10 नव॰ 2010

दूर हुई परेशानी [ बचपन ]

एक गाँव में रसीले आम का पेड़ था। लेकिन बच्चे थे कि हर बार आम पकने से पहले ही उन्हें तोड़ कर खा लेते थे।

एक दिन आम का पेड़ उदास था। हवा ने उससे पूछा-‘क्यों भाई। क्या बात है?’

आम के पेड़ ने कहा-‘हवा बहिन। क्या बताऊँ? काश। मैं किसी घने जंगल में उगा होता। आबादी के पास हम फलदार वृक्षों का होना ही बेकार है। मुझे देखो। मैंने अब तक अपनी काया में पके हुए फल नहीं देखे। ये इन्सानों के बच्चे फलों के पकने का भी इंतज़ार नहीं करते। देखो न। गाँव के बच्चों ने मुझ पर चढ़-चढ़ कर मेरे अंगों का क्या हाल बना दिया है। कई टहनियों और पत्तों को तोड़ डाला है। फल तो ये पकने ही नहीं देते।’

हवा मुस्कराई। फिर पेड़ से बोली-‘पेड़ भाई। दूर के ढोल सुहावने होते हैं। घने जंगल में फलदार वृक्ष तो तुमसे भी ज़्यादा दुखी हैं।’

‘मुझसे ज़्यादा दुखी है ! क्या बात कर रही हो ?’ पेड़ ने चौंकते हुए पूछा।

‘और नहीं तो क्या। जंगल के फलदार पेड़ अपने ही शरीर के फलों से परेशान रहते हैं। पेड़ों में फल बड़ी संख्या में लगते हैं। वहां फलों को खाने वाला तो दूर तोड़ने वाला भी नहीं होता। पक्षी कितने फल खा पाते हैं। फल पेड़ पर ही पकते हैं। पेड़ बेचारे अपने ही फलों का वज़न नहीं संभाल पाते। अक्सर फलों के बोझ से पेड़ों की कई टहनियां और शाख टूट जाती हैं। पके फलों का बोझ सहते-सहते पेड़ का सारा बदन दुखता रहता है। जब फल पक कर गिर जाते हैं, तभी जंगल के पेड़ों को राहत मिलती है। यही नहीं ढेर सारे पके हुए फल पेड़ के इर्द-गिर्द गिरकर ही सड़ते रहते हैं। पेड़ बेचारे अपने ही फलों की सड़ांध में चुपचाप खड़े रहते हैं।’ हवा ने बताया।

‘अच्छा! बहिन। फिर तो मैं ऐसे ही ठीक हूँ। मेरे फल इतने मीठे हैं, तभी तो बच्चे उनका पकने का इंतज़ार तक नहीं करते। याद आया। पतझड़ के मौसम में बच्चे मेरे पास भी फटकते नहीं हैं। उन दिनों मैं परेशान हो जाता हूँ। एक-एक दिन काटे नहीं कटता। तब मैं सोचता तो हूं कि आख़िर वसंत कब आएगा। रही बात मेरी टहनियों और पत्तों की तो वसंत आते ही मेरे कोमल अंग उग आते हैं।’ आम के पेड़ ने हवा से कहा।

हवा मुस्कराते हुए आगे बढ़ गई।


मनोहर चमोली 'मनु'
पोस्ट बॉक्स-23, पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड - 246001 मो.- 9412158688
manuchamoli@gmail.com

2 टिप्‍पणियां:

  1. बच्चों के बिना घर तो क्या बाग़ भी सूना लगता है| सुन्दर प्रेरणा देती कहानी|

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