19 मार्च 2012

'बच्चे संयुक्त परिवार में ज्यादा सीखते हैं '

'बच्चे संयुक्त परिवार में ज्यादा सीखते हैं '

-मनोहर चमोली ‘मनु’
 
संयुक्त परिवार यानि मिला-जुला परिवार। जुड़ा हुआ परिवार। वह परिवार जिसमें कई रिश्ते-नाते एक छत के नीचे पलते-बढ़ते हैं। वे सभी एक साथ मिलकर रहते हैं। एक ही रसोई का खाना खाते हैं। वह परिवार जो अकेला न होकर कई छोटे-छोटे परिवारों से मिलकर रोजमर्रा के काम में जुटा रहता है, संयुक्त परिवार कहलाता है। बड़े-बुजुर्गांे के साथ कई रिश्तों का एक माला में पिरोया हुआ परिवार ही संयुक्त परिवार कहलाता है। इस परिवार में एक मुखिया होता है, जो सभी की आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए कामों का बंटवारा करता है। संयुक्त परिवार की खास बात यह होती है कि यहाँ खून के रिश्ते को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है। बूढ़ों को खास तवज्जो दी जाती है और बूढ़े अपने अनुभव के आधार पर घर-परिवार के बच्चों को संस्कारपरक शिक्षा-दीक्षा देते हैं। बच्चों को अच्छी-बुरी आदत का भान कराते हैं।  

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अकेला नहीं रह सकता। यही कारण है कि उसे साथ रहने और समूह में रहने की आदत है। ऐसे समूह के साथ जिनके आपसी हित और संबंध जुड़े हों। वह परिवार के रूप में स्थापित हो गए। आगे चलकर परिवार, संपत्ति, सुरक्षा-देखभाल और खेती-बाड़ी ने रिश्तों-नातों को जन्म दिया। फिर रक्त संबंधी रिश्तों को खास समझा गया।
 
दादा-दादी, ताऊ-तायी, चाचा-चाची, देवर-भाभी, देवरानी-जेठानी, जेठ-ननद, भतीजा-भतीजी, पोता-पोती आदि रिश्तों को संयुक्त परिवार का हिस्सा माना गया। ये रिश्ते समाज के साथ-साथ बनते-बिगड़ते रहे। पहले खेती प्रधान समाज था। हर परिवार में ज्यादा से ज्यादा लोगों की जरूरत पड़ती थी। यही कारण था कि एक ही चूल्हा हुआ करता था। सब लोग एक ही रसोई का पका हुआ भोजन खाते और मिलकर खेती करते थे। सेहत-चिकित्सा का विकास नहीं हुआ था। मृत्यु दर अधिक थी। परिवार में जन्मे बच्चे और बच्चे को जन्म देने वाली माता की मृत्यु दर अधिक थी। यही कारण था कि परिवार को बड़ा रखने की सोच ज्यादा प्रबल थी।
 
समाज के साथ-साथ मानव की सोच में बदलाव आया। जन्म दर बढ़ी और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएँ बड़ने लगी। मृत्यु दर कम हुई और रोजगार के साधन बड़े। जिस कारण बड़े परिवार का लालन-पालन करना कठिन होने लगा। खेती के सीमित होने से छोटे परिवारों की धारणा बढ़ने लगी। एक ही छत के नीचे कई छोटे-छोटे परिवारों का पालन एक ही मुखिया के सहारे चलने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा तो एकल परिवार की सोच बढ़ी। संयुक्त परिवार बिखरने लगे। माता-पिता और उनके बच्चे ही एकल परिवार का हिस्सा माने गये। लंबे समय तक संयुक्त परिवार आदर्श परिवार माने गये। फिर एकल परिवार को अच्छा माना गया।
 
आज फिर से संयुक्त परिवार की धारणा समाज में अच्छी माने जाने लगी है। एकल परिवार में न ही दादा-दादी हैं और न ही चचेरे भाई-बहिन। अधिकतर एक संतान वाले परिवार में तो बच्चा या बच्ची बड़ी बहिन या छोटी बहिन क्या होती है। यह तक नहीं जानते हैं। कहीं बड़ा भाई या छोटा भाई किसे कहते हैं। लड़कियों को नहीं मालूम। चाचा-चाची या ताऊ-ताई किसे कहते हैं। वे ये नहीं जानते। दादा-दादी की देख-रेख से भी बच्चे वंचित हैं। इसी तरह एकल परिवार ने जेठानी-देवरानी और ननद-भाभी या देवर-भाभी के रिश्तों को भी मिटाने का काम किया है। जो दूरदर्शिता दादा-दादी और संयुक्त परिवार के और रिश्तों की वजह से थी, वह आज एकल परिवार के टूटने और बिखरने का कारण बन गई है। बच्चों की देख-रेख, परवरिश ठीक से नहीं हो पाती। बच्चों में संस्कार और मानवीय मूल्यों की कमी संयुक्त परिवार के न होने से है।
 
