4 नव॰ 2010

गुल्लक [ बाल कथा ]

-मनोहर चमोली 'मनु'


वन में बिल्ली और चूहा रहते थे। चूहा चंचल था, मगर था बहुत होशियार। बिल्ली फुर्तीली थी, मगर वो लापरवाह भी थी। हर काम को कल पर टाल देती। चूहा बिल्ली को चिढ़ाता और बिल्ली कई बार चूहा को दबोच लेती। चूहा माफ़ी मांगता और बिल्ली उसे छोड़ देती। दोनों बात-बात पर झगड़ते, मगर एक-दूसरे के बिना रह भी नहीं पाते। एक बार चूहा बहुत बीमार हुआ। बिल्ली को पता चला तो वो उसके लिए बंदर से दवाई ले आई। मक्का, धान और गेंहू के बीज उसके बिल में पहुंचा आई। एक बार कुत्ते ने बिल्ली को काट लिया। बिल्ली ने बड़ी मुश्किल से जान बचाई। चूहा को जैसे ही पता चला वो हल्दी की गाँठ ले आया। उसे पीसा। तेल के साथ मिलाकर उसने बिल्ली के जख़्मों में लगाया। तीन-चार दिनों तक चूहा ने बिल्ली की ख़ूब सेवा की। वन में सभी एक ही बात कहते-‘‘दोस्ती हो तो बिल्ली और चूहा जैसी।’’

एक दिन की बात है। चूहा और बिल्ली आम के पेड़ के नीचे बैठे हुए थे। गधा भी पास में घास चर रहा था। गधा बोला-‘‘तुम दोनों भी अजीब हो। एक पल में लड़ते हो और दूसरे पल में एक हो जाते हो। लेकिन तुम दोनों में ज़्यादा समझदार कौन है?’’ एक पल के लिए तो बिल्ली और चूहा चुप रहे। फिर दोनों एक साथ बोल पड़े। दोनों ख़ुद को ज़्यादा समझदार बताने लगे। गधा बोला-‘‘सुनो। अपने लिए तो हर कोई समझदार हो सकता है। मगर तुम दोनों में जो भी वन की भलाई के लिए काम करेगा, उसे ज़्यादा समझदार माना जाएगा। तुम दोनों को अपनी क़ाबिलियत प्रमाणित करने के लिए दो माह का समय दिया जाता है। ठीक दो माह बाद हम यहीं मिलेंगे।’’ यह कहकर गधा चला गया। बिल्ली ने सोचा कि अभी तो दो महीने हैं। आराम से सोचा जाएगा, कि आआख़ि क्या किया जाये। मगर चूहा को रात भर नींद नहीं आयी। वो सोचता रहा कि दो महीनें के बाद ऐसा क्या हो, कि वन के लिए भलाई का काम किया जा सके।

सुबह हुई, वो बाज़ार चल दिया। उसके पास सिर्फ़ पाँच रुपए थे। उसने सुना था कि पैसा ही पैसे को कमाता है। उसने अपने आप से कहा-‘‘मुझे कुछ ऐसा ख़रीदना है, जिससे कुछ बड़ा काम किया जा सके।’’ शाम हो गई थी। वो बाज़ार में घूमता रहा। मगर उसे ऐसा कुछ नहीं मिला, जिसे वो ख़रीद पाए। निराश मन से चूहा घर लौटने लगा। तभी उसकी नज़र एक दूकान पर पड़ी। उस दूकान में मिट्टी के बरतन बिक रहे थे। उसने पाँच रुपए में एक गुल्लक ख़रीद लिया। उसे लेकर वो घर आ गया। घर आकर उसने अपनी दादी और दादा से कहा-‘‘आप हर रोज़ मुझे एक-एक रुपया देंगे। देखो। मैं अपने लिए मिट्टी का गुल्लक लाया हूँ।’’ चूहा के दादा-दादी तैयार हो गए।

अब चूहा को हर दिन दो रुपए मिल रहे थे। वो उन्हें गुल्लक में डाल देता। गुल्लक रेज़गारियों के वज़न से भारी होता जा रहा था। चूहा के पिता को जब गुल्लक के बारे में पता चला तो वे भी बहुत ख़ुश हुए। वे अनाज के व्यापारी थे। उन्होंने चूहा से कहा-‘‘अगर तुम शाम को गोदाम में आओ, और सिर्फ़ बची बोरियों को गिनकर मेरे मुंशी को बताओ, तो मैं भी तुम्हें हर रोज़ एक रुपया दे सकता हूँ।’’ चूहा इस काम के लिए तैयार हो गया। वो क्षण भर में ही सारी बोरियां गिन लेता और मुंशी से एक रुपया लेना नहीं भूलता। चूहा की लगन देखकर चूहा की मम्मी भी ख़ुश हुई। वो चूहा से बोली-‘‘अगर तुम सुबह ज़ल्दी उठकर अपना सबक याद कर लो और एक सुलेख लिखकर मुझे दिखाओ तो मैं भी तुम्हें एक रुपया रोज़ दे सकती हूँ।’’

