30 दिस॰ 2014

गुरु दक्षिणा -मनोहर चमोली ‘मनु’... नंदन, जनवरी.2015.

गुरु दक्षिणा

-मनोहर चमोली ‘मनु’

नमन ने पूछा-‘‘मैम। ये गुरु दक्षिणा क्या होती है?’’

गीता मैडम यह सुनकर चैंकी। नमन अक्सर रोचक सवाल करता था। बात-बेबात पर कुछ न कुछ जरूर पूछता था। वह कार्टून फिल्मों का बड़ा शौकीन था। वीडियों गेम्स भी खूब खेलता था। चटोरा भी खूब था। लेकिन क्लास में वह छोटी-छोटी बातों पर गौर करता था। कई बार प्रातःकालीन सभा में रोचक विचार और जानकारी भी रखता था। उसके मासूम चेहरे और भोलेपन व्यवहार से हर कोई प्रभावित था।


कल की ही बात थी। नमन ने प्रातःकालीन सभा में प्रिंसीपल से पूछा था-‘‘बड़ी मैम। क्या कोई ऐसा भी त्यौहार है, जो हम सबका हो?’’ प्रिंसीपल को कुछ सूझा ही नहीं। वह कहने लगी-‘‘बच्चों। ईद, होली, बैशाखी और क्रिसमस तो हम सभी के त्योहार हैं।’’

नमन ने फिर कहा-‘‘फिर मैम। स्कूल बस के ड्राइवर अंकल ने यह क्यों कहा कि ईद मुसलमानों का त्योहार है?’’ प्रिंसीपल ने स्कूल बस के ड्राइवर को बुलाया और जमकर डांटा। बेचारा नमन सकपका गया। वह सोचता रह गया कि आखिर उसने ऐसा क्या पूछ लिया था, जिसकी वजह से प्रातःकालीन सभा में हंगामा हो गया। 

एक दिन नमन प्रिंसीपल के आॅफिस में चला गया। प्रिंसीपल ने मुस्कराते हुए कहा-‘‘हां नमन। क्या पूछना है। पूछो।’’ नमन धीरे से बोला-‘‘बड़ी मैम। मैं आपको गुरु दक्षिणा देना चाहता हूं।’’ प्रिंसिपल अवाक रह गई। सहज होकर बोली-‘‘तो ठीक है। लेकिन गुरु दक्षिणा तो गुरु तय करता है। मैं जो मांगूगी वो देना होगा। दोगे न।’’ नमन से हां में सिर हिलाया।

प्रिंसीपल ने कुछ देर सोचा फिर कहा-‘‘मेरे आॅफिस के ठीक पीछे की जगह बेकार पड़ी है। आप वहाँ एक फलदार और एक छायादार पेड़ लगा सकते हो। एक दिन आप हमारे स्कूल से पढ़ कर बड़े काॅलेज में पढ़ने जाओगे। आपके लगाए हुए पेड़ हमें तुम्हारी याद दिलाते रहेंगे। ठीक है न।’’

नमन मुस्कराया और अपनी क्लास में चला गया। घर आकर उसने सारा किस्सा अपनी मम्मी को सुनाया। नमन की मम्मी ने हंसते हुए कहा-‘‘ठीक है। तो चलो नर्सरी। एक आम का पेड़ और एक नीम का पेड़ लेकर आते हैं।’’

नमन झट से तैयार हो गया। अगले ही दिन वह पेड़ों की पौध लेकर स्कूल पहुंच गया। स्कूल के माली की सहायता से उसने वह दोनों पेड़ प्रिंसीपल के आॅफिस के पीछे की जमीन पर रोप दिये। माली ने नमन से कहा-‘‘नमन। इस बार सुना है बारिश नहीं होगी। इन्हें लगाने से क्या फायदा। ये तो सूख जाएंगे।’’ नमन ने माली की ओर देखते हुए कहा-‘‘मैं इन्हें पानी दूंगा।’’

माली ने फिर कहा-‘‘हर साल बच्चे स्कूल में वृक्षारोपण करते हैं। कुछ दिन पेड़ों को पानी भी देते हैं। फिर भूल जाते हैं। मैं भी हर पेड़-पौधे का ध्यान नहीं रख सकता।ये पेड़ तुमने लगाए हैं। इनका ध्यान भी तुमने ही रखना है। इन्हें लगाकर भूल मत जाना। समझे।’’ नमन ने कहा-‘‘समझ गया।’’

नमन अपने टिफिन के साथ वाॅटर बोतल लाता ही था। अब वह अपनी क्लास में बैठने से पहले आम और नीम के पेड़ पर थोड़ा-थोड़ा पानी जरूर डालता। छुट्टी के समय भी वह अपनी वाॅटर बोतल का बचा हुआ पानी पेड़ों पर छिड़क देता। नमन की मम्मी उससे पेड़ों के बारे में अक्सर पूछती। 
नमन का एक दोस्त था। उसका नाम अहमद था। अहमद अक्सर नमन से पूछता-‘‘ये काम तो माली का है। तुम स्कूल पढ़ने के लिए आए हो या पेड़ लगाने के लिए आये हो? क्या तुम बड़े होकर माली बनोगे?’’ नमन का दिल बैठ जाता। वह एक ही जवाब देता-‘‘बस मुझे अच्छा लगता है। मेरे लगाए गए पौधे धीरे-धीरे बड़े हो रहे हैं।’’

एक दिन की बात है। नमन उदास था। अहमद ने पूछा तो नमन ने बताया- ‘‘इस बार गर्मियों की छुट्टी में हम शिमला जा रहे हैं। मेरी छुट्टियां वहीं बीतेगी।’’ अहमद उछल पड़ा। कहने लगा-‘‘अरे वाह! शिमला में मेरे चाचू रहते हैं। पता है शिमला में सेब के बहुत सारे बागीचे हैं। वहां अखरोट भी खूब होता है। राज़मा की दाल भी। देखना तुम्हें बड़ा मज़ा आएगा। शिमला जाने का मेरा भी बड़ा मन है। लेकिन। मैं इस साल भी शिमला नहीं जा सकूंगा।’’

नमन ने पूछा-‘‘लेकिन क्यो?’’ अहमद ने बताया-‘‘मेरे अब्बू बीमार हैं। अब मेरी अम्मी को दुकान पर बैठना पड़ता है। इस बार मुझे गर्मियों की छुट्टियों में अम्मी की हेल्प करनी है। लेकिन, तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम शिमला घूमने जा रहे हो।’’ नमन ने कहा-‘‘स्कूल के माली अंकल भी गर्मियों की छुट्टी में अपने गांव जा रहे हैं। मेरे पेड़ों को पानी कौन देगा? छुट्टियों में उन्हें पानी नहीं मिला तो वे सूख जाएंगे।’’

अहमद ने कहा-‘‘स्कूल में कोई तो रहेगा। वो तेरे पेड़ों की देखभाल कर लेंगे।’’ नमन ने जवाब दिया-‘‘यही तो मुश्किल है। माली अंकल कह रहे थे कि स्कूल छुट्टियों में बंद रहता है। रात की चैकीदारी करने के लिए पड़ोस के कोई अंकल रहेंगे। लेकिन वे रात को रहेंगे और सुबह ही अपने काम पर कहीं दूर चले जाएंगे। वो अंकल भला मेरे पेड़ों की देखभाल क्यों करेंगें?’’

नमन के साथ-साथ अहमद भी सोच में पड़ गया। फिर अहमद ने कहा-‘‘नमन। तू टेंशन मत ले। मैं अम्मी से बात कर लूंगा। दुकान जाने से पहले मैं एक चक्कर स्कूल का लगा लिया करूंगा। पेड़ों को पानी देकर झट से दुकान में चला जाया करूंगा।’’ नमन का चेहरा खिल उठा। वह बोला-‘‘अहमद। तुम मेरे बेस्ट फरेंड हो।’’ 

छुट्टियों में नमन खुशी-खुशी अपने मम्मी-पापा के साथ शिमला चला गया। वहीं अहमद दुकान जाने से पहले स्कूल आता और पेड़ों पर पानी डाल देता। 

छुट्टियां खत्म हुई। स्कूल खुला तो नमन सबसे पहले स्कूल आ पहुंचा। माली गेट पर ही मिल गया। माली ने नमन से कहा-‘‘अरे नमन। अब पानी लाने की जरूरत नहीं है।’’ नमन ने घबराते हुए कहा-‘‘क्यों? क्या हुआ? आप गांव से कब आए? मेरे पेड़ ठीक तो है न?’’

माली ने हंसते हुए कहा-‘‘होना क्या है। मैं गांव नहीं गया। मेरे बच्चे यहीं आ गए थे। कल ही गांव वापिस गये हैं। तुम्हारे दोस्त अहमद ने और मेरे बच्चों ने मिलकर तुम्हारे पेड़ों की खूब देखभाल की। उन्होंने स्कूल के चारों ओर कई नए पेड़ भी लगाए हैं। और हां। इस बार छुट्टियों के दिनों में कई बार बारिश भी हुई। जाकर तो देखो। तुम्हारे पेड़ तुम्हारे बराबर हो गए हैं।’’
नमन दौड़ कर पेड़ों के पास जा पहुंचा। आम और नीम के नन्हें 
पौधे बड़े हो चुके थे। हरी पत्तियों  से लदे पेड़ हवा में झूम रहे थे। ‘हम ठीक हैं। कहो। घूमना-फिरना कैसा रहा ?’ पेड़ शायद नमन से यही कह रहे थे। नमन था कि खिल खिलाकर हंस रहा था। 

18 दिस॰ 2014

बाल नाटक : मस्ती की पाठशाला

सूत्रधार : काननवन में हँसी-खुशी और धमा-चैकड़ी का माहौल देखकर आस-पास के वनवासी हैरान हो जाते थे। सुबह से रात होने तक उल्लास और आनन्द की गूँज चारों और सुनाई देती थी। काननवन में खुशियों का स्कूल जो खुल गया था। स्कूल जाने वालों के व्यवहार में तेजी से बदलाव दिखाई देने लगे थे। सभी माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल भेजने लगे थे। यही कारण था कि भालू के स्कूल में पढ़ने वालों का तांता लगा रहने लगा।

दृश्य-1

(मेढ़क, साँप, चूहा, बिल्ली, शेर, बकरी, हाथी, बंदर, तितली, लोमड़ी, सियार, खरगोश, कुत्ता, गिलहरी और हिरन पढ़ रहे हैं और भालू पढ़ा रहा है।)

भालू : साल भर हो गया है। अब तुम्हारी परीक्षा होगी। तैयार रहिए।

मेंढक : (सिर खुजलाते हुए) परीक्षा ! ये क्या बला है?

भालू : (चेहरे पर हँसी और घबराहट लाते हुए) परीक्षा ही तुम्हें पास-फेल करेगी। मतलब ये कि तुमने साल भर क्या सीखा, कितना सीखा!

खरगोश : लेकिन हम सब तो समझ ही रहे हैं कि हम रोज कुछ न कुछ यहाँ नया सीख रहे हैं। तब भला ये परीक्षा की क्या जरूरत?

भालू : (डाँटते हुए) चुप रहो। मैं पढ़ाता हूं और तुम पढ़ते हो। मैं सीखाता हूं और तुम सीखते हो। अब समय आ गया है कि सब जान लें कि तुम में से अव्वल कौन है!

छिपकली : अव्वल ! ये अव्वल कौन है?

भालू : परीक्षा ही तय करेगी कि तुम सभी में कौन सबसे अधिक होशियार है। साल भर स्कूल में पढ़ाया गया है। सिखाया गया है। समझाया गया है। परीक्षा से तय होगा कि तुम कितने बुद्धिमान बन सके हो। अब घर जाओ और परीक्षा की तैयारी करो। कल तुम्हारी परीक्षा होगी।


सूत्रधार : स्कूल से लौटते हुए सब सोच में पड़ गए। उनके चेहरे चिंता से भर गए। तनाव और भय के कारण वे हँसना-गाना भूल गए। वे एक-दूसरे से बेवजह तुलना करने लगे। निराशा और हताशा से भरा हर कोई एक-दूसरे से दूर-दूर चलने लगा। आज सुबह तक जो नाचते-कूदते स्कूल जा रहे थे, वे स्कूल से लौटते हुए एक-दूसरे को देखकर घबरा रहे थे। परीक्षा ने जैसे उनकी आजादी छीन ली हो। खुशियों की पाठशाला एक झटके में डर की पाठशाला बन गई। हर कोई रात भर सो नहीं सका।

दृश्य-2

(मंच पर जानवर। सबके चेहरे बुझे-बुझे से। मंच के एक ओर दीवार,दूसरी ओर एक पेड़ और एक पत्थर)

भालू : ( मुस्कराते हुए ) परीक्षा यहीं मैदान में होगी। सब तैयार रहें। (दीवार की ओर संकेत करते हुए) इस दीवार पर जो चढ़ेगा। वही अव्वल माना जाएगा।

(सब दीवार की ओर दौड़े। बंदर, गधा और सियार उछलते ही रह गए। छिपकली झट से दीवार पर चढ़ गई।)

चूहा : (उदास होकर) मेरे जैसे इतनी ऊँची दीवार पर कभी नहीं चढ़ पाएंगे।
भालू: (पीपल के पेड़ की ओर संकेत करते हुए) इस पेड़ पर चढ़ो।

( उड़ने वाले पक्षी पलक झपकते ही पेड़ की शाखाओं पर पँख पसारकर बैठ गए। हिरन, मेढक जैसे जीव-जन्तु अपना सा मुंह लेकर खड़े रह गए।)

भालू: मैदान के चार चक्कर लगाओ। मैं सौ तक गिनती बोलूंगा। गिनती पूरी होने से पहले चार चक्कर जो लगाएगा वही अव्वल माना जाएगा। दौड़ो !


(सब दौड़ने लगे। खरगोश, कुत्ता सबसे आगे। कछुआ सबसे पीछे।)

भालू : मैदान के किनारे बड़ा सा पत्थर पड़ा है। हटाओ उसे।

(सबने कोशिश की। पत्थर टस से मस न हुआ। हाथी झूमता हुआ आया और उसने पत्थर को सूण्ड से धकेल दिया।)

मधुमक्खी : मैं इस परीक्षा का बहिष्कार करती हूँ। ऐसी पढ़ाई से तो अनपढ़ रह जाना ही अच्छा है। ऐसी पढ़ाई, ऐसा स्कूल और ऐसा शिक्षक मुझे स्वीकार नहीं, जो कक्षा में सहभागिता के बदले गैर बराबरी की भावना विकसित करे। इस पढ़ाई को धिक्कारना ही अच्छा है।

तितली : मैं भी इस परीक्षा का विरोध करती हूँ।

चूहा : मैं भी।

बंदर : मैं भी।

कई और : हम भी।

सभी : हम सब भी।


(सब भालू की ओर दौड़े। भालू घबरा गया। वह भागकर मंच के पीछे चला गया।)

सूत्रधार : सब उसके पीछे भागे। काननवन का स्कूल बंद हो गया। अब सब प्रकृति से सीखने लगे। अपने अनुभवों से सीखने लगे। तभी से आज तक किसी भी जंगल में कोई स्कूल नहीं लगता।

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नवंबर, 2013 ‘साहित्य अमृत‘ में प्रकाशित  कहानी 'सब हैं अव्वल' का नाट्य रूपांतरण। मधुबन एजूकेषनल बुक्स की बातों की फुलवारी सहायक पुस्तक माला 5 में प्रकाशित ।

30 नव॰ 2014

मस्ती की पाठशाला बाल कहानी का नाट्य रुपान्तर

कक्षा 5 की सहायक पुस्तक के लिए मेरी कहानी का नाट्य रूपान्तर !
 मिली सूचना के मुताबिक दिल्ली के पब्लिक स्कूलों के लिए यह किताब तैयार हुई है।

किताब में क्रम कुछ इस प्रकार है-

1-रिमझिम-कविता-शेरजंग गर्ग

2-दोस्ती का कर्ज़-कहानी-ईशान गुप्ता

3-मस्ती की पाठशाला-नाटक-मनोहर चमोली ‘मनु’

4-भारतीय महीनों की कहानी-ज्ञान विज्ञान-गुणाकर मुले

5-मकड़ी का निराला जाला-प्राणी जगत-जगदीप सक्सेना

6-किस्सा शरारत का-कहानी- सूर्यबाला

7-इतनी बात-कविता-कृष्ण शलभ

8-दूसरी तसवीर-कहानी-उषा यादव

9-कब मिलेगी आजादी-संस्मरण-दीनदयाल शर्मा

10-आरवरदीप-कहानी-रेनू सैनी

11-मुवक्किल साथी बन गए-संस्मरण-महात्मा गांधी

12-फटे कुरते का गीत-कविता-दामोदर अग्रवाल

13-किताबें-कविता-श्याम सुशील

21 नव॰ 2014

चंपक, 2nd नवम्बर 2014 बाल कहानी

चंपक, 2nd नवम्बर 2014 बाल कहानी


'जिम्मेदारी हम सभी की' 

-मनोहर चमोली ‘मनु’

जंबो हाथी नल के नीचे नहा रहा था। चूंचूं चूहा चिल्लाया-‘‘अरे! अरे! जंबो दादा। यह क्या कर रहे हो?’’

जंबो हाथी ने चूंचूं चूहे को घूर कर देखा। फिर नहाते हुए बोला-‘‘देख नहीं रहा है। नहा रहा हूं। दर्जनों बाल्टी पानी डाल चुका हूं। गर्मी है कि लगती ही जा रही है। ’’

‘‘यही तो मैं कह रहा था कि क्या कर रहे हो। जब गर्मी है तो गर्मी लगेगी ही। दर्जनों बाल्टी पानी बेकार नहीं बहा रहे हो? इतने पानी से हजारों पक्षियों का नहाना हो जाता। चलो पहले कपड़े पहनो फिर बात करते हैं।’’

जंबो की सूंड हवा में ही रुक गई। उसने सूंड से पकड़ी बाल्टी को नल के नीचे रख दिया। नल का पेंच खुला था। बाल्टी भरने के बाद भी पानी नीचे गिर रहा था।

चूंचूं चूहा बोला-‘‘और ये देखो। पेंच खुला है। पानी बेकार बह रहा है। पहले नल का पेंच बंद करो।’’ 
जंबों ने पेंच को कस कर बंद कर दिया। 

फिर वह चूंचूं से बोला-‘‘हां अब बोलो।’’

चूंचूं चूहा बोला-‘‘बोलना क्या है। नहाने के लिए आपकों तालाब में जाना चाहिए। नल का पानी कितना बेकार बहा दिया।’’

‘‘एक मेरे अकेले पानी बहाने से क्या फर्क पड़ता है।’’
‘‘फर्क तो पड़ता है भाई।’’
‘‘मतलब?’’
‘‘मतलब यही है कि तुम्हारे जैसे कई होंगे जो नहाने के बहाने ढेरों लीटर पानी बहा देते हैं। वहीं कईयों को पीने का पानी तक नहीं मिल पाता।’’ चूंचूं ने कहा।

यह सुनकर जंबो हाथी हंसने लगा। कहने लगा-‘‘चूंचूं भाई। तुम कद-काठी में बहुत छोटे हो। लेकिन लगता है कि तुम दिमाग से भी छोटे हो। कुएं हैं। हैंडपंप हैं। ट्यूबवेल हैं। दिक्कत कहां हैं?’’
चूंचूं चूहा बोला-‘‘दिक्कत ही तो है। क्या तुम्हें नहीं पता कि बिन पानी सब सून। जंबो दादा। आबादी लगातार बढ़ती जा रही है। भूजल का अत्यधिक सेवन लगातार बढ़ रहा है। भारत की आधी आबादी भूजल के स्रोतों पर निर्भर है।’’
‘‘ये लो। कर लो गल। अब जल तो जल है। चाहे भूजल हो या कोई ओर। क्या फर्क पड़ता है?’’ जंबो नहाधोकर आराम से बैठ गया।

चूंचूं चूहा बोला-‘‘जमीन के भीतर का पानी भूजल है। नदी, नालों, हिमशिखरों और बारिश का पानी भूजल में नहीं आता है। पीने योग्य पानी तो संरक्षित होगा। खुद को ही देख लो। आप बजाए नदी में नहाने के नल के पानी से नहा रहे हैं। यह पानी तो पीने योग्य है। इसे बेकार में क्यों बहाए जा रहे हो? यह भूजल का दोहन कर सप्लाई किया जाता है।’’

जंबो हाथी बोला-‘‘ओह! ये तो मैने सोचा ही नहीं।’’

चूंचूं बोला-‘‘तो अब सोचो। तुम्हे पता है कि आज भी हमारे देश में नलों का पानी सभी को उपलब्ध नहीं है। ग्रामीण क्षेत्र की सत्तर फीसदी आबादी को नल का पानी उपलब्ध नहीं है। वहीं तीस फीसदी शहरी आबादी को भी नल का पानी उपलब्ध नहीं है। यही नहीं कुल मिलाकर देखें तो आज भी 11 फीसदी आबादी कुओं का पानी पीती है। 42 फीसदी आबादी हैंडपंप और ट्यूबवेल के पानी पर निर्भर है।’’

जंबों हाथी बोला-‘‘अरे! तो इसका मतलब यह है कि हर घर में अभी पानी नहीं पहुंचा है?’’

