माँ! फूटने दे न मुझमें अंकुर
उगने दे धरती पर
खोलने दे मुझे आँखें
देखने दे उनसे सपने
माँ। सीखूँगी ज़िंदगी की लय
बुदबुदाने दे न इन होंठों को
लिखूँगी संघर्ष के गीत
मचलने दे इन हाथों को
माँ! पहुँचूँगी मंजिल तक मैं
बढ़ाने दे न मुझे क़दम
आँधी, लू, बाढ़ का करूँगी सामना
दे दे न सहारा मुझे थोड़ा-सा
माँ ! फिर देखना
मैं बना लूँगी अपनी राह
करूँगी साकार तुम्हारी आँखों के सपने
दूँगी छाँव घने पेड़ की तरह माँ
हाँ माँ! फूटने दे न मुझमें अंकुर।
-manohar chamoli 'मनु'
[2-10-2010]
उगने दे धरती पर
खोलने दे मुझे आँखें
देखने दे उनसे सपने
माँ। सीखूँगी ज़िंदगी की लय
बुदबुदाने दे न इन होंठों को
लिखूँगी संघर्ष के गीत
मचलने दे इन हाथों को
माँ! पहुँचूँगी मंजिल तक मैं
बढ़ाने दे न मुझे क़दम
आँधी, लू, बाढ़ का करूँगी सामना
दे दे न सहारा मुझे थोड़ा-सा
माँ ! फिर देखना
मैं बना लूँगी अपनी राह
करूँगी साकार तुम्हारी आँखों के सपने
दूँगी छाँव घने पेड़ की तरह माँ
हाँ माँ! फूटने दे न मुझमें अंकुर।
-manohar chamoli 'मनु'
[2-10-2010]
sunder prastuti hetu abhaar.............
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