13 नव॰ 2017

कविता: पढ़ना सीखना का सशक्त माध्यम

कविता: पढ़ना सीखना का सशक्त माध्यम 

-मनोहर चमोली ‘मनु’
                             
अभिभावकों के साथ अधिकतर शिक्षक भी कई बार पढ़ने से पहले लिखने पर जोर देते हैं। बुनियादी स्कूलांे की पहली कक्षा में ही बच्चों पर लिखने-लिखाने का दबाव दिखाई देता है। गृहकार्य में भी अक्सर बच्चों को लेखन कार्य दे दिया जाता है। यह अवधारणा ही गलत है। यही कारण है कि लिखना सभी दक्षताओं में आखिरी कदम है। पहली-दूसरी कक्षा में सुनना फिर बोलना फिर पढ़ना कौशल बढ़ाया जाना चाहिए। लिखना सबसे बाद में होना चाहिए। उसके लिए भी पहले-पहल चित्रकारी कराना उचित होता है। लेकिन अधिकतर स्कूलों में लिखना फिर पढ़ना फिर बोलना और फिर सुनना पर जोर है। यह पढ़ना सीखने के सही तरीके को सिर के बल खड़ा करने जैसा है। 
‘पढ़ने का गृहकार्य दिया गया है।’ ऐसा सुनने को प्रायः नहीं मिलता। पढ़ना सीखना या पढ़ना सीखाना बेहद आनंददायी है। हर नई चीज़ देखने में, नया सीखने में हमें आनंद की अनुभूति होती है। पढ़ना सीखने में बच्चे मज़ा लेते हैं। उस मज़े को वे महसूस भी करते हैं। बच्चे कंप्यूटर, टीवी, मोबाइल चलाना आसानी से सीख लेते हैं। साईकिल पर संतुलन साधने में उन्हें रोते-चिल्लाते नहीं देखा गया। फिर यह कहना क्या उचित होगा कि बच्चे अर्थ के साथ पढ़ना नहीं सीख सकते? 
कई उदाहरण हैं जहां स्कूल में बच्चों को नियम सिखाने वाले शिक्षक की बजाय एक सुगमकर्ता के तौर पर सहायता मिली, वहां बच्चों ने तेजी से पढ़ना सीखा है। जहां पढ़ने के नियम सिखाने, उच्चारण पर पहले दिन से जोर देने, तीव्र टीका-टिप्पणी करने के बजाय स्वतंत्र, बिना दबाव के आनंददायी पठन सामग्री दी जाती है, वहां पढ़ना समझ के साथ दिखाई देता है। 
कविता भी पढ़ना सीखने में बेहद कारगर विधा है। बुनियादी शिक्षा में कविता सुनाकर और कविता पढ़कर छात्रों में पढ़ने की आदत को विकसित किया जा सकता है। कविता को पढ़ने की दिशा में सरल और सहज माध्यम बनाया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि हमारे पास कविताओं का विपुल भण्डार हो। कविता का मकसद मात्र आनंद देना ही नहीं है। वह पढ़ने-लिखने और अभिव्यक्त करने का जरिया भी होती है। यदि कविताओं का चुनाव ज़रा सोच-समझकर किया जाए तो यह सब मज़ेदार गतिविधि का माध्यम बन सकती हैं। 
आइए कविता के प्रयोगों से पूर्व ज़रा इन सवालों के जवाब देंते हैं।
पढ़ने की आदत विकसित करने के लिए क्या कक्षा की पाठ्यपुस्तक में शामिल कविताओं पर निर्भरता उचित है? यदि नहीं तो क्यों? 
बुनियादी कक्षाओं में कविता को पढ़ने के लिए अधिकाधिक स्थान क्यों देना चाहिए? 
