23 जून 2017

child story nandan नंदन : जुलाई 2017

'मैं हूं दोस्त तुम्हारी'


-मनोहर चमोली ‘मनु’


‘भारी बारिश के कारण स्कूल दो दिनों के लिए बंद रहेगा।’ टिन्नी की स्कूल बस के ड्राइवर अंकल का फोन था।

यह सुनकर टिन्नी और उसका छोटा भाई रोहन खुशी से उछल पड़े। मम्मी ने रसोई से ही आवाज़ लगाई-‘‘धमा-चैकड़ी बंद करो। पढ़ाई करो।’’

टिन्नी चहकते हुए बोली-‘‘ममा। होमवर्क कंपलीट है। अब दो दिनों तक नो होमवर्क, नो स्टडी।’’ मम्मी ने कहा-‘‘ठीक है। मैं रसोई की सफाई करती हूं। तब तक तुम दोनों रूम्स की सफाई करो। उसके बाद तुम्हें किशमिश वाला हलुवा बनाकर खिलाती हूं।’’


रोहन टिन्नी से बोला-‘‘मैं छोटा हूं। मैं छोटा रूम साफ करता हूं। आप बड़ी हो। आप बड़ा रूम साफ करोगी। ड्राइंगरूम भी। देखते हैं, कौन पहले कंपलीट करता है।’’


टिन्नी हंस पड़ी। आंखें मटकाते हुए बोली-‘‘अच्छा बच्चू। यहां भी होशियारी। चल फिर भी, मुझे तेरा चेलेंज स्वीकार है।’’ 

छोटे कमरे की सफाई करते-करते रोहन को कुर्सी के पीछे बाॅल मिल गई। वह सफाई छोड़कर बाॅल से खेलने लगा। टिन्नी ने पहले बड़ा कमरा साफ किया। अब वह ड्राइंगरूम को साफ करने लगी। तभी उसकी नज़र छत के एक कोने पर पड़ी। एक मकड़ी अपने जाले पर झूल रही थी।


‘‘संडे को तो मैंने झाड़ू से जाला साफ कर दिया था। इस मकड़ी ने फिर जाला बना डाला! आज इस मकड़ी की खैर नहीं।’’ 


टिन्नी ने हाथ में झाड़ू उठा लिया। ड्राइंगरूम की छत ऊंची थी। टिन्नी ने मेज सरकाई। मेज के ऊपर कुर्सी रखी और उस पर चढ़ गई। पर यह क्या! कुर्सी को मेज पर रखते-रखते वह झाड़ू फर्श पर ही छोड़ गई थी। टिन्नी संतुलन बनाते हुए वह कुर्सी से नीचे उतर ही रही थी कि उसके पैर डगमगा गए। वह धम्म से फर्श पर आ गिरी। फर्श पर कालीन बिछा था। टिन्नी ने दांये हाथ में झाड़ू पकड़ा और सावधानी से मेज पर चढ़ते हुए दोबारा कुर्सी पर चढ़ने लगी।


‘‘चोट तो नहीं लगी? ज़रा सावधानी से।’’
‘कौन?‘ टिन्नी बुदबुदाई।
‘मम्मी तो रसोई में है। रोहन छोटे वाले रूम में है। तो फिर मेरे कानों के नज़दीक ये कौन बोला?’ 


टिन्नी यहां-वहां देखने लगी। तभी कोने की दीवारों में बना जाला हिला और मकड़ी ने हवा में छलांग लगाई। 

वह किसी अदृश्य झूले में झूलते हुए फिर टिन्नी के कान के पास से गुजरी और धीरे से बोली-‘‘ये कि हम बोले। हम यानि वो, जिसका जाला तुम दो बार तोड़ चुकी हो। आज फिर से तोड़ने की तैयारी मे जुटी हो।’’ दूसरे ही क्षण मकड़ी अपने जाले में जाकर बैठ गई।


‘‘मैं तुम्हारा जाला तोड़ रही हूँ और तुम हो कि मेरी परवाह करते हुए पूछ रही हो कि चोट तो नहीं लगी। ज़रा सावधानी से। यही कहा था न तुमने?’’