बच्चे समूह में ज़्यादा सीखते हैं। अपने संगी-साथियों से ज्यादा अपने घर में हम उम्र और बड़े बच्चों से बच्चे ज्यादा सीखते हैं। प्रेम, अपनापन, सहयोग, सहायता, साझेदारी और सामूहिकता तो संयुक्त परिवार का प्राण है। यही कारण है कि जिन बच्चों को दादा-दादी की देख-रेख मिली है। जहां बच्चों को बड़े भाई-बहिनों के साथ चाचा-चाची या ताऊ-ताई का प्यार मिला है, वे बच्चे हर क्षेत्र में सफल रहे हैं। वे सामाजिकता और मानवता में विनम्र और सहयोगी बने हैं। अन्यथा अकेले और एकाकी परिवार के बच्चे हिंसक, झगड़ालू और कुंठित हो जाते हैं। कामकाजी माता-पिता के बच्चों में कई विकृतियों से पूरा विश्व चिंतित है। आज के बच्चे कल का भविष्य हैं। आदर्श नागरिक बन कर वे देश के संचालक होंगे। यदि बच्चों को अच्छी परवरिश और संस्कार नहीं मिलेंगे तो वे आगे चलकर न ही अपना विकास कर पायेंगे और न ही परिवार का और न ही वे देश के विकास में सकारात्मक सहयोग दे सकंेगे।
 
आज फिर से संयुक्त परिवार की भावना को स्वीकार किया जा रहा है। हर कोई चाहता है कि उनका परिवार सुखी और खुशहाल हो। कहा भी गया है कि मानव न तो देवता है न ही दानव। मानवता भी यही कहती है कि अपने लिए न जीकर हम सबके लिए जियें। मिलकर रहने में जो सुख है वे अकेले रहने में कभी हो ही नहीं सकती। आप क्या सोचते हैं? बतलाइएगा जरूर। मैं प्रतीक्षा में रहूंगा।
 
मनोहर चमोली ‘मनु’ पोस्ट बाॅक्स-23, भितांई, पौड़ी गढ़वाल।  मोबाइल-09412158688.
 

8 टिप्‍पणियां:

  1. PAHLI BAAR AAPLE BLOG PAR AANA HUA BAHUT HI ACHHA LIKHA HAI AAPNE..SIMIT SHABDON MEIN PARIWARIK SAMAJ KI VYAKHYA KAR DI...BAHUT SUNDAR POST..

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    1. शुक्रिया आपका। उम्मीद है कि आप कभी-कभार इधर भी आएंगी। मैंने भी आपका ब्लाॅग देखा। आप बेहद अच्छा और भावात्मक लिखती हैं। कुछ पर तों मैंने अपनी राय जाहिर की है।

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  2. bahut sahi likha hai aapne..shahar mein aajkal ekal pariwar mein rahna bhi kaafi had tak majburi ban gayee hai...
    sanyunkt pariwar mein pale bade ham jab aaj apne bachhon ko chhakar bhi wah mahaul nahi de paa rahe hain sach ek kasak man mein rahti hai...
    bahut badiya sarthak prastuti hetu dhanyavad.

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    1. आभार आपका। दरअसल जिनके पास विकल्प ही नहीं है। उनकी बात नहीं है। लेकिन ऐसे परिवार भी हैं जो साथ रह सकते हैं लेकिन फिर भी अलग-अलग रहते हैं। संयुक्त परिवार वो फिक्स डिपाॅजिट है जिसके दूरगामी लाभ दूर तक और देर में दिखायी देते हैं। आप यहां आईं अच्छा लगा।

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  3. aapka ye aalekh bahut achchha hai,aapne raay mangi hai to imaandaari se mai apne man ki baat kahti hun.....mai maanti hun sayunkt parivaar ke apne laabh hain par uske apne nakaaratmak paksh bhi hain, ye sunne me achchha nahi lagta, par maine apne jitne bhi mitron jo sayunkt parivaar ke ang hain unke anubhavon ke aadhar par mahsoos kiya hai. pahle saare purush kaam karte the saari mahilayen ghar me rahti thin, ghar ki aarthiki me sabka samaan yogdan tha, samaan upbhog tha, aaj dono me vishamtayen hain isliye manon me daraar aajati hai, sahansheelta na hone k karan ek dusre se matbhed-manbhed aur fir mansik tanaav hone lagta hai, is vishay par kaafi kuchh hai kahne samajhne ke liye...........abhi bas itna hi,,,,,,ise sankirn mansikta ka darzaa na dekar aaj ke parivesh me samajhne ki zarurat hai. dusri aur aham baat....yahan Maa aur Pita yani parivar ke vriddhon ko shamil nahi maan rahi hun vo to hamesha parivaar ka abhinn ang hote hain.

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  4. बहुत-बहुत धन्यवाद और शुक्रगुजार आपका। दरअसल मैंने इसके उजले पक्ष और सकारात्मक भाव को ही छेड़ने का प्रयास किया। गिरावट तो हर जगह आई है। लेकिन एकल परिवार में जो नकारात्मक,निराशावादी और अति व्यक्तिवादी भाव आ रहे हैं। उसका संयुक्त परिवार में बनिस्पत एकल के कम है। समाजविज्ञानी मान रहे हैं कि आने वाले समय में एकल हाशिए पर चले जाएंगे और फिर से संयुक्त परिवार का भाव पनपेगा। फिर भी आपने जो बातें दर्ज की हैं। वह इस आलेख को पूर्ण बनाने में सहायक हैं। पुनः आभारी।

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यहाँ तक आएँ हैं तो दो शब्द लिख भी दीजिएगा। क्या पता आपके दो शब्द मेरे लिए प्रकाश पुंज बने। क्या पता आपकी सलाह मुझे सही राह दिखाए. मेरा लिखना और आप से जुड़ना सार्थक हो जाए। आभार! मित्रों धन्यवाद।