24 अप्रैल 2020

On Line Classes

हम और हमारे स्कूल

-मनोहर चमोली ‘मनु’

क्या हम और हमारे स्कूल प्रातःकालीन सभा से लेकर छुट्टी का घण्टा बजने तलक पाठ्यपुस्तकों की अवधारणाओं,गतिविधियों, समस्याओं और अभ्यास कार्यों को रोचक ढंग से करने के तरीके संचालित कर पाए हैं?
क्या हम और हमारे स्कूल ऐसी खास गतिविधियाँ करने लगे हैं जिससे कई तरह की अक्षमताएँ झेल रहे बच्चों सीखने की गति बढ़ा सके हैं?
क्या हम और हमारे स्कूल छात्रों के चिंतन को आलोचनात्मक ढंग से सोचने-समझने का नज़रिया बढ़ा पाए हैं?
क्या राज्य शिक्षकों को
पेशेवर कार्यों के लिए स्वायत्तता दे चुका है?
क्या हम और हमारे स्कूल शिक्षा को इकतरफा संवाद से प्रश्न-प्रतिप्रश्न, छात्र-शिक्षक के जीवंत संवाद,स्वस्थ परिचर्चा में तब्दील कर पाए हैं?

क्या हम और हमारे स्कूल छात्रों में भाषाई दक्षता इतनी विकसित कर पाए हैं कि वह अपने अनुभवों से तुरंत स्वयं को अभिव्यक्त कर लेते हैं। किसी भी प्रकरण पर मौलिक लिखित अभिव्यक्ति दे पाते हैं?
क्या हम और हमारे स्कूल परीक्षा की बोझिल व्यवस्था को दूर कर पाए हैं?
क्या हम और हमारे स्कूल ऐसी पढ़ाई करने के अभ्यस्त हो चुके हैं जिसके परिणामस्वरूप अब जाति,धर्म,वर्ग,लिंग,सामाजिक,आर्थिक अंतर पाट दिया गया हो?

