11 फ़र॰ 2012
लौटता नहीं वसंत - Poem
लौटता नहीं वसंत
-मनोहर चमोली ‘मनु’
मैं प्रेम में हूं
जानती थी इतना
नहीं जाना कि ये जो वसंत है प्रेम का
आएगा और चला भी जाएगा
बेखबर रही और आ गया पतझड़ भी
कब छीन लिया गया मुझे मुझसे ही
मैं भूल ही गई कि प्रेम से पहले जरूरी है
खुद का होना
तब प्रेम है और तभी आएगा वसंत
तभी देख सकूंगी वासंती हवा को मैं
लेकिन मैंने तो बंद कर दिये हर रास्ते
जो आते थे मुझ तक
मैं बन गई पगडंडी तेरा प्रेम पाने को
अब जाना कि पगडंडियों पर चलने वाले
बड़े रास्ते की तलाश में होते हैं
और बड़ा रास्ता लील लेता है पगडंडियों को
मैं मूर्ख थी तब नहीं सोचा
कि प्रेम का वसंत बीतेगा तो लौटेगा नहीं
कभी नहीं।
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