26 जून 2013

उत्तराखण्ड के जनपद उत्तरकाशी में आयोजित राष्ट्रीय बालसाहित्य संगोष्ठी

     राष्ट्रीय बालसाहित्य संगोष्ठी 
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उत्तराखण्ड के जनपद उत्तरकाशी में आयोजित राष्ट्रीय बालसाहित्य संगोष्ठी में शामिल होने का मौका मिला। यह संगोष्ठी बाल प्रहरी और अजीम प्रेमजी फाउण्डेशन के तत्वाधान में सम्पन्न हुई। सात जून से प्रारम्भ हुई यह संगोष्ठी 9 जून 2013 को समाप्त हुई। बाल प्रहरी की बाल साहित्य संगोष्ठी में पहली बार शामिल होने का अवसर मिला। अच्छा लगा। तीन दिवसीय संगोष्ठी में बाल साहित्य में विज्ञान लेखन, बाल साहित्य में बाल पत्रिकाओं का योगदान, बालसाहित्य एवं शिक्षा, बाल विज्ञान कथा विश्लेषण के साथ-साथ अप्रत्यक्ष तौर पर बाल कविता पर भी चर्चा हुई।
अजीम प्रेमजी फाॅउण्डेशन के सहयोग से यह संगोष्ठी सम्पन्न हुई। बाल साहित्य में विज्ञान लेखन सत्र बेहद महत्वपूर्ण रहा। किन्तु इस सत्र में व्यापक बहस और चर्चा की आवश्यकता महसूस की गई। सभी सत्रों में दो-दो बाल साहित्यकारों को सत्रों पर अपनी बात रखने का अवसर दिया गया था। फिर अध्यक्षीय संबोधन भी था, किन्तु समयाभाव के कारण प्रत्येक सत्र में विशेषज्ञों और अध्यक्षीय संबोधन में अधिक प्रकाश डालने के कमी अवश्य खली। खुला सत्र में पर्याप्त समय के अभाव के चलते कई प्रश्न और जिज्ञासा बंद रह गए। उपस्थित बाल साहित्यकार हर सत्र में अपनी बात रखना चाह रहे थे, लेकिन सत्र संचालकों ने खुले सत्र को भी तीन चार प्रश्नों तक ही समेट दिया। कारण स्पष्ट था कि अगले सत्र के प्रारम्भ होने की भी चिंता थी।
इसके साथ-साथ एक बात और देखने को मिली कि संबंधित सत्रों के लिए पृच्छा विषय से इतर अनावश्यक अधिक रही। अपनी बात कहने वाले और प्रश्न पूछने वाले सहभागी विषय से भटकते रहे। यही कारण रहा कि अपेक्षित समय भी अनावश्यक चर्चाओं में जाया हुआ। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि आगामी संगोष्ठियों में विभिन्न सत्रों के चलते एक मुख्य सत्र ही रखा जाए।
    यदि उपरोक्त सत्रों के हिसाब से नये और उदीयमान बाल साहित्यकारों की सहभागिता देखी जाए और निष्कर्ष के रूप में कुछ सार निकाला जाए तो संभवतः कोई भी सत्र अपने सार-निष्कर्ष तक नहीं पहंुच पाया। यानि हर सत्र के विषय और गंभीर चर्चा और बहस की दरकार रखते थे।
अमूमन संगोष्ठियों में ऐसा ही होता है, लेकिन व्यवस्थित और समयपूर्व यदि तैयारी हो तो सत्रों के विशेषज्ञों के विचार लिखित में सहभागियों को बंट जाएं। इससे सहभागी भी अपनी पूर्व धारणा और एक्सपर्ट के विचारों से मानसिक रूप से जुड़ सकते हैं और बहस-चर्चा के उपरांत एक राय तक पहुंच सकते हैं। संभव है कि कई बार विशेषज्ञों का आना ऐन वक्त पर टल जाता है, तो दूसरे विकल्प पर भी आयोजकों को विचार कर लेना चाहिए।
एक बात और है कि सहभागी भी कई बार मूल चर्चा-प्रश्न-बहस से इतर भटक कर चर्चा को नई और अतार्किक बहस की और ले जाते हैं। कई बार सहभागियों की इच्छा यह भी रहती है कि उन्हें भी सुना जाए, उनके काम और उपलब्धियों पर भी रोशनी पड़ जाए। लेकिन किसी समयबद्ध और तय सत्रों के मध्य ऐसा कर पाना और ऐसा हो पाना संभव नहीं होता।
    मुझे तो ये लगता है कि या तो संगोष्ठियों में सभी सहभागी अपना जीवन वृतांत और उपलब्धियों का विवरण सहभागियों की संख्या के अनुसार छायाप्रति लेकर आएं और सबको बांट दे। या फिर आयोजक ऐसा स्लाइड शो तैयार करे जिसमें उपस्थित सभी सहभागियों का विवरण सब देख लें। अधिकतर संगोष्ठियों में सहभागी सुनने कम सुनाने ज्यादा लगते हैं। वह भी विषय से हटकर और उद्देश्यविहीन बातों पर समय बिताने लगते हैं। परिणाम यह होता है कि मुख्य सत्रांे के गंभीर व्याख्यान सारगर्भित होते हुए भी अपना वह असर नहीं छोड़ पाते जो उन्हें तय करते समय संभवतः आयोजकों ने सोचें हों या जिनकी संभावना रही हो। 
