पहले तो बुलाते हो
काहे फिर रुलाते हो
दिन अवकाश के भी तो
घर में दफ्तर लाते हो
ख़ुद नज़रे मिलाते हो
फिर क्यों सिर झुकाते हो
खटपट रोज़ करते हो
झुककर फिर मनाते हो
उसका नाम ले लेकर
दिल मेरा दुखाते हो
....................
-मनोहर चमोली ‘मनु’
-21. 4. 2012. सुबह सवेरे.
पहाड़ों सी शुद्ध-शांति लिए होतीं हैं आपकी रचनायें...
जवाब देंहटाएंBahut Sunder
जवाब देंहटाएंthank you
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