19 अक्तू॰ 2016

Pluto बचपन में ले जाने वाली प्लूटो बाल पत्रिका

प्लूटो का दूसरा अंक हाथ में है। जून-जुलाई 2016 का अंक। अमलतास से भरा आवरण। पूरा पेज अमलतास के फूलों से सराबोर।
कविता भी पढ़िएगा-
अ म ल ता स
तुम इतने पास
तुम इतने पास फूले
मैं तुम पर झूला
तुम मेरी आँखों में झूले!

पाँच से आठ बरस के बच्चों को ही ही नहीं यह हम सभी को बचपन में ले जाने वाली कविता है। यही नहीं इसे इस आवरण के साथ पढ़ें, महसूस करें और जिएँ तो खुशी तिगुनी हो जाती है। अन्तिम आवरण में भी प्रयाग शुक्ल की मज़ेदार कविता है। आप भी पढ़िए-
एक गमले में फूला फूल
हवा चली तो झूला फूल
फूल फूलकर फूला फूल
मोटा हो गया पतला फूल

बच्चों की मानिदं इस कविता का अपना ही मज़ा है। अपनी ही रंगत है और अपनी ही मस्ती है। 
भीतर के आवरण पर चित्रात्मक कविता प्रभात की है। छींक। 
आप भी पढ़िए-

मक्खी ने छींका आ छीं
मच्छर ने छींका मा छी
हाथी ने छींका ऊँ छी
चूहे ने छींका फूँ छीं 
चींटी ने छींका ऊँ ही
चींटे ने छींका फूँ हीं

तीन पेज पर छाई नन्हीं सी कथा ‘आँख खुली तो सपना गिर गया’ प्रकाशित है। चित्र बड़े मज़ेदार हैं। यह कहानी है शशि सबलोक की। चित्र बनाए हैं अंजता गुहाठाकुरता ने।
दो पेज की चित्रात्मक कहानी है चींटी की झपकी। इसे लिखा है विनता विश्वनाथन ने। यह तो और भी मज़ेदार बन पड़ी है। चित्र बनाए हैं वन्दना बिष्ट ने। 
दो पेज पर खोखल में दो महीने जानकारी सी देती कथा है। चित्र बनाए हैं सुजाशा दासगुप्ता ने। चिड़ा-चिड़ी।यह पक्षी धनेश है। चिड़ा मिटटी ला लाकर देता है। चिड़ी इस मिट्टी और अपनी बीट से खेखल को बद कर देती है। बस छोटी सी खिड़की खुली छोड़ देती है। चिड़ा खिड़की से चिड़ी को खाना लाकर दे रहा है। दो महीने अपने बच्चों के साथ अन्दर रहकर खोखल को तोड़क्र वह बाहर आती है। मज़ेदार।

इस अंक में चलो चिड़िया बनाएँ है। सात तरीकों के बाद आठवाँ प्रयास करने पर चिड़िया बनती है। रंगीन। बच्चों को भा जाने वाली गतिविधि है ये।
जी.ए. कुलकर्णी के बखर बिममची को याद करते हुए निमरा का बस्ता दी गई है। यह कहानी तो बेहद मज़ेदार है। बच्चों की सी कल्पनाएं निमरा की हैं। निमरा की माँ भी उसकी काल्पनिकता को पूरे पँख दे रही है। मस्त कहानी।
छोटी सी कहानी का एक अंश आप भी पढ़िए-
निमरा ने माँ से पूछा-‘‘ माँ, क्या हाथी की परछाईं हाथी से भी बड़ी दिखती होगी?’’, 
‘‘हाँ, पर हाथी की परछाई हाथी की तरह भारी नहीं होती।‘‘ माँ ने कहा। ‘‘हाथी की परछाईं हाथी की तरह ऊँची भी नहीं होती। और न ही उस पर बैठकर कहीं जा सकते हैं।’’

सुशील शुक्ल की कविता भी पढ़िए और आनन्द लीजिए -
एक थे भाई खट
एक थे भाई पट
कहीं पड़ी थी एक मटर
खट चिल्लाये खटर
पट चिल्लाये पटर
ही ही हू हू
हँसी के ठट्ठे
हट्टे कट्टे
लोग इकट्ठे
खट चिल्लाये पट 
पट चिल्लाये खट
भागो भाई झट
बिल में मटर
गई फिर बँट 
आधी खए खट
आधी खाए पट
वो देखो खट पट
सोये हैं सट सट।

