9 नव॰ 2015

दीवाली की अगली सुबह नन्हे सम्राट दिसंबर 2015

दीवाली की अगली सुबह

-मनोहर चमोली ‘मनु’


दीवाली से एक दिन पहले की सुबह थी। हर कोई बड़ा उत्साहित था, लेकिन मोहित, हरजीत और इरफान की आंखों में विशेष चमक थी। वह जहां भी जा रहे थे, एक साथ जा रहे थे। आंखों ही आंखों में झांकते और मुस्कराने लग जाते। जाॅन किनसुर ने पूछ भी लिया था-‘‘मैं कई दिनों से देख रहा हूं। तुम तीनों की एक्टीविटी अलग सी हो गई हैं। क्या कुछ चल रहा है तुम्हारे दिमाग में? हमसे भी शेयर करो यार।’’ कुलबिन्दर ने कहा-‘‘ये हमेशा से ऐसे ही हैं। जब भी कोई त्योहार आता है, ये अलग टोली बना लेते हैं। दीवाली आ रही है, इनके दिमाग में कुछ हट कर चल रहा होगा। रहने दो। दीवाली के दिन पता चल ही जाएगा।’’ बात आई गई हो गई।
आज दीवाली है। कुलबिन्दर के साथ जाॅन किनसुर सुबह से ही इन तीनों की निगरानी कर रहे थे। वे इन दोनों को देखते और सिवाय मुस्कराने के कुछ बोल ही नहीं रहे थे। काॅलोनी बहुत बड़ी थी। काॅलोनी की टाइप बिल्डिंगस में मोहित, हरजीत और इरफान चक्कर लगा रहे थे। आंखों ही आंखों में झांकते और मुस्कराने लग जाते। शाम होते-होते तीनों ने काॅलोनी के दो चक्कर लगा लिये थे। अंधेरा होने से पहले वह काॅलोनी के पार्क में बैठे हुए थे।
मोहित ने पूछा-‘‘हरजीत। डंडों का इंतजाम हो गया?’’ हरजीत ने हां में सिर हिलाया। इरफान ने पूछा-‘‘अरे हां। टार्च का?’’ हरजीत बोला-‘‘डोंट वरी। तुसी ये मेरे पे छोड़ दो। दादी के पास जो मोबाइल है, उसकी टार्च पावरफुल है। ये देखो। कल तक मोबाइल मेरे पास ही रहेगा। और दसो।’’ मोहित ने धीरे से कहा-‘‘एक बैग भी तो चाहिए था?’’ इरफान ने कहा-‘‘है मेरे पास।’’
हरजीत बोला-‘‘आज ज्यादा जागने की जुरूरत नहीं है। मस्ती करो और जल्दी सो जाओ। सुबह अंधेरे में उठने के लिए एलार्म लगा लेना। अपने-अपने घर से निकल कर यहीं पार्क में मिलना है। ठीक पांच बजे।’’
इरफान बोला-‘‘पांच नहीं, यार चार बजे करो। पूरी काॅलोनी कवर करनी है। इससे पहले कोई जाग जाए, हमें अपना काम खत्म कर लेना है। किसी ने देख लिया तो।’’ मोहित बोला-‘‘ठीक कहते हो। हमें एक जगह से दूसरी जगह भी तो जाना होगा। इस पार्क को देख रहे हो। बहुत बड़ा है। यहां भी हमें बहुत समय लग जाएगा। वैसे हर जगह स्ट्रीट लाईट्स हैं। हमें ज्यादा दिक्कत नहीं होगी।’’
हरजीत बोला-‘‘सब हो जाएगा। बस दो बंदों से संभलकर रहना होगा। सोनू और साजिद से। उनकी नज़र भी मिस पटाखों पर रहती है। वे भी हर साल सुबह-सवेरे पटाखें खोजने आते हैं। पिछली दिवाली में तो उन दोनों ने मेरे उठाए पटाखे छीन लिए थे। वे दो थे और मैं अकेला। इस बार तो हम तीन है। डंडे हमारे पास रहंेगे ही। मैं तो धुनाई कर दूंगा।’’ मोहित बोला-‘‘ओए रहने दे। हमें किसी से लड़ाई नहीं करनी है। हमें तो आज मिस हुए पटाखे उठाने हैं और चल देना है।’’