चूहा को ये काम भी सरल लगा। अब चूहा को हर रोज़ चार रुपए मिलने लगे। एक दिन चूहा ने मुंशी से पूछ लिया-‘‘चार रुपए के हिसाब से दो महीने में कितने रुपए जमा हो जाएंगे।’’ मुंशी ने जोड़कर बताया-‘‘साठ दिन के दो सौ चालीस रुपए।’’ मुंशी ने जब चूहा से पूछा तो चूहा ने गुल्लक वाला सारा किस्सा सुना दिया। मुंशी जी भी ख़ुश हुए। वे बोले-‘‘अरे वाह! ये लो साठ रुपये। मेरी ओर से एक दिन का एक रुपया। मैंने भी तुम्हारे गुल्लक के लिए दे दिए।’’

चूहा दौड़कर आया और उसने वे साठ रुपये भी गुल्लक में डाल दिए। उसने दादा जी से पूछकर हिसाब लगा लिया कि उसके गुल्लक में तीन सौ रुपए इस तरह कब तलक जमा हो जाएंगे। चूहा मन ही मन बहुत ख़ुश था। अब वो ऐसे काम के बारे में सोचने लगा, जिसे करने से वन का कुछ भला हो सके। अचानक उसे ध्यान आया कि नन्हें जीवों को नदी या तालाब में पानी पीने में दिक्कत होती है। कई बार तो छोटे जीव पानी पीने के चक्कर में बह भी जाते हैं। उसने अपने आप से कहा-‘‘क्यों न चौपाल पर और आम चौराहे पर प्याऊ खुलवाये जाएं। छोटे-छोटे तालाब बनाए जाएं। जहाँ बारिश का पानी जमा हो सके।’’

चूहा ने दो माह पूरे होने का इंतज़ार भी नहीं किया। सन्नी बंदर और उसके मज़दूरों से उसने बात की। अपना मकसद बताया। सन्नी बोला-‘‘तुम तो नेक काम की शुरुआत कर रहे हो। मैं क्या कोई भी इस काम को करने से मना नहीं करेगा। मैं कल से ही काम शुरू कर देता हूँ। तीन सौ रुपये में तो छोटे-छोटे तीन तालाब बन ही जाएंगे। एक तालाब मैं अपनी और से बनाऊँगा, उसकी मजदूरी भी नहीं लूंगा।’’ एक सप्ताह में वन में चार तालाब बन गए। चारों ओर ये ख़बर आग की तरह फैली कि ये तालाब चूहा ने बनवाए हैं। बात शेर राजा के कानों में भी पहुंची। उसने दरबार में चूहा को बुलवाया। चूहा ने सारा किस्सा सुनाया। बिल्ली और गधा भी दरबार में ही थे। बिल्ली ने कहा-‘‘महाराज। चूहा ने दो माह से पहले ही ऐसा काम कर दिया जो मैं सपने में भी नहीं सोच सकती थी। वाकई चूहा समझदार है।’’

अब गधा बोला-‘‘महाराज। बूंद-बूंद से घड़ा भरता है। चूहा ने एक-एक रुपया जोड़ कर इतने रुपए इकट्ठे किए। चूहा ने हमें बचत का रहस्य तो समझाया ही है, उसके फायदे भी बता दिए हैं। वन के सभी निवासी अगर फ़िजूलख़र्ची न करें और छोटी-छोटी बचत करें, तो वो बचत भविष्य में काम आ सकती है।’’ शेर ने वन के निवासियों से कहा-‘‘आज से ही नहीं, अभी से प्रजा बचत की आदत डाले। हर एक के पास एक गुल्लक होना चाहिए। संकट में और भविष्य में जमा किया हुआ रुपया बहुत काम आ सकता है। हम चूहा को अपना सलाहकार भी बनाते हैं।’’ दरबारियों ने चूहा के लिए ज़ोरदार तालियाँ बजाई। चूहा जाने लगा। राजा ने पूछा-‘‘कहाँ चल दिए?’’ चूहा बोला-महाराज। बड़ा गुल्लक ख़रीदने।’’ दरबार में फिर से तालियाँ बजने लगीं।

-मनोहर चमोली 'मनु'

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1 टिप्पणी:

यहाँ तक आएँ हैं तो दो शब्द लिख भी दीजिएगा। क्या पता आपके दो शब्द मेरे लिए प्रकाश पुंज बने। क्या पता आपकी सलाह मुझे सही राह दिखाए. मेरा लिखना और आप से जुड़ना सार्थक हो जाए। आभार! मित्रों धन्यवाद।