15 अक्तू॰ 2010

सुख का रास्ता

सुख का रास्ता

सुकरात को बंदी बना लिया गया। आरोप था कि वह जनता को भड़काता है। सुकरात को जेल में डाल दिया गया। यातनाएँ दी गईं। तय हुआ कि सुकरात को ज़हर का प्याला देकर मार दिया जाए। एक रात की बात है। रात के अँधेरे में कोई आया। सुकरात ने पूछा-‘‘कौन?’’
‘‘मैं क्रीटो। आपका परम भक्त।’’ यह कहकर क्रीटो ने सुकरात की बेड़ियाँ और सारे बंधन खोल दिए। उसने कहा-‘‘ये आपको मारने वाले हैं। भाग चलें।’’
सुकरात ने धीरे से कहा-‘‘नहीं भागना कायरता है। मैं ऐसा नहीं कर सकता।’’
क्रीटो अवाक् था। कहने लगा-‘‘गुरुवर मेरे लिए कोई संदेश।’’
सुकरात ने कहा-‘‘’’न्याय करने वाला कभी दुखी नहीं होता और अन्याय करने वाला कभी सुखी नहीं हो सकता। अन्याय सहन कर लो मगर कभी अन्याय मत करो।’’
क्रीटो ने सुकरात को नमन किया और चुपचाप चला गया। क्रीटो आगे चलकर महान दार्शनिक हुआ।

 



-मनोहर चमोली 'मनु' manuchamoli@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

यहाँ तक आएँ हैं तो दो शब्द लिख भी दीजिएगा। क्या पता आपके दो शब्द मेरे लिए प्रकाश पुंज बने। क्या पता आपकी सलाह मुझे सही राह दिखाए. मेरा लिखना और आप से जुड़ना सार्थक हो जाए। आभार! मित्रों धन्यवाद।