5 नव॰ 2011

nandan,अक्तूबर,२०११.

-मनोहर चमोली 'मनु' manuchamoli@gmail.com

विज्ञानं प्रगति-जून 2011, विज्ञान गल्प... मास्करोबोट

विज्ञान गल्प..मास्करोबोट

-मनोहर चमोली ‘मनु’


विज्ञान प्रसार से संबंधित खबरों की कतरनों में उलझे शिक्षक जलीस अहमद का मोबाइल लगातार घनघना रहा था। अनमने भाव से और लगभग झुंझलाते हुए उन्होंने मोबाइल पर कहा-‘‘हैलो। कहिए।’’ मोबाइल से स्वर जलीस अहमद के कानों पर पड़ा। उन्होंने सुना-‘‘नमस्ते सर। मैं सुजाता। सर आज मैं बहुत खुश हूॅ।’’ जलीस खुशी से चिल्ला ही पड़े-‘‘सुजाता! सुजाता पुरी न? अरे! भई तुम हो कहाॅ। अचानक कहां गायब हो गई थी। इतने सालों बाद! कहाॅ हो? कैसी हो?’’
‘‘दिल्ली में ही हूॅ। इण्डियन इनस्टिट्यूट् आॅफ मिसाइल एंड टेक्नालाॅजी में। बाकी बातें बाद में। फिलहाल आपके घर के बाहर काले रंग की एक कार खड़ी है। नंबर है, डी0एल0 2047. चालक आपको सीधे एयरपोर्ट ले आएगा। आपको विशेष विमान से यहां पहुंचना है। सर। अब हमारे देश के जवान सीमा की सुरक्षा करते हुए अकारण नहीं मारे जाएंगे। आप तो जानते ही हैं, मैंने पहले अपने पिता को और फिर दोनों भाइयों को खोया है। मैं सबसे पहले आपको ही इस नई खोज की परफाॅरमेंस दिखाना चाहती हूं। आप....।’’
जलीस अहमद प्रसन्न मुद्रा में बोले-‘‘ वेलडन! मेरी बच्ची। वेलडन। बस। फोन पर कुछ नहीं। मैं आ रहा हूॅ।’’ विशेष विमान से जलीस इण्डियन इनस्टिट्यूट् आॅफ मिसाइल एंड टेक्नालाॅजी पहुॅच गए। द्वार पर ही सुजाता खड़ी थी। जलीस अहमद के चरण छूते हुए बोली-‘‘आइए सर। बस आपकी ही कमी थी। मैं आपसे कहती थी न कि युद्ध में अकारण ही कई इंसान मारे जाते हैं। अब ऐसा नहीं होगा। लक्ष्य को छोड़कर जान-माल की हानि न होगी।’’
जलीस मुस्कराते हुए कहने लगे-‘‘ओह! तो हमारी सुजाता ने भूमिगत रहकर इतिहास रचने वाला काम कर ही दिया। खैर। लैब में ले चलो। जरा हम भी तो देखे कि आखिर इतने सालों तक तुमने क्या किया।’’ वे दोनों अब अत्याधुनिक प्रयोगशाला के भीतर थे। तभी जलीस अहमद बोले-‘‘लैब के अंदर इतने सारे मच्छर। ये देखो। एक तो मेरी कलाई पर ही आ बैठा है।’’ उन्होंने अपना हाथ हवा में घुमाया। सुजाता ने संयत भाव से कहा-‘‘सर ये मच्छर नहीं है। हमारा ‘मास्करोबोट’ है।’’ 
जलीस चैंके-‘‘मास्करोबोट! यू मीन बनावटी मच्छर हैं ये, जो हवा में घूम रहे हैं। अद्भुत।’’
सुजाता ने जवाब दिया-‘‘जी हाॅ। वो देखिये सर। उस विशालकाय स्क्रीन पर। जिसे आप मच्छर समझ रहे हैं। वो हमारा मास्करोबोट है। इसने आपके शरीर का एक्सरे कर सारी सूचनाएं हमारे कम्प्यूटर को दे दी है। आपके पास दो रूमाल, घर की तीन चाबियों से जुड़ा एक गुच्छा। पर्स में तीन हजार पाॅच सो तीस रूपये, आपका स्कूल का पहचान पत्र, पैन कार्ड, एक बेल्ट और दो पेन हैं। गले में हाॅलमार्कयुक्त तीस ग्राम सोने की चेन है। ये देखिए। आपके शरीर के भीतर सुबह किया हुआ नाश्ता जिसमें चाय और ब्रेड थी। इसकी जानकारी तक इस मास्करोबोट ने हमें दे दी है। इसने ये भी बता दिया कि पिछले 24 घंटे में आप 5 घंटे 45 मिनट और 51 सेकण्ड की ही निद्रा ले पाए हैं। अभी आप प्रसन्न मुद्रा में हैं। दो घंटे पहले आप मेरे प्रति बेहद चिंतित थे। ये सब सूूचनाएं उसी मास्करोबोट ने हमें उपलब्ध करायी है, जो आपकी कलाई पर जा बैठा था। दिलचस्प बात ये है कि से सामान्य मच्छर से पाॅच सो गुना फुर्तीला है। हम आपके बारे में और अधिक जानकारी इस मास्करोबोट से ले सकते हैं।’’
जलीस के चेहरे पर कभी आश्चर्य,कभी प्रसन्नता, तो कभी अति उत्साह के मिले-जुले भाव आ-जा रहे थे। सुजाता ने कहा-‘‘आइए सर। हमारी टीम ने ऐसे 100 मास्करोबोट तैयार कर लिए हैं। हर एक का अपना कोड है। ये सब मेरे एक ही निर्देश पर अनूठा काम करने को तत्पर हैं।’’
जलीस बोले-‘‘मैं समझ गया। ये मच्छर से दिखने वाले रोबोट सौ शक्तिशाली मिसाइल की तरह काम करेंगे। है न?’’
सुजाता मुस्कराई-‘‘बिल्कुल सर। आप जब हमें पढ़ाते थे, तो अक्सर जैव विविधता की सुरक्षा की बात करते थे। आप कहा करते थे कि इस धरती में एक-एक जीव का महत्व है। युद्ध और देश की सीमा सुरक्षा में की गई कार्यवाही में सैकड़ों जवान हताहत होते हैं। बमबारी से कई अनमोल संपदा नष्ट हो जाती है। लेकिन सर अब ऐसा नहीं होगा। कम से कम हमारा देश जैव विविधता को बचाये और बनाये रखने में महती भूमिका निभा सकेगा। निर्दोष जनता भी युद्ध की भयावह त्रासदी का हिस्सा नहीं बनेगी। ये मास्करोबोट अब हिंदुस्तान की सरजमीं पर कहीं भी लक्ष्य तक पहंुच सकते हैं। दुश्मन को पहचान कर कृत्रिम रूप से काटने भर से मौत की नींद सुला सकते हैं। या गहरी नींद में सुला सकते हैं। ऐसी नींद जो फिर तभी खुलेगी, जब हम चाहेंगे। न कोई गोलाबारी, न कोई शोर-शराबा। हमने उच्च तकनीकी से समूचे भारत के भूभाग का मानचित्र भी विकसित कर लिया है। पलक झपकते ही ये कहीं भी जा सकते हैं। ये सेकण्ड के दसवें हिस्से के अंतराल पर वांछित सूचनाएं हमें उपलब्ध करा सकते हैं।’’
जलीस ने बीच में ही कहा-‘‘एक मिनट। जरा मेरे स्कूल में तो भेजिए कुछ मास्करोबोट। मैं भी तो देखूं कि मेरे स्कूल में क्या हो रहा है।’’ यह कहकर जलीस ने कागज पर स्कूल का पता लिखकर सुजाता को दे दिया। सुजाता की अंगुलियां कंप्यूटर के की-बोर्ड पर नाचने लगी। उसने कहा-‘‘एक मास्करोबोट ही काफी है।’’ सुजाता ने टाइप किया, ‘प्राथमिक स्कूल नीतिरासा, जनपद देहरादून’। स्क्रीन पर तत्काल जलीस का स्कूल उभर आया।
सुजाता ने कहा-‘‘ये लीजिए सर। अब आप एक-एक कक्षा में हो रही गतिविधियां देख सकते हैं। मास्करोबोट ने वहां पहंुचकर आपको सीधा प्रसारण दिखाना शुरू कर दिया है। लेकिन हमारा मास्करोबोट सिर्फ इतना करने के लिए नहीं बना है। ये आपको बता सकेगा कि आपके स्कूल के शिक्षक इस समय बच्चों को जो कुछ भी पढ़ा रहे हैं उसका बच्चों के मन-मस्तिष्क में क्या असर पड़ रहा है। वह ये संकेत भी देगा कि एक-एक बच्चा इस समय क्या सोच रहा है। हमें यह भी पता चल जाएगा कि बच्चों के बैग में कौन-कौन सी किताबें हैं। उनकी काॅपियों में क्या-क्या लिखा गया है?’’
सुजाता की अंगुलिया की-बोर्ड से कुछ संकेत टाइप कर रही थी और मास्कोरोबोट उनका पालन कर रहा था। कुछ ही समय में मास्कोरोबोट ने समूचे स्कूल की रिपोर्ट कंप्यूटर में भेजनी शुरू कर दी। जलीस अहमद उन रिपोर्टों को पढ़कर कभी हैरान हो रहे थे तो कभी हौले से मुस्करा देते।
सुजाता का उत्साह देखते ही बनता था। वह बोली-‘‘सर। माफ कीजिएगा। यदि आप कहें तो एक क्लिक से आपके स्कूल के 188 बच्चे और 7 लोगों का विद्यालयी स्टाॅफ तब तक सोता रहेगा, जब तक मास्करोबोट नहीं चाहेगा। यही नहीं ये मास्करोबोट किसी भी व्यक्ति को स्कूल के भीतर आने से पहले ही अचेत कर देगा। यदि आप चाहें तो सिर्फ चालीस सेकंड के लिए सभी कक्षाओं के बच्चों को सुला दिया जाए?’’
