30 अप्रैल 2020

हम बच्चों के चेहरे पढ़ पा रहे हैं? #corona child

क्या इन दिनों हम बच्चों के चेहरे पढ़ पा रहे हैं?


-मनोहर चमोली ‘मनु’

घर में चुप्पियों की जगह बढ़ गई हैं! घर में रहने वाली आम आवाज़ें परेशान हैं। उनका गला चीखों-चिल्लाहटों ने घोंट दिया है? दीवारों में टंगी दिवंगतों की तसवीरों के चेहरे उदास हो गए हैं। उनकी शांति घर में बढ़ गई हँसी-ठिठोलियों ने भंग कर दी है। घर के छोटे-छोटे कमरों में कदमों की आवाजाही बेतहाशा बढ़ गई हैं। घर घर नहीं रह गए हैं। वे स्कूल-से बन गए हैं। बच्चों की बेचैनियों से दीवारों की घुटन बढ़ गई हैं। वे बीमार दिखाई देती हैं। बूढ़े, जवान और महिलाओं के चेहरों पर बदलने वाले भावों की संख्या तेजी से बढ़ रही हैं।




जीवित इंसानों के साथ ऐसा पहली बार हो रहा है। कोरोना काल से दुनिया का दैनिक जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। कामकाजियों ने पहली बार घरों की छतों को हजारों बार घूर लिया है। दुनिया भर के तमाम बच्चे इन दिनों सबसे अधिक तनाव में हैं। वे चिड़चिड़े हो गए हैं। उदास हो गए हैं। परेशान हो गए हैं। उन्हें डरावने सपने पहले से ज़्यादा आ रहे हैं। उन्हें जो नापसंद है, उसे पसंद करना मजबूरी बन गया है। वे भयभीत भी हो गए हैं। सीखों, सन्देशों, उलाहनाओं, डाँट, हिदायतों, झिड़कियों और तानों की बरसात से वे भीग चुके हैं। वे नींद में अधजगे हैं। सामान्य दिनों में चहकते बच्चे इन दिनों बौखला रहे हैं। झल्ला रहे हैं। उनमें यह लक्षण परिजनों को नहीं दिखाई दे रहे हैं। चूँकि घर के सभी लोग स्वयं तनाव में हैं। उलझन में हैं। उनकी चिंताएं अलग हैं। शायद बच्चों से बड़ी हैं। ज़्यादा हैं। घर के बड़ों को लगता है कि बच्चों को दिन भर खेलना ही तो हैं,ज्यादा ही हुआ तो कुछ घण्टे पढ़ना ही तो है। लेकिन ऐसा नहीं है।

बच्चे फरवरी से परेशान हैं। हर साल फरवरी आते ही स्कूली बच्चों को सालाना इम्तिहान की चिंता सताने लगती है। अभिभावकों को भी और उनके शिक्षकों को भी। यह फरवरी भी फरवरी को आई। तनाव,चिंता और भय के बादल तो पहले से ही मंडरा रहे थे। फिर मार्च में परीक्षा आई। परीक्षा कहीं हुईं, कहीं नहीं हुईं। कहीं अभी होनी हैं तो कहीं औसत अंक देकर बच्चों को पास करने जैसी व्यवस्था हो रही है। लेकिन लाखों बच्चे अधर में अटके हुए हैं। वे अभी पास-फेल,डिवीजन के मकड़जाल से उबरे नहीं हैं। लगभग चालीस दिन लाॅकडाउन ने तो रही-सही कसर पूरी कर दी। बच्चे घर पर रहते और बड़े काम पर जा रहे होते, तो बात अलग थी। सब कुछ ऐसा ही होता, जैसा हो रहा है और बच्चे स्कूल जा रहे होते तो भी बात अलग हो जाती। लेकिन इन दिनों तो बच्चे घर पर हैं। हर पल कईं आँखें सीसी कैमरे की तरह उन पर गड़ी हैं। कई निर्देशों के साथ जेलर की भूमिका में घर के बड़े सिर पर सवार हैं।
अपवादों को छोड़ दे ंतो घर में बच्चों के साथ पालन-पोषण के निश्चित और वैज्ञानिक नियम नहीं हैं। अभिभावक आम तौर पर बच्चों के साथ कड़ाई के साथ पेश आते हैं। अधिकतर अभिभावक मानते हैं कि बच्चों को ज़्यादा पूछताछ नहीं करनी चाहिए। उन्हें सवाल पर सवाल नहीं करने चाहिए। बच्चों को घर में कठोर अनुशासन का पालन करना चाहिए। हाँ जी ही उनका स्वर होना चाहिए। आज्ञा पालन करना बच्चों का पहला और सबसे जरूरी धर्म-संस्कार है।
बड़े तो फोन पर कुशल क्षेम पूछ रहे हैं। खैर-ख़बर ले रहे हैं। लेकिन बच्चों की परवाह किसे है? क्या हम बड़े उन्हें उतना समय दे रहे हैं कि वे भी अपनी दुनिया को खगाल लें? क्या हम बच्चों के साथ सकारात्मक हैं? क्या वाकई हम घर में रहते हुए भी बच्चों के साथ हैं? जितना समय हमने उन्हें नसीहतें देने में खपा दिया, उसका बीस फीसदी समय उनके साथ बातचीत में गुजारा है? उनके साथ खेलने के कितने घण्टे हमने निकाले?

