न आया संदेश और न फोन मेरे यार का।
करुंगा सब्र भी लूंगा मज़ा इंतज़ार का ।।
न करोगे बहस न ही मुंह फेरोगे मुझसे।
फिर सब किया तो क्या रहा उस करार।।
फूल न खुशबुएँ न ही तितलियाँ चमन में।
फिर क्या मौसम और क्या मज़ा बहार का।।
कल थे जो दाम आज कहाँ मिलेंगे यारों।
यही है नियत यही है स्वभाव बाजार का।।
उसके हाथ में खंज़र और वो मेरे पीछे है।
अब जो हो खूँ न होगा मेरे ऐतबार का।।
भीड़ में अकेला भी रात का मुसाफिर ‘मनु’
यही सिला तो मिलना था तूझे प्यार का।।
-मनोहर चमोली ‘मनु’
करुंगा सब्र भी लूंगा मज़ा इंतज़ार का ।।
न करोगे बहस न ही मुंह फेरोगे मुझसे।
फिर सब किया तो क्या रहा उस करार।।
फूल न खुशबुएँ न ही तितलियाँ चमन में।
फिर क्या मौसम और क्या मज़ा बहार का।।
कल थे जो दाम आज कहाँ मिलेंगे यारों।
यही है नियत यही है स्वभाव बाजार का।।
उसके हाथ में खंज़र और वो मेरे पीछे है।
अब जो हो खूँ न होगा मेरे ऐतबार का।।
भीड़ में अकेला भी रात का मुसाफिर ‘मनु’
यही सिला तो मिलना था तूझे प्यार का।।
-मनोहर चमोली ‘मनु’
bahut sundar prastuti..
जवाब देंहटाएंtasveer lajawab lagi..dhanyavad
mehrbaani...shukriya...
हटाएंआपकी रचना बेहतरीन है !
जवाब देंहटाएंAABHAAR AAPKA Yogesh Sharma ji.
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