चूंचूं चूहा बोला-‘‘ठीक समझे। यही नहीं पूरी धरती में उपलब्ध पानी में केवल 1 फीसदी पानी ही पीने योग्य है। अब तुम ही बताओ। क्या हमें पीने योग्य पानी को इस तरह नालियों में बहाना चाहिए? नहीं न?’’

जबों हाथी ने सिर पकड़ लिया। फिर बोला-‘‘पीने का पानी क्यों? किसी भी तरह का पानी बेकार में नहीं बहाना चाहिए। थैंक्स मेरे सच्चे मित्र। मैं सुबह से ही नहा रहा हूं। कई मित्र यहां से गुजरे लेकिन किसी ने मुझे समझाने की कोशिश नहीं की। तुम ही मेरे सच्चे मित्र हो। चलो। इस खुशी में तुम्हें मोतीचूर के लड्डू खिलाता हूं। जंपी बंदर की दुकान के पास भी एक हैंडपंप लगा है। चलकर देखते हैं कि कहीं कोई वहां पानी का दुरुपयोग तो नहीं कर रहा!’’

यह सुनकर चूंचूं चूहा हंस पड़ा। दूसरे ही पल जंबो हाथी ने चूंचूं को सूंड से उठाया और अपनी पीठ पर बिठा लिया। दोनों जंपी बंदर की दुकान की ओर चल पड़े।  
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8 नव॰ 2014

'हवाई सैर' * *-मनोहर चमोली ‘मनु’ .साहित्य अमृत नवंबर 2014

हवाई सैर
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-मनोहर चमोली ‘मनु’

रगद का एक पेड़ था। वह बूढ़ा हो चला था। एक दिन बरगद सोचने लगा-‘‘सालों से एक जगह पर खड़ा हूँ। जिसे देखो। वह मेरी काया पर शरण लिए हुए है। मेरी किसी को चिन्ता नहीं है।’’ तभी उसे किसी के रोने की आवाज आई। एक तितली रो रही थी। 


एक गिद्ध का बसेरा भी इसी बरगद पर था। गिद्ध ने तितली से पूछा-‘‘नन्ही रानी। क्या हुआ?’’ यह सुनकर तितली दहाड़े मारकर रोने लगी। बरगद के पेड़ पर बया का घोंसला भी था। बया ने अपने घोंसले से झांका। 

गिद्ध ने फिर पूछा-‘‘अब रोती ही रहोगी या बताओगी भी कि हुआ क्या है?’’ तितली ने अपने आँसू पोंछे। फिर सुबकते हुए बोली-‘‘काश! मेरे पंख भी तुम्हारी तरह होते। मैं भी हवाई सैर करती।’’ गिद्ध को हंसी आ गई। वह बोला-‘‘ओह! तो यह बात है। लेकिन तुम्हारे भी तो पँख हैं। तुम्हें आसमान में उड़ने से भला किसी ने रोका है। उड़ो। खूब उड़ो।’’

तितली ने मुंह बिचकाया। कहा-‘‘मेरा उड़ना भी कोई उड़ना है। थोड़ा सा उड़ती हूँ। फिर थक जाती हूँ। उड़ान हो तो तुम्हारे जैसी। वाह! ऊपर, ऊपर और ऊपर।’’

गिद्ध ने कहा-‘‘ अच्छा। अब समझा। तो तुम आसमान की ऊँचाई देखना चाहती हो?’’

तितली ने कहा-‘‘हाँ। नहीं। हाँ। मैं आसमान से धरती को भी देखना चाहती हूँ। क्या धरती वाकई गोल है? समुद्र कैसा दिखता है? नदी, पहाड, पेड़ कैसे लगते होंगे? बड़ा मजा आता होगा न?’’ गिद्ध ने कहा-‘‘तो चलो। आओ। मेरे किसी एक पैर पर आराम से बैठ जाओ।’’ तितली ने डरते हुए कहा-‘‘न बाबा न। तुम जैसे ही अपने पंख फड़फड़ाओगे, वैसे ही मैं तिनके की तरह उड़ जाऊँगी।’’ 

बया सारा माजरा समझ चुकी थी। वह हंसते हुए तितली से बोली-‘‘तुम मेरा घोंसला ले लो। गिद्ध भाई उसे मजबूती से अपने पंजों में पकड़ लेगा। तुम मेरे घर की खिड़की से इस दुनिया को आराम से देखना।’’ तितली खुश हो गई। कहने लगी-‘‘यह ठीक रहेगा। लेकिन.......।’’ 
‘‘लेकिन क्या?’’ गिद्ध ने पूछा। तितली ने सोचते हुए कहा-‘‘अगर बारिश हो गई तो? मैं भीग गई तो? मुझे भीगने से जुकाम हो जाता है।’’ गिद्ध ने जवाब दिया-‘‘मेरे पंख किसी छतरी से कम नहीं। डरो मत। तुम पर बारिश की एक बूंद भी नहीं गिरने दूंगा। अब चलो।’’ तितली ने हंसते हुए कहा-‘‘अरे हाँ। यह तो मैंने सोचा ही नहीं। लेकिन........।’’

अब बया ने चैंकते हुए पूछा-‘‘लेकिन क्या?’’ तितली ने आँखंे मटकाते हुए कहा-‘‘घूमते-घूमते अगर मुझे भूख लग गई तो?’’ सब सोच में पड़ गए। बया ने सुझाव दिया-‘‘तो तुम फूलों का रस जमा कर लो।’’ 

‘‘हाँ। ये ठीक रहेगा। लेकिन.........।’’ तितली फिर सोच में पड़ गई। ‘‘अब क्या हुआ।’’ बया ने पूछा। तितली उदास हो गई। कहने लगी-‘‘मैं फूलों का रस कब जमा करूंगी? रस जमा करने में तो समय लगेगा न।’’

मधुमक्खियों का विशालकाय छत्ता भी बरगद की दूसरी शाख पर था। अब तलक रानी मधुमक्खी चुप थी। वह सब सुन रही थी। रानी मधुमक्खी भी तितली के पास मँडराने लगी। कहने लगी-‘‘ मैं बताती हूं। तुम मेरा छत्ता ले जाओ। इसमें खूब सारा शहद है।’’

तितली खुश हो गई। तालियां बजाते हुए कहने लगी-‘‘अब आएगा मजा! आप सब कितने अच्छे हो। ये बरगद का पेड़ ही तो है, जिसमें हम सभी मेल-जोल से रहते हैं।’’ 

सबने तितली की हवाई सैर का इंतजाम कर दिया। गिद्ध ने उड़ान भरी। तितली मुस्करा रही थी। बया के साथ-साथ रानी मधुमक्खी भी नाच रही थी।
 बरगद भी खुशी से झूमने लगा। 

10 अक्तू॰ 2014

करवा-चौथ के बारे में कुछ बातें और कुछ सवाल

करवा-चौथ के बारे में कुछ बातें और कुछ सवाल

आज करवा है। पूरी दुनिया की पत्नियां इस व्रत को क्यों नहीं रखती यदि यह पति की जीवन रक्षा का सबसे बड़ा मसअला है? क्या वे पत्नियां जिन्होंने यह व्रत रखा है, विधवा नहीं होती। यानि पत्नी पहले मरती है और पति बाद में? माने यदि पत्नियां अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत रखती है तो पत्नी अल्पायु होनी चाहिए। लेकिन मेरे छोटे से अनुभव के आधार पर मैं आज भी देखता हूं कि यदि आकस्मिक घटनाएं न घटे तो अमूमन पति पहले मरते हुए देखे हैं। कारण कई हैं। मसलन वह अधिकतर व्यसनी होते हैं। अधिकतर उम्र में पत्नी से 3 से 10 साल बड़े हैं। सो.....।
 
इसका मतलब यह नहीं कि मैं पति या पत्नी विरोधी हूं। मैं तो इस पांेगापंथी विशुद्ध व्यावसायिक त्योहार के समर्थक नहीं हो सकता। वैसे अभी तक इस प्रकार की पड़ताल नहीं हुई है कि हमारे आस-पास जितनी भी विधवाएं हैं, क्या वह इस त्योहार की समर्थक नहीं थी, यदि वे भी करवा रखती तो विधवा न होती?
 
अब बात करते हैं कि साल में एक दिन पति के लिए इस तरह का पाखंड क्यों करवाया जाता है। यह भी कि कोई पत्नी क्यों कर व्रत रखे। अब व्रत रखने के वैज्ञानिक पक्ष पर बात करें। आयुर्वेद हमेशा अल्पाहारी की वकालत करता है। यह भी कि यदि रात को भोजन न भी करें तो चलेगा। भारतीयों में कई जाति-समुदाय आज भी ऐसे हैं कि सूर्यास्त से पहले भोजन  कर लेते हैं। पशु-पक्षियों को देखें तो पता चलता है कि वे भी अमूमन अपने नीड़ में जाने के उपरांत यानि अंधेरा होने के बाद कुछ नहीं खाते। खैर..........
 
फिर यह भी कि धर्म और आस्था की आड़ में पत्नियों को ही ऐसे प्रपंचों का शिकार क्यों कर बनाया जाता है। मेरे कई मित्र हैं, कई मामलों में पति धर्म का पूर्णतः निबाह नहीं करते लेकिन आज के दिन सुबह नहा-धोकर मंदिर जाकर और टीका-तिलक लगाकर अभिभूत हैं। यही नहीं आज चांद के दिखाई देने तलक पत्नी धर्म निबाहने के लिए सीना चैड़ा किए हुए है। उस पर तुर्रा यह कि- ‘‘क्या करें यार जल में रहकर मगर से बैर करना कहां की समझदारी है।’’ 

यह सुर 24 घंटे से अधिक क्यों नहीं रहता। आज के बाद फिर वही तानाशाही रवैया। मैं चाहे जो करूं मेरी मर्जी वाला व्यवहार? क्यों?
कुछ हैं जो आज पत्नी के साथ खुद भी व्रत रखते हैं। लेकिन आज के बाद फिर कोई व्रत नहीं। यह भी कि पत्नी साल में और भी व्रत रख रही है तो पलट कर नहीं पूछते कि क्यों भई ये व्रत किसलिए? उन्हें लगता है कि व्रत रखने से पत्नी स्वस्थ रहेगी। तो भैया तुम व्रत न रखने से स्वस्थ कैसे रह सकते हो?
 
कुछ मित्र कहते हैं कि यार दुनिया को समझा लो। लेकिन पत्नी के समझाना भैंस के आगे बीन बजाना है। ये क्या है? यह महिला विरोधी सोच नहीं है?
 
कह सकते हैं कि समाज पुरुषवादी है। लेकिन कुछ तो ऐसे हों जो इस मामले में साम्यवादी दिखाई दें। पत्नी की परवाह करते दिखाई दें। कहते सब हैं। लेकिन परवाह करते कम ही दिखाई देते हैं। घर में दादा-दादी हैं। ननद है। देवर है। बच्चे हैं। सब बीमार पड़ गए तो चलेगा। पत्नी बीमार हो गई तो जैसे नरकीय जीवन हो गया। पत्नी कुछ दिनों के लिए कहीं चली गई तो खाना-पीना हराम हो जाता है। घर कबाड़खाना बन जाता है। अरे भई यह कौन नहीं जानता? 

तो फिर कुछ ऐसा करें कि इस पोंगापंथी दकियानूसी विचारधारा से खुद भी हटें और पत्नी को भी हटाएं। बैठकर सोचे और वैज्ञानिक नज़रिए से आज की आपाधापी और मंहगाई से भरे दौर में हर त्योहार,दिखावे और जीवन शैली को बदलें। देखादेखी न करें। पड़ोसी के परदे बदले गए हैं तो मेरे भी बदले जाएंगे। पड़ोसी सप्ताह में एक बार होटल में खाना खाते हैं तो हम भी खाएंगे। यह क्या बात हुई?

याद आया इस समाज में किन्नर भी तो हैं। उन्हें किसकी जीवन रक्षा की चिंता होनी चाहिए? आजीवन कुंवारा और कुंवारी रहने वाले भी तो हैं? वे क्यों नहीं किसी के जीवन के प्रति जवाबदेह हैं? बहुत विधवाएं हैं अब यदि उनका पति नहीं है तो उनके लिए इस त्योहार के कोई मायने नहीं?

अब अपनी कहता हूं। शादी हुई है। यह सातवां करवा है। अपन ने न तो चांद देखा और न ही छलनी। करवा के दिन डटकर नाश्ता करते हैं। करवाते हैं। आराम से नियत समय पर ही चैन की नींद सोते हैं। यही नहीं न खुद कोई व्रत रखते हैं और न ही अपन जिसका पति है, वह व्रत रखती है। कोई पूजा-पाठ नहीं कोई गंडा-ताबीज नहीं। कोई धार्मिक यात्रा-कथा भी नहीं। कहने वाले कुछ भी कहें। मन चंगा तो कठौती में गंगा। मैं कईयों को देखता हूं। खूब धार्मिक बने फिरते हैं। नवरात्रि में कन्याओं को भोजन कराते हैं। भू्रण हत्या के समर्थक नहीं खुद शिकार हैं। एक धेला किसी जरूरतमंद को नहीं देते। इनके घरों में कोई याचक आ जाए तो दरवाजा नहीं खोलते। व्रत रखते हैं और पड़ोसी को जमकर गाली देते हैं। 

अरे ! मन भी और तन भी आकंठ पापों से-कुकर्मों से भरा है और श्वेतपोश बने फिरते हैं। लानत है ऐसी मानसिकता पर और ऐसे त्योहार पर। अजी हां। आपको थोड़े कुछ कह रहे हैं। आप स्वतंत्र है इस पोस्ट को न पढ़ें। पढें तो टिप्पणी न कीजिए। पढ़ें तो जो चाहे टिप्पणी भी कीजिए। विचारों की अभिव्यक्ति है। किसी का अपमान किए बगैर अपनी बात तो कहनी ही चाहिए। क्यों? 

मैं कोई साधू-संत नहीं हूं। मैं मानता हूं कि दांपत्य जीवन के निर्वाह के इन सात सालों में मैंने भी कई बार पतिधर्म का निबाह ठीक से न किया होगा। लेकिन यह मेरी पत्नी को पता है कि मुझे क्या-क्या नहीं करना चाहिए था। वह अहसास कराती भी हैं। मैं सोचता हूं विचारता हूं और खुद को दांपत्य जीवन के सफल निर्वाह के लिए खुद को बदलता भी हूं। मैं भी तो इस पुरुषवादी समाज में ही पला-बढ़ा हूं। लेकिन थोड़ी खुशी इस बात की मुझे है कि मैं कई मित्रों की तरह न खुद पर और न ही अपनी पत्नी की आंखों पर पट्टी चढ़ाता हूं। आप? आपकी तो आप जानें।


23 सित॰ 2014

आधी आबादी का हिन्दी बालसाहित्य

आधी आबादी का हिन्दी बाल साहित्य
 

तराशती है बचपन कहानी के संग
 

-मनोहर चमोली ‘मनु’

भारत की बालसाहित्यकार मानती हैं कि बच्चे देश की अनमोल संपत्ति है। बच्चों का बचपन बचाते हुए ऐसा वातावरण देना, जिससे वे अपने अनुभवों से सीखकर बढ़ें। बच्चों की जिम्मेदारी केवल मां की नहीं पिता की भी है। शिक्षक की भी है और समग्रता में समूचे समाज की है। बालसाहित्य का हिन्दी कहानी लेखन इस बात की पुष्टि करता है कि महिला सिर्फ एक मां, कार्मिक, अभिभावक ही नहीं एक सजग बालसाहित्यकार भी है। उनकी कहानियां इस बात का परिचय देती हैं। उनकी प्रकाशित कहानियां समाज में यह स्थापित करना चाहती हैं कि बच्चे तभी पुष्ट नागरिक बन सकेंगे जब उन्हें शैशवास्था से ही उनकी बढ़ती आयु में सम्मान दिया जाए। उनकी बात सुनी जाए। उन्हें समझा जाए। उन्हें विकास के समान अवसर मिले। बच्चों की आवश्कताओं को न सिर्फ समझा जाए बल्कि उन्हें पूरा भी किया जाए। बच्चों के प्रति दायित्व सिर्फ माता-पिता का ही नहीं है,इस पूरे समाज का है। उनकी कहानियां इस बात की ओर इशारा करती है कि आखिरकार बच्चे देश के लिए विकसित होते हैं। उन्हें सही दिशा न मिले तो वह देश के लिए विध्वंसक साबित भी हो सकते हैं।
प्रस्तुत आलेख इन सभी बातों की पड़ताल करता है। देश भर की उन बालसाहित्यकारों के लेखन की संक्षेप में यहां चर्चा की जा रही है जिन्होंने समय-समय पर हिन्दी में कहानियां लिखी है। यह कहानियां मात्र मनोरंजन करने के लिए ही नहीं लिखी गई हैं। यह कहानी सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक, सामुदायिक प्रतिबद्धता की हस्ताक्षर भी हैं।  यह कहानिया साबित करती हैं कि सबसे पहले एक-एक बच्चे के बचपन की गरिमा को बनाए रखना आवश्यक है।
इन साहित्यकारों की कहानियां कोरे उपदेश नहीं हैं। इनकी कहानियां अंत में संदेश और सीख दे देने भर से अपने कर्तव्यों की इतिश्री भी नहीं करती। इन कहानियों के माध्यम से बचपन को तराशने का महती काम हो रहा है। इनकी कहानियां बच्चों के लिए तो हैं ही,साथ ही अभिभावकों,भाई-बहिनों और शिक्षकों के लिए भी हैं। 
इनकी कहानियों में अनगिनत विशेष बातें उभरती हैं। संक्षेप में कुछ का उल्लेख किया जाना आवश्यक होगा।

