26 नव॰ 2013

अगली बार जरूर आना.-मनोहर चमोली ‘मनु’ champak NOV 1st,2013



अगली बार जरूर आना


मनोहर चमोली ‘मनु’


नुभव चिल्लाया-‘‘मम्मी! यहां आओ। देखो न, ये नई चिड़िया हमारे घर में घुस आई है। इसकी पूंछ दो मुंह वाली है।’’
अमिता दौड़कर आई। खुशी से बोली-‘‘अरे! ये तो अबाबील है। प्रवासी पक्षी। दूर देश से आई है। ये हमेशा यहां नहीं रहेगी। कुछ महीनों बाद ये वापिस अपने वतन चली जाएगी।’’

अनुभव सोचने लगा-‘‘इसका मतलब ये विदेशी चिड़िया है। भारत में घूमने आई है। मैं इसे अपने घर में नहीं रहने दंूगा।’’
अबाबील का जोड़ा मेहनती था। दोनों ने दिनरात एक कर दिया। उन्होंने घर की बैठक वाले कमरे का एक कोना चुन लिया था। छत के तिकोने पर दोनों ने मिलकर घोंसला बना लिया।
अमिता ने अनुभव से कहा-‘‘अबाबील ने कितना सुंदर घोंसला बनाया है। अब हम इन्हें झुनका और झुनकी कहेंगे।’’
अनुभव ने पूछा-‘‘मम्मी। ये अपनी चोंच में क्या ला रहे हैं?’’
अमिता ने बताया-‘‘झुनकी अंडे देगी। घोंसला भीतर से नरम और गरम रहेगा। इसके लिए झुनकाझुनकी घासफूस के तिनके, पंख और मुलायम रेशे ढूंढखोज कर ला रहे हैं।’’ यह कहकर अमिता रसोई में चली गई।
अनुभव ने मेज सरकाया। उस पर स्टूल रखा। स्टूल पर चढ़ कर अनुभव ने छतरी की नोक से झुनकाझुनकी का घोंसला तोड़ दिया। झुनकाझुनकी चिल्लाने लगीं। कमरे के चारों ओर मंडराने लगीं।
‘‘अनुभव। ये तुमने अच्छा नहीं किया। चलो हटो यहां से।’’ अमिता दौड़कर रसोई से आई और टूटा हुआ घोंसला देखकर अनुभव से बोली।
विदेशी चिड़िया की वजह से मुझे डांट पड़ी है। अनुभव यही सोच रहा था।
शाम हुई तो अमिता ने अनुभव को चायनाश्ता देते हुए कहा-‘‘झुनकाझुनकी फिर से अपना घोंसला उसी जगह पर बना रहे हैं। घासफूस और गीली मिट्टी चोंच में ला लाकर वह अपना घोंसला बनाते हैं। तिनकातिनका जोड़ते हैं। देखो। बेचारे दोबारा मेहनत कर रहे हैं। सिर्फ तुम्हारी वजह से। शुक्र है कि वे हमारा घर छोड़कर कहीं ओर नहीं गये।’’ यह सुनकर अनुभव चुप रहा। फिर मन ही मन में सोचने लगा-‘‘मैं झुनकाझुनकी को किसी भी सूरत में यहां नहीं रहने दूंगा। मैं इनका घोंसला बनने ही नहीं दूंगा।’’
झुनकाझुनकी ने बिना थकेरुके दो दिन की मशक्कत के बाद घोंसला तैयार कर लिया। अनुभव दोस्त से गुलेल मांग कर ले आया। उसने गुलेल स्टोर रूम में छिपा दी। झुनकाझुनकी दिन भर चहचहाते। फुर्र से उड़ते हुए बाहर निकलते। बैठक के दोतीन चक्कर लगाते। फिर एकएक कर घोंसले के अंदर घुस जाते।
एक दिन अमिता ने अनुभव को बताया-‘‘लगता है झुनकी ने अंडे दे दिये हैं। देखो। झुनका चोंच में कीड़ेमकोड़े पकड़ कर ला रहा है। कीटपतंगे और केंचुए इनका प्रिय भोजन है। पंद्रहबीस दिनों के बाद घोंसले से बच्चों की चींचीं की आवाजें सुनाई देने लगेंगी।’’