ऊपर से किताबी वेबदुनिया से दिया जा रहा गृहकार्य उन्हें और व्यथित कर रहा है। क्या आपको नहीं लगता कि ये लाॅकडाउन बच्चों के लिए जी जा जंजाल बन चुका है।
आइए ! कुछ बातें बच्चों के लिए करने की हैं। उन्हें साझा करते हैं-

माना कि बेहद मुश्किल दौर है। हम सबके लिए यह धैर्य से काम लेने का समय है। सबसे पहली बात हम सकारात्मक रहें। टीवी में आ रही मौत,भयावह ख़बरों से बच्चों को दूर ही रखें। ये ओर बात है कि यह सब समाज का हिस्सा है। इसी समाज में बच्चे रहते हैं। उन्हें कल इन सब समस्याओं का सामना करना है। हाँ कोरोना से संबंधित स्वस्थ समाचार जानकारीपरक सूचनाएं ज़रूर बताएं-दिखाएं। समझाए,चर्चा करें कि कैसे दुनिया इससे निपटने के प्रयास कर रही है।
बच्चों के साथ समय बिताएं। उन्हें अपने बचपन के, दादा-दादी के किस्से सुनाएं। आरीगेमी बना सकते हैं। कबाड़ से जुगाड़ की कुछ गतिविधियां कर सकते हैं। उन्हें इन दिनों भरपूर बोलने का अवसर दें। टेनग्रेम की गतिविधियां कर सकते हैं। चित्रकारी कर सकते हैं। इनडोर गेम खेल सकते हैं। कठिन परिस्थितियों में जीने की कला पर बात कर सकते हैं। घर के और रसोई के काम में उन्हें व्यस्त रख सकते हैं। इन दिनों उनकी नियमित दिनचर्या बना सकते हैं। कब सोना है? कब उठना है? कब टीवी देखना है? कितनी देर देखना है। पढ़ाई-लिखाई से संबंधित चीज़ें कब और कितनी देर कर सकते हैं? डिस्कवरी चैनल उनके साथ बैठकर देख सकते हैं। उनके साथ योगा के कुछ आसन कर सकते हैं। घर की सफाई कर सकते हैं। किताबों को ठीक कर सकते हैं। कुछ किताबों का सस्वर वाचन कर सकते हैं। गीत-संगीत सुन सकते हैं। उन पर चर्चा कर सकते हैं। व्यक्तिगत साफ-सफाई पर बात कर सकते हैं। बच्चों के दोस्तों से बात करा सकते हैं। परिजनों से बात करा सकते हैं। यदि वे सहमत हों तो उनके अध्यापकों से बात करा सकते हैं। बच्चे यदि उदास या गुमसुम दिखाई देते हैं, तो उनके निकट बैठ सकते हैं। एक दोस्त की मानिंद उन्हें सुन सकते हैं। उनकी पसंद-नापसंद चीजों के बारे में बात कर उनका तनाव कम किया जा सकता है।
कुछ सार्थक गृह कार्य दिया जा सकता है-