इस अंक में मिट्टी के रंग की जानकरी विनता विश्वनाथन ने दी है। बीस पंक्तियों से भी कम। दो पेज में चित्रांकन के साथ संवारा है सुवजित सामन्ता ने । वाह !
चाँद पर चार पेज की चित्रकथा वो भी संवादहीन। कितने रंगों से भरी है यह! पर पता नहीं किसकी है। चित्र तो तापोशी घोषाल के ही हैं।
एक चित्रात्मक भरी कहानी और है -निडर चूहे। ये भी बड़ी मज़ेदार है। लगभग चालीन पंक्तियों की यह कहानी तीन पेज पर गई है। दो चूहों को एक मोबाइल मिलता है। मोबाइल में कुत्ते की आवाज है। वह बटन दबाते हैं तो आवाज से बिल्ली डर कर भागती है। 
एक संवाद आप भी पढ़िए-

‘‘कुत्ता अपनी आवाज़ को ढूँढ रहा होगा न?‘‘
‘‘हो सकता है।‘‘
‘‘पर उसकी आवाज़ तो हमारे पास है। अगर यह बिल में हमारे साथ रहेगी तो उसे कैसे मिलेगी?‘‘
‘‘तुम सही कह रहे हो भाई। हम इसे यही छोड़ देते हैं। क्या पता इस आवाज़ का कुत्ता इधर आए?‘‘
‘‘भाई, एक बात कहूँ?’’
बोल भाई, ‘‘हम चूहे ही अच्छे। हमारी आवाज़ हमारे साथ ही रहती है।’’

सुशील शुक्ल की कहानी रहमत दादा का झोला भी भावनापूर्ण और संवेदना से भरी है। एक बच्चा अपने दादा और दादा जी के दोस्त को याद करता है। दिलचस्प!
नीमगाँव भी एक सुन्दर कहानी है।
इस पत्रिका में चटनियाँ नियमित काॅलम बनाया गया है। इसमें छोटी-छोटी रोचक कहानियां-कविताएं हैं। जैमत काॅलम बनाया गया है। इसमें छोटी-छोटी रोचक कहानियां-कविताएं हैं। 
जैसे इस अंक में पढ़िएगा-
एक-

’अम्मी कहती हैं कि बैठा है’
ं पढ़िएगा-

एक-
अम्मी कहती हैं कि बैठा है
पर राशिद तो 
इस बात पर अड़ा है
कि कौआ खड़ा है।

दो-
कुछ खाने की ताक में
बाल घुस गया नाक में
ए आई आक छूँ
ज़ोर से छींक जूँ।
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आप ई ट्रांसफर के माध्यम से HDFC बैंक के खाता संख्या-50100067091186 
IFSC :HDFC0000134 पर सदस्यता शुल्क भेज सकते हैं। एक साल की सदस्यता 300 रुपए है। दो साल की 540 और तीन साल की 720 रुपए है। बैंक ड्राफ्ट या चेक तक्षशिला पब्लिकेशन के नाम से नई दिल्ली में देय होना चाहिए। तक्षशिला पब्लिकेशन सोसाइटी के लिए सुशील शुक्ल जी का साथ तापोशी घोषाल ने दिया है। पचास रुपए इसका मूल्य रखा गया है। भीतर कुछ चित्र शशि शेटये, जगदीश जोशी, शुद्धसत्व बसु और शोभा घारे ने बनाए हैं।

फिर से आपकी नज़र कि सम्पादक रीमा सिंह हैं। अतिथि सम्पादक के तौर पर सुशील शुक्ल हैं। पत्रिका का पता है- नाॅलेज सेण्टर, सी 404 बेसमेण्ट, डिफेंस काॅलोनी, नई दिल्ली 110024. 
फोन नंबर है-011-41555418/428
मेल - Pluto@takshila.net 
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मनोहर चमोली ‘मनु’
मोबाइल -09412158688
मेल: chamoli123456789@gmail.com

3 टिप्‍पणियां:

  1. मान्यवर
    आपकी बालपत्रिका के कुछ अंश दृष्टि की परिधि में आए,मैं अत्यधिक प्रसन्नता अनुभव कर रहां हूं कि यह पत्रिका बाल साहित्य के लिए वही मील का पत्थर बनेगी जो कभी तेज साप्ताहिक दीवाना व्यंग्यसाहित्य में हुआ करता था
    आपकी साहित्यिक प्रतिभा के तत्त्वावधान में यह पत्रिका उच्च गुणवत्ता स्तर पर बच्चों का मनोरंजन,उत्साहवर्द्धन करती रहे ,ऐसी मेरी शुभकामना है
    duddyx@gmail.com
    Ph 9416097318

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  2. बालमन की सुंदर पत्रिका!
    धन्यवाद ''मनु'' सर!

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यहाँ तक आएँ हैं तो दो शब्द लिख भी दीजिएगा। क्या पता आपके दो शब्द मेरे लिए प्रकाश पुंज बने। क्या पता आपकी सलाह मुझे सही राह दिखाए. मेरा लिखना और आप से जुड़ना सार्थक हो जाए। आभार! मित्रों धन्यवाद।