  •     प्रत्येक वयस्क को बच्चों के बचपन के साथ खिलवाड़ करने का अधिकार नहीं है।
  • बच्चों की बातों का सम्मान करना सीखना होगा।
  •   बच्चों के बचपन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। यह समझना होगा कि बच्चों की भी अपनी विशेष जरूरतें होती हैं। उन्हें नज़रअंदाज करना घातक होता है।
  •  बच्चों को एक पौधे की तरह बढ़ने देना चाहिए। लेकिन जिस प्रकार एक नन्हें पौधे को जरूरत पड़ने पर हवा, प्रकाश, जल आदि की आवश्यकता पड़ती है। बच्चों को भी समय-समय पर हमारी मदद चाहिए होती है। हम बच्चों की मदद करें। एक मित्र की तरह न कि किसी तानाशाह की तरह। 
  • बच्चे खुश रहेंगे तो उनका स्वस्थ और समग्र विकास होगा। बच्चे घर, परिवार और समाज के कार्यों में सहभागी बनेंगे। निर्देश, आदेश और मारपीट करने से बच्चों में अराजकता ही आएगी।
  •  शिक्षक बच्चों को संस्कारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शिक्षक का काम केवल अक्षरज्ञान देना नहीं है। अक्षरज्ञान के साथ-साथ वह बच्चों में उत्साह,साहस और मानवीय गुणों का संचार भी करता है। शिक्षक का व्यवहार यदि ठीक इसके उलट हो तो बच्चे अराजक हो सकते हैं। बच्चों में हीन भावना घर कर सकती है।
  •  बच्चों के व्यक्तित्व का पूर्ण और सुसंगत विकास केवल मां की ही जिम्मेदारी नहीं है। परिवार के हर एक सदस्य का व्यवहार उस पर पड़ता है। बच्चे को सारी सुविधाएं देने मात्र से भी काम नहीं चलने वाला है। परिवार में खुशी का माहौल होना चाहिए। परिवार के सदस्यों में आपसी प्रेम और सहभागिता जरूरी हो। 
  • बच्चों के लालन-पालन पर भी विशेष ध्यान दिया जाना होगा। अच्छी देख-रेख वाले अभिभावकों के बच्चे ही आगे चलकर अभिभावक साबित होंगे।
  •  बच्चों की सामाजिक सुरक्षा पर भी ध्यान दिया जाना होगा। शैक्षिक वातावरण को भी देखना होगा। अक्षरज्ञान और अच्छे अंक हासिल करने के साथ-साथ वह सहपाठियों से-स्कूल से क्या सीख रहे हैं। इस ओर ध्यान देना जरूरी है।
  •  बेहद कठिन परिस्थितियों में रह रहे बच्चों की ओर भी ध्यान दिया जाना है। आम बच्चों में भी इस बात के संस्कार पड़ने चाहिए कि बीच में ही स्कूल छोड़ने वाले बच्चे या कभी स्कूल न जाने वाले बच्चों के अलावा काम-काजी बच्चों की दुनिया को वे भी जाने। समाज के सभी बच्चों के जीने की स्थितियों में सुधार हो। हम किसी भी बच्चे को नज़रअंदाज न करें।
  •  बच्चों में घर में भी और स्कूल में भी अनावश्यक बोझ लादना और तनाव देना घातक है।
  • बच्चों में छोटों के प्रति प्यार और बड़ों के प्रति आदर के साथ-साथ यह आदत डालना भी जरूरी है कि बच्चों में छोटे-बड़े का भेदभाव न किया जाए। कहीं ऐसा तो नहीं कि छोटा है-छोटा है या बड़ा है-बड़ा है कह-कह कर गैर-जरूरी आदतें बच्चों में ठूंस दी जाए। वहीं इस तरह का अहसास खासकर बालिकाओं में कराकर उनके आत्मसम्मान को ठेस न पहुंचाई जाए।
  • आज के अत्याधुनिक समाज में बच्चों को किसी भी प्रकार के भेदभाव से न गुजरना पड़े। उन्हें किसी प्रकार का दंड न झेलना पड़े। बच्चों के हितों का भी ख्याल रखा जाए। जिन बच्चों को विशेष व आवश्यक संरक्षण और देखभाल जरूरी है, वह दी जाए।
  •   स्कूली बच्चों के साथ-साथ घरेलू बच्चों की उभरती क्षमताओं-प्रतिभाओं का ध्यान रखना है। उन्हें आगे बढ़ाने के लिए विशेष प्रबंध करने हैं।
  •  अभिभावकों को यह भी विचार करना होगा कि क्या वे बच्चों की परवरिश ठीक से कर भी रहे हैं या नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि उनके बच्चे छोटी-छोटी बातों के लिए सुबकते हांे। हीन भावना में न जी रहे हों।
  •  माता-पिता को आत्मावलोकन करना होगा कि क्या वह बच्चे को पर्याप्त समय दे रहे हैं? माता-पिता का बच्चे के प्रति दुव्र्यहार तो नहीं है?
  •  अभिभावकों और शिक्षकों को यह देखना होगा कि क्या वे बच्चों को जबरन या उनकी इच्छा के विरूद्ध ऐसे कोई काम तो नहीं सौंपते जिसे वे बेमन से करते हों।
  • यह देखना जरूरी है कि बच्चों को कक्षा में सजा तो नहीं दी जा रही है? किसी भी तरह से अपमानित तो नहीं किया जा रहा है? 
  •  घर हो या स्कूल। बच्चों को अपने विचार प्रकट करने का मौका दिया जाना आवश्यक है। यही नहीं घर में भी और स्कूल में भी बच्चों की सलाह को भी सुना जाना चाहिए। ऐसे अवसर दिए जाने चाहिए, जब बच्चे अपनी बात रख सकें। बच्चों की राय को भी शामिल किया जाना चाहिए।
  • बड़ों का दायित्व है कि वह देखें कि उनके आस-पास के बच्चों में कोई बच्चा दब्बू तो नहीं बन रहा।
  •   बच्चों के साथ कोई भी,कहीं भी मारपीट न करे। बच्चों को लड़ाई-झगड़ों से दूर रखा जाए। बच्चे के साथ किसी भी तरह की मानसिक और शारीरिक हिंसा न हो।
  • बच्चे की निजता का भी ख्याल रखा जाए। बच्चा है। क्या जानता है? क्या महसूस करता है? यह सोचकर उसकी निजता के साथ किसी भी तरह का खिलवाड़ नहीं किया जाना चाहिए। 
  •  बच्चों के सम्मान और प्रतिष्ठा पर हमला न हो। न ही बच्चों का अपमान किया जाना चाहिए और न ही उपेक्षा की जानी चाहिए।
  • यह मान लेना कि स्वस्थ पारिवारिक वातावरण मुहैया कराना पर्याप्त है। बच्चे समाज का हिस्सा हैं। आखिरकार उन्हें समाज का ही सामना करना है। बच्चों को उनके अनुभव के साथ जीने की आदत बनाने में सहयोग करना चाहिए। उन्हें आस-पड़ोस, दोस्तों के साथ खेलने, बातें साझा करने और मुलाकत करने का अवसर दिया जाना भी जरूरी है।
  • हर संभव विकलांग बच्चों के साथ भी समय बिताएं। भले ही वह बच्चे किसी अन्य के हों। ऐसे बच्चों की ओर से नज़रे फेरना किसी अपराध से कम नहीं। इनकी न तो उपेक्षा की जानी चाहिए बल्कि उनके साथ समय बिताकर, बातचीत कर उनकी क्षमताओं पर विशेष ध्यान देते हुए उन्हें प्रोत्साहित किया जाना आवश्यक है। ऐसा करते समय दया या कृपा का भाव नहीं बरता जाना चाहिए।
  •  बच्चों के कॅरियर के चक्कर में या बच्चों को आदर्श बच्चा बनाने की जुगत में उन्हंे मनोरंजन से वंचित न किया जाए।
  •   बच्चों को धीरे-धीरे ही सही लेकिन यह दवा की मानिंद अहसास कराना जरूरी है कि परिवार की आमदनी क्या है। खर्चें क्या हैं? रुपया कहां से आता है और कहां-कहां जाता है। रुपए का मोल और महत्व धीरे-धीरे बताना होगा। साथ ही रोजगारपरक भाव की ओर उन्मुख कराने से वे अपने कॅरियर का क्षेत्र भी चुन सकेंगे।
  •  अधिक अंक हासिल करना, रैंक लाना, अव्वल रहने की दौड़ के पीछे अभिभावक बच्चों को भी बेवजह तनाव भरी जिंदगी दे रहे हैं। आज के बच्चे इस उधेड़बुन में खो-से गए हैं। उन्हंे समाज में घुल-मिल सकने का भाव जगाना आज आवश्यक हो गया है।
  • रूढ़ हो चुकी प्रथाएं जो बच्चों में अवैज्ञानिकता का भाव पैदा करती हैं, उनका पुरजोर विरोध किया जाना चाहिए। यह तभी संभव होगा जब घर में इन कुप्रथाओं का चलन बंद हो। शिक्षक कक्षा-कक्ष में दकियानूसी बातों-रीतियों के बारे में ठोस तरीके से चर्चा करे।
  •  शिक्षण संस्थाएं बच्चों के मानसिक, नैतिक और सामाजिक विकास के स्तर को सशक्त बना सकती हैं। स्कूल में पाठ्य सहगामी गतिविधियों का आयोजन हो। यह आयोजन केवल कैलण्डर के पर्व-त्योहार पर निर्भर न हो बल्कि रोजमर्रा का अंग बने।
  • घर में,पड़ोस में और स्कूल में अब ऐसा वातावरण चाहिए जिससे बच्चे की योग्यता और क्षमता की न सिर्फ पहचान हो बल्कि उसे तराशे जाने के अवसर भी हों।
  • हर बच्चे के चेहरे में नूर हो। मायूसी से इतर बच्चों केा चेहरे में मुस्कान हो।
  •  अनुशासन के नाम पर अक्सर आज भी कई स्कूलों में बच्चे की मानवीय गरिमा को चोट पहुंचाई जाती है, इस तरह के व्यवहार की निन्दा की जानी चाहिए। अभिभावकों को प्रबलता से विरोध करना चाहिए।
  •  आज के सूचना तकनीक युग में ऐसे शिक्षण की बेहद जरूरत है जो बच्चों को वैज्ञानिक और तकनीकी जानकारी देते हों। बच्चों को नए-नए गैजेट्स से दूर नहीं रखा जाना चाहिए।
  • उपदेशों से इतर बच्चों में जीवन मूल्यों का विकास करने के लिए बड़ों को भी अपने जीवन में इन मानवीय मूल्यों का विकास करना होगा। साथ ही बच्चे अपनी सभ्यता के साथ-साथ दूसरों की सभ्यता के प्रति सम्मान करना सीखे। इसके लिए जरूरी है कि बड़े भी ऐसा माहौल बनाएं।
  • आज व्यक्तिवाद हावी है। लेकिन बच्चों में मैत्री भावना को जगाने के लिए विशेष प्रयास करने होंगे।
  • बच्चों को भी सामाजिक गतिविधियों के आयोजनों में ले जाया जाना चाहिए। बच्चों को भी समाज में जिम्मेदारी भरा जीवन जीने के लिए तैयार करना हमारी जिम्मेदारी है।
  •  बच्चे अपनी क्षमता और उम्र के हिसाब से मस्ती करें,मनोरंजन कर सके। उन्हें इस तरह का माहोल दिया जाना जाना चाहिए।
  •  बच्चों को जोखिम भरा वातावरण न दिया जाए। ऐसा वातावरण देने की कोशिश की जाए जिसके परिणामस्वरूप बच्चे भी मानवता, नैतिकता और दूसरों को सम्मान देने की भावना संजो सकें।
  • बच्चे लड़ाई झगड़ों से दूर रहे। उन्हें इस तरह के वातावरण से दूर रखा जाए। बच्चों को ऐसा वातावरण दिया जाए जिसमें वह समाज में घुलने-मिलने और अपनी बात खुलकर कहने की आदत विकसित कर सके। 
  •    बच्चों को ऐसा मंच भी बारंबार उपलब्ध कराया जाए, जहां वह समाज में रचनात्मक कार्यों के लिए खुद को तैयार कर सके। बच्चों को सांस्कृतिक वातावरण भी दिया जाए।
आधी आबादी की प्रतिनिधि बालसाहित्यकारों में प्रमुख रूप से जिन्होंने बालसाहित्य को चर्चित कहानियां दी हैं। उनमें कुछ का उल्लेख यहां किया जा रहा है।

अरुंधती देवस्थले (गुड़गांव) 

प्रख्यात कथाकार हैं। इनकी कहानियों में भी विदेशी धरती के भाव-बोध पढ़ने को मिलते हैं। कथाकार स्कूली जीवन के साथ ग्रामीण जीवन की खूबियां कहानियों में खूब शामिल करती हैं। बच्चों के स्वभाव पर इनकी एक कहानी है ‘घर अपना सबसे प्यारा‘ ।  इनकी एक अन्य कहानी है ‘नानी की गुड़िया’। यह कहानी बच्चों में और पुरानी पीढ़ी के भावुक संबंधों को चित्रित करती है। कथाकार की कहानियों में बच्चों के संवाद जीवंत दिखाई देते हैं।
  
अंजनी शर्मा की कहानियां आपसी सहयोग और सद्भाव पर अधिक केंद्रित हैं।


अंजू जैन की अधिकतर कहानियांे में विदेशी भूमि और उनके पात्रों का चित्रण मिलता है। लोकशिल्प और लोक व्यवहार उनकी कहानियों का प्राण है। इनकी एक कहानी है ‘चालाक किसान‘। सुखीराम को कटाई के लिए मजूदर नहीं मिल रहे थे, सो उसने एक युक्ति से काम लिया। चोरों ने सारी फसल काट तो ली। लेकिन वह जैसे ही फसल ले जाने लगे, सुखीराम ने शोर मचा दिया। चोर फसल छोड़कर भाग निकले।
 

अंजू गुप्ता (दिल्ली) की कहानियों में प्रकृति, प्रेम, देशभक्ति का चित्रण होता है। वह चाहती हैं कि बच्चे भी प्रकृति से प्रेम करें और अपने देश पर नाज़ करें।
 

अंजली पटेल की कहानियों में राजा-महाराजा के काल की कहानियां खूब मिलती हैं। वह शिकार खेलने जाते राजा और उनके दरबारियों के साथ हुई आकस्मिक घटनाओं से रोचक और आवश्यक भाव-बोध की कहानियां रचने में सिद्धहस्त हैं।
 

अमृता प्रीतम  हिन्दी और पंजाबी साहित्य में विख्यात साहित्यकार। इनकी एक कहानी है ‘जागृति का गीत‘। परी कथाओं के माध्यम से भी बालहित में कुछ कहानियां लिखी हैं।
 

अमृता नवीन की ‘खेल-खेल में’ कहानी यह अहसास कराती है कि हमेशा बच्चों के खेलों से नुकसान नहीं होता। इस कहानी में बच्चे क्रिकेट खेल रहे होते हैं। बाॅल से बदमाश के सिर पर चोट लगती है और वे चोरी नहीं कर पाते। अमृता जी की कहानियां इस बात का ख्याल रखती हैं कि बच्चे केवल शरारतें ही नहीं करते, कई बार अच्छा काम भी करते हैं।    
 

अमृता गोस्वामी बच्चों में अहिंसा का भाव जरूरी मानती हैं। वह हिंसा का परिणाम क्या होता है, छल-कपट से आखिरकार छल-कपट करने वाले को ही नुकसान होता है। इस तरह के जीवन मूल्य उनकी कहानियों में स्थापित होता है। इनकी एक कहानी है ‘कुमति और सन्मति‘। यह कहानी लालच को हतोत्साहित करती है। लालच के परिणामस्वरूप जो दुख मिलता है,उसके पश्चात छगन और मगन इस बुरी आदत को छोड़ने का मन बना लेते हैं। 
 