‘‘हां। मैंने यही कहा था। मेरी तरह तुम्हारे पास मजबूत जाला तो है नहीं कि तुम इतनी ऊंचाई से आसानी से नीचे उतर सको। मेरा तो घर भी यही है और रसोई भी।’’

‘‘लेकिन तुम तो दूसरों को जाल में फंसाती हो और फिर उन्हें मारकर खा जाती हो। तुम बुरी हो इसलिए मैं तुम्हारा जाला बार-बार हटाती हूं। तुम हो कि बार-बार बना देती हो।’’

‘‘मैं जाल में किसी को नहीं फंसाती हूं। वो मेरे घर में आ घुसते हैं। बस मैं दौड़कर अपने शिकार को मार डालती हूं।’’

‘‘आप भी तो हमारे घर में आ घुसी हो। मैं आपको मार डालूं तो?’’

‘‘मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? वैसे मैं भी क्या करूं? मैं उस जगह में ही तो अपना जाला बनाऊंगी, जहां मुझे भोजन मिलेगा। आपके घर में मुझे कीट-पतंगे और मक्खियां मिलती हैं। मैं तो अपने शिकार के शरीर से पोषक रस ही चूस पाती हूं। मैं तुम्हारी तरह ठोस भोजन नहीं खा सकती। वैसे तुम मेरा जाला तोड़कर एक तरह से मुझे मार ही तो रही हो। जबकि मैं तुम्हारी दोस्त हूं।’’

‘‘दोस्त हो? तुमसे कौन दोस्ती करेगा? तुम तो विषैली हो?’’

‘‘हां मैं विषैली हूं। पर कीट-पंतगों और मक्खियों के लिए। तुम्हारी तरह बहुत हैं, जो यह नहीं जानते कि मेरी जैसी अधिकांश घरेलू मकड़ियों का विष तुम पर असर नहीं करता। फिर भी मुझे तुम मारना चाहती हो? जबकि मैं तुम्हारी दोस्त हूं।’’

‘‘तुम मेरी दोस्त कैसे हो सकती हो?’’

‘‘बताती हूं। मैं अगर कीट-पतंगों को अपना शिकार न बनाऊं तो वे बढ़ते चले जाएंगे। मैं मच्छरों और विषैले कीटों को खाती हूं। मेरे बारीक रेशमी तंतुओं से आॅप्टिकल उपकरणों के महीन तार बनते हैं। यही नहीं फसलों और तुम्हारे शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को भी तो मैं खाती हूं। तो बताओं, मैं तुम्हारी दुश्मन हुई कि दोस्त?’’

‘‘लेकिन, फिर भी। घर में जाले कोई क्यों पसंद करेगा?’’

‘‘अरे। साफ-सफाई रखने को कौन मना कर रहा है। मेरी जैसी मकड़ियां वहीं तो रहेंगी,जहां उन्हें शिकार मिलेगा। यदि यहां शिकार न मिले तो मैं कहीं ओर अपना डेरा बना लूंगी। लेकिन इतना समझ लो कि हम मकड़िया रीढ़ वाले जीवों की दोस्त हैं।’’

‘‘अरे! ये क्या कर रही हो। गिरोगी क्या? चलो छोड़ो इस झाड़ू को। हलुवा बन चुका है। साफ-सफाई मैं अपने आप करती हूं।’’

मम्मी रसोई से सीधे ड्राइंगरूम में आ गई। मम्मी मेज-कुर्सियां ठीक कर रही थी और टिन्नी मकड़ी को देखकर मुस्करा रही थी। वहीं रोहन रसोई में पहुंच चुका था। कमरों की सफाई करने का कंपीटीशन वे दोनों ही भूल चुके थे।


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-मनोहर चमोली ‘मनु’

-09412158688

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यहाँ तक आएँ हैं तो दो शब्द लिख भी दीजिएगा। क्या पता आपके दो शब्द मेरे लिए प्रकाश पुंज बने। क्या पता आपकी सलाह मुझे सही राह दिखाए. मेरा लिखना और आप से जुड़ना सार्थक हो जाए। आभार! मित्रों धन्यवाद।