जलीस ने जोर से ठहाका लगाया। कुछ देर सोचा और कहा-‘‘ठीक है। अनुमति है। पर जरा सावधानी से।’’ सुजाता ने की बोर्ड पर 40 सेकंड टाईप किया। वहीं पलक झपकते ही सारे बच्चे और स्कूल स्टाफ ने पलके मूंद लीं। ठीक चालीस सेकंड बाद वे स्वतः ही जाग गए। उन्हें आभास तक न हुआ कि वे चालीस सेकंड के लिए निद्रा भी ले चुके हैं। जलीस अहमद आगे बढ़े और सुजाता के सर पर हाथ रखकर बोले-‘‘शाबास बेटी। ये तो ऐतिहासिक और अकल्पनीय आविष्कार है। विज्ञान प्रगति की अचूक और बेमिसाल तकनीक। हमारी सरहद तक तो ठीक है। लेकिन विश्व स्तर पर भी क्या ये मास्करोबोट.....?’’
सुजाता ने लंबी सांस लेते हुए कहा-‘‘तभी तो आपको याद किया है मैंने सर। अभी आपने देखा न। आपके स्कूल के बच्चों को मैंने पल भर के लिए सुला दिया। मैं चाहूॅ तो हिंदुस्तान के किसी भी संस्थान, गांव, शहर को लक्ष्य बनाकर वहां के जीवित मनुष्यों को सुला सकती हूॅ। उन्हें मार भी सकती हूं। ये सौ मास्करोबोट एक क्षण में सौ शहरों की पांच कि.मी.में रहने वाली समूची मानव आबादी को हमेशा के लिए सुला सकते हैं। विज्ञान चमत्कार भी है तो अभिशाप भी। मैं और मेरी टीम के 11 साथियों ने अथक मेहनत कर इन्हें विकसित किया है। संस्थान का करोड़ों रुपया इस तकनीक को विकसित करने में लग चुका है। अब देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए ये अचूक रोबोट तैयार हैं। सौ से एक हजार मास्करोबोट बनाने के लिए सरकार की अनुमति और विश्वास भी तो चाहिए। गांधी जयंती पर मुझे ये तकनीक देश को समर्पित करनी है। आपकी सहमति चाहिए और आशीर्वाद भी।’’
जलीस अहमद चैंक उठे। कहने लगे-‘‘तुम आशंकित क्यों हो? हमारे देश का एक-एक नागरिक देश हित में जान देने को तैयार है। हमारी सरकारें देश की अस्मिता और अखण्डता के लिए तुम्हें भरपूर सहयोग करेगी। रही बात इसके दुरुपयोग की तो। ऐसी नादानी किसी भी देश का नेतृत्व नहीं कर सकता। हिरोशिमा और नागासाकी का उदाहरण हमारे सामने है। तुम चिंता मत करो। ये बताओ कि विश्व स्तर पर इन मास्करोबोट के लिए क्या-क्या चुनौतियां हैं?’’
सुजाता गंभीर हो गई। कहने लगी-‘‘एशियाई मित्र देशों के ई-नक्शे तो हम तैयार कर चुके हैं। बस परीक्षण बाकी है। समूचे विश्व के ई-नक्शों को एकत्र करने से अच्छा होगा कि हम उन देशों की सरहदों को रेखांकित करें जिनसे भविष्य में टकराव की संभावना है। इसके लिए विदेश विभाग के सहयोग की आवश्यकता है। दूसरा ये मास्करोबोट अभी लक्ष्य क्षेत्र के पांच किलोमीटर की परिधि में ही काम कर पाएंगे। इनकी शक्ति बढ़ाने के लिए हमें अति नेनो तकनीक और नेनो सुपर कंप्यूटरों की आवश्यकता है। इस संदर्भ में सरकार के साथ मध्यस्थता के लिए आपसे अधिक विश्वस्त मेरे लिए कौन हो सकता है। तीसरा भारत के कोने-कोने में सौ नकली मानवों पर मास्करोबोट का परीक्षण किया जाना है। ताकि हम दावे के साथ कह सके कि हम असंदिग्ध और पहचाने जा चुके शत्रु को अपने देश में कहीं भी ढेर कर सकते हैं।’’
जलीस एकदम बोल पड़े-‘‘ये सब तुम मुझ पर छोड़ दो। जहां तक मैं समझ पाया हूं तो ये तकनीक हमारे देश के लिए बेहद काम की है। कितने लोग जानते हैं कि परमाणु बम के विस्फोट के प्रभाव से नागासाकी में 9 अगस्त 1945 से सन् 2010 तक डेढ़ लाख से अधिक इंसान मर चुके हैं। हिरोशिमा में लगभग दो लाख सत्तर हजार लोगों की मौत हो चुकी है। यह सामान्य बात नहीं है। सामान्य बम हो या परमाणु बम। उनके विस्फोट से जो ऊर्जा निकलती है, वो बेहद विनाशकारी होती है। हम सभी जानते हैं कि विस्फोट के साथ रेडियोधर्मी विकिरण बड़े पैमाने में निकलता है। मानव शरीर के लिए ये बहुत हानिकारक होता है। हिरोशिमा में परमाणु बम गिरने के बाद तीन सेकंड तक वहां का तापमान लगभग चार हजार डिग्री सेल्सियस तक रहा। लोहा डेढ़ हजार सेल्सियस पर गलता है। परमाणु बम के विस्फोट स्थल से कई किलोमीटर दूर तक बसे सैकड़ों लोगों पर भी रेडियोधर्मी विकिरण का दुष्प्रभाव पड़ा था, ये किसी से छिपा नहीं है। यह प्रभाव सालों तक बना रहता है। मानव शरीर की बात करें तो खून बनाने का तंत्र ही नहीं कोशिकाओं सहित कई अंगों का कार्य प्रभावित हो जाता है। परिणाम साल दर साल मौत है। मास्करोबोट सिर्फ और सिर्फ लक्ष्य जीवों पर केंद्रित रहेंगे। तुम्हें और तुम्हारी समूची टीम को बधाई।’’
सुजाता की आंखों में चमक थी। वह कहने लगी,‘‘सर अभी काम अधूरा है। देश को बाह्य शक्तियों से भी तो बचाना विज्ञान का दायित्व है।‘‘
जलीस ने तत्काल जवाब दिया,‘‘हम सभी का दायित्व है सुजाता। तुम भी तो प्रयोगशाला में ही सारी उम्र गुजार सकती हो। फिर क्यों नई तकनीक विकसित करने में उलझी हो? मैं क्यों तुम्हारे आग्रह पर आ गया? आपकी टीम के सभी साथी क्यों इतने संवेदनशील हैं? ये दायित्व हर संवेदनशील प्राणी का है। अरे! हाॅ। ये मास्करोबोट तो केवल मनुष्य को ही काटेंगे न। आखिर ये हैं तो मानवनिर्मित ही। तो फिर क्या इन्हें मनुष्य को पहचानने में धोखा नहीं हो सकेगा? क्या ये लक्ष्य से नहीं भटक सकते?’’ जलीस अहमद ने पूछा।
सुजाता ने विनम्रता से कहा-‘‘आप से क्या छिपाना सर। आम तौर पर मनुष्य कहीं भी हो। उसके शरीर का तापमान लगभग 37 डिग्री सेल्सियस होता है। हमने मास्करोबोट को 35 से 40 डिग्री पर नियंत्रित किया हुआ है। मानव के शरीर का तापमान उसके आसपास के हवा के तापमान से थोड़ा ज्यादा होता ही है। बस इसी अंतर को ये पहचान लेंगे और सीधे सांस लेने वाले प्राणी के पास चले जायेंगे। अब दूसरा सवाल यह हो सकता है कि ये प्राणी मनुष्य से इतर कोई और भी हो सकता है। हमने मानव के पसीने के घोल को कई श्रेणियों में विभाजित किया है। ये मानव के शरीर में आने वाले पसीने की गंध को पहचानते हुए ही उस तक पहुंचेगे। जैसा आपके साथ हुआ और अभी आपके स्कूल में भी। ये भी संभव है कि कोई मनुष्य ऐसे वस्त्रों और कवच से ढका हो, जहां मास्करोबोट पसीने या उसके शरीर के तापमान को न खोज पाए। इस स्थिति में हमने मानव श्वास की पहचान इन्हें कराई है। मानव कहीं भी रहेगा, श्वास तो लेगा ही। श्वास में नाइट्रोजन, आॅक्सीजन और कार्बनडाइआॅक्साइड के मिश्रण को ये मास्करोबोट त्वरित पहचान लेता है, सो ये गलती कर ही नहीं सकता। हमने मानव गंध के न्यूनतम स्तर की पहचान की शक्ति अपने मास्करोबोट को दी है। कृत्रिम मानव में हमें कृत्रिम मानव सांस भरनी होगी, ताकि मास्करोबोट उन्हें बेध सके। एक परीक्षण असल मानव पर भी करना होगा, लेकिन वो परीक्षण तो सरहद के पार से निकट भविष्य में कभी होने वाले घोषित या अघोषित युद्ध के समय में ही हो सकेगा।’’
जलीस अहमद ने स्नेह से सुजाता की ओर देखा-‘’गुड। बाकी मुझ पर छोड़ दो। गृह मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय में भी मेरे कई शिष्य हैं। वे कब काम आएंगे। देश की सुरक्षा के साथ-साथ मानव हित में ये तकनीक विश्व पटल पर हमारे देश को ओर सशक्त करेगी। सुजाता। तुम अपने काम पर जुटी रहो। मैं अभी से शेष काम मे लग जाता हूं। कल नहीं, आज नहीं मुझे अभी से तुम्हारे इस मिशन में हिस्सेदार बनना है। मैं सबसे पहले उच्च स्तर पर इसके परीक्षण की अनुमति की पूर्व तैयारी करता हूं। बेस्ट आॅफ लक।‘’ यह कहकर जलीस तेजी से प्रयोगशाला से बाहर चले गए। सुजाता आदर भाव से उन्हें देखती रह गई। उसके सहयोगी फिर से काम पर जुट गए।