कविता को अभिनय और हाव-भाव के साथ पढ़ना कारगर कैसे है?
इन तीनों सवालों पर विचार करने पर अमूमन हम पाते हैं कि किसी भी कक्षा की भाषा की पुस्तक किसी भी बच्चे के पठन कौशल को बढ़ाने के लिए काफी नहीं। यह भी सही है कि आरंभिक कक्षाओं में मौखिक कविताओं को अधिक से अधिक स्थान देना चाहिए। एक से बढ़कर एक कविताओं को पढ़कर सुनाना भी बच्चों में पढ़ने की ललक पैदा कर सकता है। कविताओं को हाव-भाव के साथ पढ़कर सुनाना तो एक मज़ेदार गतिविधि हो जाती है। बच्चे अनुमान और कल्पना के भाव संजोने लगते हैं। 
बच्चों को पढ़ने के सरल तरीके और विविधता से भरी पठन सामग्री देना पढना सीखने में रोचकता और आनन्द पैदा करता है। कविता से ही बच्चे तेजी से अर्थ ग्रहण की आदत भी विकसित करते हैं। कविता से संज्ञानात्मक और भावनात्मक सक्रियाएं भी सहजता से विकसित होती हैं। कविताओं के माध्यम से बच्चे अपने परिवेश से भी जुड़ने की ओर अग्रसर होते हैं।   
अधूरी कविता पढ़कर सुनाना
स्कूली किताब से बाहर छपी कविता कक्षा में लेकर सुनाना आनंददायी गतिविधि है। यहां उदाहरण के लिए श्री प्रसाद की ‘जामुन’ कविता दी जा रही है। अध्यापक ने इस कविता को आधा पढ़कर सुनाया। फिर बच्चों से कहा-‘‘इस कविता में आगे क्या हुआ होगा? चलो। मैं फिर से पढ़कर सुनाता हूँ।’’ अध्यापक ने कविता का फिर उतना ही अंश पढ़कर सुनाया। इसके बाद बच्चों ने खूब बातें कीं। बच्चों ने अपने अनुभवों के आधार पर हैरानी जतायी कि जामुन के पेड़ पर आम कैसे आ सकते हैं। जामुन का पेड़ कैसा होता है। आम के पेड़ के पत्तों पर बात करते हैं। 
यह जानने के लिए आप कविता पढ़ सकते हैं। फलों के स्वाद पर भी खूब बात की। बादाम क्या होता है? यह कैसे उगता है। ऐसे सवाल खूब हुए। लेकिन सवाल-जवाब तो यहां मकसद नहीं है। यहां तो कविता पढ़ने की ओर बच्चों को प्रेरित करना है। लेकिन रुचि जगाने की ओर यह बातचीत भी जरूरी है। 
जामुन
पौधा तो जामुन का ही था
लेकिन आये आम
पर जब खाया तो यह पाया
ये तो है बादाम
जब उनको बोया जमीन में ............... (यहां तक ही पढ़ी जाएगी।)
अध्यापक इस अधूरी कविता को श्यामपट्ट पर भी लिख सकते हैं।  इसके बाद शेष अंश भी लिख सकते हैं। अब सभी बच्चों को इसे पढ़ने को कहा जा सकता है। 
पैदा हुए अनार
पकने पर हो गये संतरे
मैंने खाये चार।
