2 अक्तू॰ 2010

माँ! फूटने दे मुझमें अंकुर
उगने दे धरती पर
खोलने दे मुझे आँखें
देखने दे उनसे सपने
माँ। सीखूँगी ज़िंदगी की लय
बुदबुदाने दे इन होंठों को
लिखूँगी संघर्ष के गीत
मचलने दे इन हाथों को
माँ! पहुँचूँगी मंजिल तक मैं
बढ़ाने दे मुझे क़दम
आँधी, लू, बाढ़ का करूँगी सामना
दे दे सहारा मुझे थोड़ा-सा
माँ ! फिर देखना
मैं बना लूँगी अपनी राह
करूँगी साकार तुम्हारी आँखों के सपने
दूँगी छाँव घने पेड़ की तरह माँ
हाँ माँ! फूटने दे मुझमें अंकुर।
-manohar chamoli 'मनु'
[2-10-2010]

1 टिप्पणी:

यहाँ तक आएँ हैं तो दो शब्द लिख भी दीजिएगा। क्या पता आपके दो शब्द मेरे लिए प्रकाश पुंज बने। क्या पता आपकी सलाह मुझे सही राह दिखाए. मेरा लिखना और आप से जुड़ना सार्थक हो जाए। आभार! मित्रों धन्यवाद।