-मनोहर चमोली ‘मनु’. भितांईं, पौड़ी, पोस्ट बाॅक्स-23. पौड़ी गढ़वाल. पिन-246001. मोबाइल-09412158688./09897439791.

19 अग॰ 2011

वांछित वर्षा, विज्ञान प्रगति, गल्प,अगस्त, 2011. मनोहर चमोली ‘मनु’

विज्ञान गल्प

 -मनोहर चमोली ‘मनु’

महान वैज्ञानिक साइनाथ ने आत्महत्या की। सब इस समाचार से हतप्रभ थे। आज की सुबह टेलीफोन हो या मोबाइल। टी.वी-चैनल में ही नहीं बस-रेलगाड़ी में यात्रा करने वालों के मध्य भी यही समाचार बातचीत का केन्द्र बिंदु था। हर किसी के माथे पर शिकन थी। आम आदमी भी दूसरे से यही पूछ रहा था-‘‘ये साइनाथ मुखर्जी कौन थे?’’ हाॅकर भी और दिनों की अपेक्षा आज चिल्लाते हुए अखबार बेच रहे थे। एक ही खबर की पुकार लग रही थी-‘‘आज की ताजा खबर। महान वैज्ञानिक साइनाथ ने आत्महत्या की।’’
विदेश संचार विभाग के आॅपरेटरों को बहुत देर में समझ आया कि आखिर क्यों आज की सुबह दुनिया भर से आ-जा रही अधिकतर काॅल अमेरिका, भारत और उसके पड़ोसी देश पर ही केंद्रित हंै? घनघनाते फोन और मोबाइल के साथ-साथ आपसी चर्चा बेहद तीव्र थीं। धीरे-धीरे हर कोई जान गया कि भारत के महान अंतरिक्ष विशेषज्ञ और वैज्ञानिक प्रो. साइनाथ मुखर्जी ने आत्महत्या कर ली।
विज्ञान, अनुसंधान, अंतरिक्ष और प्रकृति के रहस्यों पर नजर रखने वाले साइनाथ मुखर्जी को साइन्टिस्ट साईनाथ की जगह ‘एस.एस.’ के नाम से जानते थे। वे दुनिया के नामचीन वैज्ञानिक थे। अमेरिका अंतरिक्ष विज्ञान संस्थान ने उन्हें तेजी से बढ़ रहे ग्लोबल वार्मिंग पर दुनिया भर के वैज्ञानिकों को प्रशिक्षण देने के लिए विशेष निमंत्रण भेजा। एक साल के अनुबंध पर वे अमेरिका रवाना हुए थे। आम आदमी ने उन्हंे तब जाना, जब उन्होंने दावा किया था कि वे भारत लौटकर अपने एक महत्वपूर्ण अनुसंधान का खुलासा ही नहीं प्रदर्शन भी करेंगे। अमेरिका में रहते ही उन्होंने एक वक्तव्य दिया था-‘‘दुनिया वालों। अब राहत की सांस लीजिए। अब आप मनचाही बारिश पाएंगे। यही नहीं। जहां अत्यधिक बारिश हो रही है, वहां बारिश रोकी जा सकेगी। बस थोड़ा सा इंतजार कीजिए। पहला प्रयोग में अपनी सरजमीं में करना चाहता हूं। मैं शीघ्र ही अपने हिंदुस्तान लौट रहा हूं।’’
बस फिर क्या था। आए दिन ‘एस.एस.’ दुनिया भर के टी.वी. चैनलों में दिखाई पड़तेे। एक दिन उन्होंने फिर कहा-‘‘बस अब में आगामी तीस दिनों के बीच ही भारत जाने वाला हूं। मेरे भारत पहंुचते ही समूची दुनिया मनचाही बारिश देखेगी। यही नहीं मूसलाधार बारिश को रोका जाना भी देखा जा सकेगा।’’ एक बार फिर एस.एस. दुनिया भर के अग्रणी अखबारों और चैनलों में सुर्खियों पर थे।
एक पखवाड़ा ही बीता था कि अचानक सब कुछ बदल गया। ‘एस.एस.’ रहस्मय ढंग से गायब हो गए। आखिरी बार वे अमेरिका में उन्हें दी गई व्यक्तिगत प्रयोगशाला में प्रवेश करते देखे गए थे। अमेरिका, भारत सहित कई देश इस बात से चिंतित थे कि आखिर एस.एस. गए कहां! अटकलों का बाजार गर्म होना स्वाभाविक ही था। अपहरण, हत्या जैसी बातें भी उठीं। लेकिन किसी ने सोचा भी न था कि वे आत्महत्या करेंगे। अमेरिका मेहमान वैज्ञानिक की मौत से दुखी था और भारत इस बात से कि यदि एस.एस. को अमेरिका न भेजा जाता तो ये नौबत ही न आती। ये रहस्मय ही बना रहा कि आखिर ‘एस.एस.’ ने आत्महत्या क्यों की। नामचीन इंटेलिजेंस भी थक गई लेकिन उनके अचानक बारिश करवाने और अचानक बारिश रोकने के फार्मूले का भी कोई सुराग नहीं मिल सका।
महीने भर तो हर तरफ ‘एस.एस.’ की मौत पर अटकलें लगती रहीं। फिर धीरे-धीरे बातचीत-चर्चा और अटकलों का बाजार मंद पड़ता चला गया। फिर अचानक जोबाश उर्र कतई का मुठभेड़ में मारे जाने की घटना ने विश्व का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। दुनिया के लिए सर दर्द बन चुका आतंकवादी जोबाश उर्र कतई को विश्व गुप्तचर सेवा और विश्व स्तरीय टाॅस्क फोर्स ने एशिया के बीहड़ जंगल में जमींदोज कर दिया। एक बार फिर सारी दुनिया का ध्यान एशियाई देशों की ओर चला आया। भारत सरकार से विश्व सुरक्षा नीति के लिए सहयोग मांगा गया। अमेरिका में आयोजित विश्व शांति सुरक्षा का एक मसौदा भारत की अगुवाई में तैयार करने की सहमति पर आम राय बन चुकी थी। भारत की अगुवाई से इंकार करने को औपचारिक रूप से आपत्तिस्वरूप हाथ खड़ा करने की बात जब सदन में की गई तो भारत के ही पड़ोसी देश के प्रतिनिधि प्रमुख ने कहा-‘‘मेरे मुल्क को घोर आपत्ति है। भारत को छोड़ हम किसी भी देश के साथ खड़े हैं।’’ यह सुनते ही सदन आश्चर्य में पड़ गया। कोई कुछ समझ ही नहीं पाया। भारत ने स्थिति को भांप लिया। भारत ने भी अगुवाई करने से इंकार करते हुए कहा-‘‘एक भी देश विरोध करता है तो हम समझते हैं कि हमारी रीति-नीति में कुछ और किया जाना शेष है। हमारी अगुवाई को अस्वीकार करने वाले हमारे पड़ोसी देश को ही इस मसौदे के निर्माण करने की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। हम हर संभव सहयोग करने का वचन देते हैं।’’ भारत की उदारता और निष्ठा के लिए सदन में तालियों की गड़गड़ाहट देर तलक गंूजती रही। वहीं पड़ोसी देश के इस बचकाने से रवैये को देख सभी देश हतप्रभ रह गए।
