31 मार्च 2016



बाल भास्कर अंक 12 फरवरी 2016 : पूरी कहानी यहां पढ़ी जा सकती है।
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'बस ! एक सेकंड'

-मनोहर चमोली ‘मनु’
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‘‘सृजन। अपनी काॅपिया संभालो।’‘
सृजन कहता-‘‘एक सेकंड। मम्मी।’’
‘‘सृजन। उठो। स्कूल के लिए देर हो जाएगी।’’
सृजन जवाब देता-‘‘एक सेकंड। पापा।’’
‘‘सृजन। कब से खड़ा हूं। जल्दी तैयार हो जाओ। मार्केट नहीं चलना क्या?’’
सृजन चिल्लाता-‘‘एक सेकंड। दादाजी। बस, अभी आया।’’
सृजन जैसे-जैसे बड़ा होता जा रहा था, वैसे-वैसे उसकी आदतों में बदलाव आता जा रहा था। उसकी मम्मी यह सोचकर चुप हो जाती कि बढ़ते बच्चे की आदतों का बदलना स्वाभाविक है। लेकिन सृजन के दादाजी चिंतित थे। वे जानते थे कि नकारात्मक आदतों का जीवन में गहरा असर पड़ता है। वे सही वक्त की प्रतीक्षा में थे। सृजन इन दिनों हर बात को हल्के ढंग से लेने लगा था।
एक बार की बात है। सुबह हो चुकी थी। सृजन सोया हुआ था। मम्मी ने आवाज लगाते हुए कहा-‘‘सृजन उठो। स्कूल नहीं जाना क्या।’’ सृजन ने रजाई में मुँह घुसा लिया। अलसाते हुए बोला-‘‘बस एक सेकण्ड मम्मी। मैं अभी उठता हूँ।’’ सृजन की मम्मी रसोई के काम में जुट गई। उधर सृजन को पिफर से नींद आ गई। आध घण्टे बाद जब मम्मी की आवाज़ उसके कानों में दोबारा पड़ी तो वह अचानक बड़बड़ाते हुए उठा। उसने चिल्लाते हुए कहा-‘‘ओह! शिट्! मम्मी। स्कूल के लिए देर हो गई है।’’ सृजन जैसे-तैसे स्कूल पहुँचा। स्कूल में उसे खूब डाँट पड़ी।
गर्मियों के दिन थे। सृजन मुहल्ले में खेल रहा था। उसकी मम्मी ने कहा-‘‘बेटा। मुझे बाज़ार जाना है। जल्दी से आओ और दूध पी लो। ठंडा हो रहा है।’’ सृजन ने वही रटा-रटाया जवाब दिया-‘‘मम्मी, बस एक सेकण्ड में आया।’’ थोड़ी देर बाद सृजन की मम्मी ने फिर आवाज लगाई-‘‘सृजन। मैं बाजार जा रही हूँ। गैस में दूध रखा है। जब वो उबल जाए तो उसे अलमारी में रख देना।’’ सृजन ने अपनी आदत के अनुसार कहा-‘‘ठीक है मम्मी। आप जाओ। मैं एक सेकण्ड में आया।’’ सृजन खेलता रहा। दूध गैस में उबलता रहा। जब दूध उबलकर गैस में गिरने लगा तो उसकी जलने की गंध चारों ओर फैलने लगी। सृजन रसोई की ओर दौड़ा। तब तक दूध उफनकर एक तिहाई रह गया था। उसका गिलास में रखा दूध बिल्ली पी चुकी थी। काँच का गिलास फर्श पर गिरकर चकनाचूर हो गया था। सृजन के दादाजी टहलकर वापिस लौट रहे थे। वे सीधे रसोई में आये तो सारा माजरा समझ चुके थे। वे बोले-‘‘सृजन। तुम रहने दो। झाड़ू ले आओ। काँच के टूकड़े मैं उठाता हूँ।’’
