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'औरत की भाषा'
औरत की अपनी भाषा होती है
जो गाती है संगीत के साथ
चुपचाप मौन और उदास
वो राग अलापती है जिंदगी के
उसके गीतों में लय है माटी की
जो सने और गढ़े जाते हैं
सुबह सवेरे से देर रात तलक के कामों के साथ
वो रात को सोते हुए भी बुनती है नये गीत
जो होते हैं हमारे और तुम्हारे लिए,
आने वाली पीढ़ी के लिए
उसके सीने में बजती है वीणा
जिसके तारों की झनकार आनंदित करती है
औरत सबके लिए गाती है गीत
अमन के,खुशहाली के
उम्मीद और आशाओं के
औरत गाती है गीत सबके लिए
मगर कभी नहीं देखा उसे
गीत गाते हुए अपने लिए।
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-मनोहर चमोली ‘मनु’
मेरा मेल-manuchamoli@gmail.com है। ब्लाॅग लिंक है- http://alwidaa.blogspot.in
बहुत सुन्दर....वाह:
जवाब देंहटाएंshukriya aapka ji...
हटाएंवाह, बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा कि आपने टिप्पणी की। आभार आपका।
हटाएंबहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
आभार मित्र। धन्यवाद।
हटाएंबहुत सुंदर ...
जवाब देंहटाएंआभार मित्र। धन्यवाद।
हटाएंआदरणीय मित्र धन्यवाद। बहुत-बहुत शुक्रिया आपका।
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