13 अक्तू॰ 2017

दूर तलक जा सकती है बाल किलकारी की आवाज़ info@kilkaribihar.org, publication@kilkaribihar.org

दूर तलक जा सकती है बाल किलकारी की आवाज़

-मनोहर चमोली ‘मनु’

‘बाल किलकारी’ के दो अंक एक साथ डाक से मिले। बच्चों की मासिक पत्रिका ‘बाल किलकारी’ प्रकाशित हो रही है। इसे किलकारी बिहार बाल भवन, राष्ट्रभाषा परिषद परिसर प्रकाशित कर रहा है। 
2017 के माह जुलाई और अगस्त के अंक शानदार हैं। आवरण मन को भाते हैं। ये ओर बात है कि आवरण के चित्र साभार इंटरनेट लिए गए हैं। आवरण बच्चों की दुनिया का प्रतिनिधित्व करते हैं। स्तम्भ ‘तुम्हारी रचना‘ के चार पेज बच्चों के बाल मन का सम्मान करते हुए रंगीन हैं। उम्मीद जगाते हैं कि ये पत्रिका भविष्य में बहुरंगी हो जाएगी। स्तम्भ ‘तुम्हारी ‘पेन्टिंग‘ सीधे बच्चों की आवाज़ों को स्थान देता है।

पत्रिका के भीतर झांकने का झरोखा आंखों को थकाता नहीं है। यह पेज आसानी से बताता है कि पत्रिका 48 पेज की है। चिट्ठी-पत्री में पाठकों के पत्र शामिल होते हैं। नियमित स्तम्भों में कार्टून का पन्ना पवनटून के जिम्मे है। बच्चों के लिहाज से एक महीने एक ही कार्टून हो तो ज्यादा असरदार होगा। जुलाई के अंक में ही चार-चार कार्टून एक पेज में दे दिए गए हैं। वे भी आकार में असमान। अक्षरों का आकार दस से कम। कार्टून चित्र से ज़्यादा प्रभावी होते हैं यदि उसमें भाषा का उपयोग सांकेतिक हो तो बेहतर वर्णनात्मक हो तो कार्टून कैसा? 
कहानियां चार से छह शामिल हो रही हैं। यह अच्छा संकेत है। कविताएं भी तीन से आठ के मध्य शामिल हो रही हैं। पत्रिका विज्ञान को भी अच्छा खासा महत्व दे रही है। या तो विज्ञान कथा ज़रूर रहेगी या विज्ञान के प्रयोग को स्थान मिल रहा है। समझो-बूझो, शब्द पहेली, चुटकुले, पहेली, एक अधूरी कहानी पूरी हुई, जीव-जंतु, जानकारी, रोचक, सिनेमा, दुनिया-जहान और बापू कथा नियमित काॅलम हैं। कागज़ 70 जीएसएम से कम नहीं है। पत्रिका की उम्र लंबी रहेगी। चित्रांकन उमेश शर्मा के हैं। अधिकतर चित्र हाथ से स्कैच किए हैं। ये बेहतर है। कंप्यूटर में बने-बनाए चित्र बच्चों को वो काल्पनिकता नहीं दे पाते। पेज ले आउट जहां दो काॅलम में बन रहे हैं वे पाठक के ज़्यादा करीब हो जाते हैं। जिसे सीधे पाठय पुस्तक के तौर पर रखा जा रहा है वह पेज न तो भाता है उसे पढ़ने में पाठक की आंखें थकती हैं। ये अच्छी बात है कि पत्रिका सिनेमाई जगत को बच्चों की नज़र से देखने का प्रयास करती नज़र आती है। चुटकुलों में अभी वह स्तर आने की संभावना दिखाई पड़ती है जो बच्चों में स्वस्थ मनोरंजन करें। 