‘‘एक सेकण्ड दादाजी। बस अभी लो।’’ सृजन हाथ से ही उन काँच के टूकड़ों को उठाने लगा। तभी कुछ काँच के टूकड़े उसकी अँगुली में घुस गए। दादाजी बोले-‘‘मैंने कहा था न। पर तुम्हारा ये एक सेकण्ड। अब छोड़ो इसे। पहले डाॅक्टर के पास चलो।’’ दादाजी सृजन को डाॅक्टर के पास ले गए। वापिस लौटते हुए दादाजी सृजन से बोले-‘‘बेटा। समय किसी का इंतजार नहीं करता। मगर तुम घंटो, मिनटों और सेकण्डों का महत्व नहीं समझते। तुम्हें लगता है कि एक सेकण्ड में क्या जाता है।’’ सृजन बोल पड़ा-‘‘हाँ दादाजी। वैसे एक सेकण्ड होता तो बहुत छोटा ही है। एक सेकण्ड एक मिनट का साठवाँ हिस्सा होता है। बस और इससे ज़्यादा क्या।’’ यह सुनकर दादाजी हँस पड़े। बोले-‘‘यही तो। मैं कई दिनों से तुम्हें देख रहा हूँ। एक सेकण्ड कहने में ही एक सेकण्ड बीत जाता है। पर तुम्हारा एक सेकण्ड कभी समय पर पूरा ही नहीं होता। एक सेकण्ड में घड़ी का पेंडुलम एक दोलन कर लेता है। तुमने तो बड़ी आसानी से कह दिया कि एक मिनट में साठ सेकण्ड होते हैं। ज़रा बताना एक दिन में कितने सेकण्ड होते हैं?’’
सृजन का दिमाग चकरा गया। वो चुप ही रहा। दादा जी ने प्यार से समझाते हुए कहा-‘‘औसतन एक दिन में छियासी हजार चार सौ सेकण्ड होते हैं। अगर कोई रेल सौ किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्रतार से चल रही है तो वो एक सेकण्ड में अट्ठाईस मीटर चल देती है। तुम्हारे एक सेकण्ड आलस करने से कुछ नहीं बिगड़ता। शायद तुम ऐसा सोचते हो। मगर एक सेकण्ड में दुनिया में बहुत कुछ हो जाता है।’’ सृजन सिर खुजलाते हुए बोल ही पड़ा-‘‘दुनिया में क्या हो जाता है दादाजी?’’ दादाजी ने मुस्कराते हुए कहा-‘‘बताता हूँ। एक सेकण्ड में दुनिया में औसतन तीन बच्चे जन्म ले लेते हैं। इस तरह एक मिनट में एक सौ अस्सी बच्चे जन्म ले लेते हैं। यानि एक दिन में लगभग दो लाख उनसठ हजार दो सौ बच्चे पैदा हो जाते हैं। यही नहीं एक सेकण्ड में औसतन एक शादी हो रही है। यानि हर दिन लगभग छियासी हजार चार सौ शादियाँ हो रही हैं। अब बोलो। क्या एक सेकण्ड का कोई मतलब नहीं है?’’
