29 सित॰ 2010

बाल कविता- बस्ता बेहद भारी है...

बस्ता बेहद भारी है
ढोना तो लाचारी है
पढकर याद करना है
रटना आज भी जारी है
श्यामपट्ट के धुंधले आखर
अब भी एक बीमारी है
गुरूजी के हाथ में डंडा
जाने  कैसी यारी है
कान पकड़ कर उठक-बैठक
मुर्गा बनना जारी है
छुट्टी में जो घंटी बजती
हमको लगती प्यारी है.
-मनोहर चमोली 'मनु'
[30-09-2010]

8 टिप्‍पणियां:

  1. बच्चों को छुट्टी से प्यारा और क्या हो सकता है...बहुत अच्छी बाल । कविता..बधाई। कविता अच्छी लगी आपका ब्लॉग भी फॉलो कर रही हूं...

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  2. चमोली जी यह गुरुजी के हाथ के डंडे का ही कमाल है की आप और हम आज इस लायक बने हैं. गुरुजनों को सादर नमन. कविता अच्छी लगी.

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  3. .........aur kavita per comment karna
    baari hamaari hai.................baalmun ki achi abhivyakti hai bhai

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  4. ......बस्ता नहीं बेगारी है
    ......मिलती न जिसकी पगारी है।
    सुन्दर कविता के लिए बधाई!

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  5. sach hai, magar sochti hun,ye kaise badlega? Kya kabhi badal sakta hai? Kabhi lagta hai han kabhi lagta hai nahi! kisi school me jab atleast Principal se lekar teacher tak ki samajh me is baat ko lekar samrupta ho, shayad tab to han, magar yadi sirf 'ek-aadh' teacher hi koshish kare to mushkil hai. I m not a school teacher, magar vidyalya jagat ke bahut karib hun, so janti hun, ise badlne k liye mahaul me bada parivrtan chahiye, ghar-samaj-school aur in sabse jude logon ki mansikta me bhi, students-guardians-teachers sab me responsibilty ki feelings aani chahiye, varna dspln ki bhent bachpan ka chadhna jari rahega.

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  6. प्रोत्साहित करने के लिए आपका आभार. शुक्रिया. मैं भी ऐसा ही सोचता हूँ. सही कहा आपने. सोचने से ही सब कुछ नही बदलता. पर कुछ तो..सोचते ही नही..

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यहाँ तक आएँ हैं तो दो शब्द लिख भी दीजिएगा। क्या पता आपके दो शब्द मेरे लिए प्रकाश पुंज बने। क्या पता आपकी सलाह मुझे सही राह दिखाए. मेरा लिखना और आप से जुड़ना सार्थक हो जाए। आभार! मित्रों धन्यवाद।