27 सित॰ 2013

धन की माया अपरंपार मनोहर चमोली ‘मनु’ NANDAN Oct 2013

'धन की माया अपरंपार'

............. कथा: मनोहर चमोली ‘मनु’

एक बार की बात। राजा कृष्णदेव राय वन विहार पर थे।
दरबारी भी साथ थे। अचानक राजा ने कहा-‘‘अहा !  वन में शांति है। कल-कल बहती नदी और पक्षियों का कलरव आनंदित कर रहा है।’’
दरबारी हां में
हां मिलाने लगे।
राजा ने पूछा-‘‘हमारा सुख-चैन छीन कौन छीन लेता है?’’
दरबारी सोच में पड़ गए।
सबसे पहले राज पुरोहित ने जवाब दिया-‘‘महाराज। मन। ये मन ही है जो हमारा सुख-चैन छीन लेता है। मन यदि अशांत है तो फिर स्वादिष्ट व्यंजन भी फीका लगने लगता है।’’
सेनापति नजदीक आते हुए बोला-‘‘महाराज। बुढ़ापा हमारा सुख-चैन छीन लेता है।’’
राजगुरु ने कहा-‘‘राजन्। ईष्र्या वह भावना है जो हमारा सुख-चैन छीन लेती है।’’
मंत्री भी जवाब देने के लिए आतुर था। कहने लगा-‘‘महाराज। रोग हमारा सुख-चैन छीन लेता है। यदि काया निरोगी है तो आनंद ही आनंद है।’’
तेनालीराम को मुस्कराते देख राजा ने कहा-‘‘आज विजयनगर का तेनालीराम क्यों चुप है?’’
तेनालीराम ने कहा-‘‘महाराज। धन का मोह ही सबसे प्रबल है। इसकी माया सबसे निराली है। पहले यह हमारा सुख-चैन छीनता है फिर यह हमारी मति भी भ्रष्ट कर देता है।’’
राज पुरोहित ने बीच में टोकते हुए कहा-‘‘लेकिन तेनालीराम। गरीब और धन का मोह न रखने वाले भी कौन सा सुखी हैं?’’
तेनालीराम ने फिर कहा-‘‘महाराज। मेरा दृढ़ विश्वास है कि धन की माया ही सुख-चैन छीनने वाली है। इससे हर संभव दूर ही रहना चाहिए।’’
सेनापति हंसते हुए कहने लगा-‘‘महाराज। लगता है तेनालीराम की मति आज वन विहार में अनुचित सलाह देने लगी है।’’
तेनालीराम ने जोर देकर कहा-‘‘यदि महाराज अनुमति देंगे तो मैं उचित समय आने पर सिद्ध करना चाहूंगा कि धन-सम्पत्ति ही सुख-चैन के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है।’’ राजा ने सहर्ष अनुमति दे दी। कुछ समय पश्चात राजा दरबारियों सहित दरबार लौट आए।
एक दिन राजा कृष्णदेव राय दरबार में आवश्यक विचार-विमर्श कर रहे थे। तभी गुप्तचर ने दरबार में प्रवेश किया। पूछने पर वह बोला-‘‘महाराज। सूचना मिली है कि राजमहल का कुआं असंख्य स्वर्णमुद्राओं से भरा है।’’
तेनालीराम उठ खड़ा हुआ। कहने लगा-‘‘लेकिन कुआं तो निर्मल जल से भरा है। मान लेते हैं कि कुएं में स्वर्ण मुद्राएं हैं, फिर उन्हें निकालेंगे कैसे?’’
मंत्री ने जवाब दिया-‘‘ स्वर्ण मुद्राएं कुएं के तल में होंगी। उन्हें निकालने के लिए कुएं का सारा जल उलीचना होगा। यह असंभव नहीं है।’’
सेनापति बीच में ही बोल पड़ा-‘‘हमारी सेना में एक कुशल गोताखोर है। महाराज यदि आज्ञा दें तो गुप्तचर की सूचना की पुष्टि क्षण भर में ही हो जाएगी।’’
राजा ने अनुमति दे दी।
कुछ ही देर में गोताखोर मुट्ठी भर स्वर्ण मुद्राएं लेकर दरबार में उपस्थित हुआ। वह हांफते हुए बोला-‘‘महाराज। कुआं बहुत गहरा है। श्वास रोककर मैं मुट्ठी भर स्वर्ण मुद्राएं तो ले ही आया हूं।’’
राजा ने घोषणा कर दी कि तत्काल कूप का जल निकाल लिया जाए। महल के विश्वसनीय सैनिक कुएं से पानी खींचने लगे। तीन दिन तक पानी उलीचने का काम अनवरत चलता रहा। राजमहल के बागीचे में पानी ही पानी भर गया। चैथे दिन कुएं का तल दिखाई दिया। राजा के सामने एक दरबारी को कुएं में उतारा गया। लेकिन यह क्या ! कुएं में कंकड़-पत्थर के सिवा कुछ न मिला। सब हैरान थे।
तेनालीराम को इसी अवसर की तलाश थी। तेनालीराम ने राजा से कहा-‘‘राजन्। मैं न कहता था कि धन की माया सुख-चैन छीन लेती है। कुएं में स्वर्ण मुद्राओं की सूचना ने समूचे राजमहल में हलचल मचा दी। कुछ राजकर्मचारी पिछले तीन दिनों से सोए तक नहीं हैं।’’
राजा मुस्कराने लगे। कहने लगे-‘‘ओह! तो ये बात है! ये सब तुम्हारा किया-धरा है। गुप्तचर की सूचना, स्वर्ण मुद्राए और वो गोताखोर तुम्हारी ही योजना का हिस्सा थे !’’
तेनालीराम मुस्करा दिया। सिर झुकाकर कहने लगा-‘‘क्या करता महाराज। धन की माया सुख-चैन छीन लेती है और मति भी। यह साबित करने के लिए मुझे यह सब करना पड़ा।’’
यह सुनकर राजा खिलखिलाकर हंसने लगे। वहीं राज दरबारियों के चेहरे देखने लायक थे।
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-मनोहर चमोली ‘मनु’