समय बीतता गया। दुनिया भर में आतंकवादी हमलों की संख्या बढ़ती चली गई। दुनिया के कई देश अचानक अतार्किक बयानबाजी करने लगे। भारत के कई पड़ोसी देश सीमाओं पर अवांछित गतिविधियों में शामिल होने लगे। भारत की सुरक्षा जांच ऐजेंसी सहित सेनाओं ने भारत सरकार को संभावित घटनाओं-परिणामों से अवगत कराया। अति आपातकालीन बैठक में निर्णय लिया गया कि पड़ोसी देशों के अचानक उग्र होने और पड़ोसी देशों के साथ बढ़ते तनाव के कारणों का गोपनीय ढंग से पता लगाया जाए। ‘एस.एस.’ के सहयोगी रहे सहायक साईन्टिस्ट कृष्ण कुमार कपिल की सहायता ली गई। जिन्हें गोपनीय कोड दिया गया ‘केतीन’। ‘केतीन’ ने आपातकालीन बैठक में कहा-‘‘अब तक मैं चुप था। अब समय आ गया कि मैं संशय से परदा उठा ही दूं। एस.एस. जीवित हैं। मुझे लगता है कि पड़ोसी मुल्क ने उनका अपहरण किया है। ये वही मुल्क है जिसने भारत की अगुवाई में मसौदे के बनाए जाने में आपत्ति की थी। आज तक उसने मसौदे का एक अक्षर भी तैयार नहीं किया। अपहरण का कारण उनकी बादलों को लाने और हटाने वाली खोज हो सकती है। मैं खुद सोच रहा था कि आखिर एस.एस. को कैसे छुड़ाया जाए। आप सभी के सहयोग से ही ये संभव है। मैंने आवश्यक तैयारी कर ली है। एस.एस. ने अमेरिका जाते हुए मुझे एक आॅडियो दिया था। उन्होंने कहा था कि यदि मैं साल के अंत तक नहीं लौटा और संवाद न कर पाया तो इस आॅडियों को सुनना। आत्महत्या की खबर सुनकर मैंने सबसे पहले इसे सुना। आप सब भी सुनिये।’’
 आपातकालीन बैठक में भारत की पहली पंक्ति के राजनेता सहित कई अति विशिष्ट सुरक्षा-सैन्य अधिकारी भी मौजूद थे। ‘केतीन’ ने कहा-‘‘जिस दिन एस.एस. की मौत होगी, उस दिन मेरी कलाई में बंधी घड़ी की टिक-टिक थम जाएगी। एस.एस. ने इस घड़ी को अपनी सांसों के साथ जोड़कर इसका रिमोट मुझे ही दिया हुआ है। या तो मैं रिमोट की सहायता से उनकी जान ले सकता हूं या वे कैसी भी मौत मारे जाएंगे तो ये घड़ी काम करना बंद कर देगी। ऐसा उन्होंने इसलिए किया है कि यदि कोई देश जबरन उनसे सूचना-तकनीक या उनकी खोज के संबंध में जबरदस्ती करेगा तो ये घड़ी असामान्य हो जाएगी और दोनों सुईंया बारह बजे पर जाकर टिक जाएगी। यह मेरे लिए संकेत होगा कि मैं रिमोट से एस.एस. की जान ले लूं ताकि कोई भी उनसे बादल हटाने और लाने की तकनीक हासिल न कर सके। सो मुझे विश्वास है कि वो अभी जीवित हैं।’’
आपातकालीन बैठक में मौजूद सभी के चेहरे खिल उठे। बैठक की अध्यक्षता कर रहे भारत के सर्वोच्च नागरिक ने कहा-‘‘केतीन आपकी योजना क्या है? क्या हमें बताएंगे?’’
‘केतीन’ ने उठकर कहा,‘‘हां महामहिम। रिमोट से संचालित ये कृत्रिम हवा का अंश हम पड़ोसी मुल्क की ओर भेजेंगे। इस कृत्रिम हवा को ‘एर’ नाम दिया गया है। खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि इसे मेरे अलावा एस.एस. ही महसूस कर और देख पाएंगे। आपकी आज्ञा पाते ही इसे रिमोट के सहारे छोड़ जाएगा, वहीं एस.एस. अपनी लंबी-लंबी सांस लेंगे और ये हवा यानि ‘एर’ उसी दिशा की ओर अपना रास्ता तय कर लेगी।’’
सुरक्षा जांच एजेंसी के प्रमुख खुद को रोक नहीं पाए। कहने लगे-‘‘बस! अब कुछ मत कहिए। मुझे ही नहीं यहां मौजूद एक एक महानुभाव को भले ही आपकी बातें किसी किस्सा-कहानी सी ही लग रही है। पर है अद्भुत! विज्ञान की जय हो। हम सभी एस.एस. के लौटने तक आपका इंतजार करेंगे। महामहिम आपको पहले ही आज्ञा दे चुके है कि देश हित में यह उच्च स्तरीय समिति सब कुछ करने का अधिकार पा चुकी है। आप अपनी प्रयोगशाला में जाइए और तत्काल एस.एस.का पता लगाइए और यह भी पता लगवाइए कि आखिर ऐसे कौन से कारण है कि पिद्दी भर के पड़ोसी देश हमें आंख दिखाने का दुस्साहस क्यों कर रहे हैं?’’ आपातकालीन बैठक समाप्त हुई और ‘केतीन’ अपनी प्रयोगशाला में लौट आए।
आपातकालीन बैठक के समाप्त हुए अभी एक सप्ताह भी नहीं बीता कि ‘केतीन’ के आग्रह पर आनन-फानन में ही देर रात उच्च स्तरीय समिति के सभी सदस्यों को विशेष संदेश मिला। सभी को विशेष वाहन से वाघा की सरहद अति विशिष्ठ हवाई अड्डे पहुंचाया गया। सभी की नजरें रात के घुप्प अंधेरे में आसमान से नीचे की ओर आ रही पीली रोशनी की गोलाकार आकृति पर पड़ी। उच्च स्तरीय समिति का नेतृत्व कर रहे ‘केतीन’ लगभग चिल्लाए-‘‘वही हैं एस.एस.। शुक्र है वे लौट रहे हैं।’’
जांच ऐजंेसी के प्रमुख ने कहा-‘‘लेकिन ये किस विमान से आए? ये कैसे दुश्मनों के पंजे से छूटे? क्या वो खोज भी साथ लाए हैं?’’
‘केतीन’ ने जवाब दिया-‘‘आपके सभी सवालों का जवाब एस.एस. स्वयं देंगे। वह अपने पैराशूट से ही यहां पहुंच रहे हैं। ये पैराशूट नैनो तकनीक का नायाब उदाहरण है। इसे एस.एस. ने अपनी नाक के बालों में छिपाया हुआ था।’’
‘‘क्या! इतना विशालकाय पैराशूट, नाक के बालों में? वाकई?’’ एक राजनेता ने चैंकते हुए पूछा। थोड़ी ही देर में एस.एस. पैराशूट सहित नियत स्थल पर कूद पड़े। पल भर में ही सभी विशेष विमान में बैठे और सुरक्षित स्थान पर पहुंच गए। सुरक्षा कारणों से तय किया गया कि एस.एस. के जीवित लौटने की खबर से पहले वृहद चर्चा कर ली जाए।
देश के अग्रणी कर्णधार और पहली पंक्ति के सुरक्षा अधिकरियों सहित वरिष्ठ वैज्ञानिकों के समक्ष एस.एस. का संबोधन शुरू हुआ-‘‘सबसे पहले भारतभूमि को नमन कि मैं सकुशल लौट आया। मैं नहीं जानता कि अमेरिका से मैं कैसे पड़ोसी देश में पहुंच गया। मैं यह भी नहीं जानता कि मेरी आत्महत्या की पुष्टि कैसे हो गई। मेरी ही जगह जिस आदमी का शव प्रयोगशाला में बरामद हुआ था, वह भी पड़ोसी मुल्क का ही बाशिंदा था। उस अपरिचित व्यक्ति की प्लास्टिक सर्जरी कर मेरे जैसा चेहरा बनाया गया था। पता चला है कि बदले में उसके परिवार को मोटी रकम दी गई है। खैर। मेरी लैब में किसी ने नैनो तकनीक के सहारे बल्ब के स्विच में मूर्छित होने का रसायन लगा दिया। मैंने जैसे ही रोशनी के लिए स्विच आॅन किया तो मेरी आंखों के आगे अंधेरा छा गया। मैं जब होश में आया तो पड़ोसी देश की अति विशिष्ट टास्क फोर्स ने मुझे बंदी बना रखा था। हालांकि वो मेरे साथ सख्ती से कभी पेश नहीं आए। लेकिन भारत को लेकर वो बेहद खूंखार हैं। मैं चार महीने से अधिक उनकी कैद में रहा। लेकिन मुझे कभी नहीं लगा कि मैं कैद में हूं। मेरी हर इच्छा पूरी की जाती थी। सुरक्षा के साथ मुझे यहां-वहां ले जाया जाता था। समूची दुनिया को मैं देख-पढ़-जान सकता था। बस मैं किसी से संपर्क नहीं कर सकता था। पड़ोसी देश के इरादे खतरनाक है। उसे खुशफहमी है कि एक न एक दिन वो हमें युद्ध में हरा देगा और समूचा हिंदुस्तान उसका गुलाम होगा।’’
