हम स्वदेशी-आयातित पर्व पर ख़ूब इतराएँ पर हम हिसाब अवश्य लगाएं कि निजी इच्छाओं को पूरा करने में जो आनंद मिलता है उससे बड़ा कोई क्या व्रत होगा?
पूरे साल हम तीज-त्योहार-व्रत आदि पर अनुमानतः जो खर्च करते हैं उसका दशमलव एक प्रतिशत ख़र्च से साल में 3 बार 3 भूखों को एक वक़्त का भोजन करा दें तो यकीनन विश्व भूख तालिका में हम ऊपर खिसक जाएँगे।
इससे बड़ा सच कुछ ओर नहीं हो सकता कि भूखे को भोजन कराने पर एक अलग सी अनुभूति होती है। अपनी पूजा करवाने से भी कई गुना ज़्यादा!
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