3 मई 2012

वो अपना सा लगता है.....

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उसका आना खलता है
मुझको भी वो खटता है

बहार आने से पहले
पुराना पत्ता गिरता है

वो मेरा नहीं है मगर
मेरी चरचा करता है

मुझको कौन बुलाता है
जी क्यों मिरा मचलता है

दुनिया गैर सही यारों
वो अपना सा लगता है.

सोना तब निखरे है जब
भट्टी में वो तपता है

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मनोहर चमोली ‘मनु’.

3 मई 2012.गोधूलि की बेला में।

2 टिप्‍पणियां:

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