संगोष्ठियों को विधावार भी होना चाहिए। बाल कवि, बाल कथाकार को भी चाहिए कि वाह बाल नाटककार को सुने। महसूस करे। अन्य विधाओं पर भी संगोष्ठी हो सकती है। बालसाहित्य पर चर्चा विहंगम दृष्टिकोण चाहती है। अच्छा हो कि हम कहानी, कविता, नाटक, डायरी लेखन, उपन्यास, आदि विधाओं को अलग-अलग संगोष्ठियों का हिस्सा बनाएं। एक तो सहभागी अधिक हो सकेंगे और विशेषज्ञ कम। दूसरा अन्य विधाओं से भी परिचय हो सकेगा। अक्सर बाल साहित्यकार कविता और कहानी में खुद को बेहतर समझते हैं और इस पर अपनी अच्छी पकड़ मानकर चलते हैं। जबकि हम सब जानते हैं कि सीखने-जानने और खुद को तराशने की संभावना हमेशा बनी रहती है।
विषम परिस्थितियों में और उत्तरकाशी में तीन दिवसीय आयोजन होना अपने आप में उपलब्धि है। बाल प्रहरी के साथ-साथ अजीमप्रेमजी फाउण्डेशन भी और दूर-दूर से आने वाले बाल साहित्यकार बधाई के पात्र हैं।
संगोष्ठी में उत्तराखण्ड, उत्तरप्रदेश, बिहार , राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली, झारखण्ड, गुजरात राज्यों के सौ से अधिक बालसाहित्यकारों एवं साहित्यप्रेमियों ने सहभाग किया। दस से अधिक बाल साहित्य पर केन्द्रित पुस्तकों का विमोचन भी किया गया। बाल साहित्य संस्थान, अल्मोड़ा द्वारा संग्रहीत नई-पुरानी बाल साहित्य पत्रिकाएं प्रदर्शनी में अवलोकनार्थ भी रखी गईं। बाल साहित्यकारों ने बाल कविताओं पर आधारित कवि सम्मेलन में भी सहभाग किया। बाल साहित्यकारों में प्रमुख रूप से डाॅ0 राष्ट्रबंधु, मुरलीधर वैष्णव, गुरुवचन सिंह,राजेश उत्साही, डाॅ0रामनिवास ‘मानव’, रमेश तैलंग, डाॅ0हरिश्चन्द्र बोरकर, गोविन्द भारद्वाज, डाॅ0 भैरूलाल गर्ग, डाॅ महावीर रंवाल्टा, डाॅ0 परशुराम शुक्ल, डाॅ0मधु भारतीय, डाॅ0अशोक गुलशन, मुरलीधर पाण्डेय, डाॅ प्रीतम अपच्छयाण, रेखा चमोली, विमला भण्डारी, अमरेन्द्र सिंह, खजान सिंह, डाॅ शेषपाल सिंह शेष, अखिलेश निगम, देश बन्धु शाहजहां पुरी, दयाशंकर कुशवाहा, गोविन्द शर्मा, रतन सिंह किरमोलिया, नीरज पंत, प्रमोद पैन्यूली, मंजू पाण्डे उदिता, जगमोहन कठैत, जगमोहन चोपता,  उदय किरौला, नवीन डिमरी बादल, मोहन चैहान, सतीश जोशी, प्रदीप बहुगुणा ‘दर्पण’ (सभी के नाम शामिल न करने का खेद है) आदि ने विभिन्न सत्रों में अपने विचार भी व्यक्त किये।
000 मनोहर चमोली ‘मनु’
काण्डई,पोस्ट बाॅक्स-23,पौड़ी,पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड 246001.
सम्पर्कः 09412158688.
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4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा सटीक आलेख । ऐसी संगोष्ठियों में कमियाँ तो देखी गईं हैं फिर भी इनकी उपादेयता निर्विवाद है । कृपया आप मेरे बाल-रचनाओं वाले इस ब्लाग को अवस्य देखें । लिंक-http://manya-vihaan.blogspot.in/

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  2. मैंने भी विभिन्न गोष्ठियों व कार्यशालाओं मे यह पाया की लोग विषय पर कम बोलते हैं और विषय के इतर ज्यादा।

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यहाँ तक आएँ हैं तो दो शब्द लिख भी दीजिएगा। क्या पता आपके दो शब्द मेरे लिए प्रकाश पुंज बने। क्या पता आपकी सलाह मुझे सही राह दिखाए. मेरा लिखना और आप से जुड़ना सार्थक हो जाए। आभार! मित्रों धन्यवाद।