3 अप्रैल 2016

बाल कहानी, 'नया पुराना' : जनसत्ता, 6 March 2016 child literature

'नया-पुराना'

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-मनोहर चमोली ‘मनु’

बीस रुपए का पुराना नोट बटुए के भीतर आया।

उसे किसी ने टोका-‘‘अरे, अरे! जरा हट के। कहां चढ़े जा रहे हो?’’ 

बीस रुपए का एक नया नोट बटुए में पहले से था। वह गुस्से में था। 

पुराने नोट ने पैर पसारते हुए कहा-‘‘चढ़ नहीं रहा हूं भाई। अपने लिए जगह बना रहा हूं।’’
 नया नोट चिढ़ गया। बोला-‘‘उफ ! तुम कितने गंदे हो। मुड़े-तुड़े। दाग-धब्बों से भरे हुए हो। तुम्हारे शरीर पर तो कई छेद हैं। तुमसे से बदबू भी आ रही है। मुझे देखो। एकदम नया हूं। नोट की गड्डी से सीधे यहां आया हूं।’’

पुराना नोट हंसने लगा। नया नोट चैंका। बोला-‘‘हंस क्यों रहे हो?’’ 

पुराना नोट बोला-‘‘मैं भी कभी नया था। मेरे शरीर में भी तुम्हारी तरह रंगों की खुशबू आती थी। मैं भी कभी करारा था। खूब फड़फड़ाता था। लेकिन याद रखो। तुम भी मेरे जैसे हो जाओगे।’’ 
नया नोट बोला-‘‘मेरे नयेपन से तुम्हें जलन हो रही है। मुझे तुम्हारी तरह नहीं होना है। मैं कई दिनों से इस बटुए में हूं। हमेशा यहीं रहूंगा। समझे तुम।’’

पुराना नोट चुप नहीं रहने वाला था। बोला-‘‘समझ गया। लेकिन तुम्हें भी समझा रहा हूं। माना कि मैं पुराना पड़ चुका हूं, लेकिन तुम्हारी कीमत और मेरी कीमत में कोई अंतर नहीं है।’’ 

बात अभी चल ही रही थी कि बटुए के सभी नोट सहम गए। हाथ का अंगूठा, तर्जनी और मध्यमा उंगली ने बटुए के भीतर झांका। पुराना नोट खींच लिया गया। नए नोट ने राहत की सांस ली और वह आराम से सो गया।

एक दिन अचानक फिर वही बीस रुपए का पुराना नोट बटुए में आ गया। 
नए नोट ने आंखें दिखाते हुए पूछा-‘‘तुम ! फिर आ गए?’’ 

पुराना नोट बोला-‘‘मैं कहां आया। मुझे तो लाया गया। वैसे भी मुझे घुटन पसंद नहीं है।’’ 
नया नोट बोला-‘‘हैरान हूं। इस आरामदायक जगह में तुम्हें घुटन हो रही है! वैसे इतने दिन थे कहां?’’ 
पुराना नोट पैर पसारते हुए बोला-‘‘सबसे पहले मेरे बदले में दो चाॅकलेट ली गईं। मैं गया गल्ले पर।’’ 
नया नोट बोला-‘‘चाॅकलेट ! गल्ले पर ! ये गल्ला क्या होता है?’’ 
पुराने नोट ने हंसते हुए बताया-‘‘अरे, दुकानों पर हम नोटों के लिए एक गल्ला रखा होता है। हम सब वहां रखे जाते हैं। खैर छोड़ो। मैं गल्ले में रखे नोटों से बात कर ही रहा था कि दुकानदार ने मुझे एक ग्राहक को पकड़ा दिया। ग्राहक ने मुझे अपने बटुए में रख लिया।’’

नया नोट फिर चैंका। बोला-‘‘दुकानदार ! ग्राहक !’’ 

पुराना नोट बोला-‘‘मुझे तुम पर दया आती है। अरे, हम नोट खरीददारी में बहुत काम आते हैं। हमारे बदले दुकानदार ग्राहकों को सामान देते हैं। जो हम नोटों से सामान खरीदता है, उसे ग्राहक कहते हैं। हद है। तुम्हारा जीना ही बेकार है। इस बटुए में पड़े रहोगे तो दुनिया कैसे देखोगे। अब यह मत पूछना कि दुनिया किसे कहते हैं।’’ 
नया नोट झेंपते हुए बोला-‘‘हां, मैं तो यही पूछने वाला था।’’ 

पुराना नोट बोला-‘‘हम नोट बनें ही इसलिए हैं कि हम चलें। चलना ही जिंदगी है। मैं हजारों किलोमीटर की यात्रा कर चुका हूं। सैकड़ों शहर घूम आया हूं। अनगिनत बार गिना जा चुका हूं। लेकिन तुम क्या जानों की चलना-ठहरना क्या होता है। सैकड़ा-हजार क्या होता है। यात्रा किसे कहते हैं।’’

नया नोट उदास हो गया। मायूस होकर धीरे से बोला-‘‘बड़े भाई। माफ करना। मैं तो मशीन में छपकर सीधे यहां लाया गया हूं। इस बटुए के अलावा मैंने कुछ देखा ही नहीं। तुम्हारी बातों से तो लगता है कि दुनिया बहुत बड़ी है। अब तुम ही कुछ करो। मुझे भी दुनिया दिखाओ।’’

पुराना नोट बोला-‘‘चिंता मत करो। इस बार मुझे जैसे ही इस बटुए से बाहर खींचा जाएगा। तुम मुझसे चिपके रहना। मैं बहुत चल गया हूं। कमजोर हो गया हूं। एक झटके से मेरे दो हिस्से हो जाएंगे। बस फिर मेरे बदले तुम्हें ही बाहर जाना होगा।’’ 

नया नोट चैंका। बोला-‘‘मैं समझा नहीं।’’ पुराना नोट हंसते हुए बोला-‘‘छोटे भाई। हमारा भी जीवन होता है। मेरे दो हिस्से हो जाने पर मुझे कोई नहीं लेगा। बस फिर बीस रुपए के लिए बटुए से दूसरा नोट निकाला जाएगा। फिलहाल तुम्हारे अलावा इस बटुए में दूसरा बीस का नोट है ही नहीं।’’ नया नोट बोला-‘‘नहीं-नहीं। मेरे लिए तुम भला अपनी जान क्यों दोगे।’’

तभी अंगूठा, तर्जनी और मध्यमा उंगली ने बटुए में झांका।

 यह क्या !  बटुए के सभी नोट बाहर निकाल लिए गए। सभी नोट एक मिठाई की दुकान के गल्ले में जा पहुंचे। बटुए के नोट गल्ले में रखे नोटों के साथ जा मिले। अच्छा हुआ कि पुराने नोट के दो हिस्से नहीं हुए। मैं भी बटुए से बाहर आ गया। बीस रुपए का नया नोट गल्ले में आकर यही सोच रहा था।


॰॰॰ -मनोहर चमोली ‘मनु’

2 टिप्‍पणियां:

यहाँ तक आएँ हैं तो दो शब्द लिख भी दीजिएगा। क्या पता आपके दो शब्द मेरे लिए प्रकाश पुंज बने। क्या पता आपकी सलाह मुझे सही राह दिखाए. मेरा लिखना और आप से जुड़ना सार्थक हो जाए। आभार! मित्रों धन्यवाद।