14 सित॰ 2012

‘आधा अधनंगा देश शर्मिन्दा है’ ...कविता


‘आधा अधनंगा देश शर्मिन्दा है’

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अहा! मेरा देश!
कबीर के करघे का देश
गांधी के चरखे का देश
ये अगुवा थे मेरे देश के तब
हाय ! मेरा देश
तीन-चैथाई अधनंगा था जब!
कबीर-गांधी शर्मिन्दा थे

यकीनन तभी वे भी अंधनंगे थे
ओह ! आज मेरा देश !
नेताओं का देश
ठेकदारों का देश
कमीशन का देश
रिश्वत का देश
बन्दरबाँटों का देश
छि ! देश अब भी आधा अधनंगा है
और अन्य आधों के अगुवा
बेशकीमती कपड़े ऐसे उतारते हैं
जैसे भूखा बार-बार थूक घूँटता है
इन अगड़ों की आँखों में
बँधी है पट्टी बेशर्मी की
लेकिन आधा अधनंगा देश
इन्हें देख कर शर्मिन्दा है।
मैं भी।
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-मनोहर चमोली ‘मनु’

2 टिप्‍पणियां:

यहाँ तक आएँ हैं तो दो शब्द लिख भी दीजिएगा। क्या पता आपके दो शब्द मेरे लिए प्रकाश पुंज बने। क्या पता आपकी सलाह मुझे सही राह दिखाए. मेरा लिखना और आप से जुड़ना सार्थक हो जाए। आभार! मित्रों धन्यवाद।