9 नव॰ 2010

बुरा है नकल करना [ प्रेरक प्रसंग ]

गांधी जी उस समय छात्र थे। उनका नाम मोहन दास था। स्कूल का निरीक्षण था। विद्यालय निरीक्षक आए। निरीक्षक ने छात्रों की लिखाई जांचनी चाही। उन्होंने सभी बच्चों को एक साथ बिठाया। मोहन दास भी बैठ गया। निरीक्षक ने पाँच शब्द बोले और कहा कि सभी बोले गए पांच शब्दों को कॉपी पर लिखें। विद्यालय के शिक्षक घूम-घूमकर निरीक्षण कर रहे थे। शिक्षक ने देखा कि मोहन दास शब्दों की मात्राएं ग़लत लिख रहे हैं। शिक्षक ने मोहन दास को इशारा किया कि बगल में बैठे हुए सहपाठी की कॉपी से देख ले। मोहन दास ने ऐसा नहीं किया। उसने अपने हिसाब से ही बोले गए शब्दों की वर्तनी लिखी। निरीक्षक के चले जाने पर शिक्षक ने मोहन दास से कहा-‘‘तुमने शब्दों की सही वर्तनी नहीं लिखी। मैंने बगल में बैठे हुए सहपाठी की कॉपी से देख लेने को भी कहा। तुमसे देखा भी नहीं गया। क्यों?’’ मोहन दास बोले-‘‘गुरुजी। मैं किसी दूसरे की कॉपी से देखकर शब्दों को अपनी कॉपी पर उतार सकता था। मगर मैंने ऐसा नहीं किया। ये तो नकल करना हुआ। नकल करना बुरी बात है।’’ मोहन दास का यह उत्तर सुनकर शिक्षक चुप हो गए। शिक्षक जान चुके थे कि मोहनदास बालक बड़ा होकर सत्य का पुजारी बनेगा। सबके हित की बात करना और जन सरोकारों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की आदत गांधी जी ने बचपन में ही विकसित कर ली थी। गाँधीजी ने सत्य, अहिंसा और प्रेम के साथ-साथ सत्याग्रह को अपने जीवन में उतारा। आज समूची दुनिया इस युगपुरुष के आदर्शों पर चलना महान कार्य मानती है।


मनोहर चमोली 'मनु'
पोस्ट बॉक्स-23, पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड - 246001 मो.- 9412158688
manuchamoli@gmail.com

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