14 अप्रैल 2024

बाल साहित्य पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है: लोकेश नवानी

बाल साहित्य पर गंभीर चिंतन प्राय होते ही नहीं 


बाल साहित्य मनुष्यता के बीज बोने में अहम भूमिका निभाता है


बाल साहित्य को बचकाना साहित्य या बवाल साहित्य कहने वालों की समझ स्पष्ट करने के लिए कई प्रयास देश भर में हो रहे हैं। दरअसल बाल साहित्य की महत्ता और उसकी प्रासंगिकता को समझने में हिन्दी पट्टी के शिक्षक, अभिभावक और स्वयं पाठक भी अभी गंभीर नहीं हैं। धाद सामाजिक संस्था के साहित्य एकांश लम्बे समय से बाल साहित्य पर केन्द्रित गोष्ठियों का आयोजन करता रहा है। इसी कड़ी में मार्च 2024 के अंत में एक आयोजन स्वयं में यादगार बन पड़ा है।  

उत्तराखण्ड का लोकपर्व फूलदेई के अवसर पर आयोजित बाल साहित्य विमर्श पर सभी ने माना कि आज बाल साहित्य को आधुनिक, वैज्ञानिक और यथार्थवाद का पक्षधर होना चाहिए। धाद के संस्थापक लोकेश नवानी ने सभी का आभार जताते हुए अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि चेतना से समृद्ध होते हुए बाल चेतना से भी समृद्ध होना अच्छा रहा। उन्होंने कहा कि गोष्ठी की सार्थकता यहां दिए गए वक्तव्यों से सफल प्रतीत होती है। 

लोकेश नवानी ट्रांजिस्ट हॉस्टल में धाद की इकाई साहित्य एकांश द्वारा आयोजित फूलदेई कार्यक्रम में बतौर अध्यक्ष बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि सामाजिक पहल बहुत ज़रूरी है। हमें समझना होगा कि गोष्ठी में गंभीर विमर्श बेहद आवश्यक है। आज की गोष्ठी दिशा देती है। हमें समझना होगा कि बच्चों में मनुष्य होने की जिज्ञासा बढ़े। इसकी आवश्यकता है। धाद के विविध कार्यक्रमों में साहित्य एकांश की गतिविधियाँ अलग से रेखांकित होती हैं। कक्षा कोना का गतिविधि भी सफल रही हैं। हमारे आयोजनों में एकाग्रता बढ़नी चाहिए। गंभीर विमर्श के लिए चिन्तन-मनन के साथ सुना जाना भी खास है। आज मनुष्य होने की जिज्ञासा बाल मन में जगे और बनी रहे। इसके प्रयास जरूरी हैं। 

धाद के अध्यक्ष एवं संस्थापक लोकेश नवानी ने कहा कि बाल साहित्य के साथ-साथ बाल साहित्य सुनाना आज आवश्यक हो गया है। चेतना का जो स्तर है वह बढ़ना चाहिए। साहित्यकार वैचारिक दूत होते हैं। वह सच और यथार्थ को आगे बढ़ाते हैं। साहित्य एकांश को चाहिए कि विद्यालयों के प्रधानाचार्यों के साथ भी इस तरह की गोष्ठी हो। सही बात तो यह है कि किताबें पढ़ी जानी चाहिए। देहरादून के जाने-माने साहित्यकार यहाँ हैं। उन्हें बच्चों को कहानियाँ सुनानी चाहिए। लोकेश नवानी ने अपने बचपन के किस्से भी याद किए और कहा कि बाल मन के विस्तार के लिए देहरादून के कम से कम पचास प्रधानाचार्यों के साथ भी किताबों के पढ़ने के लिए आयोजन की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि बाल साहित्य कैसा हो? यह विमर्श बहुत जरूरी है। समाज में कई तरह के प्रतिबन्ध बच्चों पर लगाए जाते रहे हैं। जैसे मैं अपनी बात कहूँ कि मनुष्यता के बीज बालमन में बाल साहित्य ही जगा सकता है। बचपन में जंगल में जाने से मना किया जाता था। जब बड़े हुए और जंगल देखा तो नवीन जानकारियाँ मिलीं। आज बच्चों में मौलिक विचार और वैज्ञानिकता का विकास होना चाहिए। बाल साहित्य में यथार्थवाद, मानवता और विकासवाद की बात होनी चाहिए। 

लोकेश नवानी ने कहा कि मेरी अपनी समझ में कोई भी राजा अच्छा नहीं हो सकता। अवाम का शोषण करने वाला राजा भला कैसे हो सकता है! लेकिन राजाओं के भले होने और न्यायप्रियता की कहानियां बहुत हैं। सच की कहानियाँ भी लिखी जानी चाहिए। बाल साहित्य मनुष्यता के बीज बोता है। उन्होंने सुझाया कि साहित्य विचार का विकास करे। वैज्ञानिकता का विकास करे। बाल साहित्य यथार्थ, विज्ञान और मानवता की बात करे। उन्होंने दोहराया कि राजा किसी भी रूप में व्यावहारिक तौर से देखें तो अच्छे नहीं माने जा सकते। किसी भी राजा ने गरीबों का भला नहीं किया। उन्होंने शोषण ही किया। 