‘‘है दादाजी है। मैंने पहले कभी ध्यान नहीं दिया। लेकिन अब मैं ध्यान दूंगा। ये लो। हम घर भी पहुँच गए। सबसे पहले तो मुझे मम्मी से माफी माँगनी है। मेरी वजह से आज दूध उबलकर गिर गया। गिलास भी टूट गया।’’ यह कहते हुए वह रसोई की ओर चला गया।
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-मनोहर चमोली ‘मनु’



साहित्य अमृत,बाल-संसार : कहानी. अप्रैल 2016.......... 'न टूटे मन'

साहित्य अमृत,बाल-संसार : कहानी. अप्रैल 2016.......... 'न टूटे मन'
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रक्षिता दौड़ते हुए कुसुम से लिपट गई, ‘‘ममा! आज स्कूल-प्रोग्राम फाइनल हो गए हैं। डांस में मेरा भी सलेक्शन हुआ है। पता है, हमारी क्लास का एक ही प्रोग्राम सलेक्ट हुआ है। होली के अवसर पर ब्राइट स्टार स्कूल फेस्टीवल होगा। बड़ा मजा आएगा।’’ कुसुम ने हँसते हुए कहा, ‘‘बहुत बढि़या। लेकिन अभी तो डेढ़ महीना है।’’ रक्षिता तो अपनी बात कहने को आतुर थी, ‘‘ममा, कुल दस प्रोग्राम हैं। आज से प्रैक्टिस भी शुरू हो गई है। अब सिक्स्थ पीरियड के बाद डेली प्रैक्टिस होगी। पता है, डबल होमवर्क मिलेगा। मस्ती के साथ पढ़ाई भी होगी।’’ यह कहकर रक्षिता ने कपड़े चेंज किए और मुँह-हाथ धोकर होमवर्क करने में जुट गई।
एक महीना बीत गया। फिर एक दिन स्कूल से आते ही रक्षिता ने कहा, ‘‘ममा, फाइनल प्रैक्टिस हो गई है। हम चार परियाँ बनेंगी और चार राजकुमार बनेंगे। क्लास टीचर ने कहा है कि परियाँ सफेद ड्रेस, सफेद जूते और सफेद चुनरी लाएँगी। सफेद मुकुट, वो भी चमचमाता हुआ होना चाहिए और सफेद छड़ी।’’ कुसुम ने सुना तो उसका दिल बैठ गया। दस घरों में काम करने के बदले में जो रुपया मिलता है, उससे महीने भर
का गुजारा ढंग से नहीं हो पाता।
पड़ोसी एंथोनी डिया चर्च जाने से पहले अपना बेबी कुसुम के हाथों सौंप देते हैं। चार घंटे की देखभाल के बदले में हर माह वह दो हजार रुपए की मदद करते हैं। इस तरह मकान किराया, स्कूल फीस, रोटी-कपड़ा, दूध-राशन का खर्च बड़ी मुश्किल से निकलता है। दीवाली से पहले ही वह उनसे दो महीने का एडवांस लेकर काम चला रही थी। अब यह एक और खर्च आ गया। इस सोच को झटकते हुए कुसुम ने कहा, ‘‘चिंता की बात नहीं। इस संडे बाजार चलेंगे। सारा सामान ले आएँगे।’’
दूसरे ही दिन कुसुम ने एंथोनी डिया को सबकुछ विस्तार से बताया तो वे बोले, ‘‘कोई बात नहीं, बच्ची का मन नहीं टूटना चाहिए।’’ रविवार आया तो कुसुम रक्षिता को बाजार ले गई। स्कूल से मिली सूची के अनुसार सबकुछ खरीद लिया गया। रक्षिता ने घर आकर परी की ड्रैस पहन ली। कुसुम ने रक्षिता का माथा चूम लिया, ‘‘वाह! बिल्कुल परी लग रही हो।’’ रक्षिता आँखें मटकाती हुई बोली, ‘‘ममा, मैंने डांस में खूब मेहनत की है। आप मेरा डांस देखने जरूर आना।’’ ‘उस दिन एंथोनी डिया के बेबी की देखभाल कौन करेगा। दस घरों की मालकिनें एक दिन का रुपया काट लेंगी।’ कुसुम यही सोच रही थी। लंबी साँस लेते हुए बोली, ‘‘कौन माँ होगी, जो अपनी बेटी का प्रोग्राम देखने नहीं आएगी। मैं जरूर आऊँगी।’’