भारतीय सेना के सर्वांेच्च टाॅस्क फोर्स के अधिकारी बीच में बोल पड़े-‘‘माफ कीजिएगा एस.एस.। हम सभी को आपके सहयोगी साथी ‘केतीन‘ ने सब कुछ बता दिया। जोबाश उर्र कतई का पड़ोसी मुल्क से संबंध था। यह भी हमें मालूम चल गया है। हम जानते हैं कि उसके मरने के बाद भी आतंकवादी गतिविधियों को शह देने से हमारा पड़ोसी मुल्क बाज नहीं आने वाला है। लेकिन हम ये जानने को उत्सुक हैं कि पड़ोसी देश आपसे आखिर चाहता क्या था?’’
एस.एस. ने एक गिलास पानी पानी पिया और अपनी बात कहने लगे-‘‘मुझसे एक ही गलती हुई। मुझे अमेरिका में रहते हुए अपने आविष्कार का खुलासा करना ही नहीं चाहिए था। मुझे क्या पता था कि कोई इस जनहित के आविष्कार को अभिशाप के रूप में भी लेने की सोच सकता है। दरअसल पड़ोसी देश अपनी औकात जानता है। उसे पता है कि जल, थल या नभ क्षेत्र में या किसी ओर मामलों में भी वो हमारा कुछ न बिगाड़ पाएगा। अब उसकी रणनीति दूसरी तरह से हमें नुकसान पहंुचाने की है। जैसे आतंकवाद फैलाकर। धार्मिक वैमनस्य फैलाकर। जब इनसे भी कोई बात नहीं बन रही तो अब वो प्राकृतिक ढंग से हमें नुकसान पहंुचाने की फिराक में है।’’
विदेशी मामलों के जानकार उठ खड़े हुए। कहने लगे-‘‘प्राकृतिक ढंग से नुकसान पहुंचाने की ! आपके आविष्कार से भला क्या नुकसान कराया जा सकता है? कैसे?’’
अब ‘केतीन’ ने कहा-‘‘मुझे लगता है कि एस.एस. को अपनी बात पूरी कर लेनी चाहिए।’’ सब चुप हो गए। अब तक एस.एस. सामान्य हो चुके थे। कहने लगे-‘‘पड़ोसी देश की विकृत मानसिकता है कि प्राकृतिक आपदाएं, भूस्खलन, बाढ़, अतिवृष्टि, अकाल आदि की घटनाएं जब भी भारत में होती है, तो उसे खुशी होती है। वो चाहता है कि भारत का जनमानस परेशान हो। भारत सरकार का ध्यान प्राकृतिक घटनाओं से जूझने में ही लगा रहे। इससे कोष पर असर पड़ेगा। जान-माल की अत्यधिक हानि होने से मंहगाई बढ़ेगी। अशांति फैलेगी। तब शायद पड़ोसी मुल्क हम पर पीछे से वार करे। मेरे शोध को वो हथियाना चाहते थे। उनका मानना था कि वे बारंबार हमारे मुल्क में मनचाही बारिश करवाकर हमारे देश को अस्त-व्यस्त कर सकेंगे। बारिश की संभावना को हमेशा मिटाकर सूखा-अकाल की नौबत ला देंगे। वे जानते हैं कि मेरे आविष्कार से विशालकाय रडार विकसित होंगे। ऐसे यंत्र बनेंगे जिससे हमें अपनी धरती में उठने वाले बादलों पता लग जाएगा और हम या तो उन्हें वहां से भगा सकते हैं। या जहां हमें बारिश चाहिए, हम वहां उन बादलों को भेज सकते हैं। मेरे आविष्कार में ऐसी विशालकाय तोप होंगी जो एसिटलीन नामक गैस को बादल में भेजकर उन्हें वहां से भगा सकती है, जहां हम बारिश नहीं चाहते। फिलहाल कहीं से बादलों को लाने और भगाने की सीमा तीन से चार किलोमीटर के दायरे की है। लेकिन वो चाहते थे कि मैं ऐसी बंदूकों-तोपों के लिए कोई ऐसा फार्मूला खोज सकूं जो 300 किलोमीटर के दायरे से ही सैकड़ों किलोमीटर की परिधि में छाए बादलों को भगा दे या तत्काल मनचाही जगह में ताबड़तोड़ बारिश करवा दे। उनके खतरनाक इरादों को भांप कर भी मैंने हामी भर दी। यदि असंभव कह देता तो संभव है कि वो मेरी हत्या भी कर देते।’’ यह कहकर एस.एस. चुप हो गए।
‘‘ओह ! तो ये बात है। वेल्डन। आपकी आंखों में छिपे वीडियों रिकार्डिंग यंत्र ने समूचे चार महीने के पल-पल को रिकार्ड किया ही है। हमारी पूरी टीम आपकी सहायता से पूरे मामले की तह में जाकर दुश्मन को उसीके घर में मात देने की रणनीति बनाएंगे। हमे आप पर गर्व है। आप वैज्ञानिक लोग मनुष्य के हित में और जीव-जन्तुओं के हित में ही तो शोध-आविष्कार करते हैं। लेकिन विज्ञान को अभिशाप बनाने वालों की कमी नहीं। मनुष्य ही है जो प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहा है। आज नही ंतो कल ये संभव है कि हम अपने ही नहीं किसी भी भूभाग में होन वाली बारिश को रोक सकने और सूखे वाले क्षेत्र में बारिश करने का आविष्कार कर पाएं। खैर ़ ़ ़ ़। आप ये बताइए कि आपके शोध का क्या हुआ?’’ इस बार महामहिम ने ही सवाल पूछ लिया।
एस.एस. ने जवाब दिया-‘‘महामहिम महोदय। मुझे दुख है कि मैंने आवेश में आकर अपने आविष्कार की रीति और फार्मूले को उनके समस्त रसायनों सहित सागर को भेंट कर दिया। लेकिन अब मैं सोच रहा हूं कि मेरा आविष्कार भले ही गलत हाथों में पड़ने से अभिशाप हो सकता था लेकिन वह विज्ञान की प्रगति में एक ओर कदम होता। मैं पुनः अपने उस शोध में काम करूं या नहीं। मुझे सूझ ही नहीं रहा है।’’
महामहिम ने कहा-‘‘विज्ञान प्रगति के लिए ही बना है। आप अपने प्रयास जारी रखिए। उसे सार्वजनिक करना है या नहीं। ये भारत सरकार बाद में तय करेगी। हमारी शुभकामनाएं हर उस विज्ञानकर्मी के साथ है, जो जनहित में आविष्कार करता है। हम आदेश करते हैं कि समूची दुनिया को बताया जाए कि एस.एस. जीवित हैं और सुरक्षित हैं। ऐसा कोई संदेश नहीं जाएगा कि हम अपने पड़ोसी मगर हमारा अहित चाहने वाले देश की पहचान कर चुके हैं। पड़ोसी देश के साथ हमारे रिश्ते विदेश नीति के तहत चलते रहेंगे। हां। सुरक्षा मामलों में भारत को और सतर्क होने की आवश्यकता है।’’
बैठक समाप्त हुई और एस.एस. अपने सहयोगी ‘केतीन’ के साथ फिर से अपने प्रयोगों में जुट गए।
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-मनोहर चमोली ‘मनु’. राजकीय हाई स्कूल भितांईं, पौड़ी, पोस्ट बाॅक्स-23. पौड़ी गढ़वाल. पिन-246001. मोबाइल-09412158688.