एक-अंग्रेजी और हिन्दी दोनों में भी या सुविधाजनक तरीके से जिस पर बच्चे सहज हों, रसोई की ची़जों,वस्तुओं की सूची बनवाई जा सकती है। रसोई में बनने वाले भोजन की लिखित में रेसिपी लिखवाई जा सकती है। रसोई के सब खाद्य पदार्थ भारतीय नहीं हैं। कौन-कौन सी ऐसी चीज़ें हैं जो विदेशी हैं और अब हमारी रसोई का अभिन्न हिस्सा हो गई हैं? उनके बारे में बच्चे लिख सकते हैं।
दो-घर,कमरों में उपलब्ध सामान की सूची बनवाई जा सकती है। उन्हें भी बांटा जा सकता है। स्थानीय,भारतीय और विदेशी सामान की सूची अलग-अलग बनवाई जा सकती है।
तीन-दर्पण,रसोई गैस, पंखा,कूलर, फ्रीज, टीवी,कंप्यूटर,लैपटाॅप,मोबाइल,टाॅर्च, तकनीकी और गैर तकनीकी वाले सामान की कार्यप्रणाली पर लिखवाया जा सकता है।
चार-घर के सामान में लकड़ी,लोहा,प्लास्टिक की चीजों,सामान,वस्तुओं की सूची बनवाई जा सकती है। इस पूरी प्रक्रिया में मिट्टी के बरतन से लेकर स्टील,तांबा,लकड़ी लोहा की प्रक्रियाओं पर बच्चे अपने विचार लिख सकते हैं।
पाँच-स्टोर में रखे सामान पर बात हो सकती है। फिल्टर कैसे काम करता है। फिल्टरों के प्रकारों पर बात हो सकती है। पानी पर बात हो सकती है।
छःह-कपड़े धोने के साबुन,नहाने के साबुन,शैम्पू, सौंदर्य प्रसाधनों को गहराई से समझने, उनके रासायनिक तत्वों और उसका हम पर असर आदि पर चर्चा और लेखन करवाया जा सकता है।
सात-हिंदी,संस्कृत,अंग्रेजी के यदि शब्दकोश हैं तो उनकी मदद से बच्चों को खूब व्यस्त रखा जा सकता है। वे प्रतिदिन सिर्फ एक-एक मनचाहा नया शब्द काॅपी पर उतारेंगे। उसका अर्थ लिखेंगे। दस अलग-अलग वर्ण के एक-एक शब्द को उतारने को कहा जा सकता है। उसका उच्चारण भी सुना जा सकता है। लेकिन दूसरे दिन वे दस वर्ण पहले दिन के वर्ण और उनसे लिखे हुए शब्दों से भिन्न होंगे। माना आज बच्चों ने एबीसीडीइएफजीएचआईजे के एक-एक वर्ण लिखे तो कल वे केएलएमनओपी से टी तक के एक एक नए शब्द लिखेंगे। इस तरह फिर लौट कर एबीसीडी वर्ण तो दोहराए जाएंगे लेकिन ठीक अगले दिन नहीं और हर दिन नए शब्द लिखे जाएंगे। एक पैटर्न और नियम के तहत बच्चों को बढ़ा मज़ा आएगा।
आठ-घर में मानचित्र या एटलस है तो इससे कई गतिविधियां कराई जा सकती हैं। यह तो असीमित हैं। न सिर्फ शहरो,राज्यों देशों के नाम मात्र लिखवाएं जा सकते हैं बल्कि बहुत कुछ नया लिखवाया जा सकता है। वह भी समझ के साथ।

