31 मार्च 2012

बाल कहानी - धूर्त की दोस्ती

धूर्त की दोस्ती

-मनोहर चमोली ‘मनु’

    बहुत पुरानी बात है। एक मुर्गा था। साँप उसका दोस्त था। मुर्गा समय का पाबंद था। सुबह के चार जैसे ही बजते। मुर्गा बांग दे देता। वो बांग देना कभी नहीं भूलता। गर्मी हो या बरसात। कड़ाके की सर्दी में भी मुर्गा चार बजते ही बांग दे देता। पशु-पक्षी ही नहीं मनुष्य भी मुर्गे की बांग सुनकर अनुमान लगा लेते कि सुबह के चार बज गए हैं। मुर्गे की बांग सुनकर ही सभी अपनी दिनचर्या शुरू करते।
    वहीं एक साँप बड़ा ही आलसी था। दिन भर वो अपने बिल में सोया रहता। भूख लगने पर ही वो उठता। शिकार करने में भी उसे आलस आता। कई बार तो वो मुर्गे के भोजन में से ही अपनी भूख मिटाता। मुर्गा साँप को समझाता। मगर साँप उसकी बात एक कान से सुनता और दूसरे कान से निकाल देता। मुर्गे की साँप से दोस्ती का सभी को पता था।
एक दिन तोते ने मुर्गे से कहा,-‘‘मुर्गे भाई। बुरा मत मानना। तुम बहुत ही भोले हो। बुजुर्गो का कहना है कि मित्रता अपने कुल और बिरादरी में ही फलती-फूलती है। साँप का और तुम्हारा कोई मेल है ही नहीं। डसना साँप की आदत में शामिल होता है। वो तुम्हें भी नुकसान पँहुचा सकता है।’’
मुर्गे को तोते की बात बुरी लगी। उसने पलट कर जवाब दिया,-‘‘तुम्हे हमारी दोस्ती भा नहीं रही होगी। तुम्हें क्या। मैं चाहे जो करूँ।’ यह सुनकर तोता चुप हो गया।
    समय गुजरता गया। सर्दी के दिन थे। मुर्गा एक-एक दाना चुगकर पेड़ की कोटर में जमा कर रहा था। ताकि बारिश के दिनों में खाने का गुजारा हो सके। शाम को जब मुर्गा चोंच में एक और दाना लेकर आया तो कोटर में साँप मुर्गे का जमा भोजन हड़प चुका था। मुर्गे को गुस्सा आ गया। वह साँप पर भड़क उठा। उसने साँप से कहा,-‘‘तुम मक्कार हो। आलसी कहीं के। ज़रा सी शर्म होती तो दिन भर शिकार करते और रात को आराम से सोते। मगर तुम्हें तो नींद प्यारी है। मेरे भोजन पर तुम्हारी हमेशा नजर रहती है। धूर्त कहीं के। दोस्ती के नाम पर तुम तो कलंक हो।’’
    साँप चुप रहा। मगर उसने ठान लिया कि इस अपमान का बदला एक दिन जरूर लेना है। उसने मन ही मन में संकल्प लेते हुए कहा,-‘‘मुर्गे। बहुत फड़फड़ाता है। तुझे ऐसा सबक सिखाऊंगा,कि तू ज़िंदगी भर याद रखेगा।’’ अब साँप मुर्गे को सबक सिखाने की युक्ति सोचने लगा। उसने मुर्गे के साथ दोस्ती का व्यवहार नहीं छोड़ा। बल्कि वो दिखावे के लिए मुर्गे के लिए भी शिकार पकड़ कर लाता। दोनों एक ही थाली में खाते। मुर्गा मन ही मन साँप की दोस्ती पर नाज़ करता। साँप जान चुका था कि मुर्गे को भोजन में मक्का के दाने बहुत पसंद हैं। एक दिन की बात है। दोनोें पेड़ की कोटर में बैठे सुस्ता रहे थे। साँप ने मुर्गे से कहा,-‘‘अगर ये कोटर मक्का के दानों से भर जाए तो?’’
