17 अग॰ 2013

समझ आया खेल का खेल AUG 2nd CHAMPAK

समझ आया खेल का खेल

मनोहर चमोली ‘मनु’
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‘‘चूंचूं। ये लो नया मोबाइल। ये उपहार तुम्हारे लिए है। इसमें कई वीडियों गेम हैं। इसका डाउनलोडिंग सिस्टम भी बढ़िया है।’’ चूंचूं चूहे के पापा ने चूंचूं से कहा।
‘‘लेकिन बेटा। चूंचूं को अभी से मोबाइल की आदत डलवाना ठीक होगा क्या?’’ चूंचूं की दादी ने पूछा।
‘‘ओह मम्मी। ये 21वीं सदी है। नई पीढ़ी बहुत समझदार है। आपका और हमारा जमाना लद गया।’’ चूंचूं के पापा ने चूंचूं की दादी से कहा।
चूंचूं चूहा स्कूल की दौड़ प्रतियोगिता में प्रथम आया था। उससे पहले उसने क्रिकेट में भी मैन आॅफ दि मैच का खिताब हासिल किया था। वह फुटबाल टीम में चुन लिया गया था। इन्ही कारणों से उसके पापा ने उसे मोबाइल उपहार में लाकर दिया था।
दादी ने चूंचूं को समझाते हुए कहा-‘‘चूंचूं बेटा। मुझे उम्मीद है कि तुम मोबाइल का उपयोग अच्छे के लिए ही करोगे। करोगे न?’’
चूंचूं चूहा हंसते हुए बोला-‘‘दादी। मोबाइल का उपयोग अच्छे के लिए ही होता है। मोबाइल चलाना गुड्डे-गुड़िया का खेल नहीं है।’’ उसने झट से मोबाइल के फंक्शन टटोलने शुरू कर दिये। चूंचूं ने कुछ ही दिनों में मोबाइल के सारे फंक्शन अच्छी तरह से समझ लिए थे।
चूंचूं चूहा अब अक्सर मोबाइल पर गेम खेलता। वह मोबाइल स्कूल भी ले जाने लगा था। जब भी उसे वक्त मिलता वह मोबाइल पर झुक जाता। उसने कुछ दोस्तों को भी मोबाइल गेम सिखा दिए। चूंचूं के कई दोस्त भी अब स्कूल में मोबाइल लेकर आने लगे।
‘‘चूंचूं बेटा। मैं देख रही हूं कि तुम जब देखो, मोबाइल पर ही व्यस्त रहते हो। तुम्हारा पढ़ना-लिखना पहले की तरह नहीं हो रहा है। यही नहीं तुमने स्पोटर््स प्रैक्टिस भी बंद कर दी है। है न?’’ चूंचूं की दादी ने पूछा।
यह सुनकर चूंचूं चिढ़ गया। झल्लाते हुए बोला-‘‘दादी अब मैं बच्चा नहीं रहा। आपको क्या पता कि मैं मोबाइल में क्या कर रहा हूं। आपको पता भी है कि मोबाइल पर आॅन लाइन टीचिंग भी होती है। मोबाइल में इनडोर गेम्स की भरमार है। इससे ब्रेन तेज भी होता है। आप नहीं समझेंगी।’’ यह सुनकर चूंचूं की दादी मुस्कराई और टहलने चली गई।
एक दिन की बात है। चूंचूं चूहा स्कूल से घर लौट रहा था। उसका चेहरा उतरा हुआ था। चूंचूं की मम्मी ने पूछा-‘‘क्यों बेटा। क्या बात है? किसी ने कुछ कहा क्या?’’
‘‘नहीं मम्मी। लेकिन। स्कूल में आज दौड़ हुई थी। मैं टाॅप 10 में भी नहीं आ सका।’’ चूंचूं ने बताया।
‘‘तो क्या हुआ। जाने दो। परेशान न हो। बेहतर आने के लिए जो प्रयास किया जाना था, वह नहीं किया होगा न। बस। उस कमी को दूर करना, जिसकी वजह से ऐसा हुआ। चलो। मुंहहाथ धो लो।’’ चूंचूं की मम्मी ने हौसला बढ़ाते हुए कहा।
चूंचूं दूसरे दिन भी स्कूल से घर लौटा तो परेशान था। चूंचूं चूहा रोते हुए बोला-‘‘मम्मी। स्कूल की क्रिकेट टीम में मेरा सलेक्शन नहीं हुआ।’’
चूंचूं की मम्मी ने फिर कहा-‘‘तो क्या हुआ। कोई बात नहीं। तुम तो तबला भी अच्छा बजा लेते हो। म्यूजिक कम्पीटिशन में तुम अच्छा करोगे।’’
स्कूल में स्थापना दिवस की रिहर्सल होने लगी। रैटी चूहा ने अच्छा तबला बजाया। फाइनल प्रोग्राम के लिए म्यूजिक टीचर ने चूंचूं की जगह रैटी चूहे को सलेक्ट कर लिया।
 चूंचूं चूहे ने दादी को सारा किस्सा सुनाया। दादी ने चूंचूं को समझाते हुए कहा-‘‘ये सब अभ्यास न करने का परिणाम है। संतोषजनक परिणाम देते रहने के लिए लगातार अभ्यास जरूरी होता है। दौड़ में,क्रिकेट में और म्यूजिक में तुम्हारा सलेक्शन नहीं हुआ। इसका मतलब यह नहीं कि तुम अयोग्य थे। बल्कि सलेक्शन के समय तुमसे अधिक फिट कोई और थे। यह तुम्हें अहसास कराने के लिए संकेत हैं कि तुमने अभ्यास का समय खोया है। मोबाइल गेम्स के चक्कर में तुमने अपनी क्षमता को कम किया है।’’
चूंचूं चूहा सुबकते हुए बोला-‘‘अब क्या होगा? तो दादी अब मैं क्या करूं?’’
दादी ने समझाया-‘‘कुछ नहीं। बस तुम पहले की तरह पढ़ाई में मन लगाओ। स्पोर्ट्स की प्रैक्टिस के लिए समय निकालो। फिर देखना परिणाम बेहतर मिलेंगे। हां। मोबाइल पर झुके रहना बंद करना होगा।’’
चूंचूं चूहा कान पकड़कर खड़ा हो गया। सिर हिलाते हुए बोला-‘‘प्राॅमिस दादी। आज से क्या। अभी से मोबाइल पर गेम्स खेलना बंद। चलो। आंगन का एक चक्कर दौड़ लगाकर पूरा करते हैं।’’
‘‘चलो।’’ यह कहकर दादी ने अपनी छड़ी एक ओर रखी और चूंचूं के साथ आंगन का चक्कर लगाने लगी।
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-मनोहर चमोली ‘मनु’.