विज्ञान ही हमें आगे बढ़ाएगा। बच्चे धर्म और जाति को अपनाते हुए बड़े होते हैं। यदि उन्हें साहित्य नहीं दिया गया तो वह कई तरह की जकड़न के साथ बड़े होते हैं। वहीं साहित्य मनुष्य बनने के लिए प्रेरित करता है। आधी दुनिया की महिलाओं को भी समाज की कहानियाँ लिखनी चाहिए। आज भी लड़कियों के लिए लिखा गया साहित्य कम है। दुनिया की लड़कियों के लिए भी साहित्य लिखा जाना चाहिए। आधी दुनिया भी इस काम को करे। बच्चे की बेहतर मनुष्य की आस्था की बुनियाद बाल साहित्य से ही पड़ सकती है। इतिहास है कि धार्मिक व्यवस्था और धर्म आधारित साहित्य हमें पीछे ले जाता है। 


यही कारण है कि बचपन में ही सब तरह के जाति, धर्म, सामाजिक विद्वेष के बीज बो दिए जाते हैं। बच्चों को जिस तरह के गीत सिखाएंगे वह उन्हें गाएगा। बचपन में जो भर दिया जाता है जीवन भर के साथ चलता है। कितना अच्छा हो कि मानवता के और संवेदनशीलता के गीत बच्चों को सुनवाएँ जाएं। वे उन्हें गाएँ। सुन्दर दुनिया बनाने के लिए बच्चे अहम हैं। वन्य जीवन के शिकार की कहानियों से इतर पशुओं के साथ प्रेम की और उनके साथ संवेदनशीलता की कहानियां लिखी जानी चाहिए। आधुनिक समय की कहानियों को लिखा जाना चाहिए। आज भय भरने की जरूरत नहीं है। चेतना के स्तर को, सामाजिकता और सहभागिता को बढ़ाने की जरूरत है। आज धर्म और जाति-सम्प्रदाय से इतर मनुष्यता की बात होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि बच्चे की आस्था में मनुष्यता प्राथमिक हो। यह कैसे होगा? बाल साहित्य से ही यह संभव है। उन्होंने कहा कि हम सब जानते हैं कि बच्चा जो देखेगा, सुनेगा आस-पास जिएगा वह वैसा ही हो जाएगा। सिर्फ मनुष्य बने रहने की कहानियां कौन लिखेगा? लोकेश नवानी ने कहा कि चेतना का प्रगतिवादी स्तर साहित्यकारों में निहित होता है। उन्हें ही आगे आकर सकारात्मक, यथार्थ से भरा साहित्य लिखना होगा। दुनिया को सुन्दर, समृद्ध और खुशहाल बनाने के लिए आगे आना होगा। बच्चों में भय, भूत,जातिवाद और धर्म के बीज बचपन में ग्रहण करवाएं जाते हैं। मनुष्य होने के बीज ग्रहण कराए जाने की आज ज़्यादा आवश्यकता है। मानवीय दृष्टि की आज नितांत आवश्यकता है। 

फूलदेई को समर्पित इस शाम की केन्द्रीय बिन्दु यह रहा कि बच्चों को आधुनिक समय की कहानियाँ सुनवाई जाएं। भय भरने से इतर संवेदनाएँ जगाने का काम हो। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार डॉ॰ कुसुम नैथानी ने बाल साहित्य के इतिहास और उसकी आवश्यकता-सार्थकता पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बच्चों के वय वर्ग पर भी विस्तार से चर्चा की। डॉ॰ कुसुम नैथानी ने कहा कि समय के साथ-साथ बाल साहित्य भी बदला है। पहले सीख-सन्देश, परी-राजा आदि का साहित्य लिखा जाता रहा है। आज यथार्थ से भरा, आधुनिक समय का साहित्य बच्चों के लिए लिखा जा रहा है। बाल साहित्य की दिशा और दशा पर भी कुसुम नैथानी ने विस्तार से चर्चा की। उन्होंने चंदामामा के आधुनिक भाव-बोध को भी अपने वक्तव्य में रखा। उन्होंने बाल साहित्य की अवधारणा प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिकता की श्रेणी में रखते हुए अपनी बात की। डॉ० कुसुम रानी नैथानी ने कहा की वह साहित्य ही बाल साहित्य जिसे बच्चों के मानसिक स्तर को ध्यान में रखते हुए लिखा गया हो। इसमें रोचक कहानी और कविता प्रमुख हैं। बाल साहित्य बच्चों का मनोरंजन ही नहीं करता अपितु उन्हें जीवन की सच्चाइयों से भी परिचित कराता है। आज का बच्चा कल का भावी नागरिक है। वे जैसा साहित्य पढ़ेंगे, उसी के अनुरूप उनके चरित्र का निर्माण होगा। उन्होंने कहा कि साहित्यकारों की नजर में बाल साहित्य ऐसा होना चाहिए जो बच्चों की जिज्ञासाओं को शांत करे। उनकी रुचियों को परिष्कृत करे। उन्हें सामाजिक तौर पर संस्कारित भी करे। बाल साहित्य का उद्देश्य विश्व कल्याण, विश्व बंधुत्व और मानव को एक अच्छा इंसान बनाने का भी होना चाहिए। इसके अलावा सबको आपस में जोड़ना और एक आदर्श समाज की स्थापना करना भी बाल साहित्य का प्रमुख उद्देश्य है। अच्छा साहित्य बच्चों की दशा और दिशा दोनों को ही बदलने में सक्षम होता है।

गौरतलब हो कि धाद ने दस हजार बच्चों तक पहुँचने का फूलदेई अभियान संचालित किया है। कोना कक्षा के संयोजक गणेश उनियाल ने कहा हमारा प्रयास है कि हम हर बच्चे और हर स्कूल तक पहुंचें। आज के इस विमर्श का उद्देश्य है कि आप सभी के सहयोग से हमें उच्च कोटि का साहित्य बच्चों तक पहुंचाने में मार्गदर्शन मिले। हमारी साहित्यिक जानकारी वह भी बाल साहित्य में कम हो सकती है। हम सामूहिक प्रयासों से आगे बढ़ते रहे। धाद का यही मंतव्य है। उन्होंने कहा कि अपने विस्तार कार्यक्रम के अंतर्गत हमने 2019 में ‘मेरे गांव का स्कूल’ अभियान शुरू किया था। जिसका बहुत अच्छा परिणाम मिला। समाज अपने गांव के स्कूल से जुड़ने के लिए आगे आया। वर्तमान में शहरी और ग्रामीण शिक्षा में बहुत अंतर है। ग्रामीण विद्यालयों में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। अभी हाल ही में विद्यालयों की बेहतरी के लिए मेरे गांव का स्कूल मवाधार के नाम से एक नया अध्याय शुरु किया गया है। जिसमें वहां के पूर्व छात्रों व समाज के सहयोग से विद्यालय में आवश्यक संशाधन जुटाने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं। हम चाहते हैं कि सरकार के प्रयासों के साथ ही समाज भी स्कूलों की बेहतरी के लिए आगे आये। एक कोना कक्षा का कार्यक्रम के निरंतर विस्तार के मूल में हमारे सहयोगी एवं विद्यालयों के शिक्षक हैं जिनके सहयोग से हम इसका संचालन कर पा रहे हैं। अभी हमारे पास 47 विद्यालय प्रतीक्षा सूची में हैं। विद्यालयों का यह उत्साह हमारे लिए प्रेरणा दायक है।

इस अवसर पर बाल साहित्य की अवधारणा, उद्देश्य, विचार एवं चुनौतियाँ विषय वक्ताओं के केन्द्रीय विषय रहे। धाद साहित्य एकांश की सचिव कल्पना बहुगुणा ने बताया कि एक कोना कक्षा मे किताबों के चयन की प्रक्रिया निरंतर बेहतर बनाने का प्रयास किया जाता है। हमारा प्रयास बच्चों तक दुनिया की सबसे बेहतरीन पुस्तकें पहुँचाना है। उन्होंने साहित्य एकांश के विविध आयोजनों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि आने वाले समय में साहित्य एकांश साहित्यकारों, बच्चों, अभिभावकों को जोड़ने का कार्य करेगा। कार्यशालाएं संचालित करेगा। कार्यक्रम का संचालन धाद साहित्य एकांश की संयोजक डॉ. विद्या सिंह ने किया। कार्यक्रम मे तन्मय ममगाई, मोनिका खण्डूरी, सुनीता चौहान, सीमा कटारिया, रुचि सेमवाल, डॉली डबराल, मुकेश नौटियाल, कल्पना बहुगुणा, राजीव पंतरी, डॉ॰ उषा रेणु, विष्णु तिवारी, नीलम प्रभा वर्मा, सुधा जुगराण, सत्यानंद बडूनी, उषा चौधरी, सलोनी चौहान, रितिक कुमार, वीरेंद्र डगवाल, डॉ॰ राजेश पाल, इंदु भूषण सकलानी, विजय भट्ट, प्रज्ञा खण्डूरी, आशा डोभाल,इंदुभूषण सकलानी, कांता घिल्डियाल, डॉ॰ रामविनय सिंह, असीम शुक्ल, शिवमोहन सिंह, मनोज पंजनी, उषा झा, अनीता सब्बरवाल, दिनेश सब्बरवाल, राजेश्वरी सेमवाल,शांति प्रकाश जिज्ञासु, सतेन्द्र बडोनी, डॉली डबराल आदि मौजूद थे। 

प्रस्तुति: मनोहर चमोली ‘मनु’
आयोजक: धाद साहित्य एकाँश