होली से एक दिन पहले स्कूल में प्रोग्राम तय हो गया। रक्षिता सुबह पाँच बजे ही उठ गई। एक बार आईने के सामने रिहर्सल करने के बाद वह स्कूल के लिए तैयार हो गई। जाते हुए कहने लगी, ‘‘ममा, ठीक दस बजे आ जाना। लेट मत होना।’’ कुसुम हँसते हुए बोली, ‘‘मैं पाँच मिनट पहले ही आ जाऊँगी।’’
कुसुम ने एक दिन पहले ही आज की छुट्टी के बारे में हर घर में बता दिया था। एंथोनी डिया ने हँसते हुए कहा था, ‘‘कोई बात नहीं, चर्च की सिस्टर बेबी को देख लेगी। स्कूल के प्रिंसिपल मेरे दोस्त हैं। शायद मैं भी आऊँ। जरूर जाओ। बच्ची का मन नहीं टूटना चाहिए।’’ कुसुम ठीक समय पर स्कूल पहुँच गई। प्रोग्राम शुरू हो गया। प्रिंसिपल अपने स्कूल की उपलब्धियाँ गिना रहे थे। फिर कल्चरल प्रोग्राम शुरू हो गए। एक से बढ़कर एक प्रस्तुति मंच पर आती रहीं। तालियों की गड़गड़ाहट से दर्शक हर प्रोग्राम का स्वागत कर रहे थे। घोषणा हुई, ‘‘अब आखिरी प्रस्तुति परियों के देश से।’’
कुसुम की आँखें तो मंच पर अपनी रक्षिता को खोज रही थीं। अचानक उसे ध्यान आया कि रक्षिता तो कह रही थी कि चार परियाँ बनेंगी। लेकिन मंच पर तो तीन परियाँ ही हैं। राजकुमार भी तीन ही हैं। कुसुम किनारे से होते हुए मंच के पीछेवाले हिस्से में जा पहुँची। मंच के बाईं ओर ड्रेसिंग रूम बना हुआ था। कुसुम को देखते ही रक्षिता सिसकते हुए कहने लगी, ‘‘ममा, एक राजकुमार कम हो गया तो एक परी भी कम कर दी गई। मेरी ड्रैस पहनकर दीया डांस कर रही है।’’
कुसुम की आँखें भर आईं। गला रुँध गया। वह कुछ न कह सकी। डांस टीचर कहने लगी, ‘‘डांस फोर पेयर्स में था। एक स्टूडेंट नहीं आया। सारा कॉम्बीनेशन खराब हो गया। मंच पर अब तीन पेयर्स ही डांस कर रहे हैं। दीया की ड्रैस वीक थी तो हमने रक्षिता की ड्रैस उसे पहना दी।’’
‘आपने जो किया। बहुत अच्छा किया। बच्चों की आँखों के आँसुओं का बहना तो आप लोगों के लिए आम बात है।’ कुसुम यह कहना चाहती थी, लेकिन कह नहीं पाई।
घर आकर कुसुम ने रक्षिता से कहा, ‘‘रोते नहीं, क्या पता बिलाल की तबीयत खराब हो गई हो। हो सकता है, उसकी ममा बीमार हो।’’ रक्षिता रोते-रोते चुप हो गई। कहने लगी, ‘‘कल संडे है, बिलाल के घर चलेंगे।’’ दोपहर दो बजे के बाद वे दोनों बिलाल के घर का पता पूछते-पूछते धोबीघाट जा पहुँचीं। दीया रास्ते में मिल गई। रक्षिता को ड्रैस लौटाते हुए बोली, ‘‘रक्षिता, अच्छा हुआ तुम यहीं मिल गई। यह लो, तुम्हारी परी वाली ड्रैस। इस ड्रैस में मेरी फोटो बहुत अच्छी आई हैं। कल स्कूल में दिखाऊँगी।’’