हरजीत बोला-‘‘ओके। यार। कल सुबह चार बजे। हैप्पी दीवाली।’’ सब अपने-अपने घर की ओर चल पड़े। दीवाली का धूम-धड़ाका देर रात तक चलता रहा। हरजीत, मोहित और इरफान पटाखों की आवाजें़ सुनते और मन ही मन मुस्कराते। उन्हें पता था कि रात के अंधेरे में कई बार पटाखों को जलाते समय उनकी बाती पर आग नहीं लग पाती और वह बिना जले ही छूट जाते हैं। यही मिस बम-पटाखे तो उन्होंने सुबह उठाने का प्लाॅन किया था। वह भी सबसे पहले। काॅलोनी में तो कई होंगे, जो सुबह-सुबह उठकर मिस पटाखें उठाने के लिए काॅलोनी का चक्कर लगाएंगे। लेकिन वे तो चार बजें उठने वाले हैं वह भी एक साथ। 
भोर हुई। वे तीनों पंहुच गए। इरफान बोला-‘‘किसी को कोई दिक्कत तो नहीं हुई? सबके पास डंडे हैं न? मैं ये दो और ले आया। काॅलोनी में कुत्ते बहुत हैं।’’ हरजीत और मोहित चुप रहे। हरजीत बोला-पार्क के बम बाद में उठाएंगे। पहले टाईप वन में चलो। फिर टाईप टू में जाएंगे और फिर टाइप थर्ड में। समय बचा तो तब टाइप फोर में जाएंगे नहीं तो पार्क में आ जाएंगे।’’ मोहत बोला-‘‘यही ठीक रहेगा।’’
अभी वह टाईप वन के आस-पास के मिस पटाखे खोज-खोज कर बैग में भर रहे थे कि हरजीत बोला-‘‘ओ तेरे की। यह बैग तो भर गया। अब क्या करें?’’ इरफान बोला-‘‘चलो कोई बात नहीं। अपनी ज़ेबें भी भर लेते हैं। चलो जल्दी करो।’’ थोड़ी देर बाद मोहित बोला-‘‘मेरे तो सारे जे़ब भर गए। पटाखें हैं कि मिलते ही जा रहे हैं। अब क्या करूं?’’ यही हाल हरजीत का और इरफान का था। इरफान बोला-‘‘हमें अलग-अलग बैग लाने चाहिए थे।’’ हरजीत बोला-‘‘अब किसी को क्या पता था कि लोगों को पटाखें छुड़ाने भी नहीं आते। यह बैग क्या कम बड़ा है? हम सभी के जेबों में भी पटाखें हैं।’’ मोहित बोला-‘‘ज़रा सोचो। पूरी काॅलोनी में मिस पटाखे कितने होंगे? हम बेकार में अंधेरे में आए। हमसे अच्छे तो वे हैं जो आराम से सोकर जागेंगे और आराम से काॅलोनी का चक्कर लगाएंगे।’’
इरफान बोला-‘‘मैं ऐसा करता हूं। घर लौट जाता हूं। घर के स्टोर में एक बैग रखा है। वह इससे भी बड़ा है। ले आता हूं।’’ मोहित बोला-‘‘ठीक है। हम तीनों चलते हैं। कुत्तों का डर हो सकता है।’’ तीनों इरफान के घर की ओर चल पड़ते हैं। बैग लेकर वह टाईप वन में वापिस लौट आते हैं। कुछ ही देर में वह बैग भी भर ज9ाता है। हरजीत खुश होते हुए बोला-‘‘वाह ! मजा आ गया। हमारा तो यह बैग भी भर गया। इतने पटाखे जमा हो गए है कि हम एक महीने की दीवाली मना सकते हैं। क्यों?’’ इरफान बोला-‘‘देखो यार, हमें एक भी कुत्ता नहीं मिला। चलो वापिस अपने घर चलते हैं। सुबह होते ही फिर पार्क में मिलते हैं।’’
सुबह हुई। तीनों पार्क में आ पहुंचे। पार्क का नज़ारा देखते ही वह हैरान थे। सूरज आसमान में था। लेकिन रात हुई पटाखेबाजी के कारण वह धुंधला दिखाई दे रहा था। 
इरफान बोला-‘‘मोहित। कुछ समझ में आया?’’