    यह सुनकर मुर्गा उछल पड़ा। साँप ने आगे कहा,-‘‘हाँ। मैं सच कह रहा हूँ। इस पेड़ के नीचे चूहों का महल है। कल सुबह वो किसान के खेत में हमला बोल रहे हैं। तुम तो जानते हो। किसानों की मक्का की फसल पक चुकी है। चूहे मक्का की फसल कटने से पहले ही अपना भंडार भरने वाले हैं। कल सुबह जैसे ही तुम बांग दोगे, चूहों का झूण्ड किसानों के खेत से मक्का के दानों से अपना भंडार भरना शुरू कर देंगे। सुबह होने से पहले वो जितना अनाज अपने भंडार में भर लेंगे,उनके कई महीनों का प्रबंध तो हो ही जाएगा। अगर तुम रात के बारह बजे ही बांग दे दोगे,तो उन्हें सुबह तक काफी समय मिल जाएगा। जब वो अपना भंडार भर लेंगे। तब मैं उन पर हमला बोल दूंगा। मेरे डर से चूहे अपना भंडार क्या महल ही छोड़ कर भाग जांएगे। बस फिर क्या। उनके भंडार में हमारा कब्जा हो जाएगा।’’
    मुर्गा साँप की बातों में आ गया। वो बोला,-‘‘बस इतनी सी बात है। तुम कहो तो मैं रात के नौ बजे ही बांग दे देता हूँ।’’
    ‘अरे नहीं। इतनी भी जल्दी क्या है। जल्दी का काम शैतान का होता है। चूहे थके हुए होंगे। उन्हें कुछ घंटे आराम तो करने दो। तुम रात के बारह बजे ही जोर-जोर से बांग देना। अब तुम सो जाओ। कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी ही नींद न खुले और हमारी योजना धरी की धरी रह जाए।’’
यह कह कर साँप सोने का नाटक करने लगा। उधर मुर्गे की आँख में नींद कहां थी। वो तो मक्का के दानों के भंडार की कल्पना में डूब चुका था।
    रात के बारह बज चुके थे। मुर्गे ने बांग देनी शुरू कर दी। आस-पास के पशु-पक्षियों ने सोचा कि सुबह हो गई। उधर मनुष्यों ने भी सोचा कि सुबह के चार बज चुके हैं। सभी अपनी दिनचर्या के लिए उठे। सभी ने अपने घरों से बाहर आकर देखा तो आसमान में तारे चमक रहे थे। मुर्गा अभी भी बांग दे रहा था। पशु-पक्षियों सहित मनुष्य भी बाहर अँध्ेारा देखकर समझ गए कि मुर्गे ने चार बजे की जगह रात के अंध्ेारे में ही बांग दे दी है। मुर्गे ने देखा कि एक भी चूहा बिल से बाहर नहीं आया। उसने साँप से कहा,-‘‘मुझे तो कोई चूहा नजर नहीं आ रहा है। चूहों को क्या मेरी बांग नहीं सुनाई दे रही होगी?’’
 साँप ने जवाब दिया,-‘‘तुम ठीक कहते हो। चूहे थके होंगे। तुम ऐसा करो। बीच चैराहे में जाकर जोर-जोर से बांग दो।’’
    बेचारा मुर्गा चैराहे पर जाकर बांग देने लगा। एक बार जागकर मनुष्य दोबारा सो चुके थे। मुर्गे की बेवक्त की बांग सुनकर मनुष्य लाठी लेकर चैराहे पर जमा हो गए। मुर्गा आँख मूँदे बांग देने में मस्त था। मनुष्यों ने मुर्गे को घेर कर लाठियों से पीटना शुरू कर दिया। बेचारा मुर्गा जान बचाकर भागा। किसी ने कहा,-‘‘ये मुर्गा पागल हो गया है। इसने रात को ही बांग देना शुरू कर दिया है। इसके भरोसे रहना बेकार है। अब समय देखने के लिए हमें कुछ और तरीका निकालना होगा।’’
    इस तरह मक्कार साँप ने अपने अपमान का बदला ले लिया। ध्ूार्त साँप से दोस्ती कर मुर्गे की बांग देने की साख भी गई। कहते हैं कि तभी मनुष्य ने समय देखने के लिए घड़ी का आविष्कार किया।

-मनोहर चमोली ‘मनु’. पोस्ट बाॅक्स-23,भितांई,पौड़ी,पौड़ी गढ़वाल। 246001.मोबाइल-09412158688.

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