15 अक्तू॰ 2019

सौंधी में अनगिनत खुशबूएँ हैं

सौंधी में अनगिनत खुशबूएँ हैं
-मनोहर चमोली ‘मनु’
कोई स्कूल अपनी स्थापना के पच्चीस वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर विद्यालयी पत्रिका को भव्यता से प्रकाशित करे और यह प्रयास करे कि अध्ययनरत् सभी छात्रों की आभा किसी न किसी तरह शामिल हो तो ऐसे प्रयास को आप क्या कहेंगे? पत्रिका का हर पृष्ठ रंगीन है। पत्रिका  भारी-भरकम है। 234 पेज हैं। लेकिन रचनाएँ ठीक उलट सहज-सरल और मासूम भी हैं।


 पत्रिका का प्रकाशन जितना जटिल है उसके ठीक विपरीत बाल सुलभ रचनाएँ छात्रों ने उत्साह के साथ प्रस्तुत की हैं। बहरहाल बेशकीमती पत्रिका मूल्यरहित है लेकिन इसके अस्तित्व में आने से पहले पच्चीस साल की विद्यालयी यात्रा को एक जगह पर समेटना उतना ही अनमोल है। 

निश्चित तौर पर विद्यालय के पूर्व छात्रों,अध्यापकों और प्रबन्धन तंत्र इस पहले प्रयास को आगे बढ़ाने के लिए भी कृत संकल्प होंगे। अठारह संदेश हैं। राग-अनुराग के तहत विद्यालय से जुड़े शिक्षक-शिक्षिकाओं,कार्मिकों और छात्रों ने भी अपनत्व भरे संदेश भेजे हैं। यह संदेश स्वयं में किसी जानदार-शानदार रचना से कम नहीं हैं। इनकी संख्या सेंतीस हैं। विद्यालय तो छोड़िए जो अब इस दुनिया में नहीं हैं और उनका योगदान विद्यालय में किसी न किसी तरह का था, उन्हें भी पत्रिका में स्थान दिया गया है। 

30 पूर्व छात्रों की बातें,यादें,संस्मरण और रचनाएँ शामिल है। इन्हें पढ़कर पता चलता है कि एक विद्यालय अपने छात्रों को इस समाज के विविध कर्मक्षेत्रों में देखकर कैसे गौरवान्वित होता होगा? इसकी कल्पना करना किसी रोमांचक यात्रा से कम नहीं है। 900 से अधिक जीवंत छाया-चित्र पत्रिका में शामिल हुए हैं। 55 से अधिक रेखांकन छात्रों के भी हैं। लगभग 100 इलस्ट्रेशन पत्रिका में बनाए गए हैं।

 विद्यालय की स्थापना से लेकर आज तक की यात्रा को पूरी गरिमा,संघर्ष और प्रगति के साथ इस पत्रिका में शामिल करने का सफल प्रयास किया गया है। तोतला मुँह,बड़ी बातें स्तम्भ के तहत अभी-अभी स्कूल आ रहे छात्रों की ज़बानी छूटे बोलों,बातों और विचारों को शामिल किया गया है। ऐसे सेंतीस छात्रों ने गुदगुदाने और विचार करने वाली रचनाएँ दी हैं। आपका नाचने का मन कब करता है? इस स्तम्भ के तहत पन्द्रह छात्रों को स्थान मिला है। बाक़यदा उनकी समूह में फोटो खींचकर इस स्तम्भ में प्रकाशित की गई है। 


पत्रिका में घर के बुजुर्गों को ही परियाँ कहा गया है। मज़ेदार बात यह है कि छात्रों ने अपने दादा-दादी के संग बिताए दिनों,क्षणों और अवसरों को अपनी कल्पना और अनुभव के हिसाब से संस्मरण के तौर पर पत्रिका में दिया है। मजेदार बात यह है कि बाक़ायदा वे अपनी इन परियों-फरिश्तों के साथ फोटो के साथ भी हैं। ऐसे छब्बीस रचनाकारों की रचनाएँ यहाँ हैं। मेरे पालतू जानवर मेरे दोस्त स्तम्भ के तहत छात्रों के घर में पल रहे जानवरों के साथ फोटो और विवरण भी पत्रिका में है। इन रचनाओं की संख्या चैबीस है। मेरे पौधे मेरे मित्र स्तम्भ के तहत बाईस छात्रों का उनके पौधों-पेड़ों के समक्ष दर्ज़ चित्र और विचार पत्रिका में शामिल है। सिल्वर जुबली उत्सव को भी शानदार ढंग से प्रस्तुत किया गया है। दादी-नानी स्पेशल डे सेलिब्रेशन को लिखा है संगीता श्रीवास्तव जी ने। यू ंतो ऐसा कार्यक्रम केन्द्रीय विद्यालय के वार्षिक कार्यक्रमों में होता ही है। लेकिन इस विद्यालय का यह कार्यक्रम इसलिए भी बेहतर ढंग से नायाब हो चला क्योंकि विद्यालय के 472 बच्चों ने सीधे भाग लिया था। विद्यालयी गतिविधियों जैसे नन्हे वैज्ञानिक-वैज्ञानिक प्रदर्शनी,रंगोली आदि को शामिल किया गया है। 