10 मई 2011

'मीडिया और समाज' चर्चित हैं मीडिया की शब्दावली में ये दो शब्द

हाल ही के दो समाचार मन को उद्वेलित करते हुए याद आ रहे हैं। ‘एक विधायक को सरे आम एक महिला द्वारा चाकू घोंप कर मार देना’ और ‘एक तेल माफिया द्वारा अपर जिलाधिकारी को ज़िंदा जलाकर मार देना। याद कीजिए दोनों ख़बरें अधिकतर अख़बारों में मुखपृष्ठ पर छपी थीं। चैनलों ने भी इनका संज्ञान लिया था। मगर ये दोनों ख़बरें सूचना के रूप में ही आईं। इन दोनों ख़बरों का कल तो पता है। पर आज क्या हुआ। कल दोनों मामलों में क्या होने जा रहा है। किसी को पता नहीं। मीडिया में आ रहे बदलाव पर चर्चा करते हैं तो कई सारी बातें-यादें मीडियाकर्मियों के जहन में हैं। बतौर संवाददाता मुझे एक सांसद की हत्या के दिन याद आ रहे हैं। विश्व स्तर पर यह सांसद हत्याकांड सुर्खियों में रहा। मैं उस समय फैक्स से जिस नगर से समाचार भेजता था, उस नगर से भी कुछ जुड़ाव उस सांसद का था। मेरे नगर के अन्य समाचार पत्रों के संवाददाता भी रोज़ हत्या के बाद कुछ न कुछ हत्या से जुड़े समाचार भेज रहे थे और उन्हें अच्छी ख़ासी जगह मिल रही थी। एक मैं ही था जो लगातार समाचार भेज रहा था, मगर एक भी समाचार नहीं लग रहा था। चार रोज़ बाद मैंने डेस्क पर बात की तो डेस्क इंचार्ज ने बिफरते हुए मुझे कहा-‘‘इस हत्याकांड के अलावा समाचार भेजो, समझे।’’

मैं बहुत बाद में समझा कि मैं जिस अख़बार में काम कर रहा हूं, उस अख़बार में उस सांसद की हत्या के दिन के समाचार के बाद कोई भी समाचार अख़बार में लगा ही नहीं। तब पता चला कि एक राजनीतिक दल इस हत्याकांड को सुर्खियों से दूर रखना चाहता है। मैं जिस अख़बार के लिए काम कर रहा था, वो अख़बार उस दल से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ था। अख़बार प्रबंधन और उस दल के मध्य गोपनीय समझौता हुआ रहा होगा। इस घटना ने पहली बार मुझे ‘मीडिया मैनेजमेंट’ की जानकारी दी थी। धीरे-धीरे पता चला कि पूंजीपतियों-राजनीतिक दलों-सरकारों और नामचीन हस्तियों के साथ अख़बारों के स्वामियों और संपादकों के संबंध भी समाचारों को प्रभावित ही नहीं करते बल्कि सच को झूठ और झूठ को सच के रूप में परोसने का काम भी करते हैं। तभी मैंने महसूस किया कि इसके बावजूद भी डेस्क में काम कर रहे साथी कुशलता के साथ ख़बरों को छोटा-बड़ा करने, शीर्षक से किसी ख़बर को कमज़ोर-सशक्त करने, किसी ख़बर को कहाँ स्थान देना है, जिससे उसका महत्व बेहद बढ़ जाए या बेहद कम हो जाए के लिए अलग से संबंधों-विचारों से अपना काम करते हैं। फिर किसी ख़बर का संज्ञान लेने और छप जाने के बाद होने वाली प्रतिक्रिया ने और बदलाव करवाये। बाक़ायदा सर्कुलर जारी होने लगे। उप संपादकों, सहायक संपादकों, डेस्क इंचार्ज को लिखित में दिशा-निर्देश दिये जाने लगे कि आप किन्हें प्रमुखता देंगे और किन्हें कम महत्व देंगे और किन्हें बिल्कुल नज़रअंदाज़ कर देंगे। समाचार भेजने वाले को छोड़कर अख़बार छपने की प्रक्रिया से जुड़े अधिकतर मीडियाकर्मियों को नियमित तय ‘नज़राना-शुकराना‘ मिलने लगा। अब तो क़स्बाई पत्रकारों को भी ‘नजराना-शुकराना‘ के मोह से अपने आप को अलग रखने में ख़ासी दिक्कत होती है। चुनाव में विज्ञापनों से इतर छोटे-छोटे स्टेशनों में क्या-क्या नहीं होता, कौन नहीं जानता।

