मैं दुनिया की तीसरी महाशक्ति बनने जा रहा हूँ !
भारत की एक पाती बापू के नाम : 5
-मनोहर चमोली ‘मनु’
श्रद्धेय बापू ,
सादर अभिवादन स्वीकार कीजिएगा। मैं यहाँ कुशल से हूँ। आपकी कुशलता चाहता हूँ। पत्र लिखने का ख़ास कारण यह है कि हाल-फ़िलहाल मैं आपके सपनों का भारत तो नहीं बन पाया हूँ। हाँ, यह भी सच है कि राम राज्य की अवधारणा का अंश मात्र भी मेरी देह में नहीं आ सका है। मैं और मेरे लोग कितने स्वार्थी हो गए हैं? कहने की आवश्यकता भी नहीं है। मुझे ही ले लीजिए। आपकी हत्या के 71 साल बाद पत्र लिख रहा हूँ। आपके सत्य, अहिंसा और प्रेम के सिद्धान्त तिल का ताड़ बन चुके हैं। लगातार झांसों (झांसी से इसका कोई लेना-देना नहीं है) और जुमलों के बोझ से मैं दबा जा रहा हूँ।
श्रद्धेय बापू , लिखते हुए भी लाज आ रही है कि इन इकहत्तर सालों में जो विकास हुआ होगा, सो हुआ होगा। मैं उस बहस में नहीं पड़ना चाहता। लेकिन, इतना ज़रूर कहना चाहूंगा कि मेरे लोग मति भ्रमित अधिक होते जा रहे हैं। वे स्वयं के विवेक का इस्तेमाल नहीं करते। आप तो ख़ूब कहा करते थे कि झूठ के पांव नहीं होते। लेकिन आज, जिस झूठ को बार-बार परोसा जाए, दिखाया जाए, बोला जाए, वह ‘झूठ’ सच मान लिया जाता है। सच की आवाज़ झूठ की चिल्लाहटों में दब जाती है। उसका दम घुट जाता है। और झूठ? वह तो बड़ी बेशर्मी से हावी हो जाता है।
वैसे, इन इकहत्तर सालों में मेरे हिस्से भी ख़ूब उपलब्धियाँ आई हैं। आप जब थे, तब भी दुश्वारियाँ कम न थीं। लेकिन, तब आप भी और मेरे लोग भी, कमियों का ठीकरा गोरों के सिर पर फोड़ दिया करते थे। पर गोरों की सरकार तो अगस्त सन् 1947 से पूर्व ही हमेशा के लिए यहाँ से सात समन्दर पार चली गई थी। 72 सालों से तो मुझ पर, मेरे ही लोग राज कर रहे हैं। अब मेरे मतदाताओं पर एक ओर रोग लग गया है। वे अपनी ही चुनी सरकारों को बेदम बताने पर तुले हैं। कोई सरकार कई मुद्दों पर विफल हो सकती है। लेकिन, हर दूसरी सरकार को बड़ी रेखा खींचनी चाहिए। अपने आप छोटी रेखा छोटी हो जाएगी। पहले से खींची रेखा को कुरेदने, खुरचने और मिटाने को उपलब्ध्यिां नहीं माना जा सकता है।
लिखता चलूँ कि मैं दुनिया में आकार के हिसाब से सातवें नंबर पर हूँ। मेरे अपनों में कई हवाबाज़ हैं। गप्पी हैं। कपोल- कल्पनाओं को हवा देते हैं। यह संगति का असर है। दुनिया की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री मेरे खाते में हैं। बापू , इसे बाॅलीवुड कहा जाता है। दुनिया में सबसे ज़्यादा फिल्में मेरे यहाँ बनती हैं।़ आप तो जानते हैं कि दुनिया को गणित का शून्य मैंने ही दिया था। उसके बाद दुनिया के महान गणितज्ञों में दूसरा मेरे यहाँ पैदा हुआ हो, याद नहीं आ रहा है। आपको याद आए तो लिख भेजना। वैसे बापू आपके बाद दूसरा कोई बापू जैसा नहीं ही हुआ है। ये मुझे याद आएगा तो अगले पत्र में लिखूंगा।
पूज्य बापू , आपको याद होगा, आजादी के समय में मेरे 18 फीसदी लोग ही पढ़े-लिखे थे। आज 75 फीसदी लोग पढ़े-लिखे हैं। आप चिंता न करें बापू। सन् 2085 में मेरा हर युवा ग्रेजुएट हो जाया करेगा। बीते साल तलक मात्र छःह करोड़ बच्चे ही तो स्कूलों तक नहीं पहुँच पाए थे ! वैसे, बापू पढ़ाई-लिखाई अब चिन्ता का विषय नहीं रह गई। आज मेरे सौ में बीस पुरुष ही अनपढ़ रह गए हैं। सौ में पैंतीस महिलाएं ही तो अनपढ़ रह गई हैं। क्या यह विकास नहीं? मात्र 45 साल बाद हमारी साक्षरता दुनिया की औसत साक्षरता के बराबर हो जाएगी।
वैसे बापू गौरव का विषय यह तो है ही कि कुकुरमुत्तों से अधिक हमारे यहाँ निजी स्कूल हैं। एशिया में सबसे अधिक शिक्षण संस्थाएँ भारत में हैं। यह बड़ी बात नहीं? मैं इस बात से अक्सर परेशान हूँ कि दुनिया में सबसे अधिक अनपढ़ मेरे यहाँ हैं। सबसे ज़्यादा मूक-बधिर मेरे यहाँ हैं। सबसे ज़्यादा बच्चों के अपहरण मेरे यहां होते हैं। महिलाएं सबसे ज़्यादा हिंसा की शिकार मेरे यहां होती हैं। सबसे अधिक दिव्यांग मेरे यहाँ हैं। क्या पता विकलांगों को दिव्यांग कह देने भर से यह प्रतिशत कम हो जाए !
