बस्ता बेहद भारी है ढोना तो लाचारी है पढकर याद करना है रटना आज भी जारी है श्यामपट्ट के धुंधले आखर अब भी एक बीमारी है गुरूजी के हाथ में डंडा जाने कैसी यारी है कान पकड़ कर उठक-बैठक मुर्गा बनना जारी है छुट्टी में जो घंटी बजती हमको लगती प्यारी है. -मनोहर चमोली 'मनु' [30-09-2010]
जाड़ा थर थर करता आया बर्फ हवा भी साथ में लाया टोपी जूते मोज़े पहने मफलर जर्सी अपने गहने गरम रजाई वाह भई वाह सूरज चाचू जल्दी आ. -मनोहर चमोली 'मनु' [२९-९-2010]
'हर चीज़ गुजर जाती है, हर चीज़ कमजोर हो जाती है. हर चीज़ टूट जाती है.' बस इस मन को...- इस दिल को... नही टूटने देना चाहिए. जमाना तो हाथ में पत्थर लिए खड़ा है. फिर क्या....? यही कि आशा का दामन नहीं छोड़ना चाहिए.... संभालने वाले साथी भी मिल ही जाते हैं.
इश्क में खुद को आजमाता है कांच को आंच क्यों दिखाता है फायदा क्या लिपट के रोने से क्यों बुजी आग को जलाता है आखिरी वक्त के सवेरे में क्यों मुझे मौत से डराता है मर गया उसकी आँख का पानी अब तो बस रो के वो दिखाता है कितना तन्हा है आदमी ए 'मनु' अब तो बस गम में मुस्कराता है. -मनोहर चमोली 'मनु'
कहते हैं कि लड़कियाँ चिड़िया के समान होती हैं वे एक जगह नहीं टिकतीं फुर्र हो जाती हैं लेकिन मैंने तो देखी हैं ऐसी कई लड़कियाँ जो उड़ती ही नहीं वे जड़ हो गईं हैं अपने बूढ़े माता-पिता के लिए नन्हे भाई-बहिनों की खातिर तो मैं कैसे मान लूं कि लड़कियाँ चिड़िया के समान होती हैं वे एक जगह नहीं टिकती फुर्र हो जाती हैं---फुर्र हो जाती हैं ! ! !
किस से अब किसका काम चलता है बाप बेटे का नाम जपता है तुम मेरे न हो सके क्या कीजे बिन तुम्हारे भी काम चलता है पाल लेता है कुछ भ्रम इन्सान के उसके कहने से राम चलता है अब तो घर चलाती हैं बेटियां घर में बेटों का जाम चलता है. -मनोहर चमोली 'मनु '.
कहावत। "gussye se badta hai pyar." aap kya kahte hain?
क्या आप पेशाब रोक पाते हैं.? कितनी देर..? महिलाएं घंटों क्या, दो-दो पहर दवाब सहन करती हैं. हर जगह.. कारण..? शौचालयों का अभाव. हम पुरुष कहीं भी, कभी भी खड़े होकर विसर्जन कर देते हैं. जरा,विचारें. महिलाओं को कितनी दिक्कतें आती होंगी. महिला सार्वजनिक शौचालय हैं-159 .और पुरुष मूत्रालय हैं-30152 . वाह ! रे भारत! देश-विदेश के आयोजन में पानी की तरह रुपया बहा दे. हर हाथ में मोबाईल थमा दे. पर हर परिवार को शौचालय.? ठेंगा..
आज के दिन की शुरुआत अच्छी रही.विजय दी का फ़ोन आया. तब देका..देर लगी पर... फिर दी का फ़ोन दोबारा आया. काश! अनु से बात हो पाती.!
------------------------- "....भूख और भीख तो बढती ही जाती है.कुछ लोग लाखों कमाते हैं,इंग्लैंड-अमेरिका से नही.गरीबों की जेब से......." -पूना,२९ जून १९४४ में ...गाँधी जी का भाषण [सम्पादित अंश] आज भी प्रासंगिक है.-गाँधी जी को मेरा नमन. बार- बार नमन.