17 जुल॰ 2020

लर्नर ही रही


लर्नर ही रही


-मनोहर चमोली ‘मनु’

सड़क को पढ़ना पड़ता है
वह मुड़ रही है
उसी ओर मुड़ना पड़ता है
स्टेयरिंग हाथों में हो
आँख कान खुले हों
पर पहियों पे गौर करना पड़ता है
सड़क हो या चैपहिया
इन्हें अंग समझना पड़ता है

बेजान सड़क
निर्जीव चैपहिया से
ये अपनत्व तुम्हारा 
मुझे बहुत भाया था

तुम्हारे साथ-साथ
ख़ूब सड़कें नापी
रंग-बिरंगे चैपहिया
गहरे दोस्त बने 

ज़िन्दगी की सड़क
साथ के पहियों पर
नज़र दौड़ाती हूँ तो
प्यार का स्टेयरिंग 
पेण्डूलम की मानिंद
डोलता दिखाई देता है

सफर जारी है 
तुम्हें पढ़ना,समझना
गौर से देखना
सीख न पाई
लर्नर का कोर्स 
ही पूरा कर न पाई

-मनोहर चमोली ‘मनु’