'तुम हो प्राण'
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केश तुम्हारे बरगद की छाँह
देते मुझको छाया
जब भी झुलसा जीवन में
आराम यहीं तो पाया
धुंधलाता है जीवन जब भी
छाती है निराशा
आशाओं की भोर लाकर
तुमने मुझे जगाया
जब भी भूखा प्यासा तड़फा
आया मुझको रोना
तुमने पुकारा बाँह फैलाईं
मुझको गले लगाया
जब भी उधड़ा मन का कोना
और फट जाता मैं
प्यार की तुलपन कर कर के
तुमने मुझे सजाया
मानव हूँ तो मन में आते
बारम्बार विकार
मानस हो भलमानस बनना
तुमने मुझे चेताया
जब भी मुझको तुमने पुकारा
दौड़ के मैं हूँ आया
मेरे प्राण बसे हैं तुम पर
मुझको बोध कराया।
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-मनोहर चमोली ‘मनु
केश तुम्हारे बरगद की छाँह
देते मुझको छाया
जब भी झुलसा जीवन में
आराम यहीं तो पाया
धुंधलाता है जीवन जब भी
छाती है निराशा
आशाओं की भोर लाकर
तुमने मुझे जगाया
जब भी भूखा प्यासा तड़फा
आया मुझको रोना
तुमने पुकारा बाँह फैलाईं
मुझको गले लगाया
जब भी उधड़ा मन का कोना
और फट जाता मैं
प्यार की तुलपन कर कर के
तुमने मुझे सजाया
मानव हूँ तो मन में आते
बारम्बार विकार
मानस हो भलमानस बनना
तुमने मुझे चेताया
जब भी मुझको तुमने पुकारा
दौड़ के मैं हूँ आया
मेरे प्राण बसे हैं तुम पर
मुझको बोध कराया।
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-मनोहर चमोली ‘मनु
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मेल-manuchamoli@gmail.com । ब्लाॅग लिंक है- http://alwidaa.blogspot.in
बहुत सुन्दर मनु जी....
जवाब देंहटाएंMaheshwari ji aabhaari hun aapka ji.
हटाएंश्रृंगार रस की सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंAnjani Kumar ji aabhaari hun aapkaa ji.
हटाएंबहुत सुन्दर रचना मनु जी...
जवाब देंहटाएंअनु
Shukriya "ANU" ji.
जवाब देंहटाएं