आज के अख़बार हों या टी.वी. चैनल। अधिकतर मात्र सूचना देने का काम कर रहे हैं। सूचना का एक साधारण उदाहरण का भी उल्लेख करते चलें। मसलन- ‘यहाँ गाय का ताज़ा दूध मिलता है।‘ अब वाकई गाय का दूध मिलता है या नहीं। इसकी पड़ताल की ज़िम्मेदारी मीडिया की नहीं है। मिलावटी है या नहीं। कह नहीं सकते। ताजा ही मिलेगा। ख़रीदने से पहले खुद ही परखो। यह मीडिया को क्या पता। कम से कम आज के दौर में तो नहीं है। तो फिर मीडिया का काम क्या है? क्या मीडिया का काम ‘सूचना’ देना ही है? यह विचारणीय है।

बीते कल में ऐसा नहीं था। मीडिया का अपना धर्म था। वजूद था। दायित्व था। मीडिया में एक-एक कॉलम की विश्वसनियता होती थी। दूसरे शब्दों में सुदूरवर्ती क्षेत्रों से ख़बरें भेज रहे प्रतिनिधि की अपनी साख थी। सम्मान था। आज स्थतियाँ बदल गई हैं। मीडिया में आए बदलाव की चर्चा करना फिलवक्त अहम् नहीं है। अहम् है दो नए शब्दों का गरमा-गरम रहना। या यूं कहें इन्हीं दो शब्दों में मीडिया का आचरण टिक-सा गया लगता है।

आजकल मीडियाकर्मी मीडिया शब्द कोश में आए दो नए (चूंकि ज़्यादा पुराने नहीं हैं) शब्दों से और चर्चित हैं। ‘मीडिया मैनेजमेंट’ से और ‘पेड न्यूज’ से। ऐसा भी नहीं है कि पाठक और श्रोता इन शब्दों से वाकिफ़ न हों। यही कारण है कि अब सुबह के अख़बार की प्रतीक्षा में वो व्यग्रता, आकुलता, पहले पढ़ने की छटपटाहट नहीं दीखती। वहीं बीते एक दशक में टी.वी. चैनलों को देखने का नज़रिया भी तो बदला है। अब एक ही चैनल में आँख गढ़ाए कौन दिखाई देता हैं? अब तो चैनल देखते हुए यदि हाथ में रिमोट सक्रिय नहीं है तो देखने वाला जागरुक है ही नहीं। यानि रिमोट पर ज़ल्दी-ज़ल्दी अंगुलिया दबनी ही चाहिए। ऐसा कोई चैनल है ही नहीं जो आपके हाथ का बाध्य कर दे कि आप चैनल न बदले। हर चैनल वाले बोलते ही दिखाई पड़ते हैं। ‘जाएगा नही।’,‘हमारे साथ बने रहिए।’ आदि आदि।

एक समय था जब समाचार ‘समाचार’ होता था। प्रतिनिधि या संवाददाता ने जो भेजा, वो साख पर आधारित होता था। डेस्क हो या अख़बार का संपादक। अपने संवाददाता की निष्ठा पर भरोसा करता था। वहीं संवाददाता भी अपने अख़बार के लिए मरने-मिटने को तैयार था। आज तो किसी भी अख़बार के लिए काम कर रहे पत्रकार कहते हैं कि ..........की नौकरी कर रहे हैं। संपादक और उसकी फौज कहती है कि कल की सुबह अख़बार में हमारा नाम हो न हो कह नहीं सकते। चैनल के लिए काम कर रहे पत्रकार अपने चेहरे के लिए चैनल की स्क्रीन ऐसे बदलते हैं जैसे कोई कपड़े बदलता है।

यह सब एक ही दिन में नहीं हुआ। उपभोक्तावाद की संस्कृति ने इसकी बुनियाद रखी। समाचार हो या अति महत्वपूर्ण कार्यक्रम। मुखपृष्ठ हो या आख़िरी। वो दिन लद गए, जब यदा-कदा ही विज्ञापन हुआ करते थे। धीरे-धीरे उत्पाद और उत्पाद की बिक्री के लिए विज्ञापन की मांग बढ़ी। मीडिया के पाठक और श्रोता-दर्शक बढ़ते चले गए तो सबकी निगाह विज्ञापनों पर टिकी। प्रसार संख्या के साथ-साथ पहुंच ने भी विज्ञापनों-समाचारों को अहमियत दी। कमीशन की बंदरबाँट और मान्यता ने भी इसे हवा दी। देखते ही देखते दस प्रतिशत कमीशन अरबों का व्यापार-कारोबार और लाभांश-मुनाफ़ा में तब्दील हो गया।

मीडिया का चरित्र विज्ञापन और विज्ञापनों से उत्पाद लाभांश तक ही सीमित रहता तो भी गनीमत थी। पर नहीं मीडिया का उपयोग नेताओं, राजनीतिक दलों और सरकारों ने भी करना शुरू किया। यह शुरू हुआ सरकार की उपलब्धियों को दिखाने और गिनाने के विज्ञापनों से। बस फिर क्या था। मंत्री-संत्री भी परदे के मोह से नहीं बच पाए। शुरू में मीडिया मेनेजमेंट का चरित्र इतना ढुल-मुल नहीं था। पेड न्यूज का प्रतिशत न्यून था। धीरे-धीरे बाक़ायदा संपादक और उसकी सहायक टीम, डेस्क और फिर क्षेत्रीय प्रतिनिधियों को सर्कूलर जारी होने लगा। छिपी नीतियाँ बनने लगीं। आप ये करें, ये न करें। ये भेजें ये न भेजें। समाचार में कांट-छांट होने लगी। समाचार रोके जाने लगे। भेजी क्लिप का प्रसारण हुआ ही नहीं। भाषा को नरम, ढुल-मुल और तोड़-मरोड़ कर परोसा जाने लगा। भेजा और बनाया कुछ तो छपा और प्रसारित हो रहा कुछ।

मीडिया के साथ बेहतर तालमेल बनाने के लिए अफसर ही नहीं नेताओं, दलों और पूंजीपतियों को मीडिया तंत्र को समझना पड़ा। मीडिया से रिश्ते बढ़ाने पड़े। दलों, सरकारों, औद्योगिक घरानों, फिल्म इंडस्ट्री के धुरंधरों ने मीडिया से रिश्ते बढ़ाने शुरू कर दिये। बाक़ायदा दलों से वैचारिक सहमति रखने वाले पत्रकारों को प्रशिक्षण दिया जाने लगा। अख़बार को चैनल को अप्रत्यक्ष रूप से लाभ देने के रास्तों और जरियों का बाज़ार तलाशा जाने लगा जो लगातार फैलता जा रहा है। ज़रूरी और नियमित विज्ञापनों को मीडिया में समर्थक अख़बार और चैनलों के साथ जोड़कर बांटा जाने लगा।

इस सारे खेल ने पत्रकारों में गुट बना दिये हैं। अख़बार और चैनल के दूसरे अख़बार और चैनल से इतर गुट। अब रुपया देकर समाचार छपने और न्यूज के प्रसारण को मानों मान्यता मिल गई हो। एक समय था जब मीडिया अपने समाचार का खंडन नहीं छापा करता था। खंडन छापे जाने को अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता था। आज खंडन की संभावना ही समाप्त हो गई। आज मीडिया से गलती होती ही नहीं पत्रकारों को क्या भेजना है, कैसे भेजना है। कितना भेजना है। कब भेजना है। सब तय होता है।

