6 मई 2012

'औरत की भाषा'______

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'औरत की भाषा'

औरत की अपनी भाषा होती है
जो गाती है संगीत के साथ
चुपचाप मौन और उदास
वो राग अलापती है जिंदगी के
उसके गीतों में लय है माटी की
जो सने और गढ़े जाते हैं
सुबह सवेरे से देर रात तलक के कामों के साथ
वो रात को सोते हुए भी बुनती है नये गीत
जो होते हैं हमारे और तुम्हारे लिए,
आने वाली पीढ़ी के लिए
उसके सीने में बजती है वीणा
जिसके तारों की झनकार आनंदित करती है
औरत सबके लिए गाती है गीत
अमन के,खुशहाली के
उम्मीद और आशाओं के
औरत गाती है गीत सबके लिए
मगर कभी नहीं देखा उसे
गीत गाते हुए अपने लिए।
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डायरी से: सितंबर, 2006 विश्व साक्षरता दिवस पर

-मनोहर चमोली ‘मनु’
मेरा मेल-manuchamoli@gmail.com है। ब्लाॅग लिंक है- http://alwidaa.blogspot.in

9 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. अच्छा लगा कि आपने टिप्पणी की। आभार आपका।

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  2. आदरणीय मित्र धन्यवाद। बहुत-बहुत शुक्रिया आपका।

    जवाब देंहटाएं

यहाँ तक आएँ हैं तो दो शब्द लिख भी दीजिएगा। क्या पता आपके दो शब्द मेरे लिए प्रकाश पुंज बने। क्या पता आपकी सलाह मुझे सही राह दिखाए. मेरा लिखना और आप से जुड़ना सार्थक हो जाए। आभार! मित्रों धन्यवाद।