27 मार्च 2012

बाल कहानी - ‘दूध चोर’

दूध चोर

-मनोहर चमोली ‘मनु’

    लूसी बिल्ली बहुत ही चालाक थी। लूसी एक ही बात कहती-‘‘मुझसे ज़्यादा होशियार कोई नहीं। राजा शेर भी मुझसे सलाह लेता है।’’
जंगलवासी लूसी की चालाकी से परेशान थे। उसकी धूर्तता और मक्कारी सभी जानते थे। एक दिन की बात है। सब जंगलवासी चैपाल में बैठे थे। गिलहरी ने खरगोश से कहा-‘‘लूसी है तो बहुत होशियार। मगर उसकी होशियारी किसी के काम की नहीं। वो एक कदम भी तभी बढ़ाती है, जब उसे कोई फायदा होने वाला हो।’’
गाय बकरी से बोली-‘‘वो चालाक नहीं मतलबी है।’’ तभी हैचू चूहा बोला-‘‘बातें बनाने से कुछ न होगा। उसे सबक सिखाना होगा। अगर तुम सब साथ दो, तो उसकी सारी हेकड़ी छूमंतर हो जाएगी।’’ सबने हैचू चूहे को सहयोग करने की बात कही। हैचू ने अपनी योजना सबके सामने रखी। सब खुश हो गए। सबने वादा किया कि लूसी को इस योजना का पता नहीं चलेगा।
    एक दिन की बात है। लूसी पानी पीने तालाब की ओर जा रही थी। गाय प्यार से बोली-‘‘लूसी जी आप और शेर एक ही खानदान के हो। मगर शेर जंगल का राजा है और आप! आप उसके आधीन हो। वैसे आप शेर से ज्यादा होशियार हो।’’ यह सुनकर लूसी चैंक पड़ी। वो तालाब की ओर चल पड़ी। उसने पानी में मुंह डाला। तालाब में कछुआ था। कछुआ बोला-‘‘अरे! लूसी जी। मैं तो डर गया था। पानी में आपकी छाया ऐसे लगी, जैसे शेर आ गया हो। मेरी तो जान ही निकल गई थी। आप तो शेर की तरह लग रही थीं।’’
    लूसी वापिस लौटी तो हिरनों का झुण्ड घास चर रहा था। लूसी बिल्ली को देखकर एक हिरन चिल्लाया-‘‘भागो! शेर आ रहा है।’’ लूसी चिल्लाई-‘‘अरे! भागो मत। मैं हूँ लूसी। बिल्ली।’’ लेकिन तब तक हिरनों का झुण्ड आंखों से ओझल हो चुका था। लूसी अपने घर के नजदीक पहुंच गई। एक गधा वहां घास चर रहा था। बिल्ली गधे से बोली-‘‘गधे भाई। सच बताना। मैं तुम्हें कैसी दीखती हूँ।’’ गधा बिल्ली को गौर से देखने लगा। फिर सब बातों से अनजान बनता हुआ बोला-‘‘अच्छी लगती हो। बस और क्या।’’
    ‘‘अरे नही! मेरा मतलब मैं किसकी तरह लगती हूँ? मेरी तुलना तुम किससे कर सकते हो?’’ गधा फिर लापरवाही से बोला-‘‘मैं तो गधा ठहरा। मेरे पास इतना दिमाग कहां। मगर लूसी जी। आप भले ही कद में छोटी हो। मगर आपका दिमाग तो बहुत बड़ा है। आप में गजब की फुर्ती है। काश! मेरे अंदर इतनी फुर्ती होती तो, मैं इस जंगल का राजा होता। वैसे एक बात कहता हूं। किसी से कहना मत। मेरा वश चले तो मैं आपको इस जंगल का राजा बना दूं।’’ यह कह कर गधा चला गया।
    यह सुनते ही लूसी हवा में उड़ने लगी। वो अपनी तुलना शेर से करने लगी। तभी हैचू चूहा आ गया। बिल्ली से बोला-‘‘लूसी बहिन। चारों ओर तुम्हारी ही चर्चा है। हर कोई तुम्हें जंगल का सबसे होशियार प्राणी मानता है। अब तुम्हारा मुकाबला सिर्फ शेर से है। शेर ताकतवर है। वो रोजा़ना दूध पीता है। ढेर सारा। अब तुम्हें भी दूध पीना चाहिए। जिस घर में भी तुम्हें दूध दिखाई दे, जाओ और पी जाओ। मगर चोरी से। किसी को कुछ भी बताने की जरूरत नहीं है। अगर तुम चाहो तो हम तुम्हें राजा बनाने में मदद कर सकते हैंै।’’
    लूसी बिल्ली हैचू चूहे की बातों में आ गई। उसने ठान लिया कि वो घर-घर जाकर दूध पी लिया करेगी। उसे जैसे ही मौका मिलता, वो चुपके से किसी के भी घर में घुस जाती और सारा दूध गटक जाती। लूसी की इस हरकत से सभी परेशान होने लगे। कई बार लूसी दूध पीते हुए रंगे हाथों पकड़ी गई। मगर लूसी थी कि दूध पीने की हरकत छोड़ नहीं पाई। बात राजा शेर के पास पहुंची। लूसी को हाजिर किया गया। दूध की चोरी का वो कारण नहीं बता पाई। आखिर बताती भी कैसे?
लेकिन हैचू चूहा बोल पड़ा-‘‘महाराज! मै बताता हूँ। दरअसल लूसी की नजर आपकी कुर्सी पर है। वो राजा बनना चाहती है। दूध पीकर वो आपकी तरह ताकतवर बनना चाहती है।’’
    यह सुनकर राजा शेर हँस पड़ा। फिर गुस्से में दहाड़ते हुए बोला-‘‘राजा से गद्दारी। मूर्ख। शेर कभी दूध नहीं पीता। अब मेरा आदेश सुन ले। तूझे और तेरी आने वाली पीढ़ी को अब आजीवन दूध चोरी से पीना होगा। देखना। तेरी नस्ल कभी भी वफादार नहीं हो पाएगी। अब जा यहां से और कभी मुझे अपना मुंह मत दिखाना।’’
बेचारी लूसी अपना सा मुंह लेकर रह गई। सब उसकी बेवकूफी पर हँस रहे थे। दरबार खत्म हुआ। जैसे ही हैचू चूहा बाहर आया। लूसी बोली-‘‘हैचू चूहे। ठहर। मैं तेरा खून पी जाऊँगी। ये सब तेरी साजिश थी।’’
यह सुनते ही हैचू चूहा बिल में दुबक गया। तभी से बिल्ली चूहे की दुश्मन बन गई। वहीं आज भी बिल्ली की चोरी से दूध पीने की आदत बरकरार है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

यहाँ तक आएँ हैं तो दो शब्द लिख भी दीजिएगा। क्या पता आपके दो शब्द मेरे लिए प्रकाश पुंज बने। क्या पता आपकी सलाह मुझे सही राह दिखाए. मेरा लिखना और आप से जुड़ना सार्थक हो जाए। आभार! मित्रों धन्यवाद।