अख़बार की नौकरी करने वाले पत्रकार विमुख होकर जब अपना अख़बार या चैनल शुरू करते हैं तो इतने दबाव और मकड़जाल हैं कि वो अभिव्यक्ति की रक्षा करे या अख़बार की नियमितता और निरतंरता की रक्षा करे। कुल मिलाकर मीडिया मिशनरी पत्रकारिता से पीत पत्रकारिता की यात्रा से भी आगे निकल गया है। अब समाचार में व्यूज और न्यूज हो न हो, बस सूचना देना भर रह गया।

हद तो ये हो गई है कि चुनाव के दौरान क्षेत्रीय संवाददाताओं के अधिकार सीमित कर दिये जाते हैं। राजधानी या बड़े स्टेशनों में वरिष्ठ पत्रकार बिठा दिये जाते हैं। बड़ी कवरेज के लिए अख़बार-चैनल ‘स्पेशल मीडियाकर्मी’ को भेजते हैं। इसका क्या अर्थ है। सालों से रोज़-दर-रोज़ जो आपके अख़बार को ख़बरे भेज रहा है। उस पर दिन विशेष में ऐसा भेदभाव क्यों? कारण कई हो सकते हैं। पत्रकार की निष्पक्षता पर शंका हो सकती है या कुछ और भी। एक बात और है। प्रिन्ट में एक अख़बार दूसरे अख़बार में छप रहे विज्ञापनों पर नज़र रखता है। अपने अख़बार में छूट गए विज्ञापन पर संज्ञान लिया जाता है। स्टेशन के अपने पत्रकारों से कहा जाता है कि लगता है तुम्हारे संबंध विज्ञापन देने वाले से अच्छे नहीं है, तभी हमारे अख़बार को विज्ञापन नहीं मिला। अब सोचिये कि पत्रकार संबंध बनायेगा। मीठा व्यवहार रखेगा। उन्हें भोज पर बुलायेगा या उनके भोज पर जाएगा ताकि संबंध बने और विज्ञापन मिले। फिर समाचारों की निष्पक्षता का क्या होगा। पाठकों का क्या होगा?

ये ओर बात है कि निर्भीक पत्रकार जिसे अब ‘सनकी’ कहा जाने लगा है, जान पर खेल कर सच्ची और अच्छी ख़बर छपवाने और भेजने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगाना नहीं भूलते। मगर कब तक? जब बाढ़ ही खेत को खा रही है। तब भला खेतों में फ़सलों की जगह खरपतवार क्यों कर नहीं फलेगा और फूलेगा। अब अख़बार निकालने की बात कोई नहीं करता। करता है तो दूसरे कहने लग जाते हैं, ये देखो पेड न्यूज और मीडिया मैनेजमेंट के लिए एक अभिकर्ता पांत में शामिल हो गया है। मीडिया की शब्दावली में अब और कौन-कौन से शब्द आने वाले हैं। आइए, प्रतीक्षा करें। यह भी क्या मीडिया के प्रति आस्था बनी रहेगी या पाठक-श्रोता सूचना और ज्ञान पाने के तरीक़ों में बदलाव करेंगे?

मनोहर चमोली 'मनु'
पोस्ट बॉक्स-23, पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड - 246001 मो.- 9412158688

14 अप्रैल 2011

-मनोहर चमोली 'मनु' manuchamoli@gmail.com
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आखिर क्यों सर्वशक्तिमान भगवानों [ ? ? ? ] को पशुओं की सवारी की आवश्यकता पड़ी, जबकी वे तो अपनी दिव्यशक्तियों से पलभर में कहीं भी आ-जा सकते हैं? क्यों हर भगवान के साथ कोई पशु जुड़ा हुआ है ? ? ? ?

13 अप्रैल 2011

-मनोहर चमोली 'मनु' manuchamoli@gmail.com -------नई क्लास, नई किताबें, नया स्कूल- - नये सत्र के आते ही बच्चे खुश हो जाया करते थे... आज वो उत्साह नही दीखता. या बदल गया होगा, जो मुझे नही दिख रहा होगा...आप क्या कहते हैं.....?

अपनी बात..

---------आज के बच्चे ज्यादा जिद्दी हो रहें हैं.ऐसा अधिकतर उनके माता-पिता कहते हैं. बाल स्वभाव किन कारणों से बदल रहा है.?? ऐसा तो नहीं कि बच्चों का जिद्दी-क्रोधी होने में माता-पिता की ही अहम् भूमिका हो. ?

vichar

----------'हम सब भारत के ऋणी हैं, उसने हमें गिनना सिखाया है, इसके बिना दुनिया का कोई अविष्कार नहीं हो सकता था.' -अल्बर्ट आइन्स्टीन.

8 जन॰ 2011

देनहार कोई और है [ प्रेरक कथा ]

राजा रणविजय का एक सलाहकार था। उसका नाम दरमान था। दरमान कई अवसरों पर राजा को महत्वपूर्ण सलाह देते। राजा के आदेश पर सलाहकार दरमान दरबार में प्रतिदिन याचकों को रोटी, कपड़ा और अन्य ज़रूरतों की वस्तुएं दान करने लगा। याचक दान लेते और हाथ जोड़कर दरमान को आशीर्वाद देकर आगे बढ़ जाते। मंत्री, सेनापति और पुरोहित मन ही मन दरमान की ख्याति से जलने लगे।

एक दिन दरबार में सेनापति ने कहा-‘‘महाराज। दरमान दान करते समय याचक का चेहरा तो दूर किसी की ओर नज़र उठाकर भी नहीं देखता। यह दान के काम में अत्यधिक शीघ्रता दिखाता है। ऐसे तो महाराज कई याचक दोबारा भी दान लेने की पंक्ति में खड़े हो जाते होंगे। इसकी नज़रें ही नहीं सिर भी नीचा ही रहता है।’’ पुरोहित और मंत्री ने भी सेनापति की हाँ में हाँ मिलाया। वे चाहते थे कि दरमान से दान कराने का कार्य छिन लिया जाए।

राजा ने अपने सलाहकार दरमान से पूछा तो वह कहने लगा-‘‘महाराज। देनहार कोई और है देत रहत दिन रैन। लोग भरम हम पर धरैं याते नीचे नैन।’’

पुरोहित बीच में ही बोल पड़ा-‘‘दरमान विद्वता मत बघारो। सीधे जवाब दो।’’

दरमान ने मुस्कराते हुए जवाब दिया-‘‘राजन्। दान मेरे हाथों से होता है। जिस कारण याचक मुझे दाता समझते हैं। वे दान लेते समय मुझे हाथ जोड़ते हैं। मगर मैं तो मात्रा आपकी आज्ञा का ही पालन कर रहा हूं। वास्तव में दान तो आप कर रहे होते हैं। दान देने वाले तो आप हैं। यही कारण है कि मेरा सिर नीचा रहता है। मैं शर्म के मारे आँखें ऊँची नहीं कर पाता।’’

राजा रणविजय सारा माज़रा समझ गए। वे मुस्कराते हुए बोले-‘‘हमारा आदेश है कि दरमान की सहायता के लिए आज से मंत्री, सेनापति और पुरोहित याचकों पर कड़ी नज़र रखेंगे। ये जिम्मेदारी इनकी ही होगी कि कोई ज़रूरतमंद दान से वंचित न हो और कोई अपात्र अनावश्यक दान प्राप्त न कर ले। हम दरमान की निष्ठा से प्रसन्न होकर उनका वेतन बीस फ़ीसदी बढ़ाने का आदेश देते हैं।’’

राजा का आदेश सुनकर मंत्री, सेनापति और पुरोहित बुरी तरह झेंप गए।


मनोहर चमोली 'मनु'
पोस्ट बॉक्स-23, पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड - 246001 मो.- 9412158688
manuchamoli@gmail.com