नौ- ग्लोब से तो कई गतिविधियाँ हो सकती हैं। ( जीत यायावर जी ने ग्लोब-एटलस की ये गतिविधियाँ - अभ्यास सुझाए हैं -
आम तौर पर इन्हें शिक्षा की अतिरिक्त और गैर जरूरी सामग्री ही समझा जाता है। बच्चों से निम्न बिंदु पर भी चर्चा की जा सकती है, उन्हें सोचने, समझने का मौका दें कि यदि -
1. हमारी पृथ्वी गेंद जैसी गोल न होकर थाली जैसी गोल होती तो क्या होता।

2. अगर पृथ्वी गेंद जैसी गोल है तो फिर ऑस्ट्रेलिया के लोग रूस के लोगो की तुलना में उल्टे चलते है क्या।
3. क्या होता यदि पृथ्वी झुकी न होती।
4. यदि पृथ्वी गोल है तो फिर एटलस के सभी विश्व नक्शों में अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस (विकसित) आदि देश हमेशा ऊपर ही नज़र क्यों आते है। गोले में तो कोई ऊपर - नीचे नहीं होता।

आदि।
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बहरहाल,मुझे लगता है कि रस्म अदायगी के तौर पर किताबी होमवर्क बच्चों पर थोपा जाने वाला काम है। यह उबाऊ होता है और इससे नीरसता बढ़ती है। जबरन लिखवाने वाला गृहकार्य सिर्फ पेज भरने वाला है। यह ऐसा दबाव माना जाएगा जिसमें बच्चे सीख नहीं रहे हैं बस उसकी काॅपी कर रहे हैं।
मैं नहीं मानता कि इन दिनों दिया जा रहा होमवर्क बच्चों की अभिरुचियों का है। बच्चों के अपने अनुभवों के लिए क्या उस होमवर्क में स्थान है? लेकिन ऊपर जो काम सुझाया गया है वह उनकी इच्छा और अनुभव पर केन्द्रित है। भले ही आपने कुछ नियम और पैटर्न बनाए हैं पर कुछ आजादी है जिसकी वजह से वह इसे करने में आनंद लेंगे।

कमाल तो यह हो रहा है कि वेबआधारित जो गृह दिया जा रहा है उसमें भी स्पर्धा का भाव पैदा किया जा रहा है। व्हाट्सएप पर जो बच्चे काम की गवाही दे रहे हैं हम उन्हें शाबासी भेज रहे हैं। दूसरा जो बच्चे नहीं कर पा रहे हैं या धीमें हैं उन्हें उसी लहज़ें में आदेश-निर्देश-समझाइश का एक भी अवसर नहीं चूक रहे हैं।
जिस तरह के गृहकार्य को दिए जाने की यह आलेख सिफारिश कर रहा है उसमें एक बात दीगर है उसकी जांच गलतियां निकालने के लिए न की जाए। दूसरा स्कूल में और परीक्षा में अंक कट जाएंगे वाली बात घर में कदापि न की जाए। स्कूल में वैसे ही तनाव है। अब हम घर में भी बच्चों को तनाव क्यों दें?
अभी कल ही एक प्रतियोगिता पढ़ रहा था। वह कोरोना काल में बच्चों से घर पर रह कर करवाई जा रही है। अच्छी बात है। लेकिन दस सर्वश्रेष्ठों के इनाम देने की घोषणा से आप क्या साबित करना चाहते हैं? श्रेष्ठतम,श्रेष्ठ,समान्य, सामान्य से कम और असफल के ठप्पे लगाने वाले आप कौन होते हैं?
मेरा साफ मानना है कि गृह कार्य यदि दिया भी जा रहा है तो उसमें बच्चे के लिए कितनी आज़ादी है? स्वायत्तता का स्थान है? अध्यापक को भी गृह कार्य कैसा देना है? इसकी आजादी है? कही ऐसा तो नहीं कि बच्चों के लिए ये दिन उन पर मनमाना आदेश थोपने जैसे कट रहे हों? क्या हम ऐसा गृहकार्य दे पा रहे हैं जिसमें बच्चे का चिंतन कौशल बढ़ रहा है? अचरज करने वाली पाठ्य सामग्री दे पा रहे हैं? आनंद प्रदान करने वाला गद्य या पद्य दे पा रहे हैं? जो गृह कार्य हम दे रहे हैं उसमें घर में भले ही एक ही बच्चा है वह अभिभावकों से विचार विमर्श कर उसे लिख रहा होगा। हम कब समझेंगे कि ज्ञान का सृजन केवल विद्यालय में नहीं होता। ज्ञान का स्रोत एक मात्र पाठयपुस्तकें भी नहीं हैं। ज्ञान के वेत्ता मात्र शिक्षक ही नहीं हैं। हाँ। मैं ऐसे काम को दिए जाने का पक्षधर हूं जो बच्चों में घर बैठे खोजबीन करने की आजादी दे। वह काम चुनौतीपूर्ण भी हो चलेगा लेकिन वह सिरदर्द पैदा कर दे, यह उनके साथ अत्याचार से कम नहीं।

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पुनश्च: ऐसी गतिविधियां जो बच्चों को बोझ न लगें और वे उसे स्कूली काम न समझें। आप भी सुझाइएगा। मैं एक अध्यापक हूं और अभिभावक भी। मैं भी कोरोना काल में बच्चों को समझने का प्रयास कर रहा हूँ। कृपया मदद कीजिएगा।

-मनोहर चमोली ‘मनु’
7579111144
***सभी फोटोज़ अलग-अलग दिनों की हैं। कुछ फोटोज़ कोरोनाकाल से पूर्व की हैं।

1 टिप्पणी:

यहाँ तक आएँ हैं तो दो शब्द लिख भी दीजिएगा। क्या पता आपके दो शब्द मेरे लिए प्रकाश पुंज बने। क्या पता आपकी सलाह मुझे सही राह दिखाए. मेरा लिखना और आप से जुड़ना सार्थक हो जाए। आभार! मित्रों धन्यवाद।