अपर्णा मजूमदार  ने जीव-जगत की कहानियां खूब लिखी हैं। इनकी कहानियां पशु-पक्षी को पात्र बनाकर मानवीय भूलों की ओर कटाक्ष भी करती हैं और सीख भी देती है। दादा-दादी से लेकर मानवीय रिश्तों की कहानियां भी लिखी हैं। कल्पना की अति उड़ान भरती कहानियां सुंदर बन पड़ी हैं। अपेक्षा मजूमदार बच्चों की सेहत के प्रति भी सजग है। ‘फलों की आपसी खींचतान‘ में यह निष्कर्ष निकलता है कि मौसमी फल ही लाभकारी होते हैं। इस कहानी के माध्यम से फलों की उपयोगिता पर भी बात होती है।
अपर्णा शर्मा  की कहानियां बच्चों के बचपन को सुंदर ढंग से बिताने पर जोर देती हैं। उनकी कहानियों में बच्चों का बचपन बड़ी सरलता और मासूमियत से चित्रित होता है।
आकांक्षा पारे काशिव  (दिल्ली) की कहानियां विविधताओं से भरी होती हैं।  इनकी एक कहानी है ‘बदमाश टोनी’। इस कहानी का केंद्रीय भाव यही है कि बच्चे शैतानी करते हैं। कई बार चोरी भी करते हैं। लेकिन वे स्वयं भी अपनी गलतियों को स्वीकार भी कर लेते हैं। यदि सरलता से और अपनेपन से उनकी गलतियों के साथ व्यवहार किया जाए तो वही बच्चे आदर्श बच्चे बन जाते हैं। जेण्डर आधारित कहानियां बेहद मर्मस्पर्शी बन जाती हैं। आधुनिकता के नई चुनौतियों को भी वह अपनी कहानियों में शामिल करती हैं। 
आभा कुलश्रेष्ठ  (गुड़गांव) समय के साथ अपनी कहानियों में बदलाव करती हैं। इनकी कहानी है ‘नया जीवन’। इस तरह की कहानियांे से वह बच्चों में गलती का बोध कराती हैं। वह भूलों पर विचार करने की वकालत भी करती हैं। आज के दौर के बच्चों की विचित्र बातों का उल्लेख भी उनकी कहानियों में मिलता है।
आभा श्रीवास्तव (लखनऊ) की एक कहानी है ‘नन्हे दोस्त’। आयुष का पक्षी प्रेम देखते ही बनता है। पशु पक्षी भी मानव की भाषा समझते हैं। वक्त आने पर इंसान के काम आते हैं। जीवन चाहे किसी का भी हो, वह सभी को महत्वपूर्ण मानती है। बच्चों में काल्पनिकता जगाने वाली सुंदर कहानियां लिखी हैं।  
आभा चतुर्वेदी  भी विदेशी कहानियों से हमारा परिचय कराती हैं। वे निर्जीव वस्तुओं में प्राण फूंककर जनहित की बातें सामने रखती हैं। इनकी कई कहानियां उपेक्षित वस्तुओं की उपयोगिता पर भी बल देती है। 
आशा  की कुछ कहानियांे में बच्चों के बचपन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। उनकी कहानियों में चित्रित होता है कि बच्चों की भी विशेष जरूरतें होती हैं। उन्हें नज़रअंदाज करना ठीक नहीं है।
आशा जोशी (राजस्थान) की कहानियों में राजा के समय की कहानियां हैं। वे प्राचीन समय के देशकाल और परिस्थितियों की महत्वपूर्ण बातांे को रेखांकित करती हैं। वे ऐतिहासिक संदर्भों से भी बालोपयोगी कथाएं बुन लेती हैं। 
आशा अपूर्वा  विदेशी भूमि की कथाएं खूब लिखती हैं। उनकी कहानियों में लोक व्यवहार और लोक जीवन खूब मिलता है।
आस्था शुभा  अच्छी आदतों को केंद्र में रखकर रोचक कथाएं लिखती हैं। पाठक पढ़कर खुद की आदतों में बदलाव लाने की कोशिश करने में बाध्य हो सकेंगे। 
अर्शिया अली (लखनऊ) वैज्ञानिक समझ की समर्थक हैं। इस सोच की कहानियां लिखती हैं। इसके अलावा वे समाज में व्याप्त अंधविश्वास से बच्चों को दूर रखने की भी समर्थक हैं। बच्चों के स्वस्थ लालन-पालन पर भी उनकी कहानियां हंै। 
अर्चना मिश्र (लखनऊ) की कहानियों में जहां बालोपयोगी सूचनात्मक कहानियां शामिल हैं। वहीं उनकी कहानियां यह बताने की सफल कोशिश करती है कि बच्चों को कच्चा घड़ा समझना बड़ों की भूल है। बच्चे पारिवारिक स्थितियों को अच्छे से समझते हैं और आवश्यकता पड़ने पर वह भी सहभागी बनते हैं। वहीं उनकी कहानियां बच्चों की उपेक्षा न करने की पुरजोर सिफारिश करती हैं। बच्चों को हमारी ही तो मदद चाहिए होती है। बच्चे खुश रहेंगे, तो उनका स्वस्थ विकास होगा और वह घर, परिवार और समाज के कार्यों में सहभागी बनेंगे।
अर्चना सिंह (हमीरपुर हि0प्र0) की कहानियों में विविधताएं हैं। वह हर क्षेत्र में रोचक कहानियां लिख लेती हैं। महात्मा, राजा-रानी, विद्वान-मनीषियों के पात्रों के साथ-साथ पशु-पक्षियों का संसार भी उनकी कहानियों का हिस्सा है। वह इंसानी दुनिया के विविध क्षेत्रों से बालोपयोगी कथाएं लिखती रही हैं। मनुष्यों के विविध स्वभाव और उनके परिणामों को रेखांकित करती रोचक कहानियां लिख रही हैं।
अर्चना सोगानी (राजस्थान) मानवीय गुणों का उभारती कथाएं लिखती हैं। प्रेरक प्रसंगों वाली कथाएं खूब लिखती हैं।
अनीता वैष्णव की कहानियों में इतिहास की झलक मिलती है। बच्चे बीते हुए कल पर भी गौर करने लगते हैं। वह ग्रंथों से बेहद अनमोल संदर्भ खोजकर बालोपयोगी कहानियां लिखती हैं।
अनीता चमोली अनु (उत्तराखण्ड) की कहानियों में हौसला और जोखिम लेने की बात अधिक शामिल रहती है। इनकी एक कहानी है ‘जीवन पाया’। तीन समान आम की गुठलियों में एक गुठली ही वृक्ष बन पाती है। वही गुठली जमीन से बाहर आने का जोखिम उठाती है। इनकी कहानियों में जीव-जगत के व्यवहार से बच्चों को अपनी आदतों में अच्छी आदते अपनाने का मौका मिलता है। 
अनीता जैन  भारतीय परंपराओं की कहानी भी लिखती है। उनकी कहानियों में आधुनिकता के भी दर्शन होते हैं। इनकी एक कहानी है ‘श्रम की सीख’। यह कहानी बताती है कि केवल अमीरी से ही सब कुछ नहीं हासिल हो सकता है। मेहनत आवश्यक अंग है। वह आलस्य को हतोत्साहित करती कहानियां भी लिखती हैं। परिश्रम, धैर्य और एकाग्रता पर केंद्रित कहानियां लिखती रही हैं। इसके साथ-साथ लोक शिल्प, सामाजिक व्यवहार और स्वस्थ चिंतन की कथाएं भी लिखती हैं।
अनुराधा गौतम (लखनऊ) आम से खास हो जाने की कहानियां लिखती है। साधारण पात्र कैसे असाधारण हो सकता है। यह जीवन दर्शन उनकी कहानियों में आता है।
अनुजा भट्ट (नोएडा) आपसी मेलजोल को अधिक महत्व देती हैं। तरकीब निकालकर काम हल करने में बच्चों को बड़ा मज़ा आता है। इस भाव-बोध की कहानियां वे अक्सर लिखती हैं। इनकी कहानियां स्कूली जीवन के साथ-साथ पक्षियों के सहारे बच्चांे में दया, करुणा और एक-दूसरे की सहायता के भाव भरने का प्रयास करती है।
अलका पाठक की कहानियां यह विचार करने पर बाध्य करती हैं कि बच्चों को केवल निर्देश देने भर से काम नहीं चलता। बच्चों के व्यक्तित्व का पूर्ण और सुसंगत विकास तभी संभव है, जब हम सभी विशेषकर अभिभावक और शिक्षक इस दिशा में संयम से काम लें।
इंदु भूषण की कहानियां जीव-जगत के संसार के इर्द-गिर्द भी रहती हैं। राजा के समय की कहानियों के साथ परियों की कथाएं भी लिखती हैं।
इंदु राचन  की कहानियां काल्पनिकता की लंबी उड़ान भरती हैं। बच्चों का सहजता से उचित मार्गदर्शन भी कराती हैं। जीवन की सच्चाईयों से भी परिचित कराती हैं। उनकी कहानियों में छोटा काम भी बड़ा होता है। उनकी कहानियां साबित करती हैं कि हर काम अपनी जगह में महत्वपूर्ण होता है। वह इस संसार में हर जीव की उपयोगिता को भी बेहतर ढंग से प्रस्तुत करती हैं।
इलिका प्रिय पशु-पक्षियों के पात्रों वाली कहानियों की विशेषज्ञ हैं। दादा-दादी, नाना-नानी, सीख-संदेश, पर्व-त्योहार, उल्लास और मस्ती की कहानियां भी खूब लिखती रही हैं। इन्होंने ममता से भरी कहानियां भी लिखी हैं। 
इंद्राणी राय वैज्ञानिक समझ बढ़ाती हुई कहानियां लिखती हैं। किस्सा और संस्मरणात्मक शैली में पठनीय कथाएं लिखती रही हैं।
इस्मत चुगताई प्रख्यात साहित्यकार हैं। उनकी कहानियां बच्चों को भी पूरा सम्मान देने की बात कहती हैं। इन्होंने कहानियों में मेहनत की महानता को रेखांकित किया है।
इंदु तारक (झारखंड) व्यक्तिवाद से सामूहिक भावना को ज्यादा तरजीह देती हैं। सहयोग, सहभागिता, मेल-मिलाप, दोस्ती, परीकथाएं और सपनों की विहंगम उड़ान कराती कहानियां लिखी हैं।
उर्मि कृष्ण (अंबाला) निरंतर बालसाहित्य भी लिख रही हैं। वह अपनी कहानियों में बच्चों की मस्ती को अनिवार्य मानती हैं। उनकी कहानियां इस बात पर जोर देती हैं कि बच्चों की खुशहाली से परिवार में खुशियां संभव है। वह यह भी अहसास कराती हैं कि परिवार में यदि प्रेम और आपसी सहभागिता है, कलह नहीं है, एक-दूसरे के प्रति सम्मान का भाव है तो बच्चे हर स्तर पर अच्छा प्रदर्शन करते हैं।
उर्मिला भार्गव अपूर्वा (दिल्ली) की कहानियां चित्रित करती हैं कि कई बार बड़े ही बच्चों में छोटे-बड़े का भेदभाव करने लगते हैं। यह भेदभाव बच्चों में कुंठा को पैदा कर देता है। ये बच्चा छोटा है, ये बच्चा बड़ा है। बड़ा-छोटा कह-कहकर हम बच्चों के कोमल मन को ठेस ही पहुंचाते हैं।
उषा यादव (आगरा) परीकथाएं अलग तरह का आकर्षण रखती हैं। सपनों की दुनिया से रोचक कहानियां ले आती हैं। आम जीवन के आम पात्र जो उपेक्षित हैं। ऐसे बच्चे जो मुख्य धारा में शामिल नहीं हैं। बच्चों की घर में भी बेहतर भूमिका हो सकती है। इस तरह के अनुभवों को वह कहानियों में शामिल करती हैं। इनकी एक कहानी है ‘नेकी का फरिश्ता‘। यह बच्चों की घर में भूमिका को रोचक ढंग से प्रस्तुत करती है। बच्चे भी पारिवारिक स्थितियों को समझते हैं। आवश्यकता पढ़ने पर आर्थिक स्थिति से निबटने के लिए तैयार भी रहते हैं। ‘बड़ा समोसा‘ खानपान की आदतों पर इनकी एक रोचक कहानी है।
उषा बज्राचार्य वर्मा जीव जगत से बेहद हलकी-फुलकी और चुटीली कहानियां लिखती हैं। छोटे बच्चों के व्यवहार और उनके घर के अन्य परिजनों के साथ होने वाले व्यवहारों पर बेहद मनभावन कहानियां लिखती रहती हैं। 
उषा महाजन (दिल्ली) की कहानियों में दूरदर्शिता के लाभ परिलक्षित होते हैं। उनकी कथाओं में संघर्ष के बाद फल सकारात्मक दिखाई देता है। इनकी एक कहानी है ‘सुख की खोज‘। यह कहानी गांव को शहर से अच्छा बताती है। यह भी कि यदि गांव ही नहीं बचे तो शहर भी नहीं बचेंगे। 
उषा किरण सोनी  की कहानियों में बच्चों के लालन-पालन पर भी विशेष ध्यान देने की बातें शामिल होती हैं। रोचकता के साथ-साथ वह इस चिंतन को भी आगे बढ़ाती है कि यदि बच्चों की परवरिश उचित होती है तो यही बच्चे देश के आदर्श नागरिक बनते हैं। यही बच्चे भविष्य में अच्छी संतान और बेहतर अभिभावक भी साबित होते हैं। 
उषा सक्सेना  (दिल्ली) की कहानियों में सबके हित में चतुराई से काम लेना शामिल होता है। उनकी कहानियां बच्चों में कौशलात्मक विकास के लक्षणों की बात करती है। बस उन्हें पहचानना अभिभावकों-शिक्षकों की जिम्मेदारी है। देश प्रेम, परी, जीवजगत की कहानियां लिखती रही हैं।
उमा बंसल की कहानियां बच्चों की सामाजिक और शैक्षिक सुरक्षा पर ध्यान देने की बात कहती नज़र आती हैं। इसके अलावा उनकी कहानियां उन बच्चों की भी बात करती है जो कठिन परिस्थितियों में रह रहे हैं। पशु पक्षी के बहाने चतुराई और केवल अपने लिए ही चतुराई पर सूक्ष्म अवलोकन करती कहानियां लिखी हैं।
उमा तिवारी की कहानियां बढ़ते बच्चों के जीने की स्थितियों में सुधार किए जाने की बात कहती हैं। इनकी कहानियां अप्रत्यक्ष तौर पर अभिभावकों और शिक्षकों को अपने स्वभाव में लचीलापन लाने की विनम्रता भी करती नज़र आती है।
उज्ज्वला केलकर की कहानियां बच्चों कोेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेे अनावश्यक बोझ और तनाव देने का विरोध करती नज़र आती है। वह यह भी बताने की कोशिश करती हैं कि यह बोझ और अनावश्यक तनाव बच्चों के लिए ही नहीं समाज के लिए भी घातक है।
उज्ज्वला सिसोदिया जालना लोभ, बुराई, झूठ आदि पर बेहतरीन कहानियां लिखती रही हैं। यह कहानियां समग्रता के साथ समाप्त होती हैं।
कुसुमलता सिंह (दिल्ली) की एक कहानी है ‘गीत का असर’। इस कहानी में चुन्नी व्यापारी को सबक सिखाने का किस्सा है। दूसरों को बेवकूफ समझने की गलती करना ही मूर्खता है। दूसरों का मजाक उड़ाना गलत बात है। बच्चों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। इस तरह के भाव बोधों की वे रोचक कथाएं लिख चुकी हैं। कुसुमलता सिंह आपसी संबंधों-रिश्तों पर बेहतरीन कहानियां लिखती हैं। ‘मेलजोल वाली कोठी’ ऐसी ही कहानी है। दो भाईयों के बीच घर में दीवार बनने और उसमें सीढ़ीदार रास्ता बनाने की बात ने कहानी को भावपूर्ण बना दिया है। बच्चों में अपनत्व के भाव जगाने का काम भी कहानियां बेहतर ढंग से करती हैं।
 
कृष्णा नागर  की कहानियां बड़ी सरलता से बच्चों में समानता का भाव भरने की बात कहती हैं। वह अप्रत्यक्ष तौर पर बच्चों को किसी भी प्रकार के भेदभाव या दंड से दूर रखने की बात कहती है।
कृष्णा अग्निहोत्री  बेहद काल्पनिक किन्तु पठनीय कहानियां लिखती हैं। उन्होंने गुदगुदाती कहानियां और लोक व्यवहार की कहानियां भी लिखी हैं।    
कंचन सोनी  झूठा आत्मविश्वास, अतिआत्मविश्वास और दूसरों को कमतर आंकने वाले पात्रों पर आधारित जिज्ञासापरक कहानियां लिखती हैं।
कमल कुमार  की कहानियां बड़ी सरलता से बच्चों की उपेक्षा को चित्रित करती हैं। इन कहानियों में बच्चों के हितों का ख्याल रखने की सिफारिश स्वतः ही आ जाती है।
कमला चमोला की कहानियां कुछ बच्चों को आवश्यक संरक्षण और देखरेख की आवश्यकता पर बल देती हैं।
कविता विकास  ऐतिहासिक संदर्भों की कहानियां लिखती रही हैं। राजा के समय की कहानियों में लोक हित बड़े रोचक तरीके से प्रस्तुत करती हैं।
कामाक्षी शर्मा (दिल्ली) हास परिहास से परिपूर्ण गुदगुदाती बालोपयोगी रचनाएं लिखती हैं। बच्चों की चुलबुली शरारतों को वह बड़ी मासूमियत से रेखांकित करती हैं। ‘गुम हुए अक्षर‘ कहानी में चेतन एक छात्र है उसकी वाकपटुता देखते ही बनती है। स्कूली मस्ती को वह प्रबलता से रखती हैं।
कनिका सचदेवा (कानपुर) की कहानियां अनूठे अंदाज की हैं। वह स्कूली बच्चों के साथ-साथ घरेलू बच्चों की उभरती क्षमताओं का ध्यान रखने की बात कहती हैं। हर बच्चें में कोई न कोई प्रतिभा होती है। उसे पहचान कर आगे बढ़ाने के लिए विशेष प्रबंध करना चाहिए। इस पर आधारित कहानियां विशेष हैं।
कामना सिंह (दिल्ली) लोकप्रिय लेखिका हैं। वे हर किसी को अच्छा मानती हैं। हर किसी में एक नहीं कई गुण होते हैं। उन गुणों की अपेक्षा करते हुए उनके अवगुणों पर ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए। गुणों की खुलकर प्रशंसा होनी चाहिए। इन बातों को वे अपनी कहानियों में शामिल करती हैं। परियों की भी कहानी लिखती रही हैं। इनकी कहानी है ‘फूलों का गीत‘। प्रकृति से प्रेम केवल बड़ों का क्षेत्र नहीं है। जल आधारित कहानियां लिखी है। कुछ कहानियां परियों पर भी केंद्रित हैं। तार्किक कहानियां लीक से हटकर लिखी हैं।
कौशल शर्मा  की कहानियां आज के बच्चों के इर्द-गिर्द हैं। कहानियां यह बताने की कोशिश करती है कि अभिभावकों को यह भी तय करना होगा कि क्या उनके बच्चों की परवरिश ठीक से हो भी रही है कि नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि वह छोटी-छोटी बातों के लिए सुबकता हो। हीन भावना में न जी रहा हो। सवाल उठाती कहानियां विशेष हैं।
कमलेश तुली (दिल्ली) की कहानियां इस बात पर विशेष जोर देती हुई प्रतीत होती है कि आज के माता-पिता बच्चे को पूरा समय भी दे रहे हैं कि नहीं? वह बच्चों को भरपूर समय न देने से उपजी समस्याओं को भी उठाती है। 
कुसुम खरे  की कहानियां बच्चों को जबरन काम पर भेजने का विरोध करती हैं। उनकी कहानियां इस बात की चिंता करती हुई प्रतीत होती है कि कहीं कोई बच्चा दब्बू तो नहीं बन रहा? बच्चों के साथ बेवजह मारपीट तो नहीं हो रही। बच्चे की निजता पर भी उनकी कहानियां बात करती है। बच्चों के सम्मान और प्रतिष्ठा पर हमला न हो। इस तरह की चिंताएं उनकी कहानियों में शामिल होती है।
कुसुम (उ0प्र0) की कहानियों में पर्व-उत्सव का उल्लेख होता है। वहीं गरीबी, बेकारी आदि पर भी वह कथाएं लिख चुकी हैं।
कुसुम अग्रवाल (दिल्ली) स्कूली जीवन से जुड़ी कथाएं लिखती हैं। वह स्कूली जीवन में कक्षा में सजा देना, बच्चों को अपमानित करना विषयों पर पर भी कहानियां लिखती हैं।
कनुप्रिया जी की कहानी है ‘खुश खुश ने चुराया सूरज‘ । तभी से ऐसा होता है इस शैली की कहानियों के लिए वह प्रसिद्ध है। मिथक, फंतासी और प्राचीनकाल की कथाएं लिखती रही हैं। 
किरण बाला (मंदसौर) की कहानियों में बालोपयोगी सूचनाएं और बच्चों की रुचियां चित्रित होती हैं। उनकी कहानियां मेहनत और अनुशासन प्रिय हैं। ‘टिकुली की छतरी’ किरण जी की एक कहानी है। साधारण परिवार की टिकुली तन्वी को सीवर के गडढे से निकालती है। मामूली बच्ची की साहसिकता का रोचक वर्णन है। दूसरों की सहायता करने वालों को हर कोई सम्मान देता है।
कल्पना कुलश्रेष्ठ (अलीगढ़) की कहानियां बच्चों में सैर-सपाटा करने की हाॅबी विकसित करना चाहती हैं। वह फंतासी कहानियां भी लिख चुकी हैं। सपनों की उड़ान के साथ-साथ उन्हें साकार करने पर बल देती हैं। ‘मौसी का घर’ प्रदूषण को लेकर वैज्ञानिक समझ का विस्तार भी करती है। बालमनोविज्ञान की अच्छी समझ रखते हुए आज की नई दुनिया के बाल किस्से कथाओं में पिरोए हैं।

