तुझसे कैसी यारी है
सबको लगती भारी है
दाना पानी बस हुआ
अब अपनी तैयारी है
कैसे अब बतलाऊँ मैं
कैसे रात गुजारी है
पीछे से है वार किया
ये कैसी दिलदारी है
मेरा है तो आ भी जा
फिर क्यों परदादारी है
वो भी रूठ गया अब तो
कैसी दुनियादारी है
क्या पछताना अब मैंने
जीती बाज़ी हारी है
न जाऊँगा बिन बुलाए
मेरी भी खुद्दारी है
-मनोहर चमोली ‘मनु’
डायरी से...13 मई 2010
सबको लगती भारी है
दाना पानी बस हुआ
अब अपनी तैयारी है
कैसे अब बतलाऊँ मैं
कैसे रात गुजारी है
पीछे से है वार किया
ये कैसी दिलदारी है
मेरा है तो आ भी जा
फिर क्यों परदादारी है
वो भी रूठ गया अब तो
कैसी दुनियादारी है
क्या पछताना अब मैंने
जीती बाज़ी हारी है
न जाऊँगा बिन बुलाए
मेरी भी खुद्दारी है
-मनोहर चमोली ‘मनु’
डायरी से...13 मई 2010
मेरा मेल-manuchamoli@gmail.com है। ब्लाॅग लिंक है- http://alwidaa.blogspot.in
सुन्दर प्रस्तुति...सस्नेह...
जवाब देंहटाएंshukriya aapka.
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