इन अंकों को देखकर-पढ़कर पता नहीं चल पा रहा है कि ये कब से प्रकाशित हो रही है। वर्ष का और अंक के क्रम का उल्लेख संभवतः इसलिए भी नहीं है कि डाक पंजीयन और पत्रिका का विधिक पंजीयन की प्रक्रिया चल रही होगी। इस माह पत्रिका में रचनाएं किस रचनाकर की हैं यह पन्ने उलटने से पता चलता है। संभवतः रचनाकारों के नाम रचना के साथ दें तो पाठकों को अधिक सहूलियत होती है। रचनाकारों को भी और भविष्य में पुराने अंकों को देखने की आवश्यकता पड़े तो यह पेज बहुत मदद करता है। यह अच्छी बात है कि बाल किलकारी इस बात को बखूबी समझ रही है कि पत्रिका की रचनाएं बच्चों के लिए अधिक महत्वपूर्ण है न कि रचनाकार की फोटो और पते-सम्पर्क आदि। पाठक यदि चाहे तो पत्रिका से सम्पर्क कर लेखकों के पते और अधिक विवरण मांग सकता है। कम से कम बच्चों की पत्रिका में रचनाकारों के बड़े-बड़े माॅडलिंग टाइप के चित्र देने का जो चलन चल पड़ा है उसके पीछे बालमन की उथली समझ ही सामने आकार लेती है। 
पत्रिका कहीं भी जबरन ठूंसी सामग्री पेश नहीं करती। भारी-भरकम सामग्री नहीं है। पेजों को खुला-खुला रखा गया है। दो अंकों को देखकर यह इशारा साफ मिलता है कि भविष्य में यह पत्रिका परम्रागत बाल साहित्य से हटकर नए प्रतिमान गढ़ेगी। हालांकि फिलहाल के अंकों में भी आदर्शवाद है। बड़ों का बड़ापन वाला नज़रिया भी दिखाई देता है लेकिन धीरे-धीरे आधुनिक भाव-बोध और यथार्थ की रचनाओं को जैसे-जैसे अधिक स्थान मिलेगा वैसे-वैसे ही उपदेशात्मक,आदेशात्मक और आदर्श से भरी रचनाएं सिमट जाएंगी। 
पत्रिका को पढ़ते हुए, पलटते हुए स्पष्ट आभास होता है कि इसके प्रकाशन में व्यक्ति नहीं समूह जुड़ा हुआ है। ये ओर बात है कि पत्रिका में तीन-चार नाम जरूर हैं लेकिन इसे मूर्त रूप देने में एक सामूहिकता, सहयोग और सामुदायिकता की खुशबू पाठक महसूस कर सकते हैं। बाल किलकारी के बहाने यह कहना भी सही होगा कि बच्चों की पत्रिका के लिए व्यक्तिवादी निजी सोच लम्बे समय तक नहीं चल सकती। इसके लिए तो परामर्श, सहयोग और सामूहिकता ही चाहिए। 
एक बात तो तय है कि बाल किलकारी को यह जल्दी समझना होगा कि वह बच्चों को सूचनात्मक जानकारी देना चाहती है या स्कूली बच्चों को पाठ्य पुस्तक की एक और सहायक सामग्री या पढ़ने की आदत विकसित करने के लिए विशिष्ट सामग्री की पत्रिका देना चाहेगी। बाल किलकारी को यह समझना होगा कि एक ओर पढ़ने के विभिन्न माध्यम सूचना तकनीक के दौर में आ चुके हैं। जानकारी और ज्ञान बढ़ाने के कई तरीके आज उपलब्ध हैं। ऐसे में छपी सामग्री की ओर बच्चों की ललक बनाना पहला मक़सद होगा तो सामग्री में सूचना, जानकारी और ज्ञान भरने के इरादों से इतर मस्ती, मनोरंजन और आनंद देने के ध्येय को बढ़ाना होगा।  
कुल मिलाकर मुझे यह कहने में कतई संकोच नहीं है कि यह पत्रिका बाज़ार में उपलब्ध और सदस्यता आधारित पत्रिकाओं में विशिष्ट पहचान बना ही लेगी। शीघ्र-अतिशीघ्र इस पत्रिका से जुड़ने को अधिकतर रचनाकार आतुर होंगे और पाठकों, शिक्षकों और अभिभावकों को भी बाल किलकारी अपनी टीम का हिस्सा बनाने में कामयाब होगी।
पत्रिका: बाल किलकारी
मूल्य: 20 रुपए
पेज: 48
परिकल्पनाः ज्योति परिहार
सम्पादक: शिवदयाल
सम्पादन: राजीव रंजन श्रीवास्तव
प्रकाशक: किलकारी, बिहार बाल भवन, सैदपुर,पटना 80004 बिहार
सम्पर्क: 9835224919,746387822 
मेल: info@kilkaribihar.org,
publication@kilkaribihar.org 
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-मनोहर चमोली ‘मनु’ 

8 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, दुर्गा भाभी की १८ वीं पुण्यतिथि “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. शुभकामनाएँ. अच्छी बाल पत्रिकाएँ कम हैं.

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  3. बेहतरीन बाल पत्रिका बच्चों के सर्वांगीण विकास को पोषित करती हुई।साधुवाद !

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  4. अच्छी उपयोगी पत्रिका।विषय सामग्री बाल मनोविज्ञान के अनुरूप।

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यहाँ तक आएँ हैं तो दो शब्द लिख भी दीजिएगा। क्या पता आपके दो शब्द मेरे लिए प्रकाश पुंज बने। क्या पता आपकी सलाह मुझे सही राह दिखाए. मेरा लिखना और आप से जुड़ना सार्थक हो जाए। आभार! मित्रों धन्यवाद।