अनुभव सोचने लगा-‘‘मेरा निशाना पक्का है। बस एक बार गुलेल चलाने का मौका मिल जाए। घोंसला अंडों समेत नीचे गिरा दूंगा।’’
फिर एक दिन घोंसले से बच्चों की चींचीं की आवाजें आने लगीं। अनुभव दौड़कर आया। घोंसले से आ रही आवाजों को सुनने लगा।
‘‘अब कुछ ही दिनों में बच्चे घोंसले से बाहर निकल आएंगे।’’ अमिता ने अनुभव से कहा। अनुभव मन ही मन बुदबुदाया-‘‘कुछ भी हो। आज रात को मैं घोंसला तोड़ ही दूंगा।’’
रात हुई। अनुभव चुपचाप उठा। स्टोर रूम से गुलेल निकाल कर वह घोंसले के नजदीक जा पंहुचा। वह अभी निशाना साध ही रहा था कि झुनकाझुनकी चींचीं करते हुए अनुभव पर झपट पड़े। अनुभव के हाथ से गुलेल छिटक कर सोफे के पीछे जा गिरी। अनुभव उछलकर सोफे पर जा चढ़ा।
‘‘अनुभव बच कर रहना। देखो सोफे के सामने कितना बड़ा बिच्छू है।’’ अंकिता खटका सुनकर बैठक वाले कमरे में आ चुकी थी। दूसरे ही क्षण झुनकाझुनकी ने बिच्छू को चोंच मारमार कर जख्मी कर दिया। झुनका बिच्छू को चोंच में उठा कर घोंसले में ले गया। अनुभव डर के मारे कांप रहा था।
अमिता ने कहा-‘‘ अनुभव तुम बालबाल बच गए। वह बिच्छू तो खतरनाक था। अब तक झुनकाझुनकी के बच्चे बिच्छु को अपना भोजन बना चुके होंगे। यदि बिच्छू कहीं छिप जाता तो बड़ी मुश्किल हो जाती।’’ अनुभव ने राहत की सांस ली।
दिन गुजरते गए। अनुभव स्कूल आतेजाते घोंसले पर नज़र जरूर डालता। अब वह बैठक वाले कमरे में ही पढ़ाई करता। एक शाम अमिता ने कहा-‘‘अनुभव। मैं बाजार जा रही हूं।’’
अनुभव को इसी पल का इंतजार था। वह दौड़कर गुलेल ले आया। घोंसला निशाने पर था। इस बार उसका निशाना चूका नहीं। घोंसला भरभराकर नीचे आ गिरा। ढेर में मिट्टी, पंख, घासफूस के अलावा कुछ नहीं था। अमिता देर शाम घर लौटी और सीधे रसोई में खाना बनाने चली गई। खाना खाकर सब सो गए।
सुबह हुई। अमिता ने उठकर बैठक की सफाई की। अनुभव उठा तो वह डरता हुआ बैठक के कमरे में जा पहुंचा। अमिता ने कहा-‘‘अनुभव बेटा। झुनकाझुनकी का घोंसला न जाने कैसे टूट गया।’’
अनुभव ने कहा-‘‘ मम्मी लगता है कि वे अपने बच्चों समेत अपने देश वापिस लौट गए।’’
अमिता उदास हो गई। अनुभव से बोली-‘‘हां। लेकिन मुझे इस बात का दुख है कि तुम झुनकाझुनकी के बच्चों को देख नहीं पाए। तुम्हारे स्कूल जाने के बाद और तुम्हारे स्कूल आने से पहले वे सब बैठक में यहांवहां खूब उड़ते थे। कई बार रसोई में भी आ जाते थे।’’
यह सुनकर अनुभव को हैरानी हुई। कुछ ही देर में उसे भी महसूस हुआ कि घर सूनासूना सा लग रहा है। वह मुस्कराया और मन ही मन कहने लगा-‘‘साॅरी झुनकाझुनकी। अगली बार फिर आना और हमारे घर ही आना। मैं इंतजार करुंगा।’’
अनुभव चुपचाप स्टोर रूम में गया। गुलेल एक कोने में पड़ी थी। अनुभव ने गुलेल उठाई और दोस्त को वापिस करने के लिए उसके घर की ओर चल पड़ा।
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