8 जन॰ 2011

देनहार कोई और है [ प्रेरक कथा ]

राजा रणविजय का एक सलाहकार था। उसका नाम दरमान था। दरमान कई अवसरों पर राजा को महत्वपूर्ण सलाह देते। राजा के आदेश पर सलाहकार दरमान दरबार में प्रतिदिन याचकों को रोटी, कपड़ा और अन्य ज़रूरतों की वस्तुएं दान करने लगा। याचक दान लेते और हाथ जोड़कर दरमान को आशीर्वाद देकर आगे बढ़ जाते। मंत्री, सेनापति और पुरोहित मन ही मन दरमान की ख्याति से जलने लगे।

एक दिन दरबार में सेनापति ने कहा-‘‘महाराज। दरमान दान करते समय याचक का चेहरा तो दूर किसी की ओर नज़र उठाकर भी नहीं देखता। यह दान के काम में अत्यधिक शीघ्रता दिखाता है। ऐसे तो महाराज कई याचक दोबारा भी दान लेने की पंक्ति में खड़े हो जाते होंगे। इसकी नज़रें ही नहीं सिर भी नीचा ही रहता है।’’ पुरोहित और मंत्री ने भी सेनापति की हाँ में हाँ मिलाया। वे चाहते थे कि दरमान से दान कराने का कार्य छिन लिया जाए।

राजा ने अपने सलाहकार दरमान से पूछा तो वह कहने लगा-‘‘महाराज। देनहार कोई और है देत रहत दिन रैन। लोग भरम हम पर धरैं याते नीचे नैन।’’

पुरोहित बीच में ही बोल पड़ा-‘‘दरमान विद्वता मत बघारो। सीधे जवाब दो।’’

दरमान ने मुस्कराते हुए जवाब दिया-‘‘राजन्। दान मेरे हाथों से होता है। जिस कारण याचक मुझे दाता समझते हैं। वे दान लेते समय मुझे हाथ जोड़ते हैं। मगर मैं तो मात्रा आपकी आज्ञा का ही पालन कर रहा हूं। वास्तव में दान तो आप कर रहे होते हैं। दान देने वाले तो आप हैं। यही कारण है कि मेरा सिर नीचा रहता है। मैं शर्म के मारे आँखें ऊँची नहीं कर पाता।’’

राजा रणविजय सारा माज़रा समझ गए। वे मुस्कराते हुए बोले-‘‘हमारा आदेश है कि दरमान की सहायता के लिए आज से मंत्री, सेनापति और पुरोहित याचकों पर कड़ी नज़र रखेंगे। ये जिम्मेदारी इनकी ही होगी कि कोई ज़रूरतमंद दान से वंचित न हो और कोई अपात्र अनावश्यक दान प्राप्त न कर ले। हम दरमान की निष्ठा से प्रसन्न होकर उनका वेतन बीस फ़ीसदी बढ़ाने का आदेश देते हैं।’’

राजा का आदेश सुनकर मंत्री, सेनापति और पुरोहित बुरी तरह झेंप गए।


मनोहर चमोली 'मनु'
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