क्या हम और हमारे स्कूल सूचना और संचार तकनीक से इतने समृद्ध हो गए हैं कि हर विद्यालय का हर एक छात्र समान रूप से इनके लाभ का अवसर प्राप्त कर चुका है?
यदि इन कुछ सवालों का जवाब हाँ में है तो निश्चित तौर पर मैं आॅन लाईन शिक्षण के साथ हूँ। मैं सूचना और तकनीक माध्यम का शिक्षण में प्रयोग का हिमायती हूँ। लेकिन उसकी तैयारी तो हो?
अभी तो हमारे स्कूलों में ब्लैकबोर्ड के नाम पर दीवार पर काला रंग पुता कक्षा नहीं हटा है। वाॅइट और ग्रीन बोर्ड तो दूर की कौड़ी है। जिलेवार शिक्षा की प्रगति में शायद ही कोई विकासखण्ड ऐसा होगा जो कह सकता है कि वहां सुविधासम्पन्न विद्यालय है। बहरहाल, कभी न कभी शुरूआत तो करनी होगी।
लेकिन इन दिनों जिस तरह सार्वजनिक विद्यालयों में हो रही पढ़ाई की क्षति का जो प्रचार किया जा रहा है, उससे मैं सहमत नहीं हूँ। दो-तीन महीने यदि पढ़ाई नहीं होगी तो मुझे नहीं लगता कि हमारे बच्चे पढ़ाई के जीवन में पिछड़ जाएंगे और वह पढ़ाई के बाद जीवन की पढ़ाई में भी पिछड़ जाएंगे। मुझे लगता है कि कोई नुकसान नहीं हो रहा है। स्कूल भी समाज का हिस्सा है। बच्चे भी समाज का हिस्सा हैं। दुनिया का कोई भी बालमनोवैज्ञानिक ऐसा नहीं कह सकता कि लाॅकडाउन के दिनों में घर में रहकर बच्चे कुछ न सीख रहे होंगे। कुछ न समझ रहे होंगे। अपने अनुभवों को समृद्ध न कर रहे होंगे।
क्या मेरी तरह आप नहीं मानते कि बच्चों के पास अपनी वयवर्ग के हिसाब से विकसित मस्तिष्क है। वह न मशीन है न कोई कलपुर्जा हैं। जो कल जिस स्थिति में थे, आज भी उसी स्थिति में होंगे। बच्चों के लिए यह चालीस दिन अन्य दिनों से अलग हैं। शून्य नहीं। शायद, हर दिन की हर सुबह, बीत चुके दिन की सुबह से एकदम अलग और एकदम नई है।
वैसे भी आॅन लाइन शिक्षक उन्हें क्या दे सकते हैं? कक्षा के विषय की किताब से पाठ,पाठ के प्रश्नोत्तर और प्रकरण से जुड़े लिंक या वीडियो? यही न? ज़्यादा ही हुआ तो किसी प्रकरण से जुड़ा हुआ साहित्यिक भाषा में दिया गया व्याख्यान! ते यू-ट्यूब है न? एनसीईआरटी,एससीईआरटी और दूरदर्शन के सैकड़ों कार्यक्रम बने हुए हैं। नहीं हैं क्या?
क्या हम इन दिनों में कक्षा की जीवंतता और समूह में हासिल सीखने के अवसर मोबाइल में परोस देंगे? समूह में जो प्रश्नोत्तर की प्रक्रिया कक्षा में उत्पन्न होती है उसे कहां से लाएंगे? वाचन,श्रृवण और अवधारणा का स्पष्टीकरण-विस्तार कहां से लाएंगे? तत्काल कक्षा में हो रही परिचर्चा,सवाल-जवाब और प्रतिप्रश्न कहां से लाएंगे? फिर आन लाईन होमवर्क स्कूल की घण्टी बजने से लेकर छुट्टी होने तक हो रही अन्य गतिविधियों का पूरक हैं?
बच्चे मिट्टी का ढेला नहीं हैं। जो स्कूल बंद होने के बाद से ढेला ही हैं और ढेला ही रहेंगे। क्या कोई एक भी शिक्षक यह दावा कर सकता है कि स्कूल खुलने पर वह बच्चे जो इन दिनों घर पर ही हैं, सोच,समझ कहन और पठन स्तर पर वहीं पाए जाएंगे जहां वे उस दिन थे, जिस दिन से स्कूल बंद हैं? शायद नहीं। कतई नहीं।
कौन नहीं जानता कि बच्चे उस बीज की तरह हैं जो मिट्टी से बाहर निकलकर हर दिन अपने आकार को बढ़ा रहे हैं। फिर सीखना-समझना सिर्फ और सिर्फ किताबों से ही नहीं होता। पूरी दुनिया में इंसानों के बच्चों के अलावा किसी भी जीव के बच्चों को होमवर्क नहीं मिलता। वहीं इस दुनिया में सैकड़ों बच्चे ऐसे हैं कि उन्हें जीवन में कभी होमवर्क नहीं मिला। लेकिन उनकी दुनिया में भी सुख हैं। चुनौतियां हैं। संघर्ष हैं और उत्सव भी हैं। हमारे स्कूली बच्चे यदि तीन-चार महीने स्कूली विषय की एक-एक किताब से दूर रहेंगे तो भी वह सीख-समझ रहे होंगे। वे बच्चे भी जिनके घर में एक भी किताब नहीं है। कृपा करके घर को घर ही रहने दें। घर को स्कूल न बनाएं। घर और बच्चे के परिवेश में बहुत कुछ है जो उन्हें सीखाता भी है और समझाता भी है। विश्वास कीजिए।
-मनोहर चमोली ‘मनु’

Photo-bbc

1 टिप्पणी:

यहाँ तक आएँ हैं तो दो शब्द लिख भी दीजिएगा। क्या पता आपके दो शब्द मेरे लिए प्रकाश पुंज बने। क्या पता आपकी सलाह मुझे सही राह दिखाए. मेरा लिखना और आप से जुड़ना सार्थक हो जाए। आभार! मित्रों धन्यवाद।