इस गतिविधि को कराने के बाद सवाल उठता है कि ऐसा करना छात्रों में पढ़ने की ललक कैसे पैदा कर सकता है? दरअसल इस गतिविधि में बच्चे पहली बार तो संभवतः सुनते ही हैं। जैसे ही अध्यापक यह कहते हैं कि कविता में आगे क्या हुआ होगा। बच्चे फिर से कविता के बारे में सोचने लगते हैं। अध्यापक फिर से इस कविता को पढ़ते हैं। अधिकतर बच्चे एकाग्रता के साथ कविता सुनते हैं। सुनते-सुनते कविता में आए भाव, बोध और चित्रण के बारे में सोचने लगते हैं। अध्यापक के कविताधारित सवालों का जवाब भी देते हैं। वहीं अनुमान और कल्पना का सहारा लेकर वह स्वतः ही कविता को मन ही मन में पूरा करने की कोशिश करते हैं कि आगे क्या हुआ होगा। इसके बाद जब अध्यापक पूरी कविता पढ़ने के लिए श्यामपट्ट पर लिखते हैं तो बच्चे उसे स्वतः पढ़ने का प्रयास करते हैं। उनकी कल्पना की कविता और कवि की कविता में अंतर तलाशने लगते हैं। लेकिन अंतर क्या था? अध्यापक इस पर बात नहीं करते। कारण साफ है। यहां तो अध्यापक का मकसद बच्चे में पढ़ने के प्रति ललक जगाना भर है। अंत में अध्यापक एक बार फिर से पूरी कविता पढ़कर सुनाएंगे। बच्चों ने जो स्वतः पढ़ा या पढ़ने की कोशिश की। अब वे उसका मिलान अध्यापक द्वारा पढ़े गए तरीके से अवश्य करना चाहेंगे।  
कविता पढ़कर चित्र बनाना 
अध्यापक ने बिना निर्देश दिए गुलज़ार की लिखी कविता ‘बिजली की नोक’ को श्यामपट्ट पर लिख दिया। लिखने के बाद उसे एक बार पढ़ दिया। बच्चों से कहा-‘‘इस कविता को एक बार फिर पढ़ें। पढ़कर कोई चित्र बनाएं। चित्र कविता से जुड़ना चाहिए।’’ 
बिजली की नोक
इक बिजली की नोक लगी
ऊनी बादल को
उधड़ के तागा-तागा
बादल बरस गया।
ऐसा करना भी मज़ेदार रहा। बच्चे काॅपी-पेंसिल निकाल चुके थे। बच्चे बार-बार श्यामपट्ट पर लिखी कविता को पढ़ रहे थे। बार-बार पढ़ते हुए सोच रहे थे। सोचते-सोचते वे कुछ सवालों पर आ गए थे। बच्चों ने सवाल करने शुरू कर दिए। क्या बारिश भी दिखा सकते हैं? बादल को स्वेटर कैसे पहनाएं? क्या रंग भी भरना है? बिजली के तार भी दिखाने होंगे? हालांकि बच्चों को इस गतिविधि का मकसद चित्र बनाना लगा। पर ‘बिजल की नोक’ कविता पढ़कर चित्र बनाना मकसद था या कविता पढ़वाना मकसद था? 
कविता पढ़कर सवाल पूछना
 बच्चों को सर्वेश्वर दयाल सक्सेना  की कविता ‘बन्दूक’ पढ़ने को दी गई। एक बार अध्यापक ने पढ़कर सुनाई। अध्यापक ने कहा-’’कविता में बहुत सारे प्रश्न छिपे हैं। इसके बाद हम मिलकर प्रश्न बनाएंगे और उनके जवाब भी खोजेंगे।’’ इस गतिविधि के लिए पर्याप्त समय दिया गया। 
बन्दूक 
अगर कहीं मिलती बन्दूक
उसको मैं करता दो टूक
नली निकाल बना पिचकारी
रंग देता यह दुनिया सारी।
हालांकि सवाल बनाना बच्चों को कठिन लगता है। लेकिन वे जवाब देने में नहीं हिचकते। सवाल बनाना हमारी गतिविधियों में वैसे भी शामिल नहीं होता। यह भी एक कारण है। सवाल-जवाब करने का मकसद तो मात्र यह था कि बच्चे बार-बार कविता पर ध्यान दें। बार-बार पढ़ें। दो टूक पर बच्चे अटक रहे थे। नए शब्दों को वे अपने सन्दर्भ से समझने की कोशिश भी कर रहे थे।
  