छत्तीस से अधिक रचनाएँ विद्यालयी अध्यापक,कार्मिक की हैं। विद्यालय की सेवा में रिक्शा चालक की रचना भी पत्रिका में शामिल है। 75 से अधिक छात्रों की रचनाएँ शामिल हैं। पत्रिका में छात्रों ने सामूहिक यानि चार-पांच की टीम के तौर पर कई साक्षात्कार लिए हैं। यह बेहद महत्वपूर्ण हैं। सवाल भी बेहद अर्थपूर्ण पूछे गए हैं। बारह विविध साक्षात्कार हैं। जिसमे बाल रोग विशेषज्ञ, स्कूल प्रिंसिपल, ऐसा बच्चा जो स्कूल नहीं जाता, बैंक मैनेजर, हाॅकर,न्यूज़ पेपर, सैन्यकर्मी, सफाईकर्मी, सब्जी वाले अस्थाई दुकानदार, गृहिणी,नगर पालिका अध्यक्ष,मालीकाका, भारत-पाक विभाजन की साक्षी श्रीमती लाभ कौर प्रमुख हैं। साक्षात्कार विधा में प्रत्यक्ष तौर पर सीखने-समझने वाले 70 से अधिक छात्रों की मेहनत साफ दिखाई देती है। 

अंग्रेजी के लेख,रचनाएँ और मन की बात की संख्या भी 37 से अधिक है। वहीं विज्ञान,तकनीकी,गणित की टीम ने भी पत्रिका को शानदार बनाने में ख़ूब मेहनत की है। 25 से अधिक अध्यापक-छात्रों की रचनाएं-लेख पत्रिका में शामिल हैं। अठारह कविताओं को अलग स्तम्भ में शामिल किया गया है। काश स्तम्भ के तहत बीस छात्रों के मौलिक विचार शामिल हैं। मेरा सपना में दस छात्रों के विचार शामिल हैं। 25 साल बेमिसाल के तहत बयासी छात्रों की रचनाएं शामिल है। विभिन्न गतिविधियों की फोटोज़ भी भव्यता से शामिल की गई हैं। 

उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर का अजय पब्लिक स्कूल लगभग 800 बच्चों की दुनिया है। 35 से अधिक का विद्यालयी स्टाॅफ है। सौंधी पत्रिका में साफ नज़र आता है कि इसे सामूहिक प्रयास देने का सफल प्रयास किया गया है। किसी खास को और किसी को आम बताने-दिखाने की कोशिश नहीं की गई है। सामूहिकता,सहभागिता और समन्वय स्पष्ट दिखाई पड़ता है। यही कारण है कि सीधे तौर पर महासंपादक, संपादक,उपसंपादक, समन्वय संपादक, वरिष्ठ संपादक की भीड़़ जैसी औपचारिकता से मुक्त रखा गया है। वरिष्ठ-कनिष्ठ जैसा भाव भी पत्रिका को छू नहीं सका। 

कहीं न कहीं विद्यालय के पच्चीस साल की मुख्य गतिविधियों को भी समेटने का प्रयास हावी ज़रूर रहा। लेकिन छात्रों की रचनात्मकता को अधिकाधिक शामिल करने की सफल कोशिश साफ दिखाई देती है। अति चटख रंगों से बचा जा सकता था। फोटोज़ सभी महत्वपूर्ण होते हैं। अधिकाधिक संख्या में शामिल करने की वजह से कुछ पेज एलबम-सरीखे बन पड़े हैं। 

1 टिप्पणी:

यहाँ तक आएँ हैं तो दो शब्द लिख भी दीजिएगा। क्या पता आपके दो शब्द मेरे लिए प्रकाश पुंज बने। क्या पता आपकी सलाह मुझे सही राह दिखाए. मेरा लिखना और आप से जुड़ना सार्थक हो जाए। आभार! मित्रों धन्यवाद।