रक्षिता ने चुपचाप ड्रैस ले ली। ड्रैस लेकर वह बिलाल के घर की ओर बढ़ गई। वे दोनों धोबीघाट की झुग्गियों में आ गईं। बिलाल मिल गया। बिलाल की माँ शबीना बीमार थी। होटल की सफेद चादरें धोने-सुखाने का काम पड़ोसियों ने किया था। अब उन चादरों को बिलाल समेट रहा था। बिलाल उन्हें अपने घर में ले आया। कोने में राजकुमार वाली ड्रैस पॉलीथिन में पैक रखी हुई थी।
शबीना बोली, ‘‘मैं बड़ी जतन से यह ड्रैस लाई थी। मैं ही जानती हूँ कि इसका बंदोबस्त मैंने कैसे किया था। दुख इस बात का है कि बिलाल इसे पहन नहीं पाया।’’ बिलाल की दीदी रुखसार चाय बनाकर लाई तो कुसुम और शबीना बातें करने लगीं। कुछ देर बाद अचानक कुसुम को ध्यान आया, ‘‘ये रक्षिता कहाँ चली गई?’’ कुसुम बाहर की ओर दौड़ी। बाहर देखा तो कुछ ही दूरी पर झुग्गी-झोंपड़ी के बच्चे बिलाल और रक्षिता को घेरकर खड़े हैं। कुसुम के पीछे-पीछे शबीना भी चली आई।
इससे पहले कि कुसुम कुछ कहती, बिलाल और रक्षिता का डांस शुरू हो चुका था। दर्शकों का घेरा तोड़कर कुसुम ने देखा कि वे दोनों राजकुमार और परी की ड्रैस पहने हुए थिरक रहे हैं। रुखसार के हाथ पर मोबाइल में वही गाना बज रहा था, जो स्कूल प्रोग्राम में उसने सुना था। बड़े-बूढ़े भी बच्चों की भीड़ देखकर जुटने लगे। डांस जैसे ही खत्म हुआ, तालियों के बीच कोई चिल्लाया, ‘एक बार और...’ रुखसार ने गाना रिपीट किया तो बिलाल और रक्षिता फिर से थिरकने लगे।
तभी धूल उड़ाती हुई एक स्कूल बस वहाँ आकर रुकी। वह बस ब्राइट स्टार स्कूल की थी। बस से एंथोलीन डिया और स्कूल प्रिंसिपल बाहर आए। वह भी सारा नजारा देखकर खुश हुए। गाना खत्म होने से पहले ही झुग्गी-झोंपड़ी के दर्शकों ने हवा में नोट उछालने शुरू कर दिए। एंथोलीन डिया ने कुसुम से कहा, ‘‘
ब्राइट स्टार स्कूल का प्रोग्राम देखने मैं भी गया था। मंच पर रक्षिता को न देखकर मुझे भी हैरानी हुई। समापन के बाद मैंने प्रिंसिपल से बात की। देखो, माफी माँगने के साथ-साथ यह भी कहने आए हैं कि कल ही प्रातःकालीन सभा में सभी कल्चरल प्रोग्राम दोबारा होंगे। पड़ोसी स्कूलों के बच्चे और स्टाफ भी प्रोग्राम देखने आएँगे। स्कूल फंड से सभी को इनाम भी मिलेगा।’’ प्रिंसिपल ने कहा, ‘‘मैंने पूरी रिकॉर्डिंग कल ही देख ली थी, लेकिन बिलाल और रक्षिता का यह प्रोग्राम तो उसमें भी नहीं है। मैं चाहूँगा कि इन दोनों का यह स्पेशल प्रोग्राम सब देखें। एक बात और, इस बस्ती के बच्चे पेरेंट्स सहित प्रोग्राम देखने आएँगे तो मुझे अच्छा लगेगा। हम पूरी कोशिश करेंगे कि अब किसी भी बच्चे का मन न टूटे।’’
सब हाँ में सिर हिला रहे थे। कोई मना क्यों करता! कुसुम और शबीना की आँखें भर आईं। गला रुँध गया। वे क्या कहतीं। वहीं सारी बातों से बेखबर बिलाल और रक्षिता तो दर्शकों के बीच में झूम रहे थे।
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