4 टिप्‍पणियां:

  1. यह तो अकबर बीरबल की तर्ज पर ही है। बहुत सुन्‍दर।

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  2. मनोहर जी कहानी रोचक और शिक्षाप्रद है लेकिन क्या यह तेनालीराम की लोकप्रिय कथाओं में से ही एक है या आपकी अपनी मौलिक । यदि पहली बात है तो इसका उल्लेख होना चाहिये । और दूसरी है तो तेनालीराम का सहारा लेना अनावश्यक है क्योंकि इससे लेखक की अपनी रचनाशीलता कहीं खोई हुई सी लगती है और क्योंकि अकबर बीरबल की तरह ही तेनालीराम के किस्सों का फलक बहुत ही व्यापक व लोकप्रिय है ।

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  3. गिरीजा जी यह मेरी मौलिक रचना हें. नंदन में तेनालीराम के लिए कुछ न कुछ भेजता रहता हूं। नंदन का फलक भी बहुत बड़ा है। आपकी बात पर आगे से विचार करूंगा कि क्यों न खुद के गढ़े हुए पात्रों को नया जीचन दिया जाए। यही तो आप भी चाहती है। हैं न? http://www.blogger.com/profile/07420982390025037638

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  4. यह मेरी मौलिक रचना हें. नंदन में तेनालीराम के लिए कुछ न कुछ भेजता रहता हूं। नंदन का फलक भी बहुत बड़ा है। raja bhand,gonu jhaa.akbar our birbal and tenaliram men kisse-kahaani judte chle gye..

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यहाँ तक आएँ हैं तो दो शब्द लिख भी दीजिएगा। क्या पता आपके दो शब्द मेरे लिए प्रकाश पुंज बने। क्या पता आपकी सलाह मुझे सही राह दिखाए. मेरा लिखना और आप से जुड़ना सार्थक हो जाए। आभार! मित्रों धन्यवाद।