क्या आपको याद है अमिताभ बच्चन ने चुनाव में किसे हराया था? भारतीय आम चुनाव में लहर बड़ा काम करती है। काम तो बोलता है ही, पर कई बार नाम भी बोलता है।
अब देखिए न ! ऐसी सरकार जो हमेशा से विपक्ष को निशाने पर लेती है। हर सत्तारूढ़ दल ऐसा ही करता है। लेकिन, भारतीय चुनाव के परिणाम देखें तो मौजूदा समय में सबसे कमजोर विपक्ष नायाब है। उसकी आवाज़ तूती की आवाज़ भी नहीं है। लेकिन सत्तारूढ़ दल को बार-बार आए दिन ऐसी क्या जरूरत पड़ती है कि उनके झण्डाबरदार विपक्षी दलों की चर्चा अपने बयानों में,भाषणों में और योजनाओं के उद्घाटनों के समय में गाहे-बगाहे नहीं, हर अनुच्छेद के बाद करते हैं? यह समझ से परे है।
यदि प्रमुख विपक्षी दल की बात करें तो वह मृत्युशैया पर पड़ी है। काहे उसकी चर्चा करते हो?
खैर......
हमें क्या?
यदि मौजूदा सभी विपक्षी दल ठीक से काम कर रहे होते तो जनता इतने बड़े अन्तर से उन्हें संसद में अतिअल्पसंख्यक बनाती?
चलिए, पिछले पाँच साल सिर-आँखों पर बिठाए दल ने सोचने-समझने-बोलने-बताने में लगा दिए। लेकिन अब तो काम करने का समय आ ही गया है। बार-बार सत्तर साल का रोना रोने से अब काम नहीं चलेगा। न ही मतदाता 35 साल तक यानि अन्यों की अपेक्षा 50 फीसदी समय मांगने की बात पर इन्तजार करेगी और झेलती रहेगी।
यह बात दीगर है कि आजादी के बाद हमारे पास सुईं भी विदेश से आती थी। हम कहाँ खड़े थे और आते-आते कहाँ तक आए हैं। लेकिन यह आना नाकाफी है। भारतीय नागरिक आज भी बेहतर शिक्षा,स्वास्थ्य,आवास और रोजगार के लिए तरस रहे हैं। इन चार मुद्दों पर आज भी काम करने की जरूरत बनी हुई है।
बहाने बनाने से, पल्ला झाड़ने से , पूर्ववर्तियों को कोसने से और बेवहज की बहसों को जन्म देने से बात नहीं बनेगी। गड़े मुर्दे उखाड़ने से कुछ भी हासिल नहीं होगा। बड़ी रेखा खींचने की ज़रूरत है।
हम क्या-क्या बेचेंगे? बेचने से अधिक बनाने पर ध्यान देना होगा। चाँद भी ज़रूरी है पर पूर्णिमा के चाँद-सी रोटी बेहद ज़रूरी है। आप क्या कहते हैं?
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