कल्पना तारे (रायपुर-छत्तीसगढ़) की कहानियां बताती हैं कि हमें बच्चों को अपने विचार प्रकट करने का मौका देना चाहिए। वह बताती हैं कि घर में बच्चों की सलाह को भी सुना जाना चाहिए। वह कहती हैं कि क्या घर में बच्चों ऐसे अवसर दिए जा रहे हैं जब वह अपनी बात रख सकंे? बच्चे कई बार बेहद उपयोगी राय दे देते हैं। उनकी राय को भी शामिल किया जाए।
कल्पना श्रीवास्तव  (दिल्ली) की कहानियां बच्चों में संस्कार डालने वाली कथाओं के लिए जानी जाती रही है।
कल्पना गोस्वामी (जयपुर-राजस्थान) की कहानियां इस बात को खोजती हैं कि कही माता-पिता ही तो बच्चे के प्रति दुव्र्यहार नहीं कर रहे? वह चाहती हैं कि बचपन को जीने का पूरा अवसर बच्चांे को मिलना चाहिए।
क्रांति कल्पना की कहानियां अलग तरह की आधुनिक चुनौतियों को प्रस्तुत करती हैं। उनकी कहानियां चिंतित हैं कि आजकल माता-पिता कामकाजी हैं। इस वजह से वह अपने बच्चों को समय नहीं दे पा रहे। वह पुरजोर वकालत करती हैं कि बच्चों को पिता भी समय दे। माता-पिता दोनों का समय देना बच्चे की परवरिश के लिए आवश्यक है। नैतिक मूल्यांे पर आधारित कहानियां भी लिखी हैं।
गरिमा किरौला ( उत्तराखण्ड ) सूचनात्मक और तथ्यात्मकता के साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाती हुई कहानियां लिखती हैं।
गरिमा श्रीवास्तव  (हैदराबाद) प्रख्यात लेखिका हैं। उनकी बाल कहानियां विविधताओं से भरी हंै। फंतासी के साथ-साथ काल्पनिकता की रोचक कहानियां भी लिखी हैं। लयात्मक कहानी भी लिखती हैं।
गरिमा गोस्वामी (दिल्ली) की कहानियां बच्चे के साथ मानसिक और शारीरिक हिंसा नहीं चाहती। वह चाहती हैं कि बच्चों का अपमान न हो। किसी भी दशा में बच्चों की उपेक्षा न हो।
गिरिजा कुलश्रेष्ठ की कहानियां पक्षियों पर दया करने का भाव जगाती है। वह बच्चों का ध्यान इस ओर भी दिलाती है कि उनके माता-पिता रोजी-रोटी के चक्कर में बहुत संघर्ष करते हैं। वह आम बच्चों को कहानी का मुख्य पात्र भी बनाती हैं।
गीतिका  की कहानियों मंे पारिवारिक वातावरण मिलता है। वह बच्चों को अपने हमउम्र दोस्तों के साथ खेलने की आदत को जरूरी समझती हैं। बच्चों को अपने अनुभवों की बातें साझा करने का अवसर भी देना जरूरी समझती है।
गीतू की कहानियों में आम बच्चों की बातों के साथ कुछ गप्प कथाएं भी शामिल हैं।
रूचि सिंह  उपेक्षित बच्चों के साथ विकलांग बच्चों को अपनी कहानियों का पात्र बनाती है।  वह हर बच्चे की विशिष्ट मानती है। बच्चों की उपेक्षा न हो और उनकी क्षमताओं पर विशेष ध्यान देना है। यह उनकी कहानियों में शामिल रहता है। वह बच्चों को प्रोत्साहित करती है उन पर किसी प्रकार की दया नहीं बरसाना चाहती।
ऋतु मिश्रा  अपनी कहानियों में बेहद सूक्ष्म आदतों को विकसति करती हुई उसके गुण-अवगुण पर इशारा करती है। इनकी कहानी ‘अगर कांटे न होते’ गुलाब के अहंकार को चकनाचूर करती है। राजा के हाथ में कांटा चुभता है तो राजा फूल के पौधे को ही उखाड़ने का आदेश दे देता है। इस तरह की कहानियों से वे खुद पर न इतराने, माया-मोह पर अहंकार न करने का संदेश देती हैं।
ऋचा (दिल्ली) सीख-संदेश के साथ-साथ बच्चों के मनोरंजन का ध्यान रखने पर भी बल देती है।
ऋतुश्री (गाजियाबाद) की कहानियां प्रेरक व्यक्तित्वों के जीवन से बालमन हेतु प्रेरक कथाएं लिखती हैं।
क्षमा शर्मा  (दिल्ली) प्रख्यात साहित्यकार हैं। बच्चों के लिए नए संदर्भों की बेहतरीन कहानियां लिखती रही हैं। ऐतिहासिक संदर्भ, ग्रन्थ, जातक कथाएं भी लिखती रही हैं। बच्चों के वास्तविक संवाद उनकी कहानियों की विशेषताएं हैं। वह आज की नई शब्दावली कहानियों में लाती रही हैं। परियों के संदर्भ को आज के बच्चों की जरूरतों के साथ जोड़ती हैं। उनकी एक कहानी है ‘खेलने का आइडिया’। यह कहानी आज के बच्चों की वास्तविक जीवन को बेहतर ढंग से उभारने में सफल होती है।
क्षितिज शर्मा   जी की एक कहानी ‘दादा जी का आशीर्वाद’। यह कहानी बच्चों का बड़ों के साथ व्यवहार पर आधारित है। इनकी कहानियों में साहस, रोमांच और एक दूजे की सहायता का भाव चित्रित होता है। इनकी एक और कहानी है ‘खेल का मैदान‘ । यह कहानी जंगल की महत्ता को सुंदर ढंग से परिभाषित करती है। क्षितिज शर्मा परंपरा से हटकर नए शिल्प में कहानियां लिखती हैं। 
चित्रलेखा अग्रवाल  (मुरादाबाद) का बाललेखन विविधताओं से भरा है। जीव-जगत से लेकर वे उत्सव, त्योहार और देश प्रेम की कथाएं भी लिखती रही है। तभी से ऐसा होता है शैली उनकी बहुपरीचित है। बच्चों के गुणों को उभारने वाली कथाएं भी चर्चित हैं। स्कूली जीवन को बेहतर ढंग से चित्रित करती हैं। उनकी एक कहानी है ‘नई कापियां‘। कथाकार आज के बच्चों की दुनिया के बेहद निकट हैं। 
चंपा शर्मा अनछुए पहलूओं पर कथाएं लिखती हैं। इनकी कहानी है ‘आइसक्रीम और ओवरकोट‘। इस कहानी में बर्फ के पिघलने का विज्ञान बड़ी सरलता से और बेहद रोचकता के साथ शामिल है। वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भरी कथाओं के लिए चर्चित हैं।
जयंती रंगनाथन ( दिल्ली ) ये विविधताओं से भरी कहानियां लिखती हैं। आज के समय के बच्चों की भाषा के साथ-साथ उनके जीवन की चुनौतियों को भी नए अंदाज मंे कहानियों में पिरोती हैं। परियों के बहाने नए समय की बातें भी उनकी कहानियों में शामिल होती हैं। फंतासी के साथ-साथ वे जीवन मूल्यों के प्रति भी गंभीर है। ईमानदारी,परोपकार और दूसरों की सहायता करने वाले आम इंसान को वह अपनी कहानी में नायक बनाती है।
तरन्नुम फातिमा न्याय आधारित व्यवस्था के प्रति बेहद आस्थावान है। राजा और प्राचीन समय की कथाएं भी लिखती हैं। 
तेजी ग्रोवर  की कहानियां बच्चों के मानसिक स्तर पर बात करती हैं। वह बच्चों में नैतिक और सामाजिक विकास भी चाहती हैं। 
दीपा अग्रवाल की कहानियां बच्चों में खेलों को वरीयता देती हैं। इनकी एक कहानी है ‘सबसे निराला घर‘। इस कहानी में उन बच्चों को केंद्रित किया गया है, जो गुस्से में या किन्ही कारणों से घर से भागने का मन बना लेते हैं। बात-बात पर गुस्सा होते हैं। लेकिन घर से भागने के बाद जो जीवन की असल सच्चाई है, वह सामने आती है, तब हर किसी को अपना घर ही सबसे अधिक याद आता है। इनकी कहानियां बच्चों में गंभीरता भी होती है, इसकी पुष्टि करती नज़र आती हैं। 

दीपिका हिंदवान  की कहनियों में आम बातों का उल्लेख भी रहता है। वहीं वह बच्चों को धीरे-धीरे रोजगारपरक भाव की ओर उन्मुख कराने पर भी जोर देती हुई दिखाई देती हैं।
दुर्गेश्वरी शर्मा (भीलवाड़ा राजस्थान) विदेशी कथाएं भी लिखी हैं। अनाज, फल आदि के प्रचलन की रोचक कहानियां गढ़ती हैं। उनकी एक कहानी है ‘वह तो चावल था‘ । इस कहानी में पहले चावल नहीं उसकी भूसी को खाने की परंपरा थी। फिर ऐसा क्या हुआ कि भूसी छोड़ चावल खाने की शुरूआत हुई। इस तरह के इमेजिनेशन बच्चों के लिहाज से बेहद जरूरी हैं। स्वास्थ्य संबंधी कि बच्चों में क्या जरूरी हो, इस पर भी इनकी कहानियां रोचक हैं।
महादेवी वर्मा प्रख्यात लेखिका ,कवयित्री। इन्होंने भी बालसाहित्य को अपनी कई अनमोल रचनाएं दी हैं। ‘नीलू’ उनकी प्रसिद्ध कहानी है। जानवरों के प्रति उनका अगाध प्रेम किसी से कहां छिपा है। इस कहानी में स्थापित होता है कि जानवर भी प्यार के भूखे होते हैं। माता-पिता और पारिवारिक सदस्यों के साथा बच्चों का चित्रण उनकी कहानियों में सुंदर ढंग से चित्रित हुआ है। 
मधु सिंह की कहानियां समाज में घुल-मिल सकने का भाव जगाती हैं। पुरानी परम्परागत प्रथाएं जो बच्चों में अवैज्ञानिकता का भाव पेदा करती हैं उनका पुरजोर विरोध करती हैं।
मृणालिनी श्रीवास्तव (दिल्ली) की कहानियांे में विशेषकर जासूसी कथाओं की खूब धमक है। कई रोचक कहानियां लिखी हैं। वह विविध क्षेत्रों के पात्रों को शामिल करते हुए कहानी लिखती हैं। धर्म, ग्रंथ, आस्था और दुनिया के विचित्र स्थलों को आधार बनाकर कहानियां लिखती हैं।
मृणालिनी (बिहार) की कहानियों में बच्चों की लापरवाहियों का चित्रण होता है। वह बच्चों की इन लापरवाहियों के किए जाने के बाद उन पर पछतावा की बात भी स्वीकारती हैं। वह बच्चों की मस्ती को भी अनिवार्य तत्व मानती है। उनकी कहानियों में बच्चों के बड़ेपन के उदाहरण भी शामिल होते हैं।
मृणाल पांडे (उत्तराखण्ड) ने बालसाहित्य को अपनी महत्वपूर्ण सेवाएं दी हैं। बच्चों के नटखटपन-बालपन से जुड़ी रोचक कहानियां बालसाहित्य को उन्होंने दी है। काल्पनिकता का बेजोड़ समावेश करने में वे माहिर हैं। राजा चांद पर  इनकी एक बेहतरनी काल्पनिकता से भरी कहानी है।
मृदुला हासन इनकी कहानियां पशु-पक्षी को पात्र बनाकर नैतिकता का पाठ पढ़ाती हैं। कई कहानियां बुरे का अंत बुरा बताती हैं। रोचकता के साथ-साथ मननीय भी है। इनकी कहानियों में ऐसे स्कूल चित्रित होते हैं, जहां अनुशासन के नाम पर बच्चे की मानवीय गरिमा को चोट पहुंचती है। यह कहानियां ऐसे स्कूलों और उन स्कूलों में पढ़ा रहे शिक्षकों के कार्य व्यववहार की निन्दा करती हैं।
मृदुला पाण्डे  वरिष्ठ कथाकार हैं। प्राचीन कथाओं को कहने का विशेष अंदाज है। संस्कारपरक और मूल्यपरक कथाओं में सिद्धहस्त हैं। 
मृदुला सिन्हा (दिल्ली) ग्रामीण परिवेश की कहानियां लिखी है। मदद, सहायता, सहयोग पर कई कहानियां लिखी हैं। बच्चे भी बड़े-बड़े काम कर लेते हैं। इनकी कहानी है ‘खेल खेल में प्याऊ‘। यह बच्चों के कोमल मन में दूरदर्शी सोच को भी इंगित करती है। 
मृदुला गर्ग  (दिल्ली) बच्चों के घर परिवार से लेकर स्कूली जीवन पर भी रोचक कथाएं लिखती हैं। वह चाहती है कि बच्चों को ऐसा वातावरण स्कूल में और परिवार में मिलना चाहिए, जिससे बच्चांे की योग्यता और क्षमता दोनों का विकास हो सके। इनकी कहानियां चाहती हैं कि बच्चों के चेहरे में  मायूसी की जगह मुस्कान दिखाई दे।
मन्नू भंडारी-वरिष्ठ साहित्यकार हैं। इन्होंने भी बालसाहित्य को रोचक कहानियां दी हैं। ‘मां की ममता’ उनकी प्रसिद्ध बालकहानी है। यमदूत से बैलों को वापिस लाने की कथा है। ‘नहले पर दहला‘ भी एक रोचक कथा है। ठगी करने वालों को सबक सिखाया जाना चाहिए। यह इस कहानी में मजेदार ढंग से प्रस्तुत हुआ है।
ममता कालिया- हिंदी की वरिष्ठ साहित्यकार हैं। उन्होंने भी बालसाहित्य को बेहतर कहानियां दी हैं। उनकी कहानी ‘देबू का गुस्सा’ बच्चों के मूल स्वभाव को चित्रित करती है। भाईयों के प्रति प्रेम का प्रदर्शन सुंदर तरीके से आया है। उनकी एक कहानी और है ‘बोबो‘। बोबो अपने कामकाजी मातापिता की तरह जीवन नहीं जीना चाहती। जीवन के प्रति बच्चों का अपना स्वतंत्र नजरिया भी होता है। यह इस कहानी में बड़ी सरलता से आया है। ‘पेड़ पर मोबाइल‘ आधुनिक बच्चों के परिवेश की कहानी है । स्कूल में मोबाइल नहीं ले जाना चाहिए। बच्चों ने यह निर्णय लिया। बच्चों की दिलेरी और मासूमियत पर भी कहानियां लिखी हैं।  
मालती शर्मा (पूणे,महाराष्ट्र) की कहानियां विविधता से भरी हैं। धर्म क्षेत्र से मानवीय मूल्यों पर आधारित संदर्भों की कई कहानियां इन्होंने लिखी हैं। आस्था पर आधारित कथाएं लिखती रही हैं। परोपकार, दया, नैतिकता पर रोचक कथाएं लिखी हैं। इनकी कहानियां बच्चों में नैतिकता का विकास चाहती हैं। 
ममता रानी बडोला दुनिया के अचरजों पर, सैर-सपाटा पर और जीव-जगत के माध्यम से बच्चों के लिए अच्छी बातों का अनुकरण कर लेने वाली कथाएं बुनती रहती हैं। 
मीनाक्षी शर्मा  वैज्ञानिक और तकनीकी जानकारी देने वाले स्कूलों को कहानियों में चित्रित करती हैं। इनकी कहानियों में शिक्षक मुख्य पात्र के रूप में उभरते हैं। वह स्कूली जीवन में शिक्षकों की भूमिका को भी फोकस करती हैं।
मनीषा कुलश्रेष्ठ प्राचीन कथाएं लिखी हैं। मानवीय मूल्यों का विकास चाहती कहानियां लिखती रही हैं। बच्चों की ज़िद पर भी कहानियां लिखी हैं।
माधुरी शास्त्री  की कहानियां समाज में जिम्मेदारी भरा जीवन जीने के लिए बच्चों को तैयार करना चाहती हैं।
माया सोनी की कथाओं में मेलजोल से रहने की बात कही गई है। इसके साथ-साथ एक-दूसरे की मदद करने वाली कथाएं भी वह लिखती रहती हैं। पशु-पक्षियों के सहारे बड़ी से बड़ी बात आसानी से कह जाती हैं।
माया जोशी  की कहानियां बच्चों को सांस्कृतिक और वैज्ञानिक गतिविधियों की ओर उन्मुख करती हैं। बच्चों की मेधा बढ़ाने और सार्वभौमिक विकास की ओर अग्रसर होने के अवसर जुटाने की भी बात करती हैं।
माशा  (दिल्ली) जी की एक कथा है ‘गिनती‘। मोटी बुद्धि का जिन्न आज भी गिनती गिन रहा हैै। यह एक रोचक कथा है। जिन्न बेहद ताकतवर है। कैसे उसे बुद्धि से उलझाया जा सकता है? यह इस कथा में आया है। विदेशी भूमि की कथाओं के साथ-साथ राजा-रानी की कथाएं भी लिखती रही है। आपसी सहायता और सद्भाव को वह अधिक स्थान देती है। सूचनात्मक कथाएं भी खूब लिखती हैं। 
मालविका (दिल्ली) की कहानियां बच्चों में मैत्री भावना को जगाने का काम करती हैं।
मिलन गोयल (दिल्ली) की कहानियां मे ंबच्चों में जीवन मूल्यों का विकास करना प्रमुखता से आता है।
मोनिका जैन की एक कहानी है ‘सबके हित में’। बच्चे भी छोटी-छोटी गलतियों पर ध्यान देते हैं। इस कहानी में बच्चे बड़ों को अनावश्यक बिजली खर्च करने की हिदायत तक दे देते हैं।
मोनिका गुप्ता (हरियाणा)रिश्तों की कथाकार हैं। वे बच्चों के बीच आत्मीय संबंधों का खुलासा भी करती हैं। उनकी एक कहानी है ‘भईया‘। भाई-बहिनों में कभी-कभार तकरार-नोंकझोंक हो ही जाती है। लेकिन एकदम से वह प्यार में भी बदल जाती है। यह कथाकार बेहद सरल तरीके से गहरे तक रिश्तों की पड़ताल कर लेती हैं। दोस्ती से लेकर झगड़ों के भावपूर्ण कथाएं कहना आसान नहीं। वह भी तब जब उनका अंत सकारात्मक हो। मोनिका गुप्ता की कहानियों में बालिकाओं की मनस्थिति का सूक्ष्म अवलोकन मिलता है।
मानसी शर्मा (हनुमानगढ़-राजस्थान) बच्चे अपनी सभ्यता के साथ दूसरों की सभ्यता के प्रति सम्मान करना सीखे। इसके लिए जरूरी है कि बड़े भी ऐसा माहौल बनाएं। मानसी जी की कहानियां गंगा-जमुनी संस्कृति की पक्षधर हैं।
मुबीन बानो की कहानी ‘तरबूज में सोना‘ ठगी और लालच पर केंद्रित है। वह मानवीय दुर्बलताओं पर विशेष नज़र रखती है। साथ ही उनका हश्र भी नायाब तरीके से कहानियों में लाती हैं।
मेघा जैन की कहानियां तुलनात्मक नज़रिया विकसित करती हैं। ‘एक हल्दी एक सौंठ‘। यह कहानी प्राचीन कहानी कहने के शिल्प की याद दिलाती है। दो में तुलना। देखा-देखी और नकल करने के बावजूद भी व्यवहार के अंतर के कारण एक को लाभ होता है और दूसरे को नुकसान। बच्चों में समीक्षात्मक रवैया विकसित करती कहानियां लिखती हैं। 
मेधा नौटियाल प्रकृति के बिंब,भाव और बोधों का इस्तेमाल अपनी कहानियों में करती हैं। ‘पहाड़ बर्फ‘ इनकी एक कहानी है। पहाड़ आधारित कहानियां लिखती हैं।
वंदना अग्रवाल जी की कहानियों में बच्चों की नादानियांे का चित्रण बखूबी मिलता है। बच्चे गलतियां तो करते हैं लेकिन खुद-ब-खुद गलतियों से सीखते भी हैं। ‘गलती‘ कहानी में प्रण और पुण्य स्कूल से बंक मारकर फिल्म देखने जाते हैं। फिर कुछ ऐसा होता है कि वे दोनों अरुणिमा को एक एक्सीडेंट से बचाते हैं, लेकिन बाद में दोनों को अहसास होता है कि स्कूल से बंक मारकर फिल्म देखने जाना गलत था। 
वन्दना गुप्ता  की कहानियां बच्चों की आयु वर्ग के स्तर पर रोचक कहानियां लिखती है। उनकी कहानियां कहती हैं कि बच्चों को अपनी क्षमता और उम्र के हिसाब से मस्ती करने देना चाहिए। बच्चे अपना स्वस्थ मनोरंजन कर सकें इसके लिए बड़ों को माहोल देना चाहिए।
वृंदा गांधी  की कहानियां बच्चों को रचनात्मक बनाने पर अधिक जोर देती हैं। बच्चे भी समाज में रचनात्मक कार्यों के लिए खुद को तैयार करने का प्रयास करें। इस तरह की कहानियां प्रायः कम ही लिखी जाती रही हैं। 
विमला भण्डारी (राजस्थान) जी की कहानियों में बालिकाओं के जीवन का चित्रण बेहद सूक्ष्मता से आता है। पशु-पक्षी के माध्यम से हर जीव का मोल है, यह बात सरलता से आती है। उनकी कहानियों में जीवन के प्रति संवेदनशीलता दिखाई देती है। आपसी सहयोग की भावना कहानियों को सशक्त बनाती है। 
विमला  की कहानी में पशु-पक्षियों की समझदारी रोचक ढंग से आती है। उनकी कहानियों में चालाकी से बिगड़े काम सुधरने का वर्णन रोचकता के साथ आता है। उनकी कहानी है ‘सुनहरे मोती‘। अकल्पनीय किन्तु रोचकता के साथ अमानवीयता को हतोत्साहित करती कहानी। लालच की प्रबल विरोधी हैं।
विभा देवसरे (गाजियाबाद) की कहानियां तेजी से बदल रही दुनिया और कार्य संस्कृति का चित्रण करती हैं। इनकी एक कहानी है ‘जंगल ही भला‘। यह कहानी कस्बाई संस्कृति, शहरीकरण के कारण अपनी जड़ों से बिछड़ने का दर्द भी बयान करती है। इनकी कहानियों में विशेष तौर पर यह भाव अवश्य दिखाई पड़ता है कि हम जहां हैं, उससे प्यार करें। आधुनिकता की दौड़ में अपना मूल न छोड़ें। प्राचीन काल की परिस्थितियों का वर्णन करती हैं।  नवीन पुरानी परंपराएं और पशु-पक्षी आधारित कथाएं भी लिखी हैं।
विभा जोशी (दिल्ली) की कहानियां पशु-पक्षी के जीवन की मार्मिकता को चित्रित करती हैं। इनकी एक कहानी है ‘नंनू और मिट्ठू मियां‘। बच्चे जानकारी के अभाव में पक्षियों को पालने की जिद कर बैठते हैं। लेकिन जब स्वयं उनकी आजादी की बात आती है तो वह समझ लेते हैं कि वन्य जीवों को कैद करना गलत है। वर्तमान समाज की विसंगतियों और बच्चों के बड़े सवालों पर भी कहानियां लिखी है।
विभा खरे  की कहानी ‘बारिश का एक दिन’ मस्ती में भर देती है। सुरभि बारिश में भीगना चाहती है। कहानी के अंत में उसक मम्मी भी उसका साथ देती है। बच्चों की शरारतों का सुंदर चित्रण करना विभा खरे जी को बखूबी आता है।
विजय लक्ष्मी की कहानियां चाहती है कि बच्चे लड़ाई झगड़ों से दूर रहे। वह बच्चों की खुशियों को उत्सव के तौर पर मनाने का चित्रण कर लेती है।
वर्णिका बत्रा (जबलपुर म0प्र0) की कहानी है ‘सुधर गया गज्जू‘। बच्चों की आदतों में भिन्नता होती है। उनमें सुधार की संभावनाएं भी होती हैं, बशर्तें बड़ों का नजरिया सकारात्मक हो। आधुनिक भावों से भरी कहानियां लिखती हैं। 
वीणा श्रीवास्तव  (लखनऊ) भी बच्चों में अच्छी आदतों को सर्वोपरि मानती हैं। उनकी कहानियों में गलत काम का परिणाम बुरा होता है और अच्छे काम का नतीजा अच्छा ही होता है, प्रबल रहता है। लोक व्यवहार की कथाएं भी वे लिखती हैं। प्राचीन कथाओं को भी नए संदर्भ के साथ जोड़कर लिखती हैं।
वीणा जैन (बंगलौर) प्रकृति और प्रेम की सुंदर कहानियों के लिए प्रसिद्ध हैं। इनकी कहानियों को पढ़कर बच्चे अनायास ही प्रकृति के रहस्यों की ओर उन्मुख होंगे। 
वीणा गुप्ता (फरीदाबाद) तीज-त्योहार आधारित कथाएं खूब लिखती हैं। दोस्ती के लाभ पर भी कहानियां लिखी हैं। ‘लाल कार’ जासूसी कथाओं में शामिल की जाती है। नन्हा बंटी जज साहब की जान बचाता है। कुल मिलाकर बच्चे भी खेल-खेल में बड़े काम कर जाते हैं। इनकी कहानियां हर चीज़ के महत्व की ओर इशारा करती हैं। 
वीणा श्रीवास्तव (लखनऊ) प्राचीन काल की परिस्थितियों की कहानियां लिखती रही है। राजा-रानी के साथ-साथ तर्क, शक्ति, बुद्धिबल पर भी इनकी कहानियां हैं।
परिधि जैन (भवानी मंडी राजस्थान) की कहानी है ‘मेहनत का सुख‘। यह आम आदमी के बड़े पद पर पहुंचने की कथा है। मेहनत का फल मीठा होता है। परिधि जैन इस बात पर बल देती है कि मेहनत से बड़कर कुछ नहीं। सच्ची दौलत मेहनत ही है। प्राचीन समय की कहानियां भी खूब लिखती रही हैं। इनकी एक और कहानी है ‘मास्टर जी‘। पीढ़ीयों में आए बदलाव की संवेदनशील कहानी है। पीढ़ीयों में आए बदलावों के बावजूद भी बच्चे बड़ों का सम्मान करने में पीछे नहीं हैं। यह कथाकार मानती है कि अनुभव से ही बच्चों में समझ बनती है। उन्हें अपने अनुभवों से ही सीखने का मौका देना चाहिए।
पवित्रा अग्रवाल (हैदराबाद) मनभावन कहानियां लिखने के लिए जानी जाती है। इनकी एक बेहतरीन कहानी है ‘किराये का घर‘। घर तो घर होता है। चाहे वह किराये का हो या अपना। दीवारों को गंदा न करने की बात इस कहानी में आई है। बच्चों की मासूम हरकतों की मासूम कहानियां लिखी हैं। ‘बरफ का गोला‘ एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण की समझ को स्पष्ट करने वाली इनकी एक रोचक कहानी है।
पद्मा कुमारी वरिष्ठ कथाकार हैं। इनकी कहानियां बेमेल स्वभाव में भी दोस्ती की ओर इशारा करती हैं। मेलजोल, विपरित स्वभाव होने पर भी मित्रता हो सकती है। भलाई की बात सबसे महत्वपूर्ण है। एकता में ही बल है। इस तरह के अनुभवों को वह कहानियों में शामिल करती हैं। 
पद्मा चैगांवकर ( विदिशा म0प्र0 ) की कथाओं में विविधता है। वह हाथ के कौशलों को बार-बार कहानियों का हिस्सा बनाती हैं। ग्रामीण परिवेश से उन्हें बेहद प्यार है। सूझबूझ की, राजा के समय की कहानियां भी लिखी हैं। इंसान में हिंसक पशुता का चित्रण वह बाल मनोविज्ञान के अनुसार चित्रित करती है। बच्चों की चतुराई का सुंदर वर्णन इनकी कहानियों की विशेषता है।  

