पसीना भी बहाया कर
चार पैसे बचाया कर
ज़ख़्म गहरे भी हों चाहे
गीत ख़ुशी के गाया कर
नौकरी में ना नहीं पर
अपने घर भी आया कर
खा ले होटल में लेकिन
चूल्हा तो जलाया कर
दिन कड़वा बीता हो पर
मीठे ख़्वाब सजाया कर
.............
-मनोहर चमोली ‘मनु’
-26 4. 2012. सुबह सवेरे में।
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