर्चा है। अच्छे लोग भी गलत दलों में घुसे बैठे हैं। बुरे लोग भी अच्छे दलों में हैं। एक मछली से कहाँ तालाब गन्दा हुआ करता है?
अब वैसे तो हर कोई कहता है कि अच्छी सेहत के लिए शराब से बचना चाहिए। ये शराब आपको बरबाद कर देगी। ये वो लोग भी कहते नहीं थकते जो घर में बार खोले हुए बैठे हैं। ये वो लोग भी कहते हैं जो चैकीदार बने फिरते हैं। ये वो लोग भी कहते हैं जिन्होंने घर-बार छोड़ रखा है। ये बात वे भी कहते हैं जिनका गला तर है।
कल दुपहरी का मामला याद करता हूँ तो मुझे मेरा सहकर्मी शंकरलाल दूबे याद आ रहा है। नंबर एक का चुटकुलाबाज़। द्वीअर्थी बात करने वाला। दाढ़ी उसके चेहरे पर अच्छी नहीं लगती थी। पता नहीं, वह दाढ़ी क्यों रखता था? ड्रामेबाज अलग था। लच्छेदार बातों से सबका मन मोह लेता।
सालाना परीक्षा के दौरान मानो आम चुनाव आ जाते थे। सबसे गाढ़ी दोस्ती कर लेता। वही गाढ़ी दोस्ती, उसके परचे हल करवा देती। साल-दर-साल पास होता चला गया। आज चाय की दुकान खोले बैठा है। थकी हुई चाय बनाता है। पर ऐसा जुमलेबाज है कि उसका खोखा ग्राहकों से भरा रहता है।
उसका सब कुछ अच्छा है। पर चढ़ाने के बाद 'स' को 'श' और 'श' को 'स' बोलने लगता है। हथेलियाँ पीटने लगता है। बाँया हाथ हवा में ऐसे लहराता है जैसे सुदर्शन चक्र धारण कर लिया हो। बुड़बक कहीं का।
मैं भी क्या ले बैठा? भला शराबबंदी से शराब बंद हो सकती है? मेरे कहने से तुम शराब बंद कर दोगे? अब अपनी कथित देव भूमि को ही ले लो। अकेले इस सूबे में सालाना 2650 करोड रुपए की शराब हलक़ से नीचे उतारने का लक्ष्य है। पूरे भारत में शराब से सालाना कमाई अरबों में हैं। जहाँ शराब पूरी तरह से बन्द है, वहाँ कदम-कदम पे मिल जाती है।
मेरे दोस्त। हम सब जानते हैं कि शराबी (सराबी नहीं) रोगी हो जाता है। ऐसे रोगी जो शराब की लत में हैं। हर साल मरते हैं। कितने? 33,00000 लाख ! शराबी वाहन भी चलाते हैं। सड़क हादसों में मारे जाने वालों में 1,38,000 लोग शराबी होते हैं। गाड़ियों की दुर्घटनाओं में 40 फीसदी शराबी वाहन चालकों की वजह से होती है। कुल आत्महत्याओं में आधी आत्महत्याओं में नशा प्रमुख कारण बना हुआ है।
प्यारे दोस्त ! फ़कीरों का क्या है? वो तो झोला उठाकर कहीं भी चल देंगे। उनका क्या? आगे नाथ न पीछे पगहा। लेकिन तुम्हारे साथ तो ऐसा नहीं है। बुजुर्ग माता-पिता तुम्हारे साथ है। पत्नी है। तीन बच्चे हैं। तुम्हारे पास सब कुछ है।
तुम हो कि पीकर कहते हो,‘‘मेरे पास सराब है!’’ गलत बात है। झांझ उतर जाए तो पेंट की जेब में यह पत्र मिलेगा।
मैं जानता हूँ और मानता भी हूँ कि शराब बुरी है। शराबी नहीं। मैंने शराबी जैसे भावनात्मक,मददगार और साहसी अशराबी नहीं देखे। शराब यदि ख़राब होती तो पूरी दुनिया से इसका खात्मा हो चुका होता। उन देशों में भी ख़ूब पी जाती है जहाँ साक्षरता दर उच्च है। उन देशों में भी ख़ूब प्रचलित है जो दुनिया के तीन बड़े शक्तिशाली देश हैं। एक बात और है, शराब में धुत्त आदमी कभी भी दूसरे के घर का दरवाज़ा नहीं खटखटाता। वह दूसरे की बीवी को अपनी बीवी कभी नहीं कहता। वह कभी दस रुपए के चक्कर में सौ रुपए नहीं गंवाता। शराबी को आप चोर नहीं कह सकते।
अभी पिछले महीने 25 फ़रवरी 2019 की ही तो बात है। असम में ज़हरीली शराब पीकर 140 चाय बागान मजदूर काल के गाल में समा गए। पता है वहां ये जहरीली शराब 10 रुपए लीटर मिल रही थी। अब सोचिए। दिन भर कमर तोड़ मेहनत करने वाले 10 रुपए की टुच्ची शराब में अपनी जीवन लीला समाप्त कर गए। इन परिवारों के पीछे लगभग 1000 लोग कमाऊ मुखिया के बाद कैसे दिन काट रहे होंगे? सोचकर भी नींद उड़ जाती है।
मैं मानता हूँ कि शराबियों से अधिक खराब तो पतित हैं। भ्रष्ट आचरण वाले खराब हैं। लफ़्फ़ाज़ खराब हैं। झांसा देने वाले टुच्चे हैं। झूठे सपने दिखाने वाले अधिक खराब हैं। सरकार को कोसने वाले खराब हैं। पर फिर भी मैं यह तो कहूँगा ही,''शराब दवाई भी तो नहीं है।'' वरना बाबा रामदेव शराब को भी अपना उत्पाद काहे नहीं बना देता? बोलो?
कल और आज आकस्मिक अवकाश की एप्लीकेशन तुम्हारे दफ़्तर में दे आया था। कल नहा-धोकर ड्यूटी चले जाना। दाँत साफ कर लेना। जेब में इलायची रख लेना। अब क्या लिखूँ। अगली बार गाली दोगे तो रिकाॅर्डिंग कर लूंगा। यू-ट्यूब में अपलोड कर दूंगा। और हाँ। ये बात-बात पे रोने जैसी शक्ल बनाने की ज़रूरत नहीं है।
तुम्हारा दोस्त
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पत्र लेखन : मनोहर चमोली ‘मनु’
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