28 अप्रैल 2020

लेकिन एक सुशिक्षित पादरी, मौलवी, ग्रन्थी और पण्डित पाखण्ड करे?

बचपन एक फिर राह अनेक कैसे हो गई?

-मनोहर चमोली ‘मनु’

सुरजीत पहली कक्षा से मेरा सहपाठी रहा। होशियार बच्चों में उसकी गिनती होती थी। पहले तो ध्यान नहीं दिया। एक दिन (कक्षा याद नहीं) वह पगड़ी,कंगन,कृपाण पहनकर आया। कुछ दिनों बाद समझ में आया कि वह सरदार हो गया है। आगे जाकर पता चला कि मुंडा क्या होता है और सरदार क्या होता है। उसका व्यवहार बहुत बदल गया। कुछ अवसरों पर उसकी कुछ बातें हैरान करती थीं। उसे तैयार होने में और कही किसी समूह में सहभागिता करते हुए परेशानी होती थी। धीरे-धीरे वह गुरुद्वारा के काम-काज में व्यस्त हो गया। काॅलेज तक पहुँचते-पहुँचते वह मुख्यधारा से बेहद पिछड़ गया।

मज़ाहिर के बारे में भी बताता चलूं। हमारे जैसा ही था। गाता बहुत अच्छा था। डांस भी करता था। कमेंट्री भी बढ़िया करता था। उसका लतीफा सुनाना हमें हमेशा अच्छा लगता था।
पाँचवी जमात के पास के बाद जब हम दूसरे स्कूल में पढ़ने गए तो वह उलट व्यवहार करने लगा। हर चीज़ में इनकार कर देता। गाना,डांस करना यहां तक कि लतीफा सुनाना तो दूर वह सुनने से भी परहेज़ करने लगा। काॅलेज तक वह पहुँचा ही नहीं लेकिन सिर पर टोपी और दाढ़ी और सूरमा उसकी पहचान हो गए।


सारिया हंसोड़ थी। आए दिन उसकी शैतानियों से हम तंग आ जाते। सोमवार से शनिवार के दिनों में एक दिन ऐसा आता जब उसे खड़ा कर दिया जाता। कारण। कक्षा में कोई ऐसी हरकत करना, जिससे मास्साब तंग हो जाया करते थे। धक्का-मुक्की करना उसकी आदत थी। सहपाठियों की किताबें छिपाना उसका काम था। दूसरों को खूब तंग करती और खिलखिलाकर हंसती। बाद दिनों में उसकी बोलती बंद हो गई। आगे चलकर वह क्राॅस के लाॅकेट चैन सहित बांटती। यीशु मसीह की किताबें बांटने लगी। वक़्त से पहले धीर,गंभीर हो गई। चर्च के चक्कर काटने लगी।

विनय मोहन ‘बिन्नू’ बेहद मिलनसार था। ख़ूब घुमक्कड़। चटोरा। उसने ही हमें यारबाज़ बनाया था। हाॅफ डे,फीस डे के दिन वह तय करता कि किसके घर जाना है। हम लगभग पचास एक सहपाठी थे। लड़कियां ज़्यादा थीं। वह हर किसी के घर चला जाता। हमें भी ले जाता। रसोई में जाकर वह खुशबूओं की गंध सूंघने का अभ्यस्त था। हम उसे भुक्कड़ कहते। उसकी लोकप्रियता देखकर कई बार हमें दिक्कत होती। बाद दिनों में बिन्नू ऐसा बदला,ऐसा बदला कि हम हैरान हो गए। वह जन्माष्टमी,शिवरात्रि,रामलीला में सक्रिय हो गया। बिना नागा टीका लगाकर आने लगा। हम दसवीं में थे। बिन्नू हाथ देखने लगा। क्या लड़के और क्या लड़कियाँ ! उसे हाथ दिखाने को आतुर रहते। परीक्षा परिणाम आया तो वह रह गया। ऐसा रहा कि फिर रह ही गया। हाथों में पत्थर जड़ी अंगूठियां पहनकर अक्सर मिल जाता।