पारो आनंद की कहानियां बच्चों की मनस्थिति के अनुकूल हैं। वह बच्चों के मनोविज्ञान पर गहरी पकड़ रखती हैं। बचपन के किस्से और स्वस्थ समाज की आवश्यकता पर केंद्रित कथाएं भी लिखी हैं।
प्रीति एम0शाह की कहानियां विषम परिस्थियिों से जूझना सीखाती हैं। वह विपरीत गुण, धर्म व स्वभाव वालों में भी मित्रता हो जाने की भावना को प्रबल ढंग से चित्रित करती हैं। 
पुष्पा सक्सेना देश प्रेम और ग्रामीण जीवन से जुड़ी कहानियां लिखती हैं।
पुष्पा अग्रवाल (लखनऊ) बच्चों से अपेक्षाओं पर भी सवाल खड़ा करती हैं। वह कोमल बचपन की समर्थक है। साथ ही वह भी चाहती हैं कि बच्चे समय के साथ अपनी जिम्मेदारियां उठाना सीखें। इनकी कहानी है ‘अनपढ बोध‘। यह कहानी समय और पढ़ाई के बोध का अहसास कराती है। बच्चों को खेल के साथ जिम्मेदारी देती हुई दिखाई देती हैं।
पूनम मेहता (कोटा राजस्थान) की कहानी है ‘समय की कीमत‘। यह कहानी बताती है कि बच्चे एक दूसरे को देखकर भी अपनी आदतों में सुधार कर लेते हैं। बच्चे खेल-खेल में भी सीखते हैं। बच्चे भी अपने हमउम्र के बच्चों से सीखते हैं। वह विविधताओं से भरी कथाएं लिखने में सिद्धहस्त हैं। विशेषकर आस्था, धर्म, दर्शन, ग्रन्थ आधारित कथाएं, पर्व व बच्चों में उपहार को लेकर जो आकर्षण हैं, उस पर बेहद शिक्षाप्रद कहानियां लिखी हैं। मानवीय संबंधों-रिश्तों पर मार्मिक कथाएं भी लिखी हैं। बालमन को भाने वाली और बालमन को बेहतर ढंग से समझने वाली कथाएं लिखी हैं। परियों के बहाने आज के संदर्भाें को जोड़ती हैं। काल्पनिकता की उड़ान भरती हुई रोचक कहानियों के साथ आज के बच्चे क्यों कर बड़ों की हर बात आंखमूंद कर माने? यह सवाल उनकी कहानियां खड़ा करती हैं। 
पूनम मिश्रा (मुबंई) बालोपयोगी रचनाएं लिखती हैं।
पूनम पांडे  खेल-खेल में अक्सर बच्चों को शारीरिक चोटें भी लग जाती हैं। बच्चों को होने वाले नुकसान की ओर भी इनकी कहानियां इशारा करती हैं। इनकी एक कहानी है ‘बर्फ के गोले‘। भाई-बहिन बर्फ के गोले एक-दूसरे पर फेंकते हैं। एक बर्फ का गोला भैया की आंख में जा लगता है। ऐसे खेलों से तौबा करने की बात कहानी में आती है, जिससे शरीर को नुकसान पहुंचता हो।
पूनम जोशी की एक कहानी है ‘दादी की पोती‘। यह कहानी बताती है कि बच्चों का सीमित संसार नहीं है। वह भी बड़ों की दुनिया को समझते हैं। वह भी बुजुर्गों का सम्मान करते हैं और बुजुर्गों को प्यार करते हैं।
पूनम अदीब  हम बड़ों के बच्चों के साथ जो जो व्यवहार हंै उन पर सूक्ष्मता से कहानियां बुन लेती हैं। वह चाहती है कि बच्चों को इस तरह के माहौल से दूर रखा जाएं, जहां कटुता,वैमनस्य और घृणा का संचार होता हो। वह चाहती हैं कि बच्चों को ऐसा वातावरण मिलें जहां वह समाज में घुलने-मिलने और अपनी बात खुलकर कह सकते हों।
प्रभा मेहरा ( आगरा उ0प्र0) की कहानियां बच्चों के साथ संवेदनशील रहने की बात करती हैं। इनकी कुछ कहानियां बच्चों को जोखिम भरा माहौल न देने की बात करती है।
प्रमीला गुप्ता (चंडीगढ़) की कहानियां विदेशी भूमि की पृष्ठभूमि की हैं। वह लोक व्यवहार की कहानियां भी लिखती रही हैं।
प्रतिभा कौशिक तार्किक कहानियां लिखती हैं। कहानियां में ऐसी परिस्थितियां आती हैं कि बातों और घटनाओं के परिणामस्वरूप बुद्धि से उसे सुलझाया जाता है। इस तरह की कहानियां बच्चों को बेहद पसंद आती हैं। इनकी एक कहानी है ‘बुद्धिमान जुलाहा‘। यह जुलाहा राजा के यहां आए दूसरे देश के मूक दूत के कार्य व्यवहार को हल करता है। राजा इस जुलाहा को वजीर बना देता है।
प्रतिभा जैन (चैन्नई तमिलनाडु) की कहानियां ऐसा माहौल देने की कोशिश करती है जिसके परिणामस्वरूप बच्चे भी मानवता, नैतिकता और दूसरों को सम्मान देने की भावना मन में संजो लेते हैं।ं
प्रतिभा रामकृष्णन (इंदौर) नई सोच की कहानियां लिखती हैं।
प्रीति चमोली की रोचक कहानी है ‘खो गई थाली‘। आशु की थाली खो जाती है। वह पूर्णिमा के चांद को देखकर खुश हो जाती है उसे बताया जाता है कि उसकी थाली वह है। फिर कई दिन बाद उसकी खोई थाली मिल जाती है। बच्चों का मासूम स्वभाव उनकी कहानियां में दिखाई देता है। 
प्रो0 माजदा असद (दिल्ली) की कुछ कहानियां व्यक्तित्व विकास की कहानियां हैं। गुण, परिश्रम, दया आधारित कहानियां भी वह लिखती हंै।
प्रतिभा त्यागी सूचनात्मक कहानियों के साथ जीवों के आपसी संबंधों पर अच्छी कहानियां लिखती रही हैं। सीख और संदेश देती हुई कहानियां भी लिख रही हैं।
प्रिया वर्मा लोक कथा सरीखी कहानियां लिखती हैं।
पूर्णिमा शर्मा की कुछ कथाएं हास्य-विनोद से भरी पड़ी हैं। अजूबे किस्सों पर भी वह कथा बुनती हैं। अधिकतर कहानियों में बच्चों को गुदगुदाना उनका लक्ष्य रहता है।
पारमिता उनियाल की कथाओं में भी मनोविनोद मिलता है। बच्चों के साथ दादा-दादी व नाना-नानी के संबंधों पर वह बेहद मार्मिक और हल्की-फुल्की कहानियां लिखती हैं।
बुशरा अलवेरा  (बाराबंकी उ0प्र0) की कहानियों में काल्पनिकता का पुट बेहद रोचक है। यही काल्पनिकता उनकी कथाओं को पठनीय बनाती है। प्राचीन युग की कथाएं भी वे लिखती हैं। आजादी सभी को अच्छी लगती है, यह उनकी कहानियों में सरलता से चित्रित होता है।
रमा रमेश दक्षिण भारत की आंचलिकताओं का रोचक प्रस्तुतिकरण। प्राचीन कथाएं। धर्म, आस्था और मानवीय मूल्यों पर विशेष कहानियां लिखी हैं।
रश्मि झा की कहानियों में प्राचीन देशकाल परिस्थितियों का वर्णन आता है। वह बच्चों को संस्कारिक बनाने को महत्वपूर्ण मानती हैं।
रश्मि बड़थ्वाल (लखनऊ) निरंतर बच्चों के लिए कहानियां लिख रही हैं। बच्चों द्वारा की गई चतुराई, नटखटपन, शरारतों पर उम्दा कहानियां उन्होंने लिखी है। बच्चों के स्कूल से जुड़ी छोटी-छोटी बातों पर रोचक कहानियां लिखने में वे सिद्धहस्त हैं। गांव-शहर की तुलना करते हुए वह गांवों की खूबियां आसानी से गिनवा लेती हैं। उनकी कहानियों में पहाड़ भी बेहद प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत होता है। पक्षियों के माध्यम से भी वह बड़ी गहरी बातें कह जाती हैं। बच्चों की आपसी मित्रता पर बेहद प्रभावशाली कहानियां भी उन्होंने लिखी हैं। ‘प्यारी बेटी‘ कहानी बाल समझ की नादानियों पर आधारित है। यह बेहद सुंदर कथा है। 
 रश्मि रमानी (इंदौर म0प्र0) लोक शिल्प और आम जन मानस की बालोपयोगी कथाएं लिखी हैं।
रश्मि स्वरूप जौहरी (दिल्ली) की एक कहानी ‘लगी शर्त‘ कक्षा आठ की बालिका की शर्त लगाने की आदत पर केंद्रित है। शर्त लगाने पर ही यह आदत छूटती है। बच्चों में अनायास ही कुछ अजीबो-गरीब आदतें विकसित हो जाती हैं। वह कई बार अनायास ही छूट जाती हैं। यह भी कि उन्हें किस तरह छुड़वाया जाए, इस पर यह कहानी बड़ी ही दिलचस्प है। लेखिका बच्चों की इस तरह की आदतों पर दिलचस्प कथाएं लिखती रही हैं। इनकी कहानियां विविधता से भरी हैं। वह दुनिया जहां की बातें विशिष्ट अंदाज में शामिल कर लेती हैं। विशिष्ट किस्से रोचकता के साथ प्रस्तुत कर लेती हैं। इनकी एक कहानी है ‘पेट का दर्द‘। यह कहानी गुदगुदाती भी है कि आखिर बच्चे कैसे-कैसे बहाने बना लेते हैं।
रितु तिवारी लोक व्यवहार और लोक कथाओं से बालोपयोगी रचनाएं लिखती रही हैं। 
रीना पुरी ग्रामीण जीवन की झांकियां कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत करती हैं।
रीता वर्मा ( इलाहाबाद ) की कहानियों में वाकपटुता के किस्से रोचक तरीके से आते हैं। जीव-जंतु के बहाने वे वाणी से ही अच्छे और बुरे पात्रों की पहचान कराती है। उनका अधिकतर ध्येय यह होता है कि इंसान के अच्छे व्यवहार में उसकी वाणी का बहुत बड़ा योगदान होता है।
रिजवाना बानो हाशिए पर जीवन बसर कर पात्रों की संवेदनशील कथाओं के साथ-साथ ऐतिहासिक सन्दर्भ की कहानियां लिखती रही है।
रजनी अरोड़ा (दिल्ली) की कहानियों में चतुराई से काम हल करने के किस्से हैं। जुगत लगाकर मुश्किलें हल करने वाले पात्रों की कहानियां बच्चों को ही नहीं बड़ों को भी पसंद आती है।
रजिया सज्जाद जहीर की कहानियों में हास-परिहास की कहानियां भी खूब मनोरंजन करती हैं। वे आम जिंदगी के आम किरदारों को कहानियों में बेहतर तरीके से प्रयोग करती है।
रक्षिता कुकरेती  की कहानियों में बच्चों के समक्ष बूढ़ी अवस्था के सत्य को सुंदर तरीके से रखा गया है। वे बाल कहानियों में कुछ बच्चों की आदतों पर ध्यान केंद्रित कराती हैं। मसलन किसी का मोटा-पतला, गोरा-काला, ठिगना होना के चलते परिचित बेवजह व अनावश्यक चिढ़ाने लगते हैं। इन बातों पर वे अधिक ध्यान देती हैं कि बच्चे भी अपने स्वाभिमान की परवाह करते हैं और उन्हें भी बुरा लगता है।
रचना सिद्धा (जयपुर राजस्थान) नए भाव-बोध की कहानियों के लिए प्रसिद्ध हैं। वे बच्चों में पिकनिक, मस्ती, पार्टी, धमा-चैकड़ी को बेहद खास मानती है। उनकी एक कहानी ‘पिकनिक’ है। स्कूली बच्चे पिकनिक की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन एक बच्चा धनाभाव के कारण नहीं जा पा रहा है। उस बच्चे का सहपाठी मदद करता है और यह भी कहता है कि यदि तुम ही नहीं जाओगे तो मेरे लिए पिकनिक बेकार है। बच्चे भी अपने सहपाठियों की हर तरह की मदद करने को आतुर रहते हैं।
राधा एच0एस0 की कहानियां लीक से हटकर बच्चों के जीवन से जुड़ी अनोखी बातों को प्रस्तुत करती हैं। बच्चों के अनछुए पहलूओं को संस्मरणात्मक लहजे से रखने का अलग अंदाज है। वैज्ञानिक जागरुकता की ओर ध्यान दिलाती कहानियां भी इन्होंने लिखी है।
रोहिनी कुमार भादानी की कहानी है ‘मछलियों ने मारा सांप‘। यह कहानी छोटे जीवों की शक्ति और बुद्धि की महत्ता चित्रित करती है।
रोजीना अंसारी  की कहानियां पशु पक्षियों का माध्यम बनाकर मनुष्य की मानवीय दुर्बलताओं पर तीखा प्रहार करती हैं। इनकी कुछ कहानियां सरलता से मानवीय बुराईयों से दूर रहने की हिदायत भी देती हैं। वह नई तकनीक पर आधारित रोचक कथाएं भी लिखती हैं। वे वंचित उपेक्षित वर्ग के पात्रों को भी कहानियों में शामिल करते हैं। नई तकनीक पर आधारित कहानी है ‘नया दोस्त‘। यह कहानी कंप्यूटर इंटरनेट से जुड़ी है लेकिन प्रवाह सरल है। 
राजकुमारी की कथाएं मजेदार किस्से और अनुभव को समेटकर सामने आती हैं। वह बच्चों में अंधविश्वास से इतर वैज्ञानिक दृष्टि की पक्षधर हैं।
रचना समन्दर  (भोपाल) नए तेवरों की कथाएं लेकर आती हैं। उनकी कहानियों में निर्जीव वस्तुओं में जानफूंककर सोचने-समझने-विचार करने की अनोखी ताकत है।
रंजना शर्मा- विदेशी पृष्ठभूमि की कथाएं लिखती रही हैं। प्रेम, सद्भाव और अपनत्व से ओत-प्रोत कहानियां भी खूब लिखी हैं।
रेणू सिंह (पूर्णिया, बिहार) ऐतिहासिक संदर्भों से बहुत अच्छे भावों को कहानी में लाती हैं। राजा आधारित कहानियों में उनकी कहानी ‘मिल गया राजा‘ उत्तराधिकारी के प्रश्न का जवाब खोजती हैं। उनकी कहानियों में योग्यता को वरीयता दी जाती रही है। वे परियों, तिलिस्म, प्यार-तकरार और आजादी के भावों से भरी कहानियां लिखती रही हैं। इनकी एक कहानी है ‘टिन्नी का सफर‘। मछली के अदम्य साहस का वर्णन करते हुए यह कहने का सफल प्रयास किया गया है कि नन्हें-मुन्ने जीव भी बड़े काम कर सकते हैं। इसके साथ ही वह बच्चों की शरारतों को उनके अनुभव से सीखने का एक तरीका मानते हुए इसे नैसर्गिक सत्य मानती है।
रेणू खंतवाल भी बच्चों के जीवन के आस-पास की कहानियां लिख रही हैं। वे भी चाहती है कि बच्चों के अच्छे कामों के लिए सराहा जाना चाहिए।
रेखा वासिल (नागपुर महाराष्ट्र) की ‘चतुर चुनमुन‘ एक कहानी है। इस कथा में बड़ी सरलता से कहा गया है कि बुरा चाहने वाले का खुद कभी भला नहीं होता। पशु-पक्षियों के सहारे वे बड़ी से बड़ी बात कह डालती हैं। इनकी एक और कहानी है ‘दो हाथों का जादू‘। इस कहानी में हाथ से की गई मेहनत को सर्वोपरि माना गया है। परियों को आधार बनाकर की गलत स्वभाव को बदलने की बात कहती हैं।
रेखा अग्रवाल  (दिल्ली) नए क्षेत्रों की कहानियां लिखती हैं। ग्रहों, उपग्रहों और चांद के प्रति जिज्ञासा जगाती एक कहानी है ‘दूर हुई उदासी‘।
रेनू मंडल (मेरठ उ0प्र0) लंबे समय से बालसाहित्य में योगदान कर रही हैं। इनकी कहानियों में विविधता है। बच्चों की शरारतों से लेकर, छोटे बच्चों की आदतों पर रोचक और गुदगुदाने वाली कहानियां लिखती रहती है। ग्रामीण जीवन को वह बच्चों के लिहाज से कहानियांे में शामिल करती हैं। जादुई बातों के साथ-साथ वह कल्पना का सुंदर संयोजन कहानियों में कर लेती हैं। इनकी कहानी ‘झील के किनारे‘ की कथावस्तु मेलजोल जीवन का जरूरी अंग साबित करती है।
रेनू सैनी (दिल्ली) जी की कथाओं में बच्चों के मध्य होती प्रतिस्पद्र्धा का सूक्ष्म चित्रण मिलता है। छात्र जीवन से जुड़ी कई रोचक कथाएं उन्होंने लिखी हैं। विविध क्षेत्रों से बालोपयोगी रचनाएं लिखती रहती हैं।
रेनू चैहान (दिल्ली) इनकी ’घर छोड़कर भागा’ कहानी चूहा, बिल्ली और कुत्ता के आपसी संबंधों पर हमंे गुदगुदाती है। बच्चों के स्वभाव पर रोचक कहानियां उन्होंने लिखी हैं। पशु-पक्षियों के गुण-स्वभाव और आदतों के बहाने वे बच्चों से काफी कुछ कह जाती हैं। कुछ चटपटी कहानियां भी उनके नाम से याद की जाती हैं। खेलों की महत्ता और खेल भावना को बेहतर ढंग से कहानियों में शामिल करती हैं। 
रुचि सिंह  (दिल्ली) एकता, मेलजोल और सहभागिता की कहानियां लिखती है। सामुदायिकता की कहानियां भी लिखी हैं। ऐसी ही इनकी एक कहानी है ‘तीन दोस्त‘।  इनकी कथाएं जीवन का प्रारंभ कैसे हुआ होगा। पुराने जमाने में जीवन क्यों कष्टदायक था। पुराने समय के लोग किन-किन मानवीय मूल्यों के लिए प्राण तक दे देते थे। इन बातों पर बेहद पठनीय कथाएं लिखती हैं।
शमीम बानो कुछ रोचक हास्य कथाएं लिखी हैं। गंवई संस्कृति का सुंदर चित्रण करती हैं। चतुराई आधारित पठनीय कथाएं लिखती हैं। 
शशि शर्मा ( देहरादून) स्कूली जीवन पर बेहद सूक्ष्म नज़र रखती हैं। साधू-महात्मा के सहारे प्रेम, सहायता और परोपकार की पैरोकारी करती हैं।
शांतिनी गोविंदन स्कूली जीवन के साथ-साथ घर में पारिवारिक सदस्यों के साथ बाल व्यवहार पर रोचक कथाएं हैं।
शांता नागराजन साहसिक, वीरता आधारित कहानियां लिखती रही हैं। जीवों के आधार पर जैव विविधता से लेकर आपसी संघर्ष को भी उनकी कहानियां चित्रित करती हैं।
शोभा माथुर बिजेंद्र (दिल्ली) राजा-रानी की कहनियां लिखती रही हैं।
शाजिया ताहिर की कहानी है ‘बुजुर्गों की छांव‘। पेड़-पौधों को सहारे हर किसी के अनमोल होने की प्यारी कथा। वह मामूली बातों पर भी अच्छी कहानी बुन लेती है। 
शिवानी (उत्तराखण्ड) हिन्दी की प्रख्यात लेखिका। उन्होंने भी बाल कहानियां लिखी हैं। लोककथाएं, फंतासी, प्राचीन कथाएं खूब लिखी हैं। लंबा-ठिगना, मेल-बेमेल, खरा-खोटा जैसा को आधार बनाकर रोचक कहानियां बालसाहित्य को दी हैं। इनकी एक कहानी है ‘बदला‘। यह कहानी चतुराई और संकट के समय होश न खोना पर बल देती है। 
शिविका बंसल  हास-परिहास के साथ-साथ प्राचीन समय के प्रभावशाली पात्रों के माध्यम से मानवीय गुणों का प्रबल समर्थन करती कथाएं लिखती रही हैं। इसके साथ ही धर्म, ग्रन्थ, ईसप की कहानियां और उपनिषदों से भी वे बालोपयोगी संदर्भों से कहानियां बुनती रही हैं।
शिल्पा राठी चालाकी और बहादुरी पर सुंदर कहानियां लिखती रही हैं। नन्हें जीवों के माध्यम से इंसानों को सीखने की सलाह भी देती रही हैं।
शिखा श्रीवास्तव स्कूली जीवन पर कई कहानियां लिखी हैं।
शीरीं नियाजी पक्षियों में मानवीय गुणों का मार्मिक चित्रण करती हैं। इनकी कहानियां विचार करने को बाध्य करती है कि हम मनुष्यों को कैसा होना चाहिए।
शैलबाला महापात्र (उड़ीसा) प्रख्यात लेखिका। प्राचीन युग की कथाएं, राजा आधारित, ग्रामीण जीवन की विशेषताओं पर केंद्रित कथाएं, लोक व्यवहार की कथाएं, धूर्तता को धिक्कारती कथाएं भी लिखी है। ‘लोमड़ी का कमाल‘ कहानी दिमागी योजना पर आधारित बेहद प्रभावशाली कथा है।
शुभा वर्मा प्राचीन समय की कथाएं लिखी हैं। बच्चों में नैतिकता और मानवता के बीज बोने को तत्पर रहती हैं।
शुभदा पाण्डेय राजा-रानी की कहानियां लिखी हैं। लोकमंगल की भावना कहानियों में चित्रित होती हैं। छोटी-छोटी कहानियां लिखती हैं।     
संगीता बंसल  ऐतिहासिक धर्म ग्रन्थों से बालोपयोगी रचनाएं लिखती रही हैं।
संगीता सेठी (बीकानेर, राजस्थान) बच्चों में एक अच्छे नागरिक के जरूरी गुणों को विकसित करने के लिए बेहतर कहानियां लिखती हैं। वह भी बगैर उपेदश और नसीहत के। ‘आस्था की गुल्लक‘ कहानी के जरिए बच्चों में मितव्यता का गुण भरने की सफल कोशिश की गई है। फिजूलखर्ची को हतोत्साहित करना, अपने मित्रों, सहपाठियों की मदद करना और जानबूझकर दूसरांे को नुकसान न पहुंचाना जैसी बातें हैं, जो संगीता जी की कहानियों में शामिल दिखाई देता है। इनकी एक कहानी नई तकनीक को बेहतर ढंग से प्रस्तुत करती है। कहानी ‘दादी सा अब ईमेल’ पुराने और नए दौर की पीढ़ी में तकनीक किस प्रकार सहायक हो रहा है। यह बेहतर ढंग से शामिल हुआ है। इनकी कुछ कहानियां बेहद नए भाव बोध की कहानियां हैं। बाल अनुरूप इनकी एक कहानी ‘गब्बर का पिंजरा भला‘ है। शेर को शहर की आबोहवा से पिंजरे की कैद भली लगती है। यह एक अलग तरह की कहानी है।
सभानुमति (दिल्ली) पशुपक्षियों के संसार से बालोपयोगी बातें कथा में शामिल करती हैं। वह अच्छाई और बुराई को सामने रखते हुए यह कहने की कोशिश करती है कि आखिर क्यों अच्छाई का ही सम्मान होता है।
सविता सिंह  (गुड़गांव) की कहानियां जानकारीपरक हैं। सूचनात्मकता के साथ-साथ वैज्ञानिक समाज की पक्षधर हैं। इनकी एक कहानी है ‘मेढक की टर्र टर्र‘। बारिश कराने की चिड़ा-चिड़ी की रोचक कहानी है। बारिश होने से पहले पानी की यात्रा का कई कारकों के साथ अंतर्संबंध बड़े सुंदर ढंग से आया है। 
सीमा तिवारी (गुड़गांव) प्राचीन समय की याद दिलाती कहानियां लिखती हैं।
सीमा शफक  स्कूली बालिकाओं पर केंद्रित प्रभावशाली कथाएं लिखी हैं। रगोली, मेंहदी, कढ़ाई-सिलाई आदि को आधार बनाकर हाथ के कौशलों को महत्ता देते हुए इस ओर ध्यान देने की सफल कोशिश की है।