अलग-अलग कविताएं पढ़ने को देना 
इस गतिविधि का प्रभाव बेहद तीव्र है। अध्यापक ने कहा-‘‘मेरे पास कई सारी कविताएं हैं। ये कविताएं समूह में पढ़नी है। अध्यापक ने पहली दूसरी पंक्ति को एक समूह बान लिया। तीसरी और चैथी पंक्ति को दूसरा समूह मान लिया गया। इसी तरह पूरी कक्षा को पांच समूह में बांट दिया गया। एक समूह को एक कविता पढ़ने के लिए दे दी गई है। 
चाँद 
चाँद न आया बादल में,
रात न आई काजल में,
तारे नीले अंबर में,
नावें नील समन्दर में
-प्रभात

तितली
निकली सैर सपाटे पर,
तितली बैठी का काँटे पर।
-चन्दन यादव

भूख लगी है
भूख लगी है चाँद को,
फ्राई कर लें,
सूरज अण्डा छोड़ गया,
ट्राई कर लें।
-गुलजार

बूँद
एक बूँद आई
आँख मूँद आई,
उसे ढूँढने फिर
बूँद-बूँद आई।।
-सुशील शुक्ल

बादल
बादल आये मेले में,
पानी लेकर ठेले में,
बरे खूब बाज़ारों में
बूँदें अटकी तारों में।
-गुलजार

इन छोटी-छोटी कविताओं का बड़ा असर देखने को मिला। समूह में हर बच्चे कविताओं को उचक-उचक कर पढ़ रहे थे। उन्हें लगा कि कविता से कुछ पूछा जाएगा। फिर ऐसा भी हुआ कि दूसरे समूह के बच्चे पहले समूह की कविता को भी पढ़ना चाहते थे। वे यह पढ़कर समझना चाहते थे कि उन्हें दी गई कविता दूसरे समूह को दी गई कविता से कैसे अलग है और क्यों? इस गतिविधि से स्पष्ट हो गया कि बच्चे लपककर नई पठन सामग्री पढ़ने को उत्सुक रहते हैं। पाठ्यपुस्तक में शामिल कविताओं से हटकर कविता पढ़ने का अनुभव उन्हें भा गया। पुस्तक से हटकर कविताएं पढ़ने को देना और समूह में पढ़ने का तरीका रोजमर्रा की कक्षा के तरीके से अलग था। ऐसा करने में बच्चों को मज़ा आया। इस गतिविधि से कई सारी बातें सामने आई। एक तो समूह में पढ़ना तेजी से सीखना हो सकता है। दूसरा वे एक-दूसरे की मदद करते हैं। एक-दूसरे के पढ़ने के तरीकों से, उच्चारण के सन्दर्भ में भी वह सुनकर सीखते हैं। कविता पढ़ते समय वे अनुभव भी साझा करते हैं। 

कविता के माध्यम से पठन
हम सब जानते हैं कि लोरियों से लेकर शिशु गीत, कविताएं बच्चे स्कूल आने पहले सुनते आए हैं। यहां तक कि वे कई कविताएं ज़बानी सुनाने लगते हैं। कविता सुनाने और सुनने की समृद्ध परम्परा स्कूलों में भी रही है। अब तो कविता पढ़कर सुनाना और कविता सुनाना, काव्य पाठ-गोष्ठी का प्रचलन भी बढ़ा है। कवि, गीतकार आदि के रूप में कॅरियर और रोजगार की दृष्टि से भी यह क्षेत्र विकसित हो चुका है। बुनियादी कक्षाओं में कविताएं सुनाने और पढ़ने को स्थान बाल सभा और पाठ्य सहगामी गतिविधियों में दिया जाता रहा है। 
कक्षा-कक्ष में कविताओं का प्रयोग 
शिक्षक अक्सर पाठ्य पुस्तक की कविताओं से, अपनी स्मृति पर आधारित कविताओं से, अख़बार-पत्रिकाओं में छपी कविताओं से कक्षा शिक्षण को रोचक बनाते रहे हैं। कविता सुनाकर और कविता पढ़कर सुनाने के असर को हम इस तरह से देखते आए हैं।
छात्रों का सुनना कौशल बेहतर होता है।
एकाग्रता की क्षमता का विकास होता है।
पठन कौशल के बेहतर तरीके का विकास होता है। 
सुनकर कविता में आ रहे भावों, पात्रों की कल्पना करने लगते हैं।
सपाट पठन की बजाय छात्र कविता में आ रहे भाव, उतार-चढ़ाव को अभिव्यक्त करने की कला पर ध्यान देते हैं।

कविता पढ़कर सुनाने से पहले  
लंबे और गूढ़ शब्दों वाली कविताओं की बजाय सरल और छोटी हो। 
कविता कक्षा कक्ष में पढ़ाने वाले पाठ या प्रकरण के अनुकूल हो। उसे आगे बढ़ाती हो।
कविता में उत्सुकता, जिज्ञासा बनाए रखने की क्षमता हो।
बच्चों की दुनिया, उनके आस-पास से जुड़े परिवेश की कविताएं अवश्य हों। 
कविता पढ़ी जाए। उसकी व्याख्या न की जाए। 