बापू , मैं आज भी सबसे ज़्यादा केले दुनिया के देशों को भेजता हूँ। कभी एक रुपए के दर्जन केले मिलते थे। आज साठ रुपए दर्जन बिकता है। मैं दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश हूँ। चुनाव में सबसे अधिक खर्च भी मेरे यहाँ हो रहा है। मैं हैरान हूँ कि एक ओर एक तिहाई लोग भर पेट भोजन नहीं कर पा रहे हैं वहीं दूसरी ओर दुनिया में सबसे ज़्यादा सोना मेरे लोग ही खरीदते हैं। खरीद रहे हैं। गंगा-जमुनी संस्कृति मेरी थाती रही है। यह भी सच है कि सबसे अधिक त्योहार मैं ही मनाता हूँ। सबसे अधिक छुट्टियाँ मेरे यहाँ होती हैं।
वैसे बापू गौरव की बात यह भी है कि मेरे अपने अमेरिका में वैज्ञानिक हैं। नासा में तो छत्तीस फीसदी वैज्ञानिक भारतीय हैं। ये ओर बात है कि उन्होंने मेरे लिए क्या किया? मैं नहीं जानता। आप तो राष्ट्रपिता हैं। आपके नाम पर मेरे यहाँ जितनी सड़कें हैं उससे अधिक सड़कों के नाम विदेशों में हैं। आप दुनिया में भी स्वीकार्य हैं। चरक ने आयुर्वेद को चिकित्सा में हजारों साल पहले पहचान दी थी। लेकिन मेरे ही अपने अंग्रेजी शराब की दुकान पर और अंग्रेजी दवाखाना पर भरोसा करते हैं। मेरे नीति-नियंता विदेशी डाॅक्टरों पर अधिक एतबार करते हैं। अकेले अमेरिका में अड़तीस फीसदी डाॅक्टर भारतीय हैं। यहाँ मेरे लोग सरकारी डाॅक्टर नहीं बनना चाहते। गली-मुहल्लों में डाॅक्टरी की दुकान खोले बैठे हैं। मेरे सीने में दुनिया का सबसे लम्बी रेल पटरी हैं। रेल के कर्मचारी भी मेरे यहाँ सबसे अधिक हैं। बावजूद इसके लगभग दो लाख पद रेलवे विभाग में खाली हैं।
बापू , मेरे लोग पशु प्रेमी भी हैं। गौ हत्या के नाम पर मेरे बेकसूर नागरिकों को विदेशी नहीं मारते। मेरे अपने ही मारते हैं। पर दूसरा सच यह भी है कि पाँच करोड़ से अधिक बंदरों को शरण भी मैंने ही दी हुई है। आदरणीय बापू । मैं कर्ज़ में भी डूबा हुआ हूँ। दिसम्बर 2017 में मुझ पर 495 बिलियन अमेरिकी डाॅलर कर्ज है। यह बढ़ता ही जा रहा है। उधार लेकर घी पीना निन्दनीय माना जाता था। लेकिन आज सारी अर्थव्यवस्था उधार पर टिकी है। भारत से अलग हुआ पाकिस्तान तो चीन के कर्ज़ तले दबा पड़ा है। मेरी सरकार की बात करूँ तो हालात बद से बदतर हुए जा रहे हैं। साल 2014 में सरकार पर कुल कर्ज 54,90,763 करोड़ था। यह कर्ज़ जनवरी 2018 में बढ़कर 82 लाख करोड़ रुपए हो गया। इन पाँच सालों में यह लगभग पचास फीसदी और बढ़ गया है।
बापू फिर भी, मेरे कान यह सुन-सुन कर पक गए हैं कि मैं दुनिया की तीसरी महाशक्ति बनने जा रहा हूँ ! सुनकर अच्छा-सा लगता है। लेकिन भीतर ही भीतर डर भी जाता हूँ कि कहीं कोई मुझे और मेरे लोगों को गुमराह तो नहीं कर रहा है? सच क्या है? आप कुछ समझ-जान पाए हों तो बताइएगा।
आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में,
आपका अपना,
भारत
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पत्र लेखक: मनोहर चमोली ‘मनु’
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