सरोज मित्तल लोककथा शिल्प में सुंदर कहानियां लिखी हैं। इनकी कहानियों में राजकुमारी को आधार मानकर बालिकाओं में अच्छी आदतों को शामिल करने का समर्थन दिखाई देता है।
सरोजनी प्रीतम (दिल्ली) ताबीज, गंडे, अंधविश्वास, नादानी पर रोचक कहानियां लिखती हैं। एक कहानी है ‘सेवालाल’। यह बच्चों में टोनो-टोटकों से परहेज कराती कहानी है।
सरोजनी प्रसाद गुदगुदाने वाली कहानियां लिखती हैं। इनकी एक कहानी है ‘एक मिनट का चक्कर‘ । यह कहानी बताती है कि यात्रा पर चलने कलिए चलते हैं। देर से। रेलगाड़ी छूट जाती है।
संगीता कच्छारा की एक रोचक कहानी है ‘खिलौने वाला बाबा‘। जग्गा लकड़हारा लकड़ी के खिलौने बनाता था लेकिन बग्गा उसके खिलौन चुरा लेता है। उन्हें बेचकर मुनाफा कमाता है। लेकिन जग्गा अपना काम जारी रखता हैं बाद में जग्गा ही बग्गा को खिलौने बनाना सीखा देता है। यह कहानी मानवीय मूल्यों के साथ बुरों के साथ भी अच्छा व्यवहार करने पर बल देती है।
सावित्री परमार  प्राचीन समय की याद दिलाती कहानियां लिखी हैं। वरिष्ठ-कनिष्ठ का अंतर और आदर करती कहानियां लिखी हैं। बच्चों में दोस्ती, परस्पर होड़, झूठ आदि पर भी रेखांकित कथाएं लिखी हैं।
सावित्री देवी वर्मा  लोकहित के साथ-साथ मां की ममता, बच्चों के आपसी मामूली झगड़ों पर भी कथाएं लिखी हैं।
सावित्री चैधरी ( जयपुर, राजस्थान) वरिष्ठ कथाकार। वैज्ञानिक समझ के साथ-साथ पशु-पक्षियों की दुनिया से भावप्रधान कहानियां लिखती रही हैं। विदेशी धरती की रोचक कथाएं लिखी हैं। इनकी एक कहानी है ‘परिश्रम का करिश्मा‘। यह कहानी निकम्मापन, आलस और कामचोरी को धिक्कारती है। 
सुभद्रा कुमारी चैहान  हिन्दी की मशहूर कवयित्री। इनकी बालोपयोगी कथाएं बालसाहित्य के कोष को समृद्ध करती हैं।
सुषमा झा की कहानियों में राजा पात्र के रूप में आता है। प्राचीन समय की चुनौतियों के साथ खासियतों का भी उल्लेख कहानियों में शामिल करती हैं। अच्छाईयों को उभारती हैं और बुराईयों को हतोत्साहित करती हैं।
सुधा भार्गव (बंगलौर कर्नाटक) ने कई कहानियां पशु-पक्षियों को केंद्र में रखकर लिखी हैं। मासूम और बेहद नन्हें भी अदम्य साहसपूर्ण कार्य कर सकते हैं। वह बच्चों को बोदा समझने वाले भाव को खारिज करती हैं। बुजुर्गों के साथ बच्चों की सहजता को सुंदर ढंग से कहानियों में शामिल करती हैं।
सुधा शर्मा (दिल्ली) आज के बच्चे नव वर्ष, त्योहार कुछ हटकर मनाते हैं। इस पर आधारित ‘खुशी का अवसर‘ इनकी रोचक कहानी है।
सुधा तैलंग (भोपाल) प्राचीन समय की प्रभावकारी बातों को कहानियों में शामिल करती हैं। धर्म आधारित, ग्रंथों से भी वे चुन-चुनकर बालोपयोगी उद्धरणों से कहानियां बुनती रही हैं। डांट-डपट, खेलों के महत्व के साथ-साथ कर्मप्रधान आधारित कहानियों में वे सिद्धहस्त हैं। बच्चों की सादगी और भोलेपन पर भी अच्छी कहानियां लिखी हैं।
सुकीर्ति भटनागर (पटियाला, पंजाब) परंपरागत कहानी के साथ-साथ बालमन के सुलभ स्वभाव में जो तेजी से बदलाव आ रहे हैं, उन पर केंद्रित कहानियां लिखी हैं। पशु पक्षी, चुलबुलापन,अच्छे काम आदि पर भी मनमोहक कहानियां लिखी हैं।
सुरम्या शर्मा (दिल्ली) की कहानियों में बच्चों का भोलापन बड़ी सादगी से आता है। सुरम्या शर्मा की कहानियां तिलिस्म, समुद्र और मिथक से ओत-प्रोत हैं। यह कहानी अलग-सा आनंद प्रदान करती हैं। पर्व, उत्सव और प्राचीन समय की विशेष कथाएं लिखती रही हैं।  
सुरेखा पाणंदीकर (दिल्ली) वरिष्ठ साहित्यकार। पुराने समय की विशिष्टताओं को लेकर मार्मिक कहानियां लिखी हैं। बुजुर्गों का भी घर में एक स्थान होता है। बच्चों के साथ उनके मधुर संबंध होते हैं। अनमोल बातें और जीवन का लंबा अनुभव उन्हीं के पास हैं। ग्रामीण जीवन का आनंद ही कुछ ओर है। इन सब बातों को वह कहानियों में बेहतर ढंग से लाती हैं।
सुजाता शिवेन (दिल्ली)  अवसरों की महत्ता पर विशेष कहानियां लिखी हैं। राजा आधारित कथाएं भी लिखी हैं। 
सुनीति  ग्रामीण परिवेश की कहानियां लिखती हैं।
सुनीता कट्टी  ऐतिहासिक कथाएं लिखती रही हैं। परिस्थितियों के अनुसार व्यवहार करने की आदत पर विशेष बल रखती हैं। वाकपटुता को एक कौशल की तरह स्थापित करती हैं।
सुनीता तिवारी (दिल्ली) लंबे समय से बालसाहित्य लिख रही हंै। प्राचीन ग्रंथों से चुन-चुन कर समय और संदर्भ की कहानियां लिखती रही हैं। आधुनिक समय में बच्चों की आवश्यकता वाली बातों पर ध्यान दिलाती कहानियां लिखती हैं। आज के बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ पाठ्य सहगामी गतिविधियों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। वह इस ओर ध्यान दिलाने वाली कहानियां भी खूब लिख रही हैं। 
सुलक्षणा शर्मा बच्चों के गुणों को सुंदर ढंग से कहानियों में प्रस्तुत करती हैं। इनकी एक ऐसी ही कहानी है ‘पपलू के कारनामंे’। 
सुमन सिन्हा-आस्था, धर्म के साथ-साथ विज्ञान क्षेत्र में भी कई बालोपयोगी कथाएं लिखी हैं।
सोनिया -तकिया कलाम आधारित पात्रों के सहारे हास्य-विनोद की आकर्षक कथाएं बुनती रही हैं।
स्नेह लता मिश्रा की कहानियां बच्चों में आलस व लापरवाह को खराब मानती हैं। उनकी कई कहानियों में लोकहित से जुड़ी बातें शामिल होती हैं।  
स्मिता ध्रुव  की कहानियां रोमांच व साहस भर देती हैं। 
डाॅ0 कुसुम रानी नैथानी (देहरादून) लंबे समय से कहानियां लिख रही हैं। पशु-पक्षियों, राजा-रानी, प्राचीन समय के बहाने वे जीवन मूल्यों के साथ-साथ मानवता को रेखांकित करती हैं। स्कूली जीवन से जुड़ी उनकी कई कहानियां रोचक हैं।
डाॅ0 मंजरी शुक्ला (इलाहाबाद) की कहानियों में विविधता है। रोचकता है। जिज्ञासा जगाती कहानियों के साथ-साथ वे बच्चों में संस्कार भरने की भी वकालत करती है। बच्चों में जीवों के प्रति दया का भाव उनकी कहानियों में खूब आता है। बाल स्वभाव का सुंदर चित्रण, राजा-रानी की कहानियां, मानवीय गुणों पर आधारित कहानियां, जीव-जगत की कहानियां लिखती रही हैं। उनकी कहानी ‘बस्ते में हलचल‘ बेहद रोचक है। बस्ते के भीतर काॅपियों-किताबों के रखरखाब पर बस्ता चिंतित है। ये कहानी अपनी चीजों के प्रति संभाल की मांग करती है। परियों के बहाने वे बच्चांे में मानवीय गुणों को सहेजने पर भी बल देती है। काल्पनिकता का भरपूर उपयोग करती एक कहानी है ‘जादुई लोटा‘। छात्रों को कठिन परिश्रम की सलाह देती कहानी है। सफलता के लिए कोई छोटी रास्ता नहीं होता। इस पर उनकी कई रोचक कहानियां हैं।    
डाॅ0 मंजुला सक्सेना की कहानियों में एक कहानी है ‘तीन पत्ते‘। यह कहानी शहरी और ग्रामीण जीवन की बारीकियों के साथ दोनों के जीवन स्तर की बात करती है। वे ग्रामीण जीवन का रेखाचित्र तक खींच देती हैं। उनकी कहानियों में स्कूल और स्कूल से जुड़ी गतिविधियां शामिल होती हैं। वे बच्चों की समस्याओं को भी बखूबी उठाती हैं।
डाॅ0 मीना सिन्हा (दिल्ली) की कहानियांे में सच्चाई के मार्ग पर चलने वालों को नायक बनाया गया है। वह समाज के हित में नेक इंसानियत को जरूरी समझती रही हैं।
डाॅ0 शकुंतला कालरा (लखनऊ) अपनी कहानियों के माध्यम से यह स्पष्ट करती है कि बच्चों को बच्चा न समझा जाए। वे भी एक सम्पूर्ण नागरिक की तरह गंभीर होते हैं। आपसी सहयोग, सहायता और समझदारी में बच्चे हम बड़ों से कमतर नहीं हैं। उनकी कहानियों में निरंतरता है। प्रवाह है।
डाॅ0राज बुद्धिराजा (दिल्ली) नैतिकता,मानवता,कल्याण के साथ-साथ बालमन के अनुरूप कहानियां लिखती हैं।
डाॅ0 शोभा अग्रवाल की कहानियां लीक से हटकर हैं। तर्क को प्रवाह के साथ रखती हैं। कहानी मन में कई सवाल उठाने को बाध्य करती हैं। गणित आधारित भाव-बोध भी उनकी कहानियों में खूब मिलते हैं।
डाॅ0 संगीता बलवंत (गाजीपुर) की कहानियों में पढ़ाई और स्कूल विशेष है। वह पशु-पक्षियों के बहाने पढ़ाई और कॅरियर के महत्व को रेखांकित करती हैं।
डाॅ0 सरोजनी कुलश्रेष्ठ (नोएडा) काल्पनिकता की लंबी उड़ान उनकी कहानियों में दिखाई देती है। इसके साथ-साथ वे विशेषकर बालिकाओं के जीवन के आसपास की घटनाओं से सुंदर कहानियां गढ़ लेती हैं। अभाव में भी प्रभाव है। इस बात को उनकी कहानियां पुष्ट करती हैं।
डाॅ0 स्वाति ओमनवार  विज्ञान आधारित कहानियां भी लिखती है। उनकी कहानी यंत्र लोक का यात्री लीक से हटकर लिखी गई कहानी है।
डाॅ0 सुनीता भारत  भूमि के साथ दुनिया के नामचीन देशों की कहानियां भी बच्चों के लिए लिखती रही हैं। ऐतिहासिक संदर्भ के साथ ही धर्म, ग्रन्थ, आस्था, लोककथा शिल्प भी उनकी कहानियों में शामिल है। बालोपयोगी जातक कथाएं भी वे समय-समय पर लिखती रही हैं।
डाॅ0 श्वेता साधवानी की कहानियों में बच्चों के स्वभाव की गहन पड़ताल साफ दिखाई पड़ती है।
डाॅ0 तारा निगम  की कहानियों में विविधता है। कई बार बच्चे फूलों को अकारण ही तोड़ देते हैं। इनकी एक कहानी है ‘फूल और माली‘। कहानी यह बताने में सफल होती है कि फूल टहनियों में ही अच्छे लगते हैं। माली बड़े प्यार से बच्चों को समझात है यदि मैं हर रोज एक एक फूल हर एक बच्चे को देता रहूंगा तो बागीचा ही खाली हो जाएगा। प्यार-दुलार की कथाएं, विवादों से दूर की कथाएं, आतुरता में किए गए काम खराब होते हैं। जिज्ञासा जगाती कथाएं लिखती हैं। ‘पोटली में क्या है’ कहानी समुद्र के प्रति जिज्ञास जगाती है।
डाॅ0 जसविंदर कौर बच्चों की चुलबुली कहानियां लिखती रही हैं। 
डाॅ0 अमिता दूबे  (लखनऊ) बच्चों को महत्वपूर्ण मानती हैं। वह साबित करती है  कि हमेशा बच्चे बड़ों की बातें नज़रअंदाज नहीं करते। यदि प्यार से और काम की बातें बच्चों के साथ साझा की जाएं तो बड़े उन्हें सुनते भी है ओर समझकर उन पर अमल भी करते हैं। बच्चों के मनोविज्ञान को बखूबी समझती हैं ओर वह उनकी कहानियों में झलकता भी है। इनकी एक कहानी है ‘समझौते प्यारे प्यारे‘। इस कहानी में बच्चों की मित्रता के फायदे चित्रित हुए हैं। नई तकनीक की कहानियां भी लिखती हैं।
डाॅ0 बानो सरताज  (चन्द्रपुर महाराष्ट्र) पारिवारिक स्तर पर बच्चों की भूमिका को केन्द्र में रखती हैं। मध्यमवर्गीय परिवार और बच्चों की रोचक बातें घटनाएं उनकी कहानियों के प्राण हैं। पक्षियों के बहाने वह मनुष्य को आत्मकेंद्रित न होने की सलाह भी देती हैं। कहानी ‘बुबिया और मुनिया‘ यह संदेश देने में सफल होती है कि दुर्बल समझे जाने वाले जीव भी असहायों की मदद कर सकते हैं और ताकतवर के छक्के छुड़ा सकते हैं।
डाॅ0 शशि गोयल  लोक व्यवहार के साथ ही विदेशी धरती के पात्रों-स्थलांे को केन्द्र में रखकर कहानियां लिखती हैं। पशु-पक्षियों को आधार बनाकर कहानियां लिखती हैं।
डाॅ0सरस्वती बाली  नए समय की कहानियां लिखती हैं। उनकी एक कहानी है ‘सरप्राइज पार्टी’। बच्चों में मस्ती, उल्लास और खुशियों को अपने ढंग से मनाने के तरीकों पर वह सूक्ष्मता से कलम चलाती हैं।
डाॅ0 के0 वनजा (कोच्चि) प्रख्यात लेखिका हैं। बुरी आदतों को हतोत्साहित करती कहानियां लिखी है। उनकी कहानियों में परोपकार, दया और हर संभव छोटों की सहायता का भाव शामिल है। धर्म क्षेत्र एवं ग्रंथाधारित कथाएं भी लिखी हैं।
डाॅ0 अनीता पंडा (मेघालय) बुद्धि,चातुर्य,दूरदर्शिता और बचपन की शरारतों पर रोचकता के साथ पढ़ी जाती हैं।
नंदिनी नायर  आज के बच्चों की समस्याओं उलझनों के साथ-साथ खेल ओर पढ़ाई आधारित रोचक कहानियां लिखती रहती हैं।
नीति गुप्ता (हरियाणा) जीव जगत की कहानियां लिखती हैं। असली-नकली रूप और दिखावा से हटकर वास्तविक जीवन जीया जाए से भरी कहानियां लिखती हैं।
नीता सरकार (दिल्ली) की कहानियों में देश प्रेम झलकता है।
नीता चावड़ा (जबलपुर,म0प्र0) की कहानियां पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाती हैं। पेड़-पौधों के माध्यम से वे बच्चों में उनके प्रति अगाध प्रेम की भावना विकसित करने में सफल भी होती हैं। वे बालमन में इतराने को लेकर भी सुंदर ढंग से कहानियां बुनती हैं। बच्चे खेल-खेल में शरारतें भी कर बैठते हैं। उनके अभिभावक बच्चों की वजह से आपस में मनमुटाव कर लेते हैं। वे बच्चों की मासूमियत को सर्वोपरि मानकर इस तरह के मनमुटाव को बचकाना मानती है।
नीलम चंद्रा  (लखनऊ) की कहानियों में अपार विविधता दिखाई पड़ती है। उनकी एक कहानी है ‘आत्मविश्वास का जादू’। परिजन यदि बच्चों पर विश्वास करें और उम्मीद से अधिक भरोसा जताएं तो बच्चे हर क्षेत्र में उम्दा प्रदर्शन करते हैं। हमें उम्मीद और आशा के मध्य तालमेल बनाकर रखना आना चाहिए। वे कई क्षेत्रों से कहनियां खोज-खोज कर लाती हैं। वह परियों की कहानियां भी लिखती हैं तो फंतासी भी। रोचकता उनकी कहानियों की पहली शर्त है। जीव-जगत से भी वह उम्दा बातें बच्चों के लिए लेकर आती हैं। तकनीक पर आधारित कुछ कहानियां उनकी बेहद रोचक हैं। लोक शिल्प की कथाएं भी लिखती रही हैं। भाई-बहिन के रिश्ते की भावपूर्ण कथाएं भी लिखी हैं। बच्चों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की समर्थक हैं। इनकी एक और कहानी है ‘साहसी चंद्रलेखा’। यह कहानी यह साबित करती है कि हर सीखी हुई चीज़-कौशल भविष्य में कभी न कभी काम आ सकता है। 
नीलम ज्योति  की कहानी है ‘महादान‘। इस कहानी में बच्चे भी घर की जरूरत समझते हैं और वक्त पड़ने पर उस जरूरतों को पूरा करने में मदद भी करते हैं। इनकी कहानियां सहायता करने में बल देती है। वह मित्रता को महान समझती है। इनकी कहानियों में समझ का विस्तार देने वाली कहानियां प्रमुख हैं।
नीलम त्यागी (औरैया उ0प्र0) की कहानियां यह बताती है कि नए नए काम सीखने की ललक बच्चों में ही होती है। वह इन्हें आसानी से समझ लेते हैं और सीख लेते हैं।
नंदिनी शतपथी (उड़ीसा) मुख्यमंत्री रहीं इस साहित्यकार ने भी बालसाहित्य लिखा है। आंचलिकता के साथ-साथ लोकव्यवहार की कहानियां भी लिखी हैं।
निरंजना जैन (सागर,म0प्र0)की कहानियों में जीव जगत का अधिकतर उल्लेख रहता है साथ ही आत्मविश्वास जगाती कथाएं लिखती हैं। आस्था, कर्म और भाग्य की विचित्र कहानियां लिखी हैं। वे बच्चों में काल्पनिकता की उड़ान भरती कहानियां भी लिखती रही हैं। लगन और मेहनत को प्रमुखता देती कथाएं भी लिखी हैं। 
निर्मला सिंह (बरेली उ0प्र0) सूचनात्मक और तथ्यात्मक कथाएं भी लिखती हैं। उनकी कहानी ‘सी आॅफ टैथीज‘ है। इस तरह की कहानियां बच्चों में समुद्र, द्वीपों और अन्य देशों के प्रति जिज्ञासा जगाती है। वे नई तकनीक और गैजेट्स को भी कहानियों में शामिल करती हैं। यह कहानियां कई मायने में बच्चों के लिए उपयोगी है।
निधि सक्सेना  वैज्ञानिक दृष्टिकोण और बढ़ते बच्चों की कहानियां भी लिखी हैं।
निधि श्रीवास्तव सीख देने वाली कथाओं के साथ अकल्पनीय बातों से भरी किंतु रोचक कथाएं लिखी हैं।
निमिषा भटनागर नए तेवर की कहानियां लिखती हैं। यदि बच्चों से प्यार-दुलार की बातें करें। व्यवहार करें तो बच्चों से कुछ भी काम करवा सकते हैं।
नेहा शुक्ला की कहानियों में परी आधारित कथाओं के साथ-साथ सहायता और सहयोग की कथाएं भी शामिल हैं। 
नेहा वैद (मुंबई) पशु-पक्षी, उल्लास, मौन,चतुराई, धूर्तता आधारित कथाएं अधिक लिखी हैं। 
नेहा जोशी  की एक कहानी है ‘ज्यूस की नदी‘। इस कहानी में फलों की दुनिया की रोचक कथा है। वह गप्प कथाएं भी लिखती हैं।
नेहा गुप्ता ‘अजू’ की एक कहानी है ‘झोली भर खुशिया‘। आत्मविश्वास जगाती यह कहानी सुंदर बन पड़ी है। शिखा के पिता उसे स्कूल की साइकिल प्रतियोगिता में भाग लेने से मना कर देते हैं। फिर ठीक एक दिन पहले हां कर देते हैं। वह जीत जाती है।
नूतन जैन  बच्चों के संस्कारों के साथ उचित परवरिश पर भी बल देती हैं। उनकी कहानियां में बच्चों के दोस्तों पर आधारति कहानियां भी प्रमुख हैं। जीव-जगत की कहानियां भी लिखी हैं। लक्ष्मी खन्ना मनोरंजन के नए क्षेत्र  की कहानियां लिखती है।
ललिता चतुर्वेदी (दिल्ली) बच्चों के भीतर बैठे बेवजह के डरों को दूर करना चाहती है। वे इम्तिहान, भूत, आलसी, मेहनत, लक्ष्य और खेलकूद आधारित कहानियां भी खूब लिखती हैं। ‘शर्तों की वापसी‘ कहानी में बच्चों की मनस्थिति और बालपन का सुंदर चित्रण है।  
ललिता अग्रवाल (कोटा,राजस्थान) की कहानी है ‘पश्चाताप‘। यह कहानी बच्चों में बड़ों के द्वारा अधिक अंक लाने की होड़ को दूसरे ढंग से रेखांकित करती हैं। बच्चे इस दौड़ में झूठ बोलना और चोरी तक करना सीख लेते हैं। अव्वल आने के लिए गलत तरीके इस्तेमाल करने लग जाते हैं। लेकिन समय रहते प्यार-दुलार से इस तरह के भाव बच्चे छोड़ भी देते हैं। यह कहानी अभिभावकों के लिए भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी छात्रों के लिए है। लेखिका नए भाव-बोध और बिम्बों को रचती हैं। हास-परिहास के साथ बच्चों के खेलों को महत्व देती हैं। सहेलियों के आपसी जीवन को गहरे से उठाती है। इनकी कहानी ‘हेमा की जीत’ सहयोग, सहायता और स्वस्थ प्रतिस्पर्घा का परिचय देती है। ललिता जी की एक और कहानी है ‘इम्पोर्टेड टाई‘। यह कहानी बेवजह दूसरों को चिढ़ाने वालों के लिए सबक है। यह कहानी साबित करती है कि हमें दूसरों का सम्मान करना चाहिए। दूसरों को चिढ़ाने की आदत कभी कभी घातक सिद्ध हो सकती है।
वीणा गुप्ता  (फरीदाबाद) की कहानी है ‘पाला और सर्दी‘। यह कहानी मेहनत पर तो बल देती है यह भी कि अस्तित्व बचाने के लिए हर किसी को संघर्ष करना ही चाहिए। बालोपयोगी कहानियों के लिए जानी जाती रही हैं।
वर्णिका बत्रा  (जबलपुर) की एक कहानी है ‘सलोनी की चिड़िया‘। इस कहानी के माध्यम से वन्य जीवों को पिंजरों में पालने के औचित्य पर सवाल खड़ा करती हैं। चिड़िया है। पिंजरा है और पिंजरे की घुटन का वर्णन किया गया है। कई बार हम बड़े भी तो बच्चों को कमरों में घरों में स्कूल में कैद सा कर देते हैं। यह कहानी बहुत सारे सवाल खड़ा करती है।
वैशाली मानवीय मूल्यों को कहानी केंद्र में रखती है। दया और सहायता को आधार बनाकर सुंदर कहानियां लिखी हैं।
हंसा मेहता ने राजा के समय की कथाएं लिखी हैं। न्यायप्रियता उनकी कहानियों में विशेष रूप से आता है। बेईमानी, चाटुकारी और धूर्तता को हतोत्साहित करती कथाएं लिखी हैं।
 


