3 अग॰ 2014

विभागों को अपने जवाहरातों की परख नहीं है !

कर्मचारी शिक्षक दर्पण डाक से मिली।

7 वर्षों से निरन्तर यह पत्रिका निकल रही है। हालांकि यह उत्तराखण्ड के कर्मचारी-शिक्षक बन्धुओं का त्रैमासिक मुखपत्र है लेकिन यह अंक साहित्य विशेषांक बन पड़ा है।

ज़ाहिर सी बात है कि वे रचनाकार इस अंक में अपनी रचनाओं के साथ उपस्थित हैं जो कर्मचारी और शिक्षक बन्धुओं के तौर पर समाज में पहचान बनाए हुए हैं। शिक्षक एवं राजकीय शिक्षक संघ के रेखांकित और सक्रिय सदस्य नवेन्दु मठपाल ....https://www.facebook.com/navendu.mathpal .... के सम्पादन में यह अंक संग्रहणीय बन पड़ा है।

एक प्रधानाचार्य के उल्लेखनीय कार्यो को बताता महत्वपूर्ण लेख, संस्कृति और शिक्षा,भाषा एवं साहित्य शिक्षण,गिरते परीक्षा परिणाम के कारणों की पड़ताल करता आलेख सहित 5 महत्वपूर्ण लेखों से सामग्री पठनीय बन पड़ी है।

23 कविताएं, 1 यात्रा संस्मरण, 1 व्यंग्य, 1 बाल कहानी, सहित 3 कहानियां, 1 शासकीय पत्र,15 गढ़वाली और 15 कुमाऊँनी कविताओं को पत्रिका में स्थान मिला है। यही नहीं शिक्षक और प्रखर एक्टीविस्ट जवाहर मुकेश की दो महत्वपूर्ण और खूबसूरत पेन्टिंग भी इस पत्रिका में मौजूद हैं।

विभिन्न पृष्ठों में रेखांकन के लिए बी0मोहन नेगी,दीपचन्द,मुकुल तिवारी और रवि कुमार का भी सहयोग लिया गया है।46 पृष्ठों के इस अंक का मूल्य मात्र 20 रुपए है। आवरण भी आकर्षक बन पड़ा है। कुल मिलाकर इस तरह की पत्रिका जो सीमित दायरे में पढ़ी और बांटी जाती है, यह अंक निश्चित तौर पर इस दायरे को तोड़कर साहित्यिक जगत में चर्चा का विषय बनेगी।

एक बात और शिक्षकों और कर्मचारियों के आचरण,व्यवहार और तेवर के विपरित यह अंक हैरान करता है कि रचनाशीलता के इतने चर्चित हस्ताक्षर सरकारी महकमें में काम कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि विभागों को अपने जवाहरातों की या तो परख नहीं है या उनकी जरूरत ही नहीं है। उम्मीद की जाती है कि संभवतः सरकार को या विभाग की नज़र इस अंक पर पड़े। नहीं भी तो पाठक तो अपनी आधी-अधूरी धारणा से उलट यह मानें और जाने की सृजनशीलता किसी भी विभाग में हो सकती है।

रचनाकार कोई भी कर्मचारी कहीं से भी हो सकता है। पत्रिका के लिए संपादक जी का नम्बर 9410373108 है।

वे भी फेसबुक में हैं। उनका लिंक Navendu Mathpalhttps://www.facebook.com/navendu.mathpal भी दे रहा हूं।       

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