कविता पढ़ने के बाद                                                
 यहां कविता पढ़ने का मकसद आनंद के साथ ऐसी पहल है जिससे बच्चे भी छपी हुई कविताएं पढ़ने की ओर बढ़ें। सुनकर कविता पढ़ने के बाद संभव है कि चर्चा के दौरान बच्चे कहीं असहज हों जाएं। लेकिन छपी हुई कविता पढ़ने के बाद वे कविता में खुद भी झांक सकते हैं। सवाल-जवाब में शामिल होने के लिए वे एक बार फिर से कविता को पढ़ने की कोशिश कर सकते हैं। यही कारण है कि धीरे-धीरे कविता सुनाने के तरीके को कविता पढ़कर सुनाने के तरीके में जाना अधिक प्रभावकारी होता है।

कविता आधारित अन्य गतिविधियां                                         
शीर्षक पर चर्चा कर कविता पढ़वाना। 
मुखर वाचन यानि कविता को उचित गति, हाव भाव से पढ़कर सुनाना।
चित्र देखकर चर्चा करना फिर कविता पढ़वाना। 
समूह में कविता पढ़ने को देना।
एक साथ पढ़ना। 
पढ़ी हुई कविता को अपने शब्दों में अभिव्यक्त करना। 
किसी कविता में आए शब्दों पर चर्चा करना फिर कविता पढ़ने को देना।
किसी कविता पर आधारित प्रश्न करना फिर कविता पढ़ना।
पढ़कर सुनी हुई कविता के विषयवस्तु पर बात करना।
पढ़कर सुनी हुई कविता का रोल प्ले करना।

कविता की ताकत
अनुमान और कल्पना के भाव जगाती है। 
बोलने का लहज़ा विकसित कराती है।
बार-बार आए शब्दों से पढ़ना सहज कराती है।
तुकांत शब्दों से पढ़ना सरल होता है।
ध्वनियों के प्रति सजगता बढ़ाती है।
वर्ण, मात्रा और शब्दों से जूझना आसान होता है।
शब्द के अर्थों की ओर ले जाती है। 
कविता धारा प्रवाह पढ़ने की ओर बढ़ाती है। 
पढकर समझ का निर्माण कराती है।
लेखन की ओर ले जाती है। 
कविता ही क्यों?
स्वतंत्र पाठक तैयार कराने में सहायक।
पढ़ने में निरन्तरता में सरल।
खोजकर पढ़ने की ओर अग्रसर कराती है।
॰॰॰
लेखक परिचय: मनोहर चमोली ‘मनु’: ‘ऐसे बदली नाक की नथ’ और ‘पूछेरी’ पुस्तकें नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशित हुई हैं। ‘चाँद का स्वेटर’ और ‘बादल क्यों बरसता है?’ पुस्तके रूम टू रीड से प्रकाशित हुई हैं। बाल कहानियों का संग्रह ‘अन्तरिक्ष से आगे बचपन’ उत्तराखण्ड बालसाहित्य संस्थान से पुरस्कृत। बाल साहित्य में वर्ष 2011 का पं॰प्रताप नारायण मिश्र सम्मान मिल चुका है। बाल कहानियों का दूसरा संग्रह ‘जीवन में बचपन’ प्रकाशनाधीन है। बाल कहानियों की पच्चीस से अधिक पुस्तकें मराठी में अनुदित होकर प्रकाशित। उत्तराखण्ड में कहानी ‘फूलों वाले बाबा’ कक्षा पाँच की पाठ्य पुस्तक ‘बुराँश’ में शामिल। उत्तराखण्ड के शिक्षा विभाग में  शिक्षक हैं। सम्पर्क: भितांई, पोस्ट बाॅक्स-23,पौड़ी, पौड़ी गढ़वाल.246001.उत्तराखण्ड. मोबाइलः09412158688. 

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