सुरजी, मज़ाहिर,सारिया और विनय मोहन उर्फ बिन्नू कालान्तर में छूट गए। पच्चीस-तीस साल बाद पता चला कि ये चारों जो कक्षा में बस आपके-हमारे जैसे मात्र विद्यार्थी थे। अक्षर ज्ञान हासिल करने आए थे। लेकिन अक्षरों की दुनिया के साथ-साथ समाज ने उन्हें धर्म की अफीम इतनी चटा दी कि उन्होंने मान लिया कि धर्म मनुष्य के मनुष्यता से ज़्यादा ज़रूरी है। वे अपने-अपने धर्म से सामने वाले को देखने लगे। वे भूल गए है कि मनुष्य पहले आया, धर्म नहीं।

कभी-कभी जब उन सुनहरे दिनों को याद करता हूँ तो एक अलग तरह की अनुभूति होती है। इन चारों दोस्तों पर दया आती है। हमारे सामने-सामने कट्टरता ने चार प्रतिभाशाली दोस्त हमसे छीन लिए। वे हमारे आस-पास रहकर भी हमारे पास नहीं रह गए थे। उन्होंने स्कूल की पढ़ाई और जीवन की पढ़ाई में तर्क, समझ और मनुष्यता को पीछे धकेल दिया। धर्मान्धता को तरजीह देकर उसे दवा मान लिया। धार्मिक, धार्मिक अतिवादी तो छोड़िए वे पाखण्डी हो गए। वे पाखण्ड के रास्ते पर चले पड़े। पाखण्डियों की पूंजी जमा करने लगे। उनकी सारी ऊर्जा अपने-अपने ईश्वर को महान बताने में खप गई। हम कुछ गहरे दोस्तों से वे पढ़ाई के दौरान ही कटने लगे थे। ऐसा नहीं है कि जो अपने और दूसरों के धर्मों के प्रति उदार हैं और अपने धर्म के प्रति बेहद लचीले हैं, कामयाब हैं।

कामयाबी की परिभाषा क्या है? मैं नहीं जानता। लेकिन एक सुशिक्षित पादरी, मौलवी, ग्रन्थी और पण्डित पाखण्ड करे? ग्रन्थों के हिसाब से दिनचर्या तय करे? मनुष्य को मज़हब के चश्मे से देखे? भयाकुल में मंत्र बांचे। बिना नागा आयतें देखे। पूजा-पाठ, नमाज़, शबद, कीर्तन को गले लगाए और मनुष्यता को दोयम समझें? ऐसे संग से बचना ही ठीक है। हालांकि मुझे आज तक इस बात का दुःख है कि मैंने और मेरे जैसे दोस्तों ने बार-बार कोशिश कि हमारी दोस्ती बनी रहे। बची रहे। लेकिन हम उनके जितना पास जाते रहे वे हमसे दूर होते गए।

खैर.......मैं उन चारों से और उनके जैसों से पूछना चाहता हूँ कि क्या वे बता सकेंगे कि कोरोना काल अभी कितनों की जान लेगा? क्या वे बता सकेंगे कि आगामी दस-बारह महीनों बाद नमक-प्याज क्या भाव रहेगा? क्या वे बता सकेंगे कि मजदूर-किसान क्या करें जिससे उनकी बदहाली जाती रहे?
#कोरोना काल ने दोस्तों को खगालने का वक़्त दिया।

1 टिप्पणी:

यहाँ तक आएँ हैं तो दो शब्द लिख भी दीजिएगा। क्या पता आपके दो शब्द मेरे लिए प्रकाश पुंज बने। क्या पता आपकी सलाह मुझे सही राह दिखाए. मेरा लिखना और आप से जुड़ना सार्थक हो जाए। आभार! मित्रों धन्यवाद।