‘आधा अधनंगा देश शर्मिन्दा है’
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अहा! मेरा देश!
कबीर के करघे का देश
गांधी के चरखे का देश
ये अगुवा थे मेरे देश के तब
हाय ! मेरा देश
तीन-चैथाई अधनंगा था जब!
कबीर-गांधी शर्मिन्दा थे
यकीनन तभी वे भी अंधनंगे थे
ओह ! आज मेरा देश !
नेताओं का देश
ठेकदारों का देश
कमीशन का देश
रिश्वत का देश
बन्दरबाँटों का देश
छि ! देश अब भी आधा अधनंगा है
और अन्य आधों के अगुवा
बेशकीमती कपड़े ऐसे उतारते हैं
जैसे भूखा बार-बार थूक घूँटता है
इन अगड़ों की आँखों में
बँधी है पट्टी बेशर्मी की
लेकिन आधा अधनंगा देश
इन्हें देख कर शर्मिन्दा है।
मैं भी।
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-मनोहर चमोली ‘मनु’
ओह ! आज मेरा देश !
नेताओं का देश
ठेकदारों का देश
कमीशन का देश
रिश्वत का देश
बन्दरबाँटों का देश
छि ! देश अब भी आधा अधनंगा है
और अन्य आधों के अगुवा
बेशकीमती कपड़े ऐसे उतारते हैं
जैसे भूखा बार-बार थूक घूँटता है
इन अगड़ों की आँखों में
बँधी है पट्टी बेशर्मी की
लेकिन आधा अधनंगा देश
इन्हें देख कर शर्मिन्दा है।
मैं भी।
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-मनोहर चमोली ‘मनु’
सही कहा ..बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंआभार मित्र। धन्यवाद।
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