मोहित ने कहा-‘‘हां यार। काॅलोनी वालों ने पार्क का सत्यानाश कर दिया। मुझे याद है हमने जून में इस पार्क के किनारे पेड़ लगाए थे। देख रहा हूं कि कल दीवाली के धूम धड़ाकों में वे सारे मुरझा गए हैं।’’ तभी कुलबिन्दर और जाॅन किनसुर भी आ गए। हरजीत बोला-‘‘ये भी पटाखे उठाने आए हैं। अपना प्लान मत बताना।’’ कुलबिन्दर बोल पड़ी-‘‘हम भी तुम्हारे पीछे-पीछे थे। हमसे क्या अपना प्लाॅन छिपाओगे। तुम दो बैग्स भर कर ले गए। हमारे पास तीन बैग्स भरे हुए हैं।’’
जाॅन किनसुर ने कहा-‘‘एक बात तो तय है कि यदि हमारी काॅलोनी का यह हाल है तो इसका मतलब यह है कि पूरे देश में करोड़ों पटाखे मिस हुए होंगे।’’ हरजीत बोला-‘‘जरा सोचो। ये करोड़ों के पटाखों में कितना रुपया खर्च किया गया होगा?’’ मोहित ने कहा-‘‘हां यार। सूरज को देख रहे हो। नौ बजने वाले हैं और ऐसा लग रहा है कि सूरज आज पूरब से आया ही नहीं होगा।’’ जाॅन किनसुर ने कहा-‘‘एक बात नोटिस की तुम सबने? इस काॅलोनी के कुत्ते कहां गए। कल से सब गायब हैं। पटाखों के शोर से उनके कानों का क्या हुआ होगा?’’
इरफान ने कहा-‘‘काॅलोनी के मिस पटाखों के अलावा पटाखों का कचरा देख रहे हो। ये सब क्या है यार। अब देखो। हमने जो पटाखे इकट्ठा किये हैं, उनका क्या करें?’’ मोहित ने कहा-‘‘ये हालत देखकर मुझे नहीं लगता कि हम उन्हें जलाएं।’’ इरफान बोला-‘‘हमारे जलाने न जलाने से क्या होता है। पब्लिक तो जला ही रही है। कान फोड़ू धमाके किसने नहीं सुने कल। पूरी रात शोर ही शोर था।’’
कुलबिन्दर बोली-‘‘हम भी तो पब्लिक का हिस्सा हैं। ऐसा नहीं हो सकता कि हम सब ठान लें कि पटाखों की दीवाली नहीं खेलेंगे। दीप जलाएंगे। केंडल जलाएंगे। घर की साफ-सफाई करेंगे। क्या हम इतना भी नहीं कर सकते?’’
इरफान बोला-‘‘यार ये आइडिया बुरा नहीं। लेकिन हमने आज सुबह जो पटाखे इकट्ठा किये हैं उनका क्या करें?’’ जाॅन किनसुर बीच में ही बोल पड़ा-‘‘चर्च के फादर कहते हैं। जो चीजें आपकी काम की न हो, वो किसी ओर के काम की हो सकती हैं। ऐसा नहीं हो सकता कि अगली दीवाली में हम पूरी काॅलोनी वालों को कन्वेंस करें कि जो इस बार के बचे पटाखें हैं,उन्हीं से दीवाली मनाएं। नए पटाखे न खरीदें।’’ कुलबिन्दर ने कहा-‘‘आइडिया बुरा नहीं। हम दो थे। तुम तीन हो। अब हम पांच हो गए हैं। हो सकता है हमारे इस प्लान में कुछ फरेन्डस और जुड़ जाएं। मिलाओ हाथ।’’
तब तक सोनू और साजिद आ गए। सोनू बोला-‘‘हम भी तुम्हारे साथ हैं। यार वाकई। ये पटाखे तो बहुत बुरे हैं। हमारा कुत्ता तो कल से गायब है।’’ साजिद ने कहा-‘‘हमारे घर के दोनों तोत पटाखों के धूल-धड़ाकों से बेसुध पड़े हैं। शायद ही बचेंगे।’’
सबने एक-दूसरे से हाथ मिलाया और अपने घर की ओर चल पड़े। 
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मनोहर चमोली ‘मनु’,भितांई,पोस्ट बाॅक्स-23,पौड़ी 246001 उत्तराखण्ड। मोबाइल-09412158688

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