लंबे समय से बालसाहित्य में सेवाएं देने वाली और अंतराल पर लिखने वाली साहित्यकार और भी हैं। नवोदितों के साथ-साथ यदा-कदा लिखने वाली साहित्यकारों की सूची बहुत लंबी है। फिर भी विजयलक्ष्मी सुंदरराजन, विमला मेहता, शशि प्रभा, दीप्ति सिंह, मनोरमा ज़फा, विद्या प्रकाश, लक्ष्मी कुमारी,भारती शर्मा, नासिरा शर्मा, सुंदरराजन,नेहा शुक्ला(लखनऊ) डाॅ0 रुखसाना सिद्दकी, रामपाली भाटी (जयपुर) रजनी गुप्ता(लखनऊ),चंपा शर्मा,चंदा झा (दिल्ली), राधाकांत भारती दिल्ली,चंद्रकांता (गुड़गांव),चंद्रमोहिनी श्रीवास्तव(नोएडा),चमेली जुगरान,ज्योतिर्मई पंत,जागृति सिप्पी, जनकराम(दिल्ली), मालविका, प्रीति खरे, रमा तिवारी, रेखा शुक्ल, सुधा गुप्ता,मिलन गोयल, दीपिका हिंदवान,दीपा अग्रवाल, संगीता यादव (बस्ती उ0प्र0),दीपावली जोशी(हनुमानगढ़ राजस्थान), डाॅ0 जुबैदा, डाॅ0 आशा सरसिज, डाॅ0उषा अरोड़ा,डाॅ0 दीपा कांडपाल, क्षिप्रा शंकर (दिल्ली), निक्की झा(लखनऊ उ0प्र0), नीलम राकेश (रामपुर उ0प्र0)नीलम चड्ढ़ा (दिल्ली) नीता वर्मा, डाॅ0 प्रीत अरोड़ा, मृदुला मालती, कुसुमलता, शकुंतला वर्मा, शीला धर, सुनीति रावत, सुरेखा, डाॅ0 पुष्पारानी गर्ग(इंदौर म0प्र0), शकुंतला यादव छिंदवाड़ा म0प्र0,शकुंतला वर्मा,शशि प्रभा गोयल,शारदा यादव(दिल्ली) शांति अग्रवाल(दिल्ली) शीला पांडे(लखनऊ) शांता ग्रोवर, मीना, चित्रा मुदगल,सीमा श्रीवास्तव, सरोजनी कुकरेती,सरला भटनागर (दिल्ली),सरला अग्रवाल प्रमुख है। 

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-मनोहर चमोली ‘मनु’,पोस्ट बाॅक्स-23,भितांई,पौड़ी